ट्रंक राक्षस

जोसफ को अपनी अलमारी में चाबियों का एक सुंदर गुच्छा मिला , जिसमें पांच चाबियां लगी थीं ।

उसने अपने जीवन में इतनी सुंदर चाबियां कभी नहीं देखी थीं ।

उन पर बहुत खूबसूरत चित्र बने थे ।

सारी चाबियां एक - दूसरे से अलग थीं ।

लेकिन जोसफ को यह नहीं मालूम था कि वे चाबियां किस संदूक या अलमारी की हैं ।

जोसफ को अपने घर में कोई भी ताला ऐसा नहीं दिखा , जिसमें वे चाबियां लग जाएं ।

फिर भी उसने उन्हें हर ताले में लगाकर देखा ।

मगर इससे कोई लाभ नहीं हुआ ।

' मुझे यकीन है कि इन चाबियों का ताला भी कहीं - न - कहीं अवश्य होगा ।

बस , मुझे थोड़ा ध्यान से देखना होगा ।

' जोसफ ने उन चाबियों को देखते हुए अपने - आपसे कहा ।

जोसफ का परिवार कुछ समय पहले उस घर में आया था ।

उसके पिता को उस शहर में नई नौकरी मिली थी ।

नये घर में कुल मिलाकर बीस कमरे थे । ऊपर वाले एक कमरे में बहुत से संदूक और

अलमारियां रखी थीं । उन्हें पिछले मालिक वहीं छोड़ गए थे ।

उन संदूकों आदि में पुराने कपड़े भरे हुए थे , जो गरीबों को दिए जाने थे ।

एक दिन जोसफ उन चाबियों को लेकर ऊपर वाले कमरे में गया , ताकि उनके ताले का पता लगा सके ।

जोसफ ने वे चाबियां संदूकों और अलमारियों में लगाना शुरू कर दिया ।

उसकी पांचों चाबियां एक बड़े संदूक में लग गईं , जिसमें चाबी लगाने के लिए पांच छेद थे ।

क्लिक ! क्लिक ! क्लिक ! क्लिक ! क्लिक ! जोसफ ने धीरे से संदूक का ढक्कन खोला ।

संदूक तो खाली था , परंतु उसके भीतर से अजीब - सी आवाजें आ रही थीं ।

जोसफ ने उसे तत्काल बंद कर दिया और सीढ़ियों से उतरकर नीचे भाग गया ।

जोसफ कुछ पर कौतूहल हावी हो गया ।

उस संदूक में से अब भी अजीब सी दिनों तक उस ओर नहीं गया ।

लेकिन जल्द ही उस आवाजें आ रही थीं ।

एक दिन वह पुनः उस संदूक के पास गया और उसका ढक्कन खोल दिया ।

जोसफ हिम्मत करके खुले संदूक के पास डटा रहा ।

जब उसने संदूक के भीतर झांका , तो उसे एक मोटा , हरी आंखों और गंदी बदबू वाला बदसूरत बौना दिखाई दिया ।

उसने तुरंत ढक्कन बंद कर दिया और अपने कमरे की ओर भाग गया ।

एक दिन जोसफ ने पुनः हिम्मत बटोरी , लेकिन संदूक के पास जाते ही उस पर डर हावी हो गया और वह वापस चला आया ।

जोसफ ने यह क्रम कई बार दोहराया ।

एकाध बार उसने बौने को देख भी लिया और डरकर वापस आ गया ।

एक दिन बौने ने आवाज देकर जोसफ को रोक लिया , " ठहरो ! " जोसफ वहीं ठिठक गया ।

बौना चिल्लाकर बोला , " मुझे भूख लगी है , भोजन चाहिए ।

तभी तो संदूक को अंदर से खा रहा हूं ।

क्या तुम मेरे लिए खाने को कुछ ला सकते हो ?

तुम्हारा बड़ा भला होगा । " बौने की बात सुनकर जोसफ हैरान रह गया ।

वह उससे बोला , ' क्या राक्षसों को भी भोजन चाहिए । " उसी दिन से उसका डर गायब हो गया ।

शीघ्र ही जोसफ और हरी आंखों वाला बौना पक्के दोस्त बन गए ।

प्यार से तो किसी को भी अपना दोस्त बनाया जा सकता है ।

बौने से दोस्ती करके जोसफ का अकेलापन दूर हो गया था ।