बीरबल की बुद्धिमानी और सूझबूझ से कौन वाकिफ नहीं।
अनेक अवसरों पर बीरबल ने अपनी बुद्धिमानी का लोहा मनवाया है तभी तो वह अकबर बादशाह के नवरत्नों में से एक थे।
शहंशाह अकबर के दरबार में हसन नामक एक विदेशी व्यापारी आया।
उस ने अपनी फरियाद में कहा, “बादशाह सलामत, मैं भारत में व्यापार के उद्देश्य से आया था।
मेरे पास दो हजार सोने की मुहरों की एक थैली थी, जिसे बंद कर के मैं ने उस पर मुहर लगाई और
एक रात के लिए अपने एक व्यापारी मित्र के पास यह सोच कर रखवा दी थी कि उस के पास सुरक्षित रहेगी।
“परंतु दूसरे दिन सवेरे जब मैं ने अपने मित्र से मुहरों की थैली वापस ली और मुहरें गिनीं तो उस में सौ मुहरें कम निकलीं, जब कि थैली की मुहर ज्यों की त्यों लगी थी।
सोने की सौ मुहरें उस लालची व्यापारी ने थैली में से किस प्रकार निकालीं, पता नहीं।
बादशाह सलामत से मेरी यह फरियाद है कि मुझे उस चालाक व्यापारी से सौ मुहरें वापस दिलाई जाएं।'
अकबर ने हसन से कहा, “सोने की मुहरों की थैली जैसी तुम ने रखी थी वैसी ही तुम्हें वापस मिल गई तो व्यापारी के चोरी करने का सवाल ही नहीं उठता।"
“हालांकि बादशाह सलामत को
मैं इस बात का यकीन नहीं दिला सकता कि सौ मुहरों की चोरी उसी व्यापारी ने की है,
फिर भी मैं आप से न्याय की आशा रखता हूं,” हसन ने
कहा।
“अगर सचमुच तुम्हारी सोने की सौ मुहरें व्यापारी ने चुराई हैं, तो तुम्हें न्याय अवश्य मिलेगा,”
अकबर ने कहा, "जरा अपनी सोने की मुहरों की
थैली दिखाओ।'
हसन ने सोने की मुहरों की थैली अकबर के सामने रख दी।
थोड़ी देर तक वह थैली का निरीक्षण करते रहे और सोचते रहे कि एक चोर मुहर लगा कर बंद की गई थैली में से किस प्रकार सोने की मुहरें निकाल सकता है ?
बगैर खोले भला सोने की मुहरें निकाली जा सकती हैं?
मुहर
वह काफी देर तक असमंजस की स्थिति में सोचते रहे, पर उन की समझ में कुछ नहीं आया।
उस समय दरबार में उन के पास बीरबल भी बैठा हुआ था।
मुहर
अकबर ने बीरबल से पूछा, “भई बीरबल, क्या एक चोर इस थैली की खोले बगैर सोने की मुहरें निकाल सकता है?”
“यह कार्य असंभव प्रतीत होता है,” बीरबल बोला, “यदि आप मुझे आज्ञा दें और सोचने के लिए दो दिन का समय दें तो शायद आप की समस्या का हल निकाल सकूं।'
“आज्ञा है."
"
“लाइए बादशाह सलामत, सोने की मुहरों की थैली मुझे दे दीजिए.' “थैली क्यों?”
“इस थैली से ही आप की समस्या का हल निकलेगा?'
अकबर ने सोने की मुहरों की थैली बीरबल को दे दी।
"
"
दो दिन बाद बीरबल अकबर के सामने हाजिर हुआ. उसे देखते ही अकबर ने बेताबी से पूछा, “अरे बीरबल, क्या हमारी समस्या का हल निकला?"
बीरबल प्रसन्न मुद्रा में
“समस्या का हल ही नहीं बादशाह सलामत, " बोला, “थोड़ी देर में चोर भी आप के सामने हाजिए किए जाएंगे।
“चोर भी,” आश्चर्य से अकबर ने बीरबल की ओर देखा.
"
“जी बादशाह सलामत, वही चोर जिन्होंने हसन की सोने की मुहरें चुराई थीं” कह कर बीरबल ने द्वारपाल को संकेत किया।
अपने स्थान से हट कर द्वारपाल चला गया. कुछ ही क्षणों में दो सिपाही रस्सी से बंधे दो व्यक्तियों को ले कर उपस्थित हुए।
अकबर आश्चर्यचकित सा सब देख रहा था। सामने बैठा हसन अपने
स्थान पर उठ कर खड़ा हो गया और दोनों में से एक व्यक्ति की ओर संकेत कर घृणा व क्रोध भरे स्वर में जोर से बोला,
“यही है वह विश्वासघाती, यही है चोर... मित्र के नाम पर धब्बा।
"
बीरबल ने हसन को शांति से बैठने के लिए कहा और बादशाह अकबर से बोला, “बादशाह सलामत, आप इन दो व्यक्तियों को देख रहे हैं।
इन में से गंजे सिर वाला हसन का व्यापारी मित्र है, जिस ने उस की सोने की मुहरों की थैली में से सौ मुहरें निकाली थीं।
दूसरा दाढ़ी वाला आदमी दर्जी है, जिस ने थैली में से मुहरें निकालने में इस चालाक और धूर्त व्यापारी की सहायता की थी। "
अकबर एकटक बीरबल को देखे जा रहे थे।
पूछा, “पर यह कैसे साबित होगा कि चोर यही हैं और तुम इन तक कैसे पहुंचे?”
बीरबल ने मुहरों की खाली थैली निकाल कर अकबर को दिखाई और बोला, “इस थैली के पेंदे से।"
बीरबल की बात सुन कर दरबार में उपस्थित सभी लोग हंस पड़े।
स्वयं
"
अकबर ने हंसते हुए कहा, “यह तो एक मजाक है. “यह हकीकत है," बीरबल जोर देते हुए बोला, “आप स्वयं देख सकते हैं.'
"1
बीरबल ने थैली को पलट दिया और निचले हिस्से की सिलाई दिखाता हुआ अकबर से बोला, “यह देखिए, थैली के निचले हिस्से के थोड़े से भाग को उधेड़ कर थैली में से सोने की मुहरें निकाली गई थीं. इस भाग को जितनी सफाई से उधेड़ा गया था उतनी ही सफाई से उसे दोबारा सिल दिया था. पहले की तथा नई सिलाई में अंतर भी स्पष्ट रूप से दिखाई पड़
रहा है.
"
बीरबल एक पल रुक कर आगे बोला, “मैं इस थैली की सिलाई को ले कर एक रात यही सोचता रहा कि इस में किसी विशेष और होशियार दर्जी का हाथ होगा. बस, फिर क्या था, मैं ने एक चाल चली. अपनी कीमती कुरती की भीतरी जेब उधेड़ कर शाही धोबी को धोने के लिए दी. उसे यह भी बता दिया कि भीतरी जेब उधड़ी हुई है. उसे सिलवा कर और धो कर बारह घंटे के अंदर ले आना.
धोबी ने सही समय पर कुरती तैयार कर के पहुंचा दी. मैं ने कुरती की भीतरी जेब की सिलाई का मिलान थैली की सिलाई से किया. संयोग से सिलाई एक सी निकली. धोबी से दर्जी का पता पूछा और दर्जी के पास पहुंच
गया.
जब मैं ने थैली दिखा कर दर्जी से पूछताछ की तो थैली देख कर दर्जी घबरा गया. उस ने मुझे सारी बात सच बता दी. तब मैं दर्जी की मदद से इस नमकहराम व्यापारी तक पहुंचा और अब दोनों आप के सामने
"
बीरबल के चुप होते ही वह चालाक व्यापारी और दर्जी रोने लगे।
व्यापारी रोते हुए कह रहा था, “क्षमा दान दें बादशाह सलामत।
क्षमा दान दें, मैं अंधा हो गया था।
सोने की मुहरें देख कर मेरी नीयत खराब हो गई थी।
"
दर्जी दहाड़ें मारता हुआ चिल्ला रहा था, “बादशाह सलामत, इस में मेरा कोई दोष नहीं है ...
व्यापारी ने मुझ से 10 सोने की मुहरों में यह कार्य कराया था। "
हसन हतप्रभ सा बीरबल को देख रहा था।
वह सोच रहा था, 'यह बेवकूफ सा दिखने वाला आदमी क्या इतना बुद्धिमान हो सकता है।'
अकबर क्रोधपूर्ण आंखों से दर्जी और व्यापारी को देख रहा था।
दोनों ने मिल कर एक विदेशी व्यापारी हसन के साथ धोखा किया था।
“बीरबल," अकबर चीखा, “दोनों को कैदखाने में डलवा दो।
” बीरबल ने कहा, “बादशाह सलामत, यदि आप इजाजत दें तो मैं कुछ अर्ज करना चाहता हूं।
“कहो, बीरबल।'
"
“दोनों को क्षमा दान दे दीजिए. बेचारों से पहली बार यह गलती हुई है। "
बीरबल की बात पर अकबर के माथे पर बल पड़ गए, “जानते हो तुम क्या कह रहे हो?"
“जानता हूं, बादशाह सलामत।
फिर भी इन्हें क्षमा कर दें। "
"
“अच्छा, ” अकबर सोच में पड़ गया।
बीरबल ने दर्जी और व्यापारी से आदेशात्मक स्वर में कहा, “चलो दोनों मुरगा बन कर बांग दो। "
दोनों व्यक्ति मुरगा बन कर बांग देने लगे।
इस पर अकबर के साथ सभी लोग जोर से हंसने लगे।
हसन ने अपने देश जा कर बीरबल की कहानी का प्रचार किया तथा उस की बुद्धिमानी की प्रशंसा की।