एक पहेली

राजा कृष्णदेव राय समय-समय पर अपने राज्य में घूमते रहते थे।

वे प्रजा की तकलीफें ध्यान से सुनते और उन्हें दूर करने का भरसक प्रयास करते अधिकतर ऐसे मौकों पर तेनालीराम उनके साथ होता था।

इसी तरह एक बार महाराज और तेनालीराम श्री रंगपट्ट्नम से गुजर रहे थे यह शहर विजयनगर की सेना ने हाल ही में जीता था। रास्ते में उन्हें एक किसान मिला।

महाराज ने तेनालीराम से कहा कि वह जाकर उस किसान से पता लगाये कि वह कितना कमाता है और उस पैसे को किस प्रकार खर्च करता है।

तेनालीराम उस किसान के पास गया और काफी देर तक उससे बात करता है। वापस लौट कर उसने महाराज को बताया।

महाराज! उस किसान के पास 16 से 18 एकड़ जमीन है।

एकड़ जमीन है। वह राज्य को भूमिकर देता है।

वह एक माह में चालीस स्वर्णमुद्राएँ कमाता है और उसका परिवार बहुत बड़ा है, जिसका कर्ता-धर्ता वह अकेला है।

अपनी कमाई की चलीस स्वर्णमुद्राएँ वह किस प्रकार खर्च करता है ?

महाराज ने तेनालीराम से पूछा।

दस मुद्राएं स्वयं पर दस मुद्राएं वह कृतज्ञता के लिए देता है, दस मुद्राओं से वह अपना कर्जा वापस देता है और दस मुद्राएं वह ब्याज पर देता है। तेनाली ने जवाब दिया।

महाराज को तो कुछ समझ में नहीं आया। उन्होंने तेनाली से साफ़-साफ़ बताने को कहा।

महाराज दस मुद्राएं वह स्वयं पर खर्च करता है, तेनाली ने कहा, दस मुद्राएं वह अपनी पत्नी पर खर्च करता है, उसका आभार व्यक्त करने के लिए क्योंकि वह उसके घर-परिवार का इतना ध्यान रखती है।

दस मुद्राएँ वह अपने माता-पिता पर कर्ज वह उतार रहा है। बाकी की दस मुद्राएं वह अपने बच्चों पर खर्च करता है और उम्मीद करता है कि बड़े होने पर उसके बच्चे उसका ध्यान रखेंगे।

इस प्रकार यह पैसा ब्याज में लगता ही तो हुआ।

अरे वह तेनाली ! तुमने तो बहुत बढ़िया पहेली बना दी है। फिर कुछ सोचकर महाराज दोबारा बोले, तेनाली! इसका उत्तर तब तक किसी को मत बताना, जब तक तुम मेरा चेहरा सौ बार न देख लो।

ठीक है महाराज! तेनाली ने उन्हें आश्वासन देते हुए कहा।

उसी शाम को राजा कृष्णदेव राय ने ख़ास दरबार बुलवाया और दरबारियों तथा अष्टदिग्ग्जों के सम्मुख व्ही पहेली रख दी।

अष्टदिग्ग्जों की तो हालत खराब हो गयी। काफी दिमागी घोड़े दौड़ने पर भी उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा था। तब अष्टदिग्गज अलासनी पेद्द्न ने उन्हें सान्त्वना देते हुए कहा कि वह एक दिन में इस पहेली का उत्तर ढूँढ लेगा।

पेद्द्न जानता था कि तेनालीराम महाराज के साथ गया था। उसने तेनाली से पूछा। पहले तो तेनाली ने बताने से मना कर दिया, पर जब पेद्द्न उसके पीछे ही पड़ गया, तो तेनाली ने उससे सौ स्वर्णमुद्राएँ देने को कहा।

पेद्द्न फटाफट एक थैली में सौ स्वर्णमुद्राएँ ले आया। तेनाली ने उसे सही जवाब बता दिया।

अगले दिन जब राजदरबार में पेद्द्न ने महाराज को सही जवाब दे दिया तो वे समझ गये कि तेनाली ने अपना वादा तोड़कर पहेली का जवाब पेद्द्न का बता दिया है।

गुस्से में भरकर राजा कृष्णदेव राय ने तेनालीराम को बुलाया और उससे वादा तोड़ने का कारण पूछा।

तेनाली मैंने तुमसे कहा था कि जब तक तुम मेरा चेहरा सौ बार-न देख लो, तुम किसी को जवाब नहीं बताओगे। महाराज ने तेनाली से नाराज होते हुए कहा।

महाराज! मैंने अपना वादा निभाया है। मैंने पेद्द्न को जवाब बताने से पहले आपका चेहरा सौ बार देख लिया था। तेनाली ने मुस्कुराते हुए कहा, हुजूर! पेद्द्न ने मुझे सौ स्वर्णमुद्राएँ दी थी और हर स्वर्णमुद्राएँ पर आपका चेहरा है।

राजा कृष्णदेव राय निरुत्तर हो गये। फिर वे जोर से हँसे और तेनालीराम को उसकी चतुराई के लिए ढेर सारा इनाम दिया।