उपहार

एक राज्य था, उसका नाम था प्रेमनगरी।

प्रेमनगरी के सभी लोग... अपने प्रेम से सभी का मन जीत लेते थे और यह गुण उन्होंने अपने राजा से सीखा था।

उनके राजा बहुत-ही अच्छे हृदय के व्यक्ति थे और अपनी प्रजा के सुख-दुख का हमेशा ध्यान रखते थे।

रानी माँ भी बहुत बडे हृदय की थीं।

उनका छोटा-सा राजकुमार सरल भी सचमुच ही मन से सरल था।

वह सभी को अपना दोस्त बना लेता था। किसी का दुख उससे देखा नहीं जाता था।

एक दिन राजा के पास सूचना आईं कि पडोसी राज्य के राजा ने उनके राज्य पर आक्रमण कर दिया है।

राजा ने तुरंत सेनापति को बुलाया और सेना लेकर स्वयं युद्ध के लिए चल पडे।

बड़ा घमासान युद्ध हुआ।

कई दिनों तक दोनों सेनाओं के बीच लड़ाई चलती रही।

और फिर एक ऐसी खबर आई कि राजकुमार सरल और उसकी माँ का संसार सूना हो गया।

सूचना यह थी कि सरल के पिता विरोधी सेना द्वारा बंदी बना लिए गए और बाद में उनकी मृत्यु हो गई।

सरल की तो रो-रो कर आँखें ही सूज गई थीं।

रानी माँ उसे प्यार से गले लगाकर बैठी रहती थीं।

उस गड॒बडी में राज्य के कुछ गद्दार लोगों ने विरोधी राज्य के साथ मिलकर राजगद्दी पर अधिकार कर लिया।

रानी माँ और सरल को मजदूर बना दिया गया। रानी माँ की तबियत खराब रहत्रे लगी।

सरल मेहनत करके कुछ पैसे कमा लेता था। बड़ी मुश्किल से घर का खर्च चलता था।

फिर दीपावली का त्योहार आया।

सरल की माँ हमेशा उदास रहती थीं।

वह चाहता था कि दीपावली पर उसकी माँ खुश रहें।

इसलिए उसने सोचा कि वह माँ के लिए कोई उपहार लाएगा। उसने कुछ पैसे बचाकर रखे थे।

उसके पास अस्सी रुपए थे। वह दीपावली से पहले दिन जेब में रुपए रखकर बाजार पहुँचा।

उसने माँ के लिए एक साडी खरीदी। साड़ी 50 रुपए की आई। अब उसके पास तीस रुपए बचे थे। वह मिठाई की दुकान पर पहुँचा।

उसने 30 रुपए की मिठाई खरीदी और धीरे-धीरे अपने घर की ओर चल दिया।

रास्ते में वह सोचता हुआ जा रहा था कि पिछले साल कितनी धूमधाम से उन्होंने दीपावली मनाई थी।

तभी उसको एक भिखारी को आवाज सुनाई दी। सड॒क के किनारे एक भिखारी बैठा था।

उसके साथ दो छोटे बच्चे थे। उन्हें देखकर ही पता चलता था कि उन्होंने कम-से-कम दो दिन से कुछ नहीं खाया है।

एक बच्चा हाथ फैलाकर उसके सामने आकर खड़ा हो गया। लेकिन उसके पास तो पेसे थे ही नहीं।

तब सरल ने मिठाई का डिब्बा उसके हाथ में दे दिया।

वे तीनों मिठाई पर टूट पड़े और सरल को आशीर्वाद देने लगे।

सरल ने सोचा कि कोई बात नहीं। माँ को साडी दूँगा तो वह खुश हो जाएगी। वह थोड़ा आगे बढ़ा तो एक बागीचे में उसने एक पेड के नीचे एक बूढी माई बैठी देखीं।

उनके कपडे पुराने होकर फट गए थे। वह बहुत ही कमजोर और दु:खी दिखाई दे रही थीं। सरल अपने आपको रोक नहीं पाया।

उसने पैकेट से साड़ी निकाली और बूढ़ी औरत को उढ़ा दी।

वह औरत खुशी के कारण रो पड़ी और सरल को गले से लगा लिया।

बेचारा सरल खाली हाथ घर पहुँचा और भगवान की फोटो के आगे बैठकर रोने लगा।

उसने माँ को बताया कि उसके साथ क्‍या हुआ।

उसकी माँ ने उसे समझाया कि त्योहार मनाने का अर्थ केवल खुद खुशियाँ मनाना नहीं है।

वास्तव में त्योहार का अर्थ है- दूसरों को खुशियाँ देना।

'सरल बेटा, तुमने तो सच में दीपावली मनाई हे, दूसरों के दुखों को कम करके।' माँ प्यार से बोली।

सरल को ये बातें सुनकर अच्छा लगा। वह माँ के पास आकर सो गया।

अगले दिन बहुत सुबह किसी ने दरवाजा खटखटाया। सरल चौंककर उठा। उसने देखा कि सुबह के 5 बज रहे थे। माँ गहरी नींद सो रही थी।

इतनी सुबह कौन आया होगा ? उसने सोचा।

जब दरवाजा खोला तो उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ।

सामने उसके पिता जी खडे थे। वे काफी कमजोर हो गए थे। उनकी मृत्यु की खबर झूठी थी।

“बेटा, सरल, केसे हो तुम ?' कहकर वे रो पड़े।

सरल दौड़कर उनके गले लग गया। दोनों माँ के कमरे की ओर गए।

सरल सोच रहा था- “दीपावली पर इससे अच्छा उपहार माँ के लिए और क्‍या हो सकता है!'