अशर्फियों का थैला

उस रात मौसम खराब था।

शाम के समय विट्ठल स्वामी मंदिर से लौटते हुए तेनालीराम आंधी तूफान में फंस गया।

घर पहुंचने का कोई उपाय न पाकर तेनाली ने पास की एक सराय में शरण ली। उसके सारे कपड़े भींग चुके थे। सराय के मालिक ने आग जला रखी थी, जिसे घेर कर अनेक लोग बैठे थे।

तेनालीराम ने बहुत कोशिश की कि वह आग के पास जाकर अपने कपड़े सुखा ले, परन्तु लोगों की भीड़ उसे आगे निकलने नहीं दे रही थी।

ठण्ड से कांपता हुआ तेनाली आग से दूर एक कोने में खड़ा वर्षा रुकने का इंतजार करने लगा। तभी सराय के मालिक की नजर तेनाली पर पड़ी। वह तेनालीराम को जनता था।

वह तेनाली के पास आया और उससे पूछा कि वह इतना क्यों परेशान नजर आ रहा है ?

तेनाली ने बताया, जब मैं आंधी से बचते हुए यहां आ रहा था, तब मेरे हाथ से मेरा थैला कहीं गिर गया।

उसमें बीस सोने की अशर्फियाँ थी। अबतक कई लोग तेनालीराम के आस-पास जमा हो गये थे। तुमने वह थैला कहाँ गिराया था ?

सराय के मालिक ने तेनाली से पूछा।

अन्य कई लोग आग के पास से उठकर तेनाली के पास आ गये।

इस सराय और मंदिर के बीच कहीं भी गिर गया होगा। मुझे याद नहीं है। तेनालीराम बोला। जैसे ही तूफ़ान थमता है। मैं जाकर ढूंढता हूँ। मेरा थैला मिल ही जायेगा। इस तूफान में कौन उठायेगा मेरा थैला।

अगर मैं तुम्हारी तरह होता तो इसी........ सराय का मालिक बोलने ही वाला था कि तेनालीराम ने बीच में टोकते हुए कहो, हाँ, हाँ, क्या करते तुम ?

क्यों न वहां आग के पास बैठकर गर्मी लेते हुए बताओं की तुम्हारे विचार से मुझे इस खराब मौसम में अपना थैला किस प्रकार ढूँढना चाहिए।

तेनाली ने सराय के मालिक को आँख के इशारे से दरवाजे की और देखने को कहा।

आग के चारों ओर बैठे आधे से ज्यादा लोग चुपके-चुपके सराय से बाहर की ओर जा रहे थे। बीस सोने की अशर्फियों का लालच लोगों को आग की गर्मी छोड़कर बाहर तूफान में भटकने के लिए काफी था।

आग तापते हुए सराय का मालिक मुस्कुराते हुए तेनाली से बोला, तेनालीराम! मैं तुम्हारी जगह होता तो कथाकार बन जाता।

तेनालीराम ठठाकर हंसा और अपने भीगे वस्त्र सुखाने में व्यस्त हो गया।