दाढ़ी वाला अफसर

एक बार सिंहवाड़ा प्रखंड में एक निर्दयी तहसीलदार की नियुक्ति हुई।

लाल-लाल आँखों और लम्बी दाढ़ी वाला यह तहसीलदार जब लगान वसूलने आता तो ऐसा लगता जैसे कोई राक्षस खून चूसने आया था।

किसान उससे थर-थर कांपते थे।

जो किसान किसी कारणवश लगान नहीं दे पाता था, उसे तहसीलदार के हुक्म पर सिपाही कोड़ों से जानवर की तरह पीटते थे।

एक दिन गोनू झा पड़ोस के गाँव में किसी काम से गए थे।

संयोग से उस दिन उस गांव में तहसीलदार आने वाला था।

गोनू झा ने देखा कि सारे गाँव वाले सहमे हुए थे। सबकी आँखों में भय था।

क्या बात है भाई ? गोनू झा ने एक आदमी से पूछा - यहाँ जिसे भी देखो वही भयभीत लग रहा है जैसे उसे फांसी चढ़ाने ले जाया जा रहा हो।

आज तहसीलदार लगान वसूलने आ रहा है।

गोनू झा ने तहसीलदार के अत्याचार के किस्से सुने तो बहुत थे पर आज वह अपनी आँखों से देखना चाहते थे।

लगभग सभी किसान अपने लगान का अनाज तौलकर तैयार थे।

फिर भी कुछ ऐसे किसान भी थे जो लगान की पूर्ति नहीं कर पा रहे थे। और भय के मारे उनकी हालत बहुत खराब थी।

आखिर तहसीलदार का लश्कर आ पहुंचा।

गोनू झा ने देखा कि काला-भुजंग राक्षस जैसा तहसीलदार अपने घोड़े पर सवार था।

उसकी भयानक आँखें किसानों को घूर रही थी।


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तत्काल एक चारपाई लाइ गई और तहसीलदार उस पर बैठ गया।

उसके अर्दली ने हाथ के पंखे से उसे हवा झलना शुरू किया।

मुंशी ने वही-खाते खोले और एक-एक किसान का नाम पुकारा। सभी किसान अपनी बारी पर अनाज की बोरी लाकर रखते।

मुंशी के इशारे पर दो आदमी उसे हाथों में झुलाकर वजन आंकते। फिर संतुष्ट होकर अगला नाम बोला जाता। मगर जब बीगन का नाम पुकारा गया तो एक गरीब वृद्ध आदमी कांपते हुआ खली हाथ तहसीलदार के सामने पहुंचा।

तहसीलदार की भृकुटि तन गई।

लगान कहाँ है ? तहसीलदार गुर्राया।

माई-बाप, इस बार फसल धोखा दे गई। अच्छा बीज नहीं मिला।

तो हम क्या करें।

तेरे हिस्से का लगान सरकार को हम अपनी जेब से दें ?

माई-बाप, हमारी सरकार तो आप हैं। आप ही गरीबों के अन्नदाता है।

हम पर दया करके इस बार क्षमा करें। अगली बार मैं पिछला भी चुका दूंगा।

साले हरामी कामचोर बुढ्ढे। तहसीलदार ने वृद्ध को एक लात जमाई - हमे मूर्ख समझता है।

सरकार ने हमे यह जिम्मेदारी इसलिए नहीं दी कि हम दया करते फिरें। हमें वेतन इसलिए मिलता है कि हम सरकार के काम को ठीक से करते हैं।

तेरे जैसे कितने ही मिलते हैं।

अगर सब पर दया ही करते रहे तो वसूली हो गई।

माई-बाप, मेरे पास कुछ है ही नहीं।

अभी पता चलता है।

तहसीलदार ने सिपाहियों को संकेत दिया।

इस कंगले की खाल उढेल डालो ताकि और लोगों को सबक मिले।

सिपाहियों ने बड़ी निर्ममता से उस वृद्ध पर कोड़े बरसाने शुरू कर दिए।

बेचारे वृद्ध की चीखों ने लोगों का कलेजा थर्रा दिया।

गोनू झा भी उस अत्याचार पर सहम उठे। ऐसा जुल्म उन्होंने पहली बार देखा था। कोड़े तब तक चलते रहे जब तक वृद्ध बेहोश न हो गया।

देखा तुम सबने। तहसीलदार ऊँची आवाज में बोला - मेरा नाम शेरसिंह हैं।

हम अपने काम में कोताही नहीं चाहते। आगे से ध्यान रहे कि जिसने भी लगान में एक दाना भी कम दिया, उसका क्या हाल हो सकता है।

चाहे कुछ भी करो हमे लगान चाहिए।

गोनू झा ने उसी समय प्रण लिया की कभी अवसर मिला तो उस क्रूर तहसीलदार को सबक जरूर सिखाएंगे।

वह वहां से अपने गाँव लौट आए। कई दिन तक उनके दिल और दिमाग में उस वृद्ध किसान की चीखें गूंजती रही।

उनके गाँव में भी उसी तहसीलदार के जुल्म की चर्चा हो रही थी।

और चिंता का विषय तो यह था की इस बार ज्यादातर किसानों की फसल अच्छी नहीं हुई थी।

कैसा जुल्म का तांडव होगा।

और गोनू झा भी इसी विषय में सोच रहे थे।

किस प्रकार उस क्रूर अफसर से गरीबों को बचाया जाए।

आखिर बहुत सोचने पर उन्हें एक उपाय सूझ ही गया। वह उसी दिन मैले-कुचैल कपड़े पहनकर सिंहवाड़ा पहुंच गए।

वहां तहसीलदार का बांग्ला पूछकर उसके फाटक पर पहुंचे। दरबान ने उनका रास्ता रोका।

क्या बात है ? दरबान गुर्राया।

साब, मैं बहुत गरीब आदमी हूँ। मेरा अकेला बेटा बहुत बीमार है। उस पर कोई जादू-टोने का असर है। मैंने सुना है कि तहसीलदार साहब बड़े ही धार्मिक इंसान हैं। यदि उनकी दाढ़ी का एक बाल मिल जाए तो मैं उस बाल का ताबीज अपने बबुआ के गले में दाल दूँगा और वह बिल्कुल ठीक हो जाएगा। ऐसा मेरा विश्वास है। गोनू झा बोले।

क्या बकवास कर रहा है। दरबान झल्लाया।

साहब, बड़ा उपकार होगा यदि आपकी कृपा पड़ा था। मेरा बबुआ बच जाएगा। साहब की जय-जयकार होगी।

दरबान हंसने लगा। कैसे मूर्ख देहाती से पला पड़ा था। उसने वह मजेदार बात साहब को ही बताने का विचार किया। तू यही बैठ। मैं साहब से पूछकर आता हूँ।

गोनू झा वही जमीन पर बैठ गया। दरबान अंदर चला गया और बहुत देर बाद लौटा। तहसीलदार भी उसके पीछे था जो मुस्कराता हुआ आ रहा था।

गोनू झा दंडवत हो गए।

उठो, उठो। तहसीलदार बोला - बताओ क्या बात है ?

गोनू झा ने अपनी समस्या बताई।

अरे भाई तुम्हारे बबुआ को वैद्य को दिखाओं।

अन्नदाता, ओझा जी ने कहा है यदि बड़े अफसर की दाढ़ी का एक बाल मिल जाए तो बबुआ ठीक हो जाएगा।

गोनू झा ने कहा और उसके पेअर पकड़ लिए - दया करें हुजूर, मेरा इकलौता बेटा बच जाएगा।

आखिर तहसीलदार पिघल ही गया। दाढ़ी के एक बाल से उस मुर्ख देहाती को टाल देना उचित था।

उसने हाथों से दाढ़ी में से एक बाल तोड़ा और गोनू झा को दिया।

सरकार की जय हो ! गोनू झा ने बाल को माथे से लगाया और सहेज कर अपने अंगोछे के कोने में बांध लिया फिर तहसीलदार की लाख दुआएं देकर गोनू झा लौट पड़े।

और कई दिन बाद भरौरा गाँव में ऐलान हुआ की कल तहसीलदार लगान वसूली के लिए आ रहे हैं। सब किसान लगान तैयार रखे। सरे गांव में हड़कम्प मच गया। लोग भयभीत हो गए। चौपालों पर बैठकर आने वाले संकट की चर्चा होने लगी। आखिर सबने गोनू झा की शरण में जाने का ही विचार किया। इस मुसीबत से हमें गोनू झा ही बचा सकते हैं।

अकेले वही ऐसे है जो बुद्धि के साथ-साथ माँ काली की कृपा भी रखते हैं।

उनके पास जरूर कोई उपाय होगा। चलो-चलो। देर मत करो।

सारा गांव उमड़कर गोनू झा के घर पहुंच गया। कई गरीब किसानों ने तो रो-रोकर अपने ऊपर आ रहे संकट का उपाय पूछा।

भाइयो, गोनू झा ने कहा - आप सब निश्चित रहे। आप लोगों ने तो आज उस क्रूर अफसर के बारे में सोचा है मगर मैं तो छह दिन से उसी के बारे में सोच रहा था।

मैं जानता था कि वह राक्षस एक दिन यहाँ भी आएगा और आतंक का नंगा नृत्य करेगा।

गोनू झा, फिर तो आपने कोई उपय भी सोच लिया होगा।

सोच लिया है। मैंने एक योजना बना ली है जिससे उस अत्याचारी को सबक मिल जाएगा। आप सबको मेरा साथ देना होगा।

आप जैसे कहेंगे, हम वैसा ही करेंगे। फिर गोनू झा ने अपनी योजना बताई। सबने अपने-अपने हिस्से का काम करने का वादा किया। और अगले रोज ही तहसिंदर आ गया।

तहसीलदार साब की जय हो! माई-बाप की जय हो! नारे गूंज उठे। सारा गांव दंडवत होकर तहसीलदार के सामने लेट गया। वह बड़ा चकित हुआ। ऐसा भव्य स्वागत तो उसका कभी न हुआ था। उस गाँव के लोग तो उसे देवता मान रहे थे। क्या कारण था ? कहीं लगान न देने का नाटक तो नहीं था। ऐसा था तो कोड़ों से सबकी खाल खिंचवा दी जाएगी।

तभी वह चौंका। एक जाना-पहचाना चेहरा नजर आया। अरे, यह तो वही गरीब किसान था जो अपने बबुआ के लिए उसकी दाढ़ी का एक बाल लेकर आया था। अन्नदाता! माई-बाप, आप साक्षात् भगवान हैं। गोनू झा ने कहा - आपकी दया से मेरा बबुआ बिल्कुल अच्छा हो गया। आपने मुझ गरीब के घर का दीपक बुझने से बचा लिया।

तहसीलदार चकित था की मात्र दाढ़ी के एक बाल से कोई बच सकता है। पर प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या आवश्यकता थी। वह किसान खुद तो कह रहा था। अनायास ही तहसीलदार साहब का हाथ अपनी दाढ़ी पर चला गया। वह गर्व से भर गया। अब उसे अपनी जय-जयकार का कारण भी समझ आ गया। देहाती लोग ऐसे चमत्कारों के दास हो जाते हैं।

यहाँ भी वही हाल था।

गावं वालो, गोनू झा ने ऊँची आवाज में कहा - यही हैं वो साक्षात् ईश्वर जिनकी कृपा से हमारा बबुआ अच्छा हो गया। इनकी चमत्कारी, पवित्र और दयालु दाढ़ी सर्वहितकारी और सर्वदोष निवारणी है। संसार का कोई भी असाध्य रोग हो, इन धर्मात्मा की दाढ़ी का एक बाल उसे क्षण भर में दूर कर सकता है। यह भगवान के अवतार हैं जिसे भी कोई कष्ट हो, वह इन मंगलकारी दयासागर की कृपादृष्टि से अपने कष्ट दूर कर सकता है। निर्धनता, रोग, अकाल आदि सबका हरण करने वाली चमत्कारी दाढ़ी है यह।

तहसीलदार ने सगर्व अपनी दाढ़ी पर फिर हाथ फिराया।

साहब, आपकी दाढ़ी में इतने गुण हैं और हमें पता ही नहीं। सिपाही, मुंशी ने कहा।

साहब मंद-मंद मुस्कुराए जैसे नवनिधि के दाता थे।

एक बाल मुझे भी दें साहब। मैं बेऔलाद हूँ। मुंशी ने कहा।

सभी ने अपने-अपने कष्ट बताए और दयालु बाल माँगा। साहब ने छाती चौड़ाकर इच्छाएं पूरी करना प्रारम्भ किया। गोनू झा की योजना गतिशील हो गई। सारा गांव दाढ़ी का एक-एक बाल मांगने लगा। भीषण कोलाहल होने लगा। आपा-धापी, धक्का-मुक्की का माहौल बन गया।

भीड़ अधिक थी। कहीं बाल खत्म हो गए और मैं रह गया, सोचकर लोग टूट पड़े। साहब का सुरक्षा दल दाढ़ी नोचनें में आगे था। जरा-सी देर में साहब का चेहरा ही लहूलुहान हो गया। वे जैसे-तैसे करके वहां से जान बचाकर भागे।

कुछ दिन बाद पता चला कि उन्होंने नौकरी से ही त्यागपत्र दे दिया था। गोनू झा ने उस क्रूर अफसर से गांव ही प्रखंड को भी बचा लिया।