सरपंच गोनू झा

एक बार सारे गांव ने गोनू झा को गांव का मुखिया चुन लिया। गांव में कई तरह की परेशानियां थीं। पीने के पानी की समस्या सबसे बड़ी थी। गांव का इकलौता कुंआ सारे गांव को पानी पिलाता पर वहां ऎसी भीड़ रहती कि झगड़ा भी हो जाता।

गांव के मनचले कुएं पर उसी वक्त नहाते जब गांव की स्त्रियां और लड़कियां पानी भरने पहुंचतीं। तरह-तरह की छींटाकशी होती और कई बार तो भयानक जंग छिड़ जाती। इन मनचलों में मूला नाम का एक लड़का सबसे ज्यादा बदमाश था। वह तो लगभग सारा दिन कुएं पर अपने आठ-दस साथियों के साथ रहता। भांग और गांजे में मस्त मूला की टीम ने गांव की लड़कियों और औरतों का जीना हराम कर दिया था। जब भी कोई औरत घूघट पलट देता। कोई शिकायत या विरोध करता तो झगड़े पर उतारू हो जाते।

मूला की इन हरकतों से सारा गांव परेशान था। पर वह गांव के बड़े महाजन अंजनी मांझी का इकलौता सपूत था। अंगनी माझी ने ब्याज पर सारे गांव को धन बांट रखा था।

"क्या हुआ! जवान खिलंदड़ा छोरा है। मजाक भर तो करता है। किसी से कुछ छुड़ा तो नहीं लेता। खबरदार जो किसी ने कुछ कहा।"

पर मूला की मां को अपने बेटे की करतूतें पसंद नहीं थी। वह उसे लाख समझाती पर मूला उसकी एक न सुनता। और हारकर वह एक दिन गोनू झा की शरण में जा पहुंची।

"पंडित जी, मेरा बेटा तो हाथ से निकला जा रहा है।" मूला की मां रोते हुए बोली-"उसके बाप को तो चिंता है नहीं। उल्टॆ उसकी गलत आदतों का समर्थन करता है। पर मैं उसकी मां हूं और एक अच्छे बेटे की कामना करती हूं। अब एक आप ही उसे सुधार सकते हैं।

'भौजाई, इस उम्र में ही बच्चा बनता-बिगड़ता है। आप निश्चिन्त रहें, मैं उसे समझाने का पूरा प्रयास करूंगा। काली मां ने चाहा तो एक ही बार में उसकी बुद्धि ठिकाने पर आ जाएगी। मेरे दिमाग में एक योजना है पर उसमें मुझे आपकी सहायता चाहिए।'

'अपने बेटे को सुधारने के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं।'

"ठीक है। मैं आपको बताता हूं कि आपको क्या करना है। "

गोनू झा ने उसे अपनी योजना बता दी। अगले दिन की बात है। मूला और उसके हुड़दंगी साथी कुएं पर सुबह से ही बैठे गांजा पी रहे थे और उल्टी-सीधी बातें कर रहे थे।

अचानक गांव की लड़कियों का एक झुंड पानी भरने आता नजर आया। उनके साथ एक घूंघट वाली स्त्री भी थी। घूंघट वाली की गागर चांदी की थी और उसकी चाल बता रही थी कि वह रोज आने वालियों में से नहीं थी। मूला और उसके साथी उत्सुक हो उठे कि चांदी की गगरी लेकर आने वाली वह सुंदरी कौन थी। उन्होंने पूछताछ की पर कोई न बता सका। तब मूला ने निर्णय किया कि इधर-उधर पुछनें से अच्छा है कि उसका घूंघट उठाकर देख लिया जाए। कोई उनका क्या बिगाड़ सकता है।

'चल बे पंगा।' मूला ने अपने एक साथी से कहा-"जाकर घूंघट तो उठा इस नई पतुरिया का जो चांदी की गगरी लेकर लचकती-मटकती आई है। सोच जिसके हाथ इतने सुंदर हैं तो चेहरा कितना सुंदर होगा।"

"गुरु, अगर ज्यादा सुंदर हुई तो क्या करेगा?" एक साथी ने चुटकी ली।

'तो ब्याह कर लूंगा!"

"पर यह तो विवाहिता है भई।"

'रहने दे। पसंद आई तो पसंद आई।'

"पर इसका पति।"

"मेरा क्या बिगाड़ेगा। मेरा बाप गांव का धनाढ्य है। पैसे से खरीद देगा इसे।"

सब चिलमची ठहाका लगाकर हंस पड़े। पंगा नाम का चिलमची नशे में झूमता आगे बढा और घूंघट वाली का घूंघट पलट दिया।

और जैसे बिजली कड़क गई। मूला की आंखे फटी रह गई। घूंघट के पीछे चेहरा तो सुंदर था पर वह उसकी मां थी। मूला को लगा कि सरेआम उसे नंगा कर दिया गया है। उसकी आंखे जमीन में धंसी जा रही थी। उसका दिल चाह रहा था कि जमीन फट जाए और वह उसमें समा जाए। मां बड़े ही आग्नेय नेत्रों से उसे घूर रही थी।

"क्या हुआ कुलकलंक!" मां ने कहा-"मेरा चेहरा पसंद नहीं आया। आ आगे बढ और अपनी सारी इच्छाएं पूरी कर। अरे, तू होते ही मर क्यों न गया। यह है तेरा असली रूप! इसलिए पाल-पोसकर बड़ा किया था तुझे कि एक दिन तू अपनी जननी का घूंघट उठाएगा।"

मूला तो शर्म से जमीन में गड़ा जा रहा था।

'अरे, आज तो तू शर्मा रहा है। क्या हुआ। यह तो तेरे रोज का खेल था। इसमें शर्म कैसी! मैं तेरी मां हूं इसलिए। अरे नासपीटे, और भी औरतें तो किसी की मां, बहन और बेटी हैं।"

'मां'। मूला बुरी तरह रो पड़ा-"मुझे क्षमा कर दे। मैं बहुत बुरा हूं मां पर आज तूने मुझे जो सबक दिया है उसे मैं जीवन भर याद रखूंगा। बस आज मुझे क्षमा कर दे मां। मुझे एक आखिरी मैका दे मां।"

"तुझे आज ग्लानि हो रही है। अब अगर तू सुधरना चाहता है तो क्षमा मुझसे मत मांग। इन लड़कियों से मांग, जो तेरी करतूतों से परेशान हैं। उन औरतों से मांग जिन्हें तू सबके सामने बेइज्जत करता है। तुझे आज जितनी पीड़ा हो रही है, वह पीड़ा तूने सबको कितनी बांटी है, तुझे पता है। क्या तू मेरा बेटा रह गया।'

'मां, मेरी मां, ओ मेरी मां!' मूला अपनी मां के कदमों से लिपट गया -'मैं बहक गया था। मैं गलत राह पर चल पड़ा था। आज तूने मेरी सोई हुई आत्मा को झकझोर दिया। अब मैं तुझे एक नेक बेटा, अच्छा इंसान बनकर दिखाना चाहता हूं। मुझे प्रायश्चित का यह अवसर दे।"

'तो यहीं से शुरू कर। इन सब लड़कियों से क्षमा मांग। इनसे वायदा कर कि तेरे होते कोई इनके सम्मान को छू न सकेगा। इनकी रक्षा तू करेगा एक भाई बनकर। यदि कर सकता है तो मैं तुझे अवसर देती हूं।'

मूला ने एक-एक लड़की के पैर पकरकर माफी मांगी और सबसे कहा कि आज से वह उन सबका भाई है। जो भी उनकी तरफ कुदृष्टि डालेगा उसकी आंखे वह खुद फोड़ डालेगा।

और अपने चिलमची साथियों को तो उसने इतना धमकाया कि सबने वहां से भागने में ही अपनी भलाई समझी। अब गांव की लड़कियां मूला के हृदय-परिवर्तन पर प्रसन्न थीं। इतना ही नहीं मूला उसी दिन अपनी मां के साथ गांव के एक-एक घर में गया और सभी स्त्रियों से हाथ जोड़कर अपने अपराधों की क्षमा मांगी। सारा गांव प्रसन्न हो उठा।

"मूला, सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते। तूने समय रहते अपनी भूल सुधार ली। हम सब बहुत खुश हैं।

'इसमें मेरी मां की कृपा है जो आज मेरी आंखॆं खुलीं।'

'मां को इतनी बुद्धि कहां मूला! अगर होती तो तुझे बचपन में ही न सुधार लेती।' मूला की मां बोली-'मैं मतिमूढ औरत क्या जानूं कि मानव मन को कैसे अदला-बदला जाता है। यह तो भगवान ही जानता है। और मुझे तो गोनू झा भगवान ही नजर आते हैं जिन्होने तनिक सी बुद्धि से मेरा बिगड़ चुका बेटा घर वापस लौटा दिया।'

"गोनू झा ने!" सब आश्चर्य में पड़ गए।

"हां।" मां बोली-'मैं मंदबुद्धि इतनी चतुर कहां जो ऎसा खेल रच सकूं।मैं तो बस अपने बेटे के पतन पर कुढती थी, तड़पती थी। एक दिन गॊनू झा के बारे में सुना कि उनके पास हर समस्या का समाधान है। इसी आशा में उनके सामने अपने बेटे के लिए झोली फैला दी। उन्होनें पलभर में समाधान कर दिया। उनकी योजना ने बिना अस्त्र के मेरे बेटे के अंदर के राक्षस को मार दिया।"

सारा गांव गोनू झा की जय-जयकार कर उठा। सारा गांव एकत्र होकर गोनू झा के दरवाजे पर पहुंचा। गोनू झा बाहर आए तो मूला उनके चरणों में गिर पड़ा और अपने अपराधों की क्षमा मांगी।

"क्षमा मत मांगो। क्षमा मांगने से किसी को तुम्हारे सुधर जाने की आशा नहीं है। यदि कुछ अच्छा करके दिखाओ तो जानें।" गोनू झा ने कहा।

और अगले ही दिन से मूला ने अपने बाप से ढेर सारा धन लेकर गांव में दो और नए-पक्के कुंओ की खुदाई शुरू करा दी। सारा गांव मूला के इस बदले रूप पर प्रसन्न था। अब मनचले नजर न आते थे। सर्वत्र शांति थी।

कुछ ही दिनों में नए कुएं तैयार हो गए थे। अब गांव में पानी की कोई भी समस्या नहीं थी। और मजे की बात यह थी कि लोग जब भी मूला को इसके लिए धन्यवाद देते तो वह एक ही बात कहता- "यह सब हमारे नए मुखिया गोनू झा की बुद्धि का कमाल है।

ऎसॆ थे गोनू झा जो मानव मन की थाह जानते थे। समाज की सब आवश्यकताओं का ज्ञान रखते थे। शठ् के शठ् और भले के साथ भला करने की विलक्षण क्षमता केवल गोनू झा जैसे विरलों में होती है।