कैंचीकुमार ने चलाई कैंची

नाना नानी की कहानियाँ

एक था नाई कैंचीकुमार कंधामल।

अपने नाम की तरह, उसका स्वभाव भी मजाकिया था।

बुद्धि का वह बहुत तेज था। बड़ी समस्याओं को सरल तरीके से हल कर लेना उसके लिए मामूली बात थी।

इसीलिए अक्सर गाँव के लोग उसके पास सलाह लेने आते थे।

एक बार गाँव वालों को एक अजीब-सी समस्या ने घेर लिया।

एक अजनबी गाँव के मुखिया के पास आया और उनसे उनकी ही भाषा भोजपुरी में बातें करने लगा।

देखने में वह भोजपुरी नहीं लगता था। लेकिन इतनी बढ़िया भोजपुरी बोल रहा था जैसे कि बरसों से वहाँ रह रहा हो।

गाँव में एक किसान मेला चल रहा था। उसमें सारे देश से बहुत से किसान आए थे।

जब वह अजनबी मुखियाजी से बातें कर रहा था, तब एक गुजराती किसान उनसे मिलने आया।

अजनबी फोरन उससे इतनी बढ़िया गुजराती में बातें करने लगा जेसे कि गुजरात का ही रहने वाला हो।

गुजराती भाई के साथ एक कन्नड़ बाबू भी थे।

जेसे ही उनसे उस अजनबी का परिचय हुआ, वह अचानक कननड में बातें करने लगा।

मुखियाजी को बड़ा आश्चर्य हुआ। धीरे-धीरे उनको पता चला कि अजनबी लगभग 10-12 भाषाएँ बहुत अच्छी तरह बोल सकता है।

वे जब भी अजनबी से उसकी अपनी भाषा के बारे में जानना चाहते थे, वह टाल जाता था।

या फिर कहता था 'आप खुद पता लगा लीजिए।' आखिर एक दिन मुखियाजी के धैर्य का बाँध टूट गया।

उन्होंने सोचा कि किसी अजनबी पर इस तरह विश्वास नहीं किया जा सकता। उन्होंने यह काम केंचीकुमार को सौंप दिया।

बोले, 'इस अजनबी की मातृभाषा का पता लगाओ। आखिर यह कहाँ का रहने वाला है और क्या करता है ?

कैंचीकुमार ने चुनौती को स्वीकार किया।

उस रात वह अजनबी के कमरे के बाहर छिपकर बैठ गया। अजनबी जब गहरी नींद सो गया तब कैंचीकुमार ने अँधेरे में उसके तलवों में गुदगुदी की।

अजनबी थोड़ा हिला डुला। तब उसने अजनबी के मुँह पर एक गिलास पानी डाल दिया।

अजनबी हड॒बडाकर बेठ गया ओर कश्मीरी भाषा में गुस्सा करने लगा। इससे पहले कि वह केंचीकुमार को देख पाता, कैंचीकुमार वहाँ से चला गया।

रात बहुत हो चुकी थी। मुखियाजी सो गए थे।

इसलिए केंचीकुमार ने तय किया कि वह अगले दिन सुबह उनसे मिलेगा। सुबह को उसने पूरी घटना मुखियाजी को बताई।

फिर बोला, मुखिया जी, वह व्यक्ति कश्मीरी है, क्योंकि मुसीबत में या अचानक हड्बड़ाहट में व्यक्ति के मुँह से अपनी भाषा ही निकलती हेै।

मुखियाजी खुश हुए और तुरंत अजनबी को बुलाया।

“तुम कश्मीरी हो न!' “जी मुखिया जी, आखिर आपने पता चल ही लिया।'

कहकर वह मुस्कुरा उठा। और मुखियाजी कैंचीकुमार से बोले, 'तुमने एक बार फिर से एक अनोखी समस्या पर कैंची चला दी कैंचीकुमार।'