नन्ही लाल मुर्गी

नन्ही लाल मुगा एक फार्म हाउस में रहती थी ।

वह जमीन को कुरेदकर कुछ रसीले कीड़े खोज रही थी ।

अचानक उसे कुछ दिखाई दिया ।

वह गेहूं का एक दाना था ।

उसने अपने दोस्तों - बतख , हंस और बिल्ली को गेहूं का दाना दिखाया ।

मुर्गी बोली , “ अब दो काम

हो सकते हैं इस दाने को यूं ही झट से खा लें या इसे जमीन में बो दें ।

बोने पर जब बहुत से दाने उगेंगे , तो उससे हम सबका पेट भर जाएगा ।

क्या तुम लोग इसे बोने और सींचने में मेरी मदद करोगे ?

" लेकिन मुर्गी के दोस्तों को उसकी मदद करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी ।

तब मुर्गों ने स्वयं ही गेहूं का दाना जमीन में बो दिया ।

अगले दिन मुर्गों को उस स्थान पर पानी देना था , जहां उसने बीज बोया था ।

उसने अपने दोस्तों से मदद मांगी , लेकिन वे मुंह फेरकर चल दिए । मुर्गी

स्वयं ही छोटी बाल्टी में पानी लाई और उसे सींच दिया ।

कुछ ही दिनों में गेहूं का पौधा उग आया ।

ऐसे में उसने उस जगह पर एक बाड़ लगा दी , ताकि पौधे को कोई हानि न हो ।

फिर देखते ही देखते पौधा बड़ा होने लगा ।

वह वहीं बैठकर उसकी देखरेख करती ।

उसके सारे दोस्त मिलकर खेलते रहते ।

शीघ्र ही पौधे पर गेहूं के दाने आ गए ।

उसने उन्हें काटने के लिए अपने दोस्तों से मदद मांगी , " पौधे पर दाने उग आए हैं ।

चलो , मिलकर काटें । " लेकिन उसके सारे दोस्त मुंह घुमाकर चल दिए ।

तब मुर्गों ने स्वयं ही सारा अनाज काटकर निकाल लिया ।

फिर वह उसे पिसवाने के लिए चल पड़ी ।

उसके सभी दोस्त पानी में खेल रहे थे ।

उन्होंने मुर्गी को छोटी गाड़ी में अनाज ले जाते देखा , लेकिन उसकी मदद के लिए कोई नहीं गया ।

मुर्गी सारा अनाज चक्की पर ले गई ।

फिर उसने आटा पिसवाकर थैलों में भरवा लिया ।

जब वह थैले लेकर आई , तो किसी ने भी थैले उठाने में उसकी मदद नहीं की ।

मुर्गों भारी थैला उठाकर नहीं चल पा रही थी ।

उसने थैलों को गाड़ी से तो उतार लिया था , लेकिन घर में ले जाना मुश्किल हो रहा था ।

परंतु वह हिम्मत नहीं हारी और थैले को किसी तरह घसीटकर घर में ले गई ।

मुर्गी के आलसी दोस्तों ने आटा गूंथकर रोटी बनाने में भी उसका साथ नहीं दिया ।

मुर्गी ने अपने - आप ही आटा गूंथा और बहुत नरम रोटियां तैयार कीं ।

जब उसके सभी दोस्त शाम को खेलकर आए , तो रोटी पकने की सुगंध आ रही थी ।

ऐसे में उनके मुंह में पानी आ गया और उन्हें जोर से भूख लग गई ।

मुर्गी ने उन्हें देखकर कहा , " आप लोगों में से मेरी मदद करने कोई नहीं आया ।

लेकिन अब रोटी खाने के लिए आना चाहेंगे ? "

“ जी हां ! " सभी एक साथ बोले । "

जी नहीं , आपमें से किसी को भी हिस्सा नहीं मिलेगा ।

” नन्ही लाल मुर्गी ने हंसकर कहा और बड़े मजे से रोटी का स्वाद लेने लगी ।

उसे अपनी मेहनत का फल मिल गया था ।