कपटी का अंत बुरा होता है

सेठ बीमार पड़ा और अच्छे-अच्छे हकीम तथा वैद्य उसकी दवा-दारू करने लगे, परन्तु सेठ को आराम मिलना तो दूर रहा उसकी बीमारी दिनोंदिन बढ़ती गई।

जब हकीम और वैद्य दवा-दारू करते-करते थक गए तो उन्होंने

एक दिन सेठ को साफ़-साफ़ जवाब दे दिया बीमार घेरी है आप बचेंगे नहीं, दवा-दारू करना बेकार है।

हकीम और वैद्यों का वह जवाब सूना तो सेठ बहुत घबड़ाया और लगा गिड़-गिड़ाकर देवता को पुकारने-हे महाशय यदि आपको एक हजार मोहरे चढ़ाऊँ तो......... .

सेठ को इस पुकार पर सेठानी बहुत घबराई और बोली-देखिए।

आप अच्छे हो जायें तो देवता को एक हजार मोहर चढ़ाने का ध्यान अवश्य रखिये।

सेठ ने बिगड़कर कहा-बेकार घबराती हो ! देवता को मोहर चढ़ाने का ध्यान क्यों रखूंगा ?

अच्छा हो जाऊं तो एक हजार क्या दो हजार मोहरे चढ़ा दूंगा।

भला प्राणों के सामने मोहर की कीमत ही क्या है, समझी ?

कुछ दिन बाद सेठ सचमुच बिना दवा-दारू के ही अच्छा हो गया और चलने फिरने लगा।

परन्तु उसे मानो देवता के मोहरें चढ़ाने का स्मरण ही न रहा।

यह देखकर सेठानी ने उससे कहा-अब चढ़ा दीजिए न देवता को एक हजार मोहरें ?

सेठ ने उत्तर दिया-ओह! मुझे तो सुध ही नहीं रही थी।

तुमने अच्छी याद दिलाई। बस कल ही लो, देवता को आटे की एक हजार गोलियां चढ़ा दूंगा-पूरी एक हजार।

सेठानी घबड़ाकर बोली-कहते क्या हो ? देवता को आटे की गोलियां! सोने की मोहरों के बदले आटे की गोलियां ?

सेठ ने हंसकर कहा-जानती समझती तो कुछ नहीं, बेकार को घबड़ाकर बोली-कहते क्या हो ?

देवता के लिए जैसे सोने की मोहरों वैसे आटे की गोलियां। वे तो केवल पूजा चाहते हैं और पाते प्रसन्न हो जाते हैं।

सेठानी गिड़-गिड़ाकर बोली-ऐसा न करो। जो कह चुके हो वही करो। घर में भगवान का दिया हुआ सब कुछ तो है, फिर देवता को अप्रसन्न करने की क्या आवश्यकता है ?

सेठ झुंझलाकर बोला-क्यों बेकार बक-बक करती हो।

मैंने अच्छे-अच्छे लोगों को बुद्धू बनाया है। ये बेकार देवता किस गिनती में है। अप्रसन्न हो भी जायेंगे तो क्या बिगाड़ लेंगे ?

सेठ ने सचमुच दूसरे दिन देवता को आटे की एक हजार गोलियां चढ़ा दी।

रात को सपने में उसे एक बहुत ने दर्शन दिए और उससे कहा - आज तूने, देवता की जो पूजा की है।

वह, उनको प्रसन्न आई है और वे तुझ पर बहुत प्रसन्न हैं।

बस तू सबेरा होते ही अमुक जंगल में जा। वहां धरती खोदने पर मुझसे हजारों क्या लाखों मोहरें मिलेगी।

अब सेठ को ख़ुशी का क्या कहना था। वह सबेरा होते ही उस जंगल में जा पहुंचा। वहां चोरों का राज्य था।

चोरों ने उसे देखते ही पकड़ लिया।

चोरों के हाथ पकड़े जाने पर वो बहुत रोया-गिड़गिड़या और बोला-भाइयों! कृपा कर मुझे छोड़ दो।

चाहो तो मुझसे हजार दो हजार मोहरों भले ही ले लो।