Alice Or Anokhi Duniya Story In Hindi- Alice in Wonderland

Alice Or Anokhi Duniya Story In Hindi | Alice Or Anokhi Duniya Kahani

एलिस और अनोखी दुनिया की कहानी | एलिस और अनोखी दुनिया की सैर

एलिस और अनोखी दुनिया

बसंत का मौसम था ।

चारों तरफ हरियाली छाई हुई थी।

एलिस जंगल में एक पेड़ के नीचे बैठकर हरियाली का आनंद ले रही थी।

चारों तरफ सुंदर फूल खिले हुए थे, पक्षी चहचहा रहे थे।

तितलियाँ फूलों पर बैठकर रस चूस रही थीं।

एलिस का मन ये दृश्य देखकर बहुत खुश था ।

तभी एलिस को श्रीमान् खरगोश जाते हुए दिखाई दिए।

उन्होंने लाल रंग का सूट पहना हुआ था।

श्रीमान् खरगोश अपने हाथ में एक बड़ी-सी घड़ी पकड़े हुए बड़बड़ा रहे थे,

“अरे! मुझे एक बार फिर देरी हो गई। मुझे जल्दी जाना चाहिए।''

और श्रीमानजी की चाल और तेज हो गई।

अचानक तेजी से चलते हुए श्रीमान खरगोश झाड़ियों में कहीं गुम हो गए।

यह देखकर एलिस हैरान रह गई। वह जानना चाहती थी

कि आखिर खरगोश कहाँ गया और वह जल्दी में क्यों था।

एलिस उठी और उसी तरफ बढ़ी, जिधर खरगोश गया था।

वह खरगोश के पदचिन्हों का पीछा करते हुए आगे बढ़ रही थी।

अचानक एक बड़े गहरे गड्ढे के पास से खरगोश के पैरों के निशान गायब हो गए थे।

एलिस ने सोचा, ‘हो न हो, श्रीमान् खरगोश यहीं से अंदर गए हैं।'

एलिस कुछ देर सोचने के बाद खुद भी गड्ढे में उतर गई।

गड्ढे में उतरने के साथ ही वह फिसलने लगी और फिसलते-फिसलते एक गहरी, अँधेरी सुरंग में जा पहुँची।

सुरंग में एक जगह ठहरकर उसने

राहत की साँस ली। वह खुद से

बोली, “एलिस! अच्छा हुआ यहीं ठहर गई, वरना फिसलते-फिसलते जाने कहाँ पहुँचती?”

वह सुरंग में इधर-उधर देखने लगी।

उसे अपनी बाईं ओर एक छोटा-सा दरवाजा दिखाई दिया।

दरवाजा इतना छोटा था कि एलिस उसमें से प्रवेश नहीं कर सकती थी।

वह उदास हो गई और सोचने लगी कि अब वह अंदर कैसे जा पाएगी।

वह अंदर जाने का उपाय ढूँढते हुए इधर-उधर देखने लगी।

तभी उसे एक काँच की मेज के ऊपर एक बोतल रखी दिखाई दी।

मेज पर एक सुनहरे रंग की चाबी भी रखी

हुई थी। एलिस तुरंत उठकर मेज के पास गई।

उसने देखा कि मेज पर रखी बोतल पर लिखा हुआ था- ‘मुझे

पीकर तो देखो।'

यह पढ़कर एलिस बोतल में रखे पेय को पीने के लिए और लालायित हो उठी।

उसने निर्णय लिया कि वह पीकर देखेगी कि आखिर बोतल में है क्या?

उसने मेज पर रखी चाबी उठाई और फिर बोतल में रखा पेय पीने लगी।

वह मुश्किल से दो-चार घूँट ही पी होगी कि वह छोटी होने लगी।

वह घटते-घटते इतनी छोटी हो गई कि अब वह दरवाजे से आसानी से अंदर जा सकती थी।

एलिस अपने को छोटा देखकर हैरान रह गई थी, लेकिन वह खुश भी थी कि अब दरवाजे के अंदर जा सकेगी

और जान सकेगी कि वहाँ पर क्या है। एलिस ने जल्दी से चाबी द्वारा ताला खोला और अंदर गई ।

दरवाजे के अंदर एक बहुत सुंदर बगीचा था। वहाँ पर तरह-तरह के रंग-बिरंगे फूल खिले हुए थे।

खुशबूदार पेड़ थे, जिनकी खुशबू से पूरा बगीचा महक रहा था।

उसके मुँह से अपने आप निकल पड़ा, “वाह! कितना सुंदर बगीचा है।

मैंने ऐसा सुंदर बगीचा पहले कभी नहीं देखा ।

यह एकदम अनोखा है ।"

वह खुश होकर आगे बढ़ गई।

वह घूमते-घूमते एक छोटे-से घर के पास पहुँची ।

घर देखकर उसने सोचा, 'हो न हो, यह अवश्य ही श्रीमान खरगोश का घर है।

मुझे अंदर जाकर देखना चाहिए।'

यह सोचकर वह घर की ओर बढ़ चली।

उसने घर का दरवाजा खोला और अंदर चली गई।

उसने एकदम सही सोचा था, वह खरगोश का ही घर था।

वह खरगोश को देखकर खुश होते हुए बोली, “नमस्ते, खरगोश जी !”

लेकिन खरगोश उस पर बहुत गुस्सा था।

वह बोला, “क्या तुम्हें इतना भी नहीं

पता कि किसी के घर में घुसने से पहले उससे आज्ञा ली जाती है।

तुम्हें अंदर आने से पहले दरवाजा खटखटाना चाहिए था।"

“वो मैं उत्सुकता में भूल गई। माफ कर दीजिए।

मुझे बहुत जोर से भूख लगी है। क्या खाने को कुछ मिलेगा?''

कहकर उसने खरगोश के उत्तर देने से पहले ही मेज पर रखे केक के टुकड़े उठा लिए ।

एलिस ने एक टुकड़ा अपनी जेब में रखा और एक टुकड़ा खाने लगी।

केक बहुत स्वादिष्ट था। केक खाते ही एलिस का आकार बढ़ने लगा।

वह इतनी बड़ी हो गई कि उसका सिर घर की छत से टकराने लगा।

डर गई और चिल्लाते हुए बोली, “श्रीमान् खरगोश! मुझे बचाइए।

मेरी रक्षा कीजिए।”

"तुम हर काम में जल्दबाजी करती हो। लो, यह पंखा लो।"

खरगोश ने उसे अपना छोटा पंखा देते हुए कहा।

फिर वह वहाँ से चला गया।

एलिस ने जैसे ही पंखा लिया, वह छोटी हो गई।

इतनी छोटी की कि वह घर के दरवाजे से आसानी से बाहर निकल सके। छोटी होते ही

वह खरगोश को ढूँढने के लिए बाहर बगीचे में आ गई।

वह खरगोश को ढूँढने लगी।

उसे खरगोश तो नहीं मिला पर मशरूम के ऊपर बैठा एक कीड़ा दिखाई दिया।

वह कीड़ा एक अनोखा हुक्का पी रहा था।

एलिस खुद को नहीं रोक पाई और कीड़े के पास जा पहुँची।

उसे कीड़े को हुक्का पीते देख मजा आ रहा था।

इससे पहले कि वह कीड़े से कुछ कहती, वह बोल पड़ा, “क्या तुम हुक्का पीना चाहोगी ?"

"

“हाँ-हाँ! मैं भी आपसे यही कहना चाहती थी।"

एलिस ने उत्साहपूर्वक कहा।

कीड़े ने एलिस को हुक्का थमा दिया।

एलिस ने अभी एक कश ही मारी थी कि उसे लगा वह पहले से छोटी हो गई है।

उसे फूल दानवों की तरह बड़े-बड़े लगने लगे।

वह डरकर वहाँ से भागी।

वह अभी कुछ आगे बढ़ी थी कि एक पेड़ की डाल पर उसे एक बिल्ली बैठी हुई दिखाई दी।

बिल्ली बहुत डरावनी थी। वह उसे देखकर डर गई ।

एलिस ने डरते-डरते काँपती आवाज में उससे पूछा, “क्या तुमने श्रीमान् खरगोश को कहीं देखा है?

मैं उन्हें बहुत देर से ढूँढ रही हूँ ।"

बिल्ली ने एलिस को घूरकर देखा और एक ओर इशारा कर दिया।

एलिस ने उस ओर मुड़कर देखा तो वहाँ पर निशान के साथ एक बोर्ड लगा था।

उस पर लिखा था- ‘पागल टोपीवाला और श्रीमान् खरगोश।'

एलिस तुरंत उस ओर बढ़ गई। जल्दी ही वह वहाँ पहुँच गई, जहाँ पर टोपीवाला और खरगोश बैठकर चाय पी रहे थे।

वहाँ पर तीन कुर्सियाँ लगी हुई थीं और मेज पर गर्मा-गर्म चाय रखी हुई थी।

एलिस दौड़कर खाली कुर्सी पर बैठ गई। खरगोश और टोपीवाला ने उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया।

वे दोनों अपनी बातें करने में व्यस्त थे।

और बातें भी कैसी, एकदम बेसिर-पैर की ।

एलिस ने चाय का एक कप उठाया और चाय की चुस्कियाँ लेने लगी।

चाय पीने के बाद उसने उन दोनों को धन्यवाद कहा और वहाँ से चलती बनी।

वह स्वयं से बोली,‘“वे दोनों कैसी बातें कर रहे थे?

मेरी समझ में तो कुछ नहीं आया।

अच्छा हुआ वहाँ से चली आई,वरना पागल हो जाती।''

चलते-चलते एलिस ‘दिल की रानी' के बगीचे में जा पहुँची।

उसने देखा कि रानी के सारे सेवकों की पोशाकें ताश के पत्तों के समान हैं।

वह हैरानी से बगीचे में घूमने लगी। बगीचे में एलिस को एक फ्लेमिंगो मिली।

वह उसके साथ खेलने लगी।

तभी वहाँ रानी आई। रानी बहुत गुस्से में थी।

उसके सिर पर उसकी पालतू बिल्ली बैठी हुई थी।

यह वही बिल्ली थी. जिसने एलिस को श्रीमान् खरगोश का पता बताया था।

रानी ने एलिस को देखते ही अपने सैनिकों को आदेश दिया,

“इस लड़की का सिर कलम कर दो ।

यही दोषी है । " यह सुनकर एलिस एकदम सन्न रह गई।

उसने तुरंत एक उपाय सोचकर अपनी जेब में छिपाया हुआ केक

निकाला और एक छोटा-सा टुकड़ा खा लिया।

केक खाते ही वह बढ़ने लगी।

सैनिकों ने एलिस पर भालों से प्रहार करना शुरू कर दिया, पर एलिस को कुछ नहीं हुआ।

यह देखकर सैनिक डर गए और उन्होंने उसकी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया।

तब एलिस ने उनसे पूछा, “तुम लोगों ने मुझ पर भालों से हमला क्यों किया?

तुम्हारी रानी मुझसे खफा क्यों है?

मैं तो उसे जानती भी नहीं हूँ।"

एक सैनिक बोला,‘“क्योंकि तुमने रानी का सामान चुराया है।"

एलिस समझ गई कि हो न हो यह उसी दुष्ट बिल्ली की चाल है।

उसने कुछ सोचकर तुरंत अपनी जेब से केक निकाला और एक टुकड़ा खाया।

ऐसा करते ही वह अपने वास्तविक आकार में आ गई।

वह खुश होकर बोली, “ भगवान तेरा लाख-लाख शुक्र है कि मैं अपने वास्तविक आकार में आ गई।"

फिर वह बोली, “मुझे तुरंत इस बगीचे को छोड़कर चले जाना चाहिए।"

यह फैसला कर वह अपनी पूरी ताकत से भागने लगी।

अचानक एलिस उठकर बैठ गई।

वह अपनी आँखें मलते हुए बोली, “मैंने भी कितना अनोखा सपना देखा!

वहाँ सब कुछ बहुत अजीब था।" उसकी बहन जो कि घर के बाहर अपने बगीचे में कहानी की किताब पढ़ रही थी,

बोली, "एलिस! कैसा सपना?

तुम कहानी सुनते-सुनते मेरी गोद में सो गई थी । "

एलिस ने अपना पूरा सपना अपनी बहन को सुना दिया।

फिर दोनों हँसने लगीं और घर लौट आईं।