अंजान बाँसुरी वादक
हेमलिन एक छोटा-सा नगर था ।
वह चारों तरफ से ऊँची-ऊँची दीवारों से घिरा हुआ था।
उस नगर में चारों तरफ सुख-शांति थी।
वहाँ के लोग सभी प्रकार से सुखी थे।
लेकिन हेमलिनवासी लालची और खाने के शौकीन थे।
उन्हें खाने की खुशबू दूर से ही आ जाती थी।
एक बार क्रिसमस की रात जब सब लोग त्योहार मनाकर गहरी नींद में सो रहे थे,
चौकीदार एक ऊँचे से टीले पर खड़े होकर नगर की रखवाली कर रहा था।
अचानक चौकीदार की नजर एक लंबे काले साँप पर पड़ी जो तेजी से नगर में घुसा आ रहा है।
उसे अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हुआ।
उसने जब ध्यान से देखा तो उसे समझ आया कि नगर की ओर साँप नहीं बल्कि चूहों की फौज बढ़ी चली आ रही है।
उसे खतरे का आभास हुआ। चौकीदार ने तुरंत खतरे का घंटा बजा दिया।
जिसे सुनकर नगर के सारे
लोग वहाँ जमा हो गए। चौकीदार ने उन्हें
के सामान को कुतरने से भी वे पीछे नहीं हटे।
उन्हें जो मिलता वे उसे कुतर डालते ।
अब हेमलिन में हर जगह चूहे ही चूहे नजर आते थे।
चूहों की वजह से हेमलिनवासियों की नाक में दम हो गया था।
इस समस्या से निजात पाने के लिए सभी नगरवासी नगर प्रमुख के पास गए और बोले,“हमें चूहों से मुक्ति दिलाइए।
चूहों ने हमारा जीना दूभर कर दिया है।
चूहों ने हमारा सारा सामान नष्ट कर दिया है।
वे खाने फलों, कपड़ों और यहाँ तक कि लकड़ी के सामान को भी नहीं छोड़ रहे हैं।
इन्हें भगाने का फौरन कोई उपाय कीजिए ।
हमें डर है कि कहीं हेमलिन में हैजा न फैल जाए। "
मुझे भी इस बात की चिंता है।
लेकिन चूहों को कैसे भगाया जाए, यह समझ में नहीं आ रहा।
मैंने एक उपाय सोचा है कि जो भी व्यक्ति हेमलिन नगर को चूहों
से मुक्ति दिलाएगा, मैं उसे ईनामस्वरूप पचास सोने की मोहरें दूँगा।
इस बात की मुनादी मैं आज ही पिटवा देता हूँ।”
नगर प्रमुख ने कहा ।
नगर प्रमुख की घोषणा के तीन दिन बाद एक व्यक्ति हेमलिन नगर में आया ।
वह लंबा, दुबला-पतला व्यक्ति था।
उसके सिर पर हरे रंग का हैट था।
उसके कँधे पर एक स्कूली बस्ता लटक रहा था।
वह सीधे नगर प्रमुख के पास गया और बोला, “मैंने सुना है कि आपने घोषणा करवाई है कि आप हेमलिन
नगर से चूहों को भगाने वाले को पचास सोने की मोहरें देंगे।
क्या आप अब भी अपनी बात पर कायम हैं?"
'हाँ! मैंने घोषणा की है। लेकिन पहले तुम बताओ कि तुम कौन हो और यह सब क्यों पूछ रहे हो?"
नगर प्रमुख ने उससे पूछा।
वह बोला, “मैं कौन हूँ, इससे फर्क नहीं पड़ता ।
मैं आपके नगर को चूहों के आतंक से मुक्ति दिला सकता हूँ।
आप बस मेरा इनाम तैयार रखिए।"
से मुक्ति दिलाएगा, मैं उसे ईनामस्वरूप पचास सोने की मोहरें दूँगा।
इस बात की मुनादी मैं आज ही पिटवा देता हूँ।”
नगर प्रमुख ने कहा ।
नगर प्रमुख की घोषणा के तीन दिन बाद एक व्यक्ति हेमलिन नगर में आया ।
वह लंबा, दुबला-पतला व्यक्ति था।
उसके सिर पर हरे रंग का हैट था।
उसके कँधे पर एक स्कूली बस्ता लटक रहा था।
वह सीधे नगर प्रमुख के पास गया और बोला, “मैंने सुना है कि आपने घोषणा करवाई है कि
आप हेमलिन नगर से चूहों को भगाने वाले को पचास सोने की मोहरें देंगे।
क्या आप अब भी अपनी बात पर कायम हैं?"
'हाँ! मैंने घोषणा की है।
लेकिन पहले तुम बताओ कि तुम कौन हो और यह सब क्यों पूछ रहे हो?"
नगर प्रमुख ने उससे पूछा।
वह बोला, “मैं कौन हूँ, इससे फर्क नहीं पड़ता ।
मैं आपके नगर को चूहों के आतंक से मुक्ति दिला सकता हूँ।
आप बस मेरा इनाम तैयार रखिए।"
नदी में कूदने लगे।
नदी में गिरकर सारे चूहे मर गए।
अब हेमलिन में एक भी चूहा न था।
लोगों को चूहों से मुक्ति मिल गई थी।
चूहों से छुटकारा पाकर हेमलिनवासियों ने राहत की साँस ली।
अब नगर प्रमुख को अपना वादा पूरा
करना था।
बाँसुरी वादक चूहों को नदी में गिराने के बाद नगर प्रमुख के पास गया और बोला,
‘“मैंने आपके नगर को चूहों से मुक्ति दिला दी है।
अब आप मुझे मेरा ईनाम दे दीजिए। फिर मैं यहाँ से चलूँ ।"
“हम तुम्हारे एहसानमंद है।
तुमने हेमलिन को चूहों से छुटकारा दिलाकर इस नगर को बचाया है।
तुम्हारी जितनी तारीफ की जाए, उतनी कम है।
मैं तुम्हें तुम्हारा ईनाम अवश्य दूँगा।
यह लो पचास चाँदी की मोहरें।"
नगर प्रमुख ने मोहरें देते हुए कहा ।
“चाँदी की मोहरें। आपने तो सोने की मोहरें देने का वादा किया था।”
बाँसुरी वादक हैरानी से बोला ।
“चाँदी की मोहरें! तुम्हें सुनने में अवश्य कोई धोखा हुआ है।''
नगर प्रमुख ने अपनी बत्तीसी दिखाते हुए कहा ।
यह सुनकर बाँसुरी वादक को बहुत गुस्सा आया।
वह समझ गया कि नगर प्रमुख उसे धोखा दे रहा है ।
वह गुस्से में पैर पटकता हुआ वहाँ से चला गया।
जाते-जाते बोला,‘“याद रखना, मैं लौदूँगा, जल्दी ही लौटूंगा।”
नगर प्रमुख अपनी चाल पर बहुत खुश हो रहा था।
वह बोला, “मैं क्या बेवकूफ हूँ जो चूहे भगाने के लिए किसी को पचास सोने की मोहरें दूँगा ।
अरे! यह तो मैंने चूहे भगाने के लिए एक चाल चली थी।
बड़ा आया सोने की मोहरें लेने वाला।
" धीरे-धीरे समय व्यतीत होता गया और हेमलिनवासी बाँसुरी वादक को भूल गए।
आज छुट्टी का दिन था। हेमलिन में खूब चहल-पहल थी।
बच्चे झुंड बनाकर खेल रहे थे।
बड़े बातें करने में व्यस्त थे।
तभी बाँसुरी का वही मादक स्वर सुनाई दिया।
सभी समझ गए कि बाँसुरी वादक लौट आया है।
बाँसुरी वादक सच में लौट आया था।
वह नगर के प्रमुख चौराहे पर खड़े होकर बाँसुरी बजाने लगा।
उसकी बाँसुरी की धुन में गजब का आकर्षण था।
उसकी बाँसुरी की धुन सुनकर नगर के सभी बच्चे झूमने-नाचने लगे और अपने-अपने घरों से निकलकर चौराहे की तरफ बढ़ चले।
जब नगर के सारे बच्चे बाँसुरी वादक के आस-पास जमा हो गए तो वह और जोर-जोर से बाँसुरी बजाने लगा और फिर नगर से बाहर की ओर जाने लगा।
बच्चे भी झूमते-नाचते हुए उसके पीछे हो लिए।
उनके माता-पिता उन्हें रोकना चाहते थे, लेकिन वे सम्मोहनवश जड़वत हो गए थे।
उनके पैर ही नहीं उठ रहे थे।
बाँसुरीवादक बच्चों को नगर से निकालकर एक पर्वत पर ले गया।
फिर वह पर्वत पर बनी गुफा के अंदर चला गया।
बच्चे भी उसके पीछे-पीछे गुफा के अंदर चले गए।
बच्चे जो गए, सो गए।
वे फिर कभी दिखाई नहीं दिए और न ही वह बाँसुरी वादक ।