भारतीय साहित्य के अन्तर्गत कहानी साहित्य का उद्गम वैदिक साहित्य से ही माना जाता है।
ऋग्वेद के दशम मण्डल में अनेक आख्यान हैं।
पुराण, रामायण, महाभारत आदि परवर्ती संस्कृत साहित्य में यत्र-तत्र इन्हीं आख्यानों का विकसित रूप दिखाई देता है।
इस समग्र कथा साहित्य को विद्वानों ने मुख्य रूप से नीति कथा और लोककथा इन दो भागों में विभक्त किया है।
पंचतन्त्र, हितोपदेश आदि नीति कथा साहित्य के अन्तर्गत आते हैं।
वृहत्कथा, कथा सरित्सागर, बैताल पच्चीसी, सिंहासन बत्तीसी आदि की गणना लोक कथा साहित्य में होती है।
नीति कथा साहित्य उपदेशात्मक है, जबकि लोक कथाओं में यह बात नहीं है। उनमें कथा सीधे-सादे शब्दों में कह दी जाती है।
यद्यपि जातक कथाएं पालि साहित्य के अन्तर्गत आती हैं, तथापि इन लक्षणों के आधार पर इन्हें लोक कथा कहना ही उपयुक्त होगा।
इन कथाओं की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये समाज के उच्च सम्भ्रान्त वर्ग को आधार बनाकर नहीं लिखी गयी हैं, अपितु इनका आधार वृक्ष, हाथी, बटेर, कौआ, गीदड़, गरीब किसान; गांव का भोला युवक, निरीह ब्राह्मण, चोर-लुटेरों आदि को बनाया गया है।
इनमें अत्यन्त सरल शैली में कथावस्तु को प्रस्तुत कर दिया गया है।
इनमें उपदेशात्मकता का प्रायः अभाव ही है, फिर भी इन कथाओं के चरित्र जहां एक ओर सामान्य पाठकों को हंसाते-गुदगुदाते हैं, वहीं दूसरी ओर प्रबुद्ध पाठकों को अनायास ही चिन्तन के लिए भी बाध्य करते हैं ।
वस्तुतः इन कथाओं के आधार जीव-जन्तु भी मानव समाज के ही कर्त्तव्य परायण सच्चे मित्र, भोले-भाले, चतुर, धुर्त अथवा चापलूस आदि चरित्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
जातक कथाओं में रोचकता सर्वत्र बनी रहती है।
अतः ये कथाएं बच्चों के लिए रोचक, मनोरंजक एवं ज्ञानवर्धक तो हैं ही, साथ ही प्रत्येक अवस्था के पाठकों के लिए भी उपयोगी हैं।
जातक कथाओं का कुछ संग्रह यहाँ है ।
आशा है, यह कहानी आपके के लिए पर्याप्त उपयोगी सिद्ध होगा।