मिलावटी मिर्च

एक बार हम्पी में पेट की बीमारी महामारी की तरह फ़ैल गयी।

अनेकों लोग पेट में दर्द और मरोड़ की शिकायत करते पाए गये। राजा कृष्णदेव राय तक यह खबर पहुंची, तो वे चिंतित हो गये।

उन्होंने राजवैद्य को बुलाया और उससे पूरे मामले की तह में जाने को कहा। कुछ दिन बाद राजवैद्य ने राजा को बताया कि उसने अनेक मरीजों की जाँच की और पाया कि इन सभी रोगियों ने पीसी हुई काली मिर्च खायी थी।

जब राजवैद्य ने उसे मिर्च की जाँच करवाई तो उसमे बारीक पिसे पत्थर और चारकोल मिले। इसी से सब लोग बीमारी हो रहे थे।

राजवैद्य की बात सुनकर राजा कृष्णदेव राय गुस्से से आग-बबूला हो गया।

उन्होंने तुरंत उन सभी दुकानदारों को जेल में बन्द करने का आदेश दे दिया जो ऐसी मिर्च बेच रहे थे।

राज्यादेश का पालन हुआ और शीघ्र ही ऐसे सभी दुकानदार, जो मिलावटी काली मिर्च बेच रहे थे, जेल की सलाखों के पीछे थे। उन दुकानदारों के मित्रों और रिश्तेदारों ने महाराज से दया की, अपील की पर महाराज ने साफ़ इनकार कर दिया।

महाराज के पास से निराश लौटकर वे सभी लोग तेनालीराम की शरण में गये। उन्होंने कहा, हुजूर यह सजा सही नहीं है।

अपराधी तो कोई और है जिसकी सजा हमारे लोग भुगत रहे हैं। सजा तो पीसने वाले को मिलनी चाहिए, जिसने मिलावट की। दुकानदार तो वही बेचेगा, जो पिसाई वाला उसे देगा।

अब क्या बताएं हुजूर, वह पिसाई वाला जो काली-मिर्च सब दुकान पहुंचता है, राजगुरु जी का भाई है। उनके डर से हम यह बात महाराज से साफ़-साफ़ कह भी नहीं सकते।

कृपया आप ही कुछ कीजिये और इस समस्या का हल निकालिए।

तेनाली ने उनकी मदद करने का आश्वासन देकर उन्हें वापस भेज दिया। तेनालीराम काफी देर तक सोचता रहा, फिर वह तुंगभद्रा नदी के पास गया।

वहां मछुआरों की बस्ती थी। उस बस्ती के एक-एक घर में घुसकर तेनाली उन मिट्टी के मटकों को फोड़ने लगा, जिसमें पानी भरा था। जब मछुआरों ने तेनालीराम को इस प्रकार मटके फोड़ते देखा, वे उससे हाथ जोड़कर ऐसा न करने की विनती करने लगे।

परन्तु तेनालीराम ने उनकी एक न सुनी। जल्दी ही सारे शहर में अफवाह फ़ैल गयी कि तेनालीराम पागल हो गया है और वह घर-घर जाकर मटके फोड़ रहा है।

जब यह खबर राजा कृष्णदेव राय को मिली, तो उन्हें बड़ी चिंता हुई और साथ ही गुस्सा भी आया।

अपने रथ में बैठकर महाराज तुरंत मछुआरों की बस्ती में जा पहुंचे जहां तेनालीराम अब भी मटके फोड़ने में व्यस्त था।

उन्होंने कड़क कर तेनालीराम को आवाज दी, तेनाली! रुक जाओ। यह क्या पागलपन कर रहे हो ?

इन सबके घर में घुसकर मटके क्यों फोड़ रहे हो ?

महाराज! तेनालीराम बोला, मैं इन मटकों को सजा दे रहा हूँ। इनके भीतर तुंगभद्रा नदी का पानी है। अगर इसे पीकर कोई बीमार पद गया तो साडी इन मटकों की ही होगी।

अरे, तो गंदा पानी बहा दो न, मटके क्यों फोड़ रहे हो ? इन मटकों तक पहुंचने से पूर्व ही इस नदी का जल गँदला था। बेकार ही तुम इन बेचारे निर्दोष मछुआरों का नुकसान कर रहे हो। इनका क्या कसूर है ? राजा ने तेनाली को समझाया।

परन्तु महाराज! मैं तो वही कर रहा हूँ जो आपने किया था। आपने भी तो मिलावटी काली-मिर्च बेचने वाले दुकानदारों को जेल में डलवा दिया जबकि सजा तो पिसाई करने वाले को मिलनी चाहिए, जिसने ऐसी मिलावटी मिर्च पीस कर इनकी दुकानों पर भिजवाई।

वे दुकानदार तो निर्दोष हैं। वे तो मात्र उस मिर्च को अनजाने में बेच रहे थे। तेनालीराम ने महाराज से कहा।

तेनालीराम की बात सुनकर राजा कृष्णदेव राय को अपनी का अहसास हुआ और उन्होंने सभी निर्दोष दुकानदारों को उसी समय रिहा कर दिया और राजगुरु के भाई, जिसने मिलावटी काली मिर्च पीसकर उन दुकानदारों को दी थी, गिरफ्तार करने का आदेश दिया।