मूर्ख बंदर और चंद्रमा

एक रात एक छोटा बंदर कुँए पर पानी पीने के लिए गया।

जब उसने कुँए में झाँककर देखा तो उसे पानी में चंद्रमा झिलमिलाता हुआ दिखाई दिया।

यह देखकर वह बहुत डर गया और दूसरे बंदरों को यह बात बताने के लिए दौड़ा।

“दोस्तों!” – वह चिल्लाया – “चंद्रमा पानी में गिर गया है!।

“कहाँ! किस जगह!” – दूसरे बंदरों ने पूछा।

“मेरे साथ आओ! मैं तुम्हें दिखलाऊँगा!” – छोटे बंदर ने कहा।

छोटा बंदर उन्हें कुँए तक ले गया. वे सभी झुंड बनाकर कुँए में झाँकने लगे।

“अरे हाँ! चंद्रमा तो पानी में गिर गया है!” – वे चिल्लाये – “हमारा सुंदर चंद्रमा कुँए में गिर गया! ।

अब रात में अँधेरा हो जायेगा और हमें डर लगेगा! अब हम क्या करें ?”

“मेरी बात सुनो” – एक बूढ़े बंदर ने कहा – “हम सिर्फ एक ही काम कर सकते हैं, हमें चंद्रमा को कुँए से निकालने की कोशिश करनी चाहिए”।

“हाँ! हाँ! ज़रूर!” – सभी उत्साह से बोले – “हमें बताओ कि ऐसा कैसे करें”।

“वो देखो कुँए के ऊपर पेड़ की एक डाली लटक रही है।

हम सभी उससे लटक जायेंगे और चुटकियों में चंद्रमा को कुँए से निकाल लेंगे”।

“बहुत अच्छा तरीका है” – सब चिल्लाये – “चलो, डाली से लटकें”।

देखते ही देखते बहुत सारे बंदर उस पतली सी डाली से लटक गए और कुँए के भीतर झूलने लगे।

उनमें से एक बंदर कुँए के भीतर पानी में हाथ डालकर चंद्रमा को निकालनेवाला ही था कि ऊपर पेड़ पर डाली चटक गई।

सभी मूर्ख बन्दर कुँए में गिरकर पानी में डूब गए. चंद्रमा आकाश में स्थिर चमकता रहा ।