सड़क कहां जाती है?

Child Story In Hindi - Bal Kahani

भीखू हलवाई का बेटा बच्चू एकदम मनमौजी था।

मन हे तो काम कर लिया नहीं है तो पड़ा रहने दो ...... हो जाएगा जब होना होगा।

एक दिन उसने दुकान से एक दौना भरकर जलेबियाँ लीं।

वह गाँव के बाहर जानेवाली सड़क के किनारे जाकर बैठ गया और जलेबियाँ खाने लगा।

तभी वहाँ एक थका-माँदा यात्री आया।

वह बच्चू से बोला, भैया बड़ी दूर से चलकर आ रहा हूँ।

बड़ी भूख लगी है, क्या यहाँ कुछ अच्छा खाने को मिलेगा ?

बच्चू ने उसे एक जलेबी दी और कहा, 'ये लो भैया, जलेबी खाओ और यदि तुम्हें ज़्यादा चाहिए तो भीखू हलवाई की दुकान पर चले जाओ।

सब कुछ खाने को मिलेगा।'

यात्री ने देखा कि वहाँ पर दो सड॒कें थीं।

उसने बच्चे से पूछा, 'अच्छा भैया, यह तो बताओ कि भीखू हलवाई के यहाँ इनमें से कौन-सी सड॒क जाती है ?'

यह बात सुनकर जैसे बच्चू को बड़ी तसल्‍ली मिली।

वह हँसकर बोला, 'ए भाई, तुम तो मुझसे भी ज़्यादा आलसी निकले।

मेरे बाबा हमेशा कहते थे कि मुझसे ज़्यादा आलसी इंसान हो ही नहीं सकता।

लेकिन अब में उन्हें बताऊँगा कि उनकी बात गलत थी।'

यात्री को समझ में नहीं आ रहा था कि मामला क्‍या है।

उसने तो बस रास्ता ही पूछा था न।

इसमें आलसी होने की क्‍या बात है।

खैर, उसने फिर से पूछा, 'यह सब छोड़ो और बताओ कि भीखू हलवाई की दुकान तक कौन-सी सड़क जाती है ?'

बच्चू बोला, 'ऐसा है भैया, ये दोनों ही सड़के कहीं भी नहीं जातीं।

बस यहीं पड़ी रहती हैं।

हाँ, अगर कुछ खाना है तो थोड़े हाथ-पैर हिलाओ और खुद चलकर इस दाएँ हाथ वाली सड्क पर चले जाओ।

सीधे दुकान पर पहुँच जाओगे।

और कहीं सड़क के भरोसे रुक गए तो भैया यहीं खड़े रह जाओगे, क्योंकि ये सड़कें तो महा आलसी हैं।

बरसों से यहीं पड़ी हुई हैं।'

यह सुनना था कि यात्री का हँसी के मारे बुरा हाल हो गया।

हँसते-हँसते वह दाएँ हाथ वाली सड़क पर चल दिया।