एक बूढ़ा तीर्थयात्रा पर जा रहा था।

जाने से पहले वह अपने मित्र के पास पहुँचा। उसने मित्र को एक थैली दी और कहा, मित्र, मैं तीर्थयात्रा पर जा रहा हूँ।

अपनी यह थैली आपको सौंप रहा हूँ। इसमें मेरी एक हजार अशर्फियाँ हैं। कृपया इन्हें सँभालकर रखिएगा।

जब मैं तीर्थयात्रा से लौटकर आऊँगा, यह थैली आपसे वापस ले लूंगा।

कुछ महीनों बाद वह बूढ़ा वापस आया और अपने मित्र के पास पहुँचा। उसने मित्र से कहा, मित्र, अब मेरी थैली मुझे वापस कर दो।

किन्तु मित्र के मन में लालच आ गया। उनसे बूढ़े से पूछा, तुम किस थैली की बात कर रहे हो ?

तुमने तो मुझे कोई थैली नहीं दी। बूढ़े ने विनम्रता के साथ कहा, मित्र हंसी मत करो। उस थैली में मेरी सारी जमा पूँजी है। मेरी थैली लौटा दो।

लालची मित्र ने क्रोध करते हुए कहा, कैसी थैली, मूर्ख बूढ़े! तूने मुझे कभी कोई थैली नहीं दी।

इस झगड़े का कोई हल नहीं निकला तो दोनों बीरबल के पास पहुँचे। बीरबल ने दोनों की बात सुनी।

उन्होंने बूढ़े से पूछा, तुमने अपनी कहाँ पर अपने मित्र को दी थी ?

बूढ़े ने हाथ जोड़े और बताया, श्रीमान जी, आम के बाग में एक पेड़ के नीचे। अब इसके मन में लालच आ गया है। यह मेरी थैली नहीं देना चाहता है।

इस पर मित्र बोला, श्रीमान जी यह झूठ बोलता है। इसने मुझे कोई थैली नहीं दी।

बीरबल ने दोनों को चुप रहने की आज्ञा दी और बूढ़े से बोलै तुमने आम के पेड़ के निचे थैली दी थी।

यह बात पहले क्यों नहीं बताई। ठीक है, तुम जाओ और उस पेड़ को गवाही के लिए लेकर आओ।

सारे दरबारी एक-दूसरे को देखने लगे। भला एक पेड़ को गवाह के लिए कैसे बुलाया जा सकता है! लालची मित्र मन ही मन खुश हो रहा था।

बूढ़ा उलझन में था। उसने सोचा -गवाही के लिए पेड़ को कैसे लेकर आऊँगा ? किन्तु वह चुपचाप बाग की ओर चल पड़ा।

बूढ़े को इंतजार करते हुए एक घंटा बीत गया। सब लोगों की चेहरों पर परेशानी दिखाई दे रही थी।

आखिर एक व्यक्ति बोला, श्रीमान जी! अब तो बूढ़े का इंतजार करते हुए एक घंटे से अधिक हो गया है हमे कब तक इंतजार करना होगा ?

बीरबल बोले धीरज रखो, वह आता ही होगा।

इस पर लालची मित्र ने कहा, बूढ़ा इतनी जल्दी कैसे आ सकता है ?

वह तो अभी बाग में पहुँचा भी नहीं होगा। श्रीमान जी, बाग यहाँ से तीन मील दूर है। लालची मित्र बोला।

कोई बात नहीं। हम बूढ़े के आने तक उसका इंतजार करेंगे। आपलोग आराम से बैठ जाएँ। बीरबल ने मुस्कराते हुए कहा।

वह बूढ़ा कई घंटों बाद लौटा तो हाँफ रहा था। उसके माथे पर पसीना चमक रहा था। वह बड़ा निराश था। बीरबल ने उससे पूछा क्यों ? क्या हुआ ?

बूढ़ा बोला, श्रीमान जी। मैं बाग में गया। मैंने उस पेड़ को आपका हुक्म सुनाया। परन्तु वह टस से मस नहीं हुआ।

कोई बात नहीं। तुम चिंता न करो। पेड़ की गवाही हो चुकी है। बीरबल ने कहा।

इसके बाद उन्होंने लालची मित्र से कहा, तुम झूठे हो। बूढ़े की थैली तुम्हारे ही पास है वरना तुम्हें कैसे पता होता कि बूढ़ा किस बाग में गया है और वह बाग कितना दूर है ?

बीरबल की बुद्धिमानी को देखकर सब उनकी जय-जयकार करने लगे।