जानवरों ने सिखाया सबक

नाना नानी की कहानियाँ

एक घना और हरा-भरा जंगल था।

जंगल में बहुत सारे ऊँचे पेड थ। पंड़ों पर बहुत से पक्षी और गिलहरियों के घर थे।

पेडों की कोटटरों म॑ चूह, सॉप आदि चैन से रहते थे। कोई वहाँ आता नहीं था।

इसीलिए पशु-पक्षियों को कोई खतरा नहीं था।

फिर अचानक एक दिन कुछ मनुष्य वहाँ आए और एक ऊँचा पड काट दिया।

लकड़ी वे ले गए। उस पेड़ पर कुक्‌ चिडिया का छाटा-सा घांसला था।

उसका घोंसला 'टप' से नीचे आ गिरा। वह तो अच्छा था कि उसके छोटे-छोटे बच्चे उड़ना सीख गए थे। नहीं तो पता नहीं क्‍या होता।

कुकू ने अपना घोंसला एक दूसरे पेड़ पर बना लिया और अपने बच्चों के साथ वहाँ रहने लगी।

लेकिन मनुष्य अगले दिन फिर आए और कुछ और पेड काट दिए।

अब यह सिलसिला हर दिन चलने लगा। और न जाने क्यों, ये मनुष्य वही पेड काटते थे, जिस पर कुक्‌ का घोंसला होता था।

घर बदलते-बदलते कुकू परेशान हो गई थी। धीरे-धीरे जंगल के बाकी जानवरों को भी परेशानी होने लगी।

एक दिन मनुष्य आकर मधुमक्खी के छत्ते से सारा शहद ले गए।

फिर एक दिन आए और जमीन से सारे सूखे पत्ते बीनकर ले गए। उन्होंने सोचा भी नहीं कि इन सूखे पत्तों के नीचे कितनी ही चींटियों और दूसरे कीडे-मकौडों के घर थे।

आखिर एक दिन सभी पशु-पक्षी और कीडे-मकौडे इकट्ठे हुए।

उन्होंने तय किया कि मनुष्यों को इसकी सजा मिलनी ही चाहिए। वे सब एक साथ जंगल से बाहर निकले।

जंगल के बाहर एक नदी बहती थी। नदी के किनारे पर एक गाँव था।

सभी पशु-पक्षी गाँव के एक घर में घुस गए। यह घर एक किसान बाबूभाई का था।

बाबूभाई अपने बेटे रमेश के साथ वहाँ रहते थे। उन्होंने देखा, अंदर कोई नहीं था। शायद सब लोग खेतों में काम करने गए हुए थे।

वे आराम से पूरे घर में इधर-उधर बैठ गए। मधुमक्खियों ने घर के बाहर के बागीचे से खूब सारा पराग इकट्ठा किया।

बंदर ने पूरे घर में कूद-फाँद की। घर में केले का एक पेड़ था। बस, उसकी तो जोरदार दावत हो गई।

भालू को शहद का एक डिब्बा मिल गया। उसने चैन-से पूरा शहद चाटा और फिर चारपाई पर सो गया।

गिलहरी को कुछ अखरोट मिल गए थे। वह व्यस्त हो गई अपने तेज दाँतों से अखरोट काटने में।

शाम को जब घर के सदस्य वापिस आए तो घर की हालत देखकर घबरा गए।

पूरे घर में जगह-जगह जानवर, कीड़े और पक्षी ही नजर आ रहे थे।

उन्होंने शोर मचाया, डराया, लेकिन जंगल के ये प्राणी अपनी जगह से हिले तक नहीं।

वे इन मनुष्यों को न तो डरा रहे थे, न ही कोई नुकसान पहुँचा रहे थे। वे बस उनके घर में रहना चाहते थे।

तब रमेश ने कहा, 'पिता जी, ये जानवर हमसे कुछ कहना चाहते हैं।'

'क्या?' उसके पिता ने पूछा।

“हम मनुष्यों ने पेड काटकर इनके घर तोड़ दिए हैं न, इसलिए ये सब हमारे घर में रहना चाहते हैं।' रमेश बोला।

'तुम ठीक कह रहे हो।' बाबूभाई ने कहा।

उन्होंने तुरंत गाँव के सभी लोगों को इकट्ठा किया, सबने मिलकर यह वचन दिया कि अब जंगल का कोई भी पेड काटा नहीं जाएगा।

साथ ही जो पेड कटे हैं, उनकी जगह नए पेड़ लगाए जाएँगे।

जब जानवरों ने यह सब सुना, तो वे खुश हो गए।

उन्होंने रमेश और बाबूभाई को प्यार से देखा और वापिस जंगल की ओर चल पड़े जैसे कि वे उन्हें धन्यवाद दे रहे हों।

उस दिन के बाद उस जंगल में पेड नहीं काटे गए।

रमेश और बाबूभाई आज भी सब मनुष्यों को संदेश दे रहे हैं कि मनुष्य 'जंगल के पेड़ मत काटो!। इसमें हमारा भी फायदा है।