पंडित, नाई और गोनू झा

गोनू झा के गाँव में फेरन मिश्र नाम के एक धनाढ्य ब्राह्मण रहते थे। मिश्रा जी के पास धन की कोई कमी नहीं थी। गोनू झा से उनके अच्छे संबंध थे।

एक बार मिश्रा जी को किसी बाहर गाँव में कथा बांचने जाना था। कथा एक सेठ के घर थी जहां से भारी दक्षिण मिलती थी। मिश्रा जी साल में चार बार तो जरूर ही सेठ के यहां कथा, कीर्तन कर देते थे और दक्षिणा में काफी माल बटोर लाते थे। मिश्रा जी अभी अधेड़ उम्र के ही थे।

उनका स्वभाव रंगीला था। सज-धजकर रहना उनका शौक था।

मिसराइन से इसी बात को लेकर तू-तू मैं-मैं भी होती रहती थी। मिसराइन को सदैव संदेह रहता था कि सज-धजकर बाहर जाने वाले मिश्रा जी कहीं कोई गुल तो नहीं खिला रहे।

खैर उस दिन कथा में जाने पहले मिश्रा जी ने चहरे पर आ रही। दाढ़ी-मूछों को हटाने के इरादे से जोरावर नाई को बुला भेजा।

जोरावर नाई था तो बड़ा काइयाँ पर यह भी जानता था कि मिश्रा जी उसे कुछ नहीं देंगे। हमेशा मुफ्त में दाढ़ी बनवाने वाले मिश्रा जी उसे क्या देने लगे।

वह अनमना-सा अपने औजार लेकर मिश्रा जी के यहां पहुंचा।

आ जा जोरावर, मिश्रा जी चहककर बोले - तेरे पास एक घंटे का टैम है। आज ऐसी दाढ़ी बना, ऐसी दाढ़ी बना कि पंडित जी दमक उठे।

कहीं ख़ास ठौर जाना लगता है महराज। जोरावर ने पूछा।

यही समझ ले। समझ कि मैं दर्पण देखकर खुश हुआ तो तुझे भी खुश करके भेजूंगा, मिश्रा जी ने कहा।

जोरावर जानता था कि वह मिश्रा जी का अचूक नुस्खा है। कह देने भर से ही खुश कर देने वाले आदमी थे।

बाहर चबूतरे पर बैठकर जोरावर मिश्रा जी की दाढ़ी गीली करने लगा। दो-चार लोग और बह आ बैठे।

बढ़िया-सी कारीगिरी दिखाना बेटा। खुश हुआ तो इनाम दूंगा। आसपास बैठे लोग होंठ दबाकर हंस पड़े।

महाराज, क्यों गरीब को सपने दिखाते हो ? जोरावर बोला - आजतक तो आपकी जेब से दमड़ी मिली नहीं। आज ही क्या जरूरत है।

पंडित जी ने घूरकर जोरावर को देखा।

अबे नाई, आज देखना। आज अगर तूने मेरी पसंद का काम कर दिखाया तो मैं तुझे कुछ जरूर दूंगा। मिश्रा जी ने अकड़कर कहा।

कुछ! पक्की बात ? जोरावर की भवन तन गई।

पक्का। पांच पंचों के बीच की बात है। कुछ तो तुझे मिलेगी ही।

जोरावर कुटिलता से मुस्कराया। कहते हैं कि नाई में छत्तीस अक्ल होती है। आज मिश्रा जी को भड़ी पड़ने वाला था। जोरावर ने अपना पूरा तजुरबा लगाकर मिश्रा जी की दाढ़ी, मूछों को साफ़ किया और दर्पण मंगाकर मिश्रा जी के सामने किया।

मिश्रा जी प्रसन्न हुए। आज तो वह अपनी उम्र से दस बरस कम लगने लगे थे।

प्रसन्न भए महराज ? जोरावर ने पूछा।

हाँ भई। काम वाकई अच्छा किया तूने। मांग ले कुछ। कुछ ही दे दो महराज।

अरे मांग तो सही। 'कुछ' मांग लिया न महराज।

'कुछ' का क्या मतलब ? मिश्रा जी सकपकाए। ये तो आप जानें। आपने ही कहा था की 'कुछ' मिलेगा। अब 'कुछ' के सिवा मुझे तो कोई चीज चाहिए नहीं। आप वादा कर चुके हैं। पंचों के सामने 'कुछ' जरूर दूंगा कहा है आपने। मुकर तो नहीं सकते।

अबे क्या अंट-शंट बक रहा है। कुछ का कोई मतलब तो बता। रुपया, पांच रुपया, दस- पांच सेर धान। कुछ तो बक।

पांच सौ रुपया। क्या बक रहा है ? मिश्रा जी भड़के।

या तो कुछ दीजिये या पांच सौ रुपया दीजिये। या फिर पंचायत में चलकर मुकर जाइए महाराज। शाम तक सोच लीजिए। जोरावर ने अपनी पेटी समेटी और चलता बना।

आज पहली बार मिश्रा जी फंसे थे। मिश्रा जी काठ का उल्लू बने रह गए। कैसा फंदा डाला कमीने नाई ने! कुछ मांगता है या कुछ का पांच सौ रुपया मांगता है। दोनों ही चीजें देना असम्भव था। मिश्रा जी पसीने-पसीने हो चले। फिर नहा-धोकर धंधे पर चल पड़े। पर सारे रास्ते चैन न मिला। बार-बार नाई की बात दिमाग से टकरा रही थी। क्या भरोसा उस नाई का। कहीं पंचायत ही न बिठा दे। सब किरकिरी हो जाएगी पर पांच सौ रूपये देना तो बड़ा मुश्किल काम था।

मिश्रा जी जैसे-तैसे कथा में तो पहुंचे पर आज उनकी वाणी में न तो पहले जैसा ओज था और न सरसता। परिणाम यह हुआ की चढ़ाव कम रहा और दक्षिणा में भी कटौती हो गई। रोते-कलपते, नाई को कोसते घर की तरफ लौटे। अभी गाँव के पास ही पहुंचे थे कि पलटन झा मिल गए।

प्रणाम महराज! ई का झाड़ पाल लिया ? पलटन झा ने पूछा।

क्या। ....क्या हुआ ? पंडित जी का दिल पसलियों से टकराया। ऊ ससुरा नउआ सारे गाँव में कहत फिरत है कि आप पर पंचायत करेगा।

शिव शिव! झा जी, इस छत्तीसे ने तो मुझे फंदे में डाल दिया। हुआ क्या ?

मिश्रा जी ने सारी बात बताई। झाड़ तो ससुरा कंटीला है मिश्रा जी। नउआ चालाक है। आप तो दुई तरफ से फंसे हो।

पलटन झा ने गम्भीर मुद्रा से कहा। अब मैं क्या करूं ? पंचायत में तो मिट्टी खराब हप जाएगी। पांच सौ रुपया देने होंगे।

अरे, इतना रुपया मेरे पास कहां रखा है। मिश्रा जी कलप उठे।

नहीं रखा तो भुगत लीजिए, पलटन झा हंसकर चले गए।

अब तो मिश्रा जी और भी परेशान हो उठे। गाँव की तरफ पैर न उठते थे। कहीं कोई राह न सूझ रही थी। घर की तरफ चल पड़े। रास्ते में जो भी मिलता अजीब तरह से प्रणाम करता।

मिश्रा जी मन-ही-मन कलप जाते। क्या विघ्न आ गया था उनकी अच्छी-खासी कुंडली में। आज घर जाकर अपनी कुंडली पढ़ेंगे।

आज तक तो कभी पढ़ी न थी। औरों की कुंडली बांचकर अपनी पोटली बांध लेते थे। एक छोटी जाती का नाई आज जैसे कालसर्प योग बनकर कुंडली में आ बैठा था।

और मजे की बात यह थी कि उसका कोई निवारण भी नहीं सूझ रहा था।

डर यह भी था कि घर पर मिसराइन की चख-चख सुनने को मिलेगी। वह ऐसा सुंदर मौका कहाँ छोड़ने वाली थी।

यह सोचकर तो मिश्रा जी का दिमाग और भी भन्ना गया। मिसराइन के व्यंग्य-बाणों की एक झड़ी तो उनकी आँखों के सामने तैर गई। अब क्या करे।

अचानक गोनू झा का नाम दिमाग में कौंधा। अहा! एक वही आदमी ऐसा है जो उन्हें इस विपत्ति से बचा सकता है। उसकी बुद्धि के तरकश में अवश्य ही कोई तीर ऐसा होगा जो उस नाई को चित्त कर देगा। बस फिर क्या था। मिश्रा जी ने फौरन गोनू झा के घर का रास्ता पकड़ा।

अब एक मात्र व्ही सहायक नज़र आ रहे थे। लोगों की तरह-तरह बातें सुनते-सुनते मिश्रा जी गोनू झा के घर पहुंच गए। संयोग की बात कि उसी समय गोनू झा खेत से लौटे थे।

प्रणाम मिश्रा जी आइए ! मैं आपकी ही प्रतीक्षा कर रहा था। गोनू झा बोले।

मेरी प्रतीक्षा ! भैया तुम्हें पता था कि मैं आऊंगा ?

पता था, जैसी समस्या आपके सामने है, उसमे आपको आना ही था।

फिर तो यह भी बता दो भैया की इस समस्या का कोई हल है या नहीं। महाराज, आप तो विद्वान हैं, शास्त्र पढ़े है आपने। इतना ज्ञान तो आपको होगा ही कि बिना समाधान के समस्या नहीं होती। जिस समस्या का कोई समाधान न हो तो वह समस्या नहीं बल्कि प्रभु का प्रकोप होता है।

यह तो ठीक कहते हो गोनू झा, मैं तुम्हारा बड़ा एहसान मानूंगा यदि तुम मुझे इस मुसीबत से छुटकारा दिला दो। मिश्रा जी गिड़गिड़ा उठे। मिश्रा जी, बेफिक्र रहिए। कल पंचायत बैठने दीजिये। मैं उस अक्लमंद नाई को ऐसा सबक दूंगा की साड़ी होशियारी भूल जाएगा। आप जरा भी चिंतित न हो।

आराम से घर जाएं, भोजन करें और आराम करें। आप बस इतना करे........ गोनू झा ने समझाया। मिश्रा जी के दिल से जैसे बड़ा बोझ उत्तर गया। सुबह से पहली बार उन्होंने चैन की साँस ली थी। उन्होंने गोनू झा को धन्यवाद किया और चल पड़े। रास्ते में नाई मिल ही गया। मिश्रा जी मुस्कराए। हाँ महराज, क्या विचार बनाया आपने ? नाई ने पूछा।

विचार क्या। वादा किया है पंचों के सामने तो निभाना पड़ेगा। तुझे कुछ तो जरूर ही मिलेगा बेटा। तू भी क्या याद करेगा।

गोनू झा के घर से आ रहे हैं महराज ! पर मेरे फंदे से वह भी आपको न निकाल सकेंगे। जोरावर चुनौती देने वाले भाव में बोला।

बेटा, पंचों के सामने वादा किया था और पंचायत में फैसला होगा। मिश्रा जी मुस्कुराकर अपने घर की तरफ चले गए।

जोरावर सोच में पद गया कि गोनू झा ने क्या सीखा दिया जो मिश्रा जी इतना निर्भय हो गए। सुबह तो वह उनके तोता उड़ाकर लौटा था।

कुछ समझ नहीं आ रहा था। अब रात भर जोरावर न सोया। उसने बहुत दिमाग लगाया कि उसके फंदे का तोड़ क्या हो सकता है। खुद उसे तो कुछ सूझ नहीं रहा था। आखिर सुबह पंचायत बैठ गयी।

सर्वसम्मति से गोनू झा को सरपंच बनाया गया। पंचो ने मामला सुना। गवाह ने पुष्टि की कि मिश्रा और नाई के बीच वही बाते हुई थी।

अब या तो मुझे मेरा 'कुछ' दिलाया जाए या मिश्रा जी को दंड के रूप में पांच सौ रुपया देने का आदेश दिया जाए, जरोवर बोला।

बात सौ फिसदी सच है मिश्रा जी। खैर जोरावर, जरा एक गिलास पानी तो ला। बड़ी प्यास लगी है, गोनू झा बोल।

जोरावर शंकित तो था पर कुंए से एक गिलास पानी लाकर गोनू झा को थमाया। गोनू झा ने एक घूंट पानी पिया और वापस गिलास नाइ को थमाया। अभी पकड़, फिर पिता हूँ। गोनू झा बोले - हाँ तो मिश्रा जी आपने इसे 'कुछ' देने का वायदा किया था जो की आप नहीं दे पा रहे।

सरपंच जी, ऐसा नहीं है।

मिश्रा जी ने कहा - जब मैंने वादा किया था वादा किया था तो क्यों व्यवस्था न करता। मैंने 'कुछ'की व्यवस्था कल ही कर ली थी। पर आज सुबह वह मेरी जेब से कहीं गम हो गया। अब दूसरे 'कुछ' के इंतजाम में समय तो लगेगा ही।

कितना समय लगेगा ?

लगभग एक माह।

क्यों भाई जरोवर, क्या तुम एक माह प्रतीक्षा कर सकता है ?

सरपंच जी, हम रिआया हैं। आज के काम की कीमत महीने भर बाद मिली तो हमारे बच्चे कैसे पलेंगे। जोरावर बोला।

बात तेरी भी ठीक है। मिश्रा जी, आपने अपना 'कुछ' कहाँ गुम कर दिया।

क्या पता सुबह कुँए पर स्नान करने आया था और दिशा मैदान गया था।

फिर तो मिश्रा जी। ........ गोनू झा ने कहा - ला जोरावर पानी दे। जोरावर ने हाथ में थमा गिलास गोनू झा की तरफ बढ़ाया कि ठिठक गया। गिलास के पानी में कुछ गिर गया था। पानी पीने लायक न रहा था।

झा जी, इसमें तो कुछ गिरा गया है और भरकर लता हूँ , वह बोला।

अबे क्या गिर गया ?

पता नहीं, कुछ अजीब सा ......

अरे 'कुछ' गिरा है तो मेरा होगा। मिश्रा जी चीख पड़े। सुबह कुँए पर स्नान करने आया था। शायद तब कुँए में गिर पड़ा होगा।

जोरावर सन्न रह गया।

निकाल ले भाई जोरावर। गोनू झा मुस्कुराकर बोले - तेरा कुछ मिल गया है। पंचों को भी फारिंग कर।

मगर-मगर जोरावर ने कुछ कहना चाहा।

अब अगर-मगर क्यों करता है। तूने 'कुछ' ही तो माँगा था और अभी पंचायत के सामने तूने खुद कहा है कि पानी की गिलास में कुछ गिरा है। यह 'कुछ' कुँए के अंदर से ही आया है। मिश्रा जी ने बताया ही था कि उनका 'कुछ' जो तुझे देना था गम हो गया है।

जोरावर चुप! वह फंस तो गया ही था। अब उसे समझ आया की गोनू झा साधारण बुद्धिमान न थे बल्कि किसी भी प्रकार की समस्या का समाधान खोजने में प्रवीण थे।

उसे उन पर क्रोध आ रहा था जो उन्होंने बड़ी मुश्किल से फंसे शिकार को उसके हाथ से निकल दिया था। पर वह क्या कर सकता था। जाती का नाई ही तो था। उसने बात से ही पंडित को फंसाया और बात से ही पंडित निकल गया था।

पंचायत अपने घर चली गई और सब गोनू झा की तारीफ की पुल बाँध रहे थे।