पांच वाणी

तिरुमल तेनालीराम का गहरा मित्र था।

हम्पी राज्य में उसकी एक बहुत मशहूर सराय थी, जिसका नाम था " दक्षिण का सूर्य " तिरुमल अपनी सराय से बहुत परेशान था।

उसकी सराय में सभी सुविधाएँ थी, भोजन बहुत स्वादिष्ट था, रहने-सोने की बेहतरीन व्यवस्था थी, साफ़-सुथरी थी, पर फिर भी उतने ग्राहक नहीं आते थे, जितने आने चाहिए थे। सराय बमुश्किल अपनी खर्चा निकाल पा ही रही थी।

थक हार कर तिरुमल ने एक दिन अपने मित्र तेनालीराम की सलाह लेने की सोची।

तेनाली ने तिरुमल की पूरी बात ध्यान से सुनी और बोला, यह तो बहुत आसान है। तुम सराय का नाम बदल दो। असम्भव। तिरुमल ने कहा, की पीढ़ियों से यह सराय पुरे विजयनगर राज्य में इसी नाम से मशहूर है।

वह सब मैं नहीं जनता। अगर इस सराय को बढ़िया तरिके से चलाना चाहते हो, तो इसका नाम बदल दो।

इसका नाम रखो 'पंच वाणी' और सराय के मुख्य द्वार पर छः बड़ी-बड़ी घण्टियाँ टाँग दो।

तेनालीराम ने कहा।

छः बड़ी घण्टियाँ! क्या कह रहे हो मित्र ! यह तो बड़ी अजीब बात है। नाम है-पंच वाणी और घण्टियाँ टांगू छः। तिरुमल के अचरज का ठिकाना नहीं था।

करके तो देखो, फिर बताना। तेनालीराम ने मुस्कुराते हुए कहा।

खैर, तिरुमल ने वैसा ही किया जैसा तेनाली ने कहा था और फिर कुछ ऐसा हुआ ...

सराय के सामने से गुजने वाला-जो भी यात्री सराय का नाम पढ़ता और छः घंटियाँ देखता, वह झट से सराय के मालिक को नाम सही करने की सलाह देने के इरादे से सराय में घुस जाता।

हर कोई यही सोचता कि उससे पहले शायद किसी ने यह गलती पकड़ी ही नहीं है।

सराय के भीतर की साफ़-सफाई और मालिक की मेहमान नवाजी से खुश होकर अधिकतर यात्री वहीं ठहर जाते।

जल्द ही तिरुमल की सराय हम्पी की सबसे बड़ी सराय बन गयी। वहां हर समय यात्रियों का ताँता लगा रहता।

तेनालीराम की जरा सी चतुराई ने तिरुमल की किस्मत ही पलट डाली।