आई बात समझ में

एक चालाक लोमड़ी अक्सर दूसरे जानवरों को बेवकूफ बनाया करती थी ।

उनको अपने घर बुलाकर उनका मजाक उड़ाने में उसे बड़ा मजा आता था । वह इस तरह से बात करती थी कि दूसरे जानवरों को समझ नहीं आता था कि क्या कहें ।

एक बार उसने कुछ मुर्गियों को अपने घर आने का निमंत्रण दिया । लेकिन बेचारी मुर्गियाँ कैसे आती ?

वे तो पिंजरे में कैद थी ।

कुछ दिन बाद उसने एक बंदर को नदी के बीचों-बीचों एक टापू पर खाने के लिए बुलाया ।

बेचारा बंदर क्या करता, उसने मना कर दिया क्यूंकि उसे तैरना ही नहीं आता था ।

ऐसा ही मज़ाक करने के लिए उसने एक दिन एक सारस को अपने घर रात के खाने पर बुलाया ।

सारस ने उसका निमंत्रण स्वीकार कर लिया । रात को सारस लोमड़ी के घर पहुँचा ।

लोमड़ी ने दो बड़ी प्लेटों में सूप लाकर रख दिया । सारस ने जब यह देखा तो बेचारा दुखी हो गया क्यूंकि वह अपनी लंबी चोंच से सूप पी ही नहीं सकता था ।

लोमड़ी ने मजे ले-लेकर सूप चटा और सारस को बिना खाए-पिए ही अपने घर लौट जाना पड़ा ।

कुछ दिन बाद सारस ने लोमड़ी को अपने घर खाने पर बुलाया ।

लोमड़ी जब सारस के घर पहुँची तो सारस ने उसका खूब प्यार से स्वागत किया ।

उसे बैठाया और बताया कि उसने लोमड़ी के लिए स्वादिस्ट खीर बनाई है । सुनकर लोमड़ी के मुहँ में पानी आ गया ।

तब सारस ने दो लंबी सुराहियों में खीर लाकर रख दी । फिर उसने अपनी लंबी चोंच अंदर डाली और आराम से खीर खाने लगा ।

लोमड़ी ने सुराही को सब तरफ से चाटने की कोशिश की लेकिन खीर की एक बूँद भी नहीं चख पाई ।

बेचारी को निराश होकर भूखा ही लौटना पड़ा ।

जो वह अब तक सबके साथ करती थी, आज उसके साथ हो रहा था ।

सारस ने वापिस लौटते समय उससे सिर्फ इतना ही कहा, क्यों लोमड़ी, आई बात समझ में ?

कोई सताए तो कैसा लगता है यह बात लोमड़ी अच्छी तरह समझ गई थी ।