बात की बात

राजगुरु तथाचार्य तेनालीराम से बहुत चिढ़ते थे। वे तेनालीराम को नीचा दिखाने के मौके ढूंढते रहते थे।

एक दिन राजदरबार में महाराज और कुछ दरबारी प्रशासन संबंधी किसी मसले पर बातचीत कर थे, तभी अचानक तथाचार्य से मुखातिब हुए और मुस्कुराते हुए बोले, अरे तेनाली! जानते हो, मैंने तुम्हारे एक शिष्य के विषय में क्या सुना है ?

राजगुरु जी, जरा रुकिये। तेनाली ने हाथ उठाकर कहा, इससे पहले कि आप मुझे कुछ बताएँ, मैं आपसे कुछेक प्रश्न पूछना चाहता हूँ।

राजा कृष्णदेव राय और दरबारी भी अपनी बातचीत बीच में छोड़कर तेनालीराम और राजगुरु की बातें सुनने लगे।

प्रश्न........ कैसे प्रश्न ?

राजगुरु तथाचार्य ने हैरानी से पूछा।

श्रीमान, मेरे किसी भी शिष्य के विषय में या अन्य किसी भी विषय पर बात करने से पूर्व पहले हमें उस बात की गहराई नाप लेनी चाहिए इसीलिए मैं ये दो-चार सवाल आपसे पूछंगा, जिसका जवाब आप मुझे दे दें फिर बात आगे बढ़ायेंगे।

मुझे यकीन है, इससे मेरा और आपका दोनों का समय बचेगा। मेरा आपसे पहला प्रश्न इस बात की सच्चाई के ऊपर है कि आप मुझे जो बात बताने जा रहे हैं, क्या आपने उसकी सत्यता की पूरी जाँच कर ली हैं ?

तेनाली ने पूछा। ऐसा कुछ नहीं है, मैंने तो सिर्फ यह बात सुनी है। राजगुरु ने कहा।

ठीक है तेनाली बोला, तो आप नहीं जानते कि यह बात सच है या नहीं।

यह एक अफवाह भी हो सकती है या गप भी हो सकती है।

तेनाली आगे बोला, अब मेरा दूसरा प्रश्न आपसे बात की अच्छाई पर है कि आप मेरे शिष्य के विषय में जो बात बताने जा रहे हैं, क्या वह अच्छी बात है ?

नहीं तेनाली बल्कि वह तो तथाचार्य ने बोलना चाहा, तभी तेनालीराम ने उन्हें टोकते हुए कहा, इसका मतलब है कि आप मुझे मेरे शिष्य के विषय में कोई बुरी बात बताने जा रहे हैं, जबकि आपके पास उसकी सच्चाई का कोई सबूत नहीं है।

तथाचार्य ने अपने कंधे उचकाते हुए सिर हिलाया। पर अब तक उनके चेहरे की मुस्कान गायब हो चुकी थी।

तेनाली ने आगे कहा, चलिए अब आते हैं, तीसरे प्रश्न पर जो बात की उपयोगिता पर है कि आप मुझे जो बात बताने जा रहे हैं, उसकी मेरे या आपके या शिष्य के लिए कितनी उपयोगिता है ?

ऐं पता नहीं। ....... राजगुरु हकलाने लगे।

तो श्रीमान यदि आप मुझे कोई ऐसी बात बताना चाहते हैं जिसकी आपको सच्चाई का पता नहीं है, जिसमें कोई अच्छाई नहीं है और जिसकी किसी के लिए कोई उपयोगिता नहीं है, तो आप ऐसी बात मुझे बताकर मेरा और दरबार में सबका समय क्यों व्यर्थ करना चाहते हैं ?

तेनालीराम ने पूछा। राजगुरु तथाचार्य के पास कोई जवाब नहीं था। महाराज और सभी दरबारियों के सम्मुख उनकी हेठी हो गयी थी। वे चुपचाप सिर झुका कर बैठ गये।