मिट्टी का दिल

लड़का और मिट्टी का दिल - सन्यासी ने गुस्सा शांत करने का उपाय दिया

एक गाँव में एक व्यक्ति अपनी पत्नि और पुत्र के साथ रहता था ।

जहाँ वह और उसकी पत्नि नम्र स्वभाव के थे, वहीं उनका पुत्र बहुत गुस्सैल था ।

वह हर समय चिढ़ा हुआ रहता था और बात-बात पर गुस्सा हो जाया करता था ।

गुस्सैल स्वभाव के कारण उसकी किसी से नहीं बनती थी ।

आये दिन उसका आस-पड़ोस के लोगों से झगडा होता रहता था ।

उसे कोई पसंद नहीं करता था. उसके कोई दोस्त नहीं थे ।

माता-पिता अपने पुत्र को लेकर चिंतित थे ।

वे चाहते थे कि उसके स्वभाव में परिवर्तन आ जाये. लेकिन लाख समझाने पर भी उसका गुस्सा जस-का-तस रहा ।

एक दिन गाँव में एक सन्यासी का आगमन हुआ ।

वह विचित्र तरीकों से लोगों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए लोकप्रिय थे ।

जब माता-पिता ने उनके बारे में सुना, तो अपने पुत्र को लेकर उनके पास पहुँचे और बोले, “बाबा! ये हमारा पुत्र है ।

समस्या ये है कि इसे गुस्सा बहुत आता है ।

गुस्से पर इसका कोई नियंत्रण नहीं है ।

ये हर किसी से लड़ पड़ता है ।

हमारे समझाने का भी इस पर कोई असर नहीं होता ।

आप कुछ ऐसा करें कि ये गुस्सा करना छोड़ दे.” ।

सन्यासी ने कहा, “ऐसा करो. आप अपने पुत्र को आज दिन भर के लिए मेरे पास छोड़ जाओ.” ।

माता-पिता ने वैसा ही किया ।

वे अपने पुत्र को सन्यासी के पास छोड़कर घर चले गए ।

सन्यासी ने लड़के से कहा, “पुत्र! मैं तुम्हें एक काम देता हूँ. क्या तुम वह करोगे ?”

लड़का भी अपने गुस्से से परेशान था और चाहता था कि उसकी यह आदत छूट जाए ।

वह बोला, “यदि आपके दिए काम से मेरे गुस्सा करने की आदत छूट जाएगी, तो ज़रूर करूंगा ।

सन्यासी उसकी बात उन मुस्कुराए और बोले, “मैं प्रयास कर रहा हूँ पुत्र ।

तुम भी मेरा साथ दो. जाओ चिकनी मिट्टी के दो ढेर तैयार करो” ।

लड़के ने वैसा ही किया. तब सन्यासी ने कहा, “अब इस मिट्टी से दो दिल तैयार करो । ”

लड़के को यह काम कुछ अजीब लगा. लेकिन वह सन्यासी की बात मानकर मिट्टी से दो दिल तैयार करने लगा ।

दिल बनाते समय कई बार उसके मन में कई बार झुंझलाहट आई ।

वह सोचने लगा कि मैं यहाँ अपनी गुस्सा करने की आदत छोड़ने आया हों और इस सन्यासी ने मुझे किस काम में लगा दिया है ।

इस तरह तो मेरा गुस्सा ख़त्म होने की जगह बढ़ जाएगा ।

लेकिन उसने किसी तरह काम करना जारी रखा और मिटटी के दो दिल तैयार कर लिए ।

वह उन दो दिलों को लेकर सन्यासी के पास गया और बोला, “बाबा, ये रहे मिट्टी के दो दिल ।

मैंने आपका काम कर दिया है ।

अब मैं जिस उद्देश्य के लिए मेरे माता-पिता ने मुझे आपके पास भेजा है, उस पर आइये. उसके लिए कुछ कीजिये. ।

सन्यासी बोला, “मैं अच्छी तरह जानता हूँ पुत्र कि तुम यहाँ क्यों आये हो ? ।

पहले मेरा यह काम कर दो, फिर मैं तुम्हारे गुस्से के लिए कुछ करता हूँ ।

“बताइए अब क्या करना है?” लड़का मन मारकर बोला ।

“इस एक मिट्टी के दिल को लेकर कुम्हार के पास जाओ और उससे कहकर इसे भट्टी में अच्छी तरह तपा कर वापस ले आओ ।

लड़का कुम्हार से उस मिट्टी के दिल को तपाकर वापस सन्यासी के पास ले आया ।

तब सन्यासी ने उसके कहा, “अब इस दिल में जो चाहे रंग भर दो ।

लड़के ने उस दिल को लाल रंग से रंग दिया ।

रंग चढाने के बाद वह दिल बहुत सुंदर नज़र आने लगा ।

लड़के ने जब अपने दिन भर की मेहनत से तैयार उस दिल को देखा, तो बहुत ख़ुश हुआ और सोचने लगा कि सन्यासी बाबा से कहकर मैं इसे अपने घर ले जाऊंगा और अपने कमरे में सजाऊँगा ।

वह ख़ुशी-ख़ुशी सन्यासी के पास गया और वह दिल दिखाते हुए बोला, “बाबा, देखिये रंग भरने के बाद ये दिल कितना सुंदर दिखने लगा है ।

“हाँ, ये बहुत सुंदर दिख रहा है ।

आखिर तुमने इतनी मेहनत से इसे तैयार किया है, लेकिन अब तुम्हें इस दिल पर हथौड़े से चोट करनी होगी कहते हुए सन्यासी ने एक हथौड़ा लड़के के हाथ में पकड़ा दिया ।

अपनी दिन भर की मेहनत पर हथौड़ा चलाते हुए लड़के को बहुत गुस्सा आया ।

लेकिन किसी तरह अपने गुस्से को पीकर उसने उस दिल पर वार कर ही दिया ।

हथौड़े की चोट से वह दिल टूटकर बिखर गया. लड़के को बहुत दुःख हुआ ।

वह बोला, “बाबा, मेरे दिन भर की मेहनत बर्बाद हो गई ।

लेकिन सन्यासी ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया और मिट्टी का बना दूसरा दिल उसे देते हुए कहा, “अब इस दिल पर भी हथौड़े से वार करो ।

लड़के ने वैसा ही किया. लेकिन हथौड़े के वार से उस दिल पर हथौड़े का निशान उभर आया. लेकिन वह टूटा नहीं ।

लड़का आश्चर्यचकित होकर कभी उस दिल को तो कभी सन्यासी को देखने लगा ।

वह सोचने लगा कि मेरे माता-पिता मुझे किसके पास लेकर आ गए. ये सन्यासी बाबा तो मुझे पागल लगते हैं ।

वह बोला, “मेरा पूरा दिन यहाँ बेकार के काम में चला गया ।

अब मैं यहाँ एक क्षण भी नहीं रुकने वाला. मैं जा रहा हूँ. ।

“ठहरो..” सन्यासी ने उसे रोका, “…आज दिन भर तुमें जो काम किया, उसका वास्तविक अर्थ तो समझते जाओ ।

लड़का ठिठक गया ।

सन्यासी उसे समझाते हुए कहने लगे, “पुत्र! जिस मिट्टी के दिल पर तुम काम कर रहे थे ।

वह वास्तविक दिल का एक क्षद्म रूप था ।

जैसे तुम मिट्टी के दिल को आग की गर्मी में तपाया, वैसे ही अपने दिल को भी क्रोध की भट्ठी में तपाते हो ।

तुम्हें ऐसा लगता है कि इस तरह तुम इस दुनिया के समाने मजबूती से खड़े हो, लेकिन ऐसा नहीं है ।

जीवन रुपी हथौड़े का एक वार भी तुम्हारा कठोर हो चुका दिल झेल नहीं पायेगा और चकनाचूर हो जायेगा ।

ऐसे में तुम संभल नहीं पाओगे. जीवन के दुःख-दर्द को सहन करने के लिए तुम्हें अपना दिल नरम बनाना होगा ।

तब जब भी उस पर कोई दुःख आएगा, उस पर कुछ समय के लिए असर ज़रूर होगा. लेकिन वह टूटेगा नहीं ।

बल्कि कुछ ही दिनों में संभल जाएगा. क्रोध जितना नुकसान दूसरों का करता है, उससे कहीं अधिक तुम्हारा स्वयं का करता है ।

इसलिये क्रोध करना छोड़ दो. अपने दिल में प्रेम और क्षमा को स्थान दो, उसे विनम्र बनाओ।

लड़के की आँखें खुल चुकी थी. उसे सन्यासी को वचन दिया कि वह अब से अपने क्रोध पर काबू रखेगा और अपना व्यवहार सुधारेगा ।

सीख

क्रोध जितना नुकसान दूसरों का करता है, उससे कहीं अधिक तुम्हारा स्वयं का करता है, इसलिये क्रोध करना छोड़ दो । अपने दिल में प्रेम और क्षमा को स्थान दो, उसे विन्रम बनाओ ।