रेन - मैन

डर से सामना | खिड़की के पास कौन था ?

बहुत जोरों से वर्षा हो रही थी ।

ऐसी मूसलधार बारिश हो रही थी कि कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा था ।

लेकिन मार्क को ऐसी बारिश बहुत अच्छी लगती थी ।

उसे पानी से भरे गड्ढों में दौड़ने और छप - छप करने में बड़ा मजा आता था ।

जब बारिश रुक जाती , तो वह मेढकों और कीड़ों की खोज में निकल पड़ता था ।

आज भी मार्क घर से बाहर जाने के लिए बेचैन था , लेकिन वह नहीं जा सकता था ।

उसकी मम्मी दादी जी के घर चली गई थीं ।

तेज बारिश के कारण उनके घर की छत से पानी टपक रहा था ।

इधर पापा जी भी काम पर चले गए थे ।

ऐसा पहली बार हुआ था ।

अंधेरा होने के बाद मार्क अपने घर में अकेला था ।

आज वह खुद को बहुत बहादुर महसूस कर रहा था ।

अचानक उसने बाहर की ओर देखा ।

उसे महसूस हुआ कि खिड़की के पास कोई खड़ा है ।

वह आकृति बिल्कुल स्थिर खड़ी थी और मार्क की ओर एकटक देख रही थी ।

मार्क डरकर फर्श पर झुक गया ।

उसका दिल तेजी से धड़क रहा था और हाथ कांप रहे थे ।

उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे ।

मार्क जोर से चिल्लाकर अपनी मम्मी की बांहों में छिपना चाहता था ।

लेकिन वे दादी जी के घर गई थीं ।

वह अकेला था । उसे बहादुरी से काम लेना था ।

मार्क ने कुछ गहरी सांसें भरीं और फर्श पर सीधा लेट गया ।

उसने अपने बिखरे हुए विचारों को समेटा और तेजी से सोचने लगा ।

वह जानता था कि उसे शीघ्र ही कोई कदम उठाना होगा , वरना बहुत देर हो जाएगी ।

वह अपनी मम्मी और पापा से मिलना चाहता था ।

उसे इतनी जल्दी मरना नहीं था ।

मार्क धीरे - धीरे रेंगकर खिड़की के पास गया और बाहर देखा ।

वह आकृति अब भी उसी जगह खड़ी मार्क की खिड़की से भीतर देख रही थी ।

मार्क खिड़की के पास था , इसलिए वह उसकी शेर जैसी गुर्राहट आसानी से सुन सकता था ।

मार्क ने जल्दी से अपने खिलौनों वाले बॉक्स से बो गन निकाल ली ।

यह बंदूक उसके पापा ने लाकर उसे दी थी ।

इसके बाद मार्क ने गहरी सांस ली और सारा साहस बटोरकर भड़ाक से खिड़की खोल दी ।

अब वह भयानक आकृति उसके ठीक सामने थी ।

वह एक पल भी गंवाना नहीं चाहता था ।

उसने तत्काल उस आकृति पर निशाना साधा और अपनी बंदूक चला दी ।

मार्क का निशाना ठीक जगह पर लगा और दर्द के कारण उस आकृति के चिल्लाने की आवाज सुनाई दी ।

उसकी गुर्राहट अब दर्द भरी चीखों में बदल गई थी ।

मार्क इसे सहन नहीं कर सका ।

उसके कान फटने लगे थे । उसने अपने कान ढके और अपने मम्मी - पापा के पलंग के नीचे छिप गया ।

उसने अपनी बंदूक अपने सीने के पास लगा रखी थी ।

वह अब भी हांफ रहा था । थोड़ी देर बाद उसे नींद आ गई और वह पलंग के नीचे ही सो गया ।

मार्क कितनी देर तक सोता रहा , उसे कुछ पता नहीं चला ।

जब उसकी आंख खुली तो उसे मम्मी - पापा की आवाज सुनाई दी ।

सुबह हो गई थी ।

मम्मी - पापा को देखते ही मार्क ने अपने आंसू पोंछे और उनके गले से लग गया ।

जब मार्क के मम्मी - पापा ने उससे रोने का कारण पूछा , तो उसने कोई जवाब नहीं दिया ।

वह उन्हें यह नहीं बता सका कि उसके हाथों में बंदूक क्यों थी ।

शायद वे लोग उसकी बात का भरोसा न करते ।

तभी से मार्क बहादुर हो गया ।

अब उसे न तो अंधेरे से डर लगता है और न ही वह अकेला रहने से घबराता है ।

रात को जब मार्क सोने लगता है , तो अपनी बंदूक हमेशा अपने साथ रखता है ।

क्या पता , अंधेरे में कौन - सा भयानक जीव उसका इंतजार कर रहा हो ।