कामनी बहुत ही खूबसूरत औरत थी।
उसे अपनी खूबसूरती पर बहुत घमंड था लेकिन उसकी शादी बहुत ही साधारण दिखने वाले आलोकनाथ से हो गई थी जिसे वह बिल्कुल भी पसंद नहीं करती थी।
आलफ्तर के मार्केटिंग विभाग में क्लर्क का कम करता था।
महीने के पंद्रह दिन वो टूर पर ही रहता ।
तनख्वाह भी ठीक ही थी । लेकिन कामिनी की हर दिन फरश को पूरा करने के चक्कर में महीने के पहले हफ्ते ही उसकी सारी तनख्वात हो जाती थी ।
एक दिन की बात है सुबह का समय था ।
कामिनी बिस्तर पर लेटी हुई थी. तभी आलोकनाथ ने उसे जगाते हुए कहा। क्या बात है काममिनी आज बहुत देर तक सोई हुई हो, जिसकी किस्मत ही सो गई हो, वो जा क्या.
आलोकनाथ बोले क्या बात है आज सुबह- सुबहबह ही ताने कामिनी ।
तो क्या चाहते हैं आप सुबह-सुबह आपकी आरती उतारना शुरू कर डन या पैर दबाऊ।
आलोकनाथ समझ गया कि कामिनी को कोई चीज़ चाहिए।
क्योंकि जब भी उसे कोई चीज चाहिए वो इसी तरह का नाटक करने लगती थी।
क्या चाहिए तुम्हें? बोलो ना कामिनी हाहा
बोल तो ऐसे रहे हो जैसे चंद तारे लेकर ए जाओगे मेरे लिए
कितने दिनों से आपको सोनी की रिंग के लिए बोल रही हूं, लेकिन तुम तो एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देते हो ।
अब जितनी हैसियत है मेरी, उतना ही तो कर पाऊंगा मैं और अभी.
दोती महीने रुक जाओ ना फिर दिला दूंगा मैं।
कामिनी तो फिर मुझसे पूछते क्यों ह कि क्या चाहिए।
जाइए अपना काम करि मेरे सिर में बहुत दर्द है।
आलोकनाथ क्या करता? किसी तरह कर्ज लेकर काम आया लेकिन कामिनी बहुत ही लालची औरत थी।
उसे हमेशा कुछ नया चाहिए होता था।
इस बीच कामिनी के पड़ोस में एक नया शादीशुदा जोड़ा अमन और सुप्रिया रहने के लिए आये।
जब अपनी बड़ी सी कार में से अमन और सुप्रिया उतरे तो कामिनी अपनी बालकनी से उन्हें घूरते हुए सोचने लगी।. कामनी.
वाह कितना हैंडसम लड़का है । क्या मस्त कपल हैं दोनों,
काफी अमीर भी लग रहे हैं दोनों कितनी महंगी कर है इनकी और एक मेरे पति है न शक्ल अच्छी है और न कमाई।
कामिनी को जब पता लगा कि ये जोड़ा बिल्कुल उनके बगल में रहने के लिए आया है तो वो उनसे दोस्ती करने के लिए मचल उठी।
खास तौर पर अमन से उसकी दोस्ती करने की बहुत इच्छा थी।
एक दिन वो उस खटखटाया दरवाजा अमन ने ही खोला।
सामने से अमन को देखकर वह उसे पर और भी लट्टू हो गई । मैं आपके पड़ोस में रहती हूं. थोड़ी चीनी चाहिए थी ।
मुझे अमन जी अभी देता हूँ।
अमन सुप्रिया- सुप्रिया ज़रा कटोरी में चीनी तो ले आना सुप्रिया चीनी लेकर ए गई अमन ने उसे कामनी को देने को कहा इस बीच कामिनी की नजर अमन के घर पर थी ।
काफी महंगी और एंटीक चीजों से सजा हुआ था उनका घर
जब सुप्रिया ने कामिनी को चीनी की कटोरी दी तो उसकी नजर सुप्रिया के गले में पहने नेकलेस पर गई ।
उसने अंदाजा लगाया कि ये डायमंड का ही होगा।
सुप्रिया और अमन दोनों ने कामिनी को घर के अंदर आने को कहा तो उसने कहा कि फिर किसी दिन।
काममिनी जब चीनी की कटोरी लेकर अपने घर गई तो आलोकनाथ की नर उस पर गई।
घर में तो इतनी सारी चीनी पड़ी है।
फिर तुम पड़ो से मांगकर क्यों ले आए?
काममिनी ये बात आपकी समझ में आ जाती तो अपने ऑफिस में क्लर्क नहीं होते ।
धीरे-धीरे कामिनी अमन और सुप्रिया से दोस्ती बढ़ाने लगीं।
जल्द ही वो उनका विश्वास जीतने में कामयाब हो गई।
कभी-कभी सुप्रिया किसी काम से बाहर गई होती तो वो सुप्रिया की गैरहाजिरी में भी अमन के पास चली जाती और उससे घंटों बातें करतीं।
अमन हँंसते हुए अरे बस करिए भाभी आप तो हँंसा-हंसा कर जान ही ले लेगी।
ऐसा मत कहिए अमन।
आपकी जान हमारे लिए बहुत की़ीमती है।
हम तो आपके लिए अपनी जान भी.
बार बोलिएम रही.
कामिनी बोली आप तो सीरियस ही हो गए।
अब आपकी भाभी को आपसे मजाक अधिक नहीं. क्या इनडायरेक्टली वो अमन को कई तरह के इशारे भी करती और उसे अपने झूठे प्रेम जाल में फंसाने की कोशिश भी करती।
क्योंकि उसे प. अमन बहुत ही अमीर है और वह उसकी साड़ी ख्वाहिशें को पूरा कर सकता है.
लेकिन अमन अपनी पत्नी से बहुत प्यार करता था इसीलिए वह कामिनीों का कोई जवाब नहीं देता था।
एक दिन की बात है काममिनी अमन और सुप्रिया से मिलने उनके घर आई।
सुप्रिया बोली आइए आइए भाभी हम आपकी ही बातें कर रहे थे।
काममिनी मेरी बात।. सुप्रिया अरे ये।
कामिनी अच्छा क्या कहते हैं अमन सुप्रिया यही कि आप बहुत अच्छी हैं।
कितनी मज़ेदार बातें करती है आपकी जैसी पड़ोसी मिलना तो आजकल के समय में बहुत ही मुश्किल है ।
सुप्रिया मुंह से अपने लिए अच्छी अच्छी बातें सुनकर कामिनी मां ही मां बहुत खुश हो रही थीं और उसे लग रहा था कि एक न एक दिन तीर निशाने पर लग ही जाएगा।
इस बीच सुप्रिया के भाई की शादी तय हो गई । उसके मायके वाले उसे बार-बार बुला.
इसलिए सुप्रिया को शादी के बीस दिन पहले ही जाना पड़ा । अमन को इतनी लंबी छुट्टी नहीं मिलती इसलिए उसने शादी के कुछ ही दिन पहले जाने का तय किया था।
इधर कामिनी को जब पता लगा कि सुप्रिया बीस दिनों के लिए अपने मायके जा रही है तो उसने मन ही मन एक प्लान बनाया।
कामिनी मन में यही सह अमन को फंसने का आलोक भी बाहर है और सुप्रिया भी अपने मायके गई हुई है।
सुप्रिया को मायके गए हुए अभी दो ही दिन हुए थे।
रात कोम के दवाजा खटखटाया।
अमन ने ज़रा देर से दरवाजा खोला।
काममिनी क्या बात है अमन बहुत देर कर दी दरवाजा खोलने में बना रहा था ।
आपको तो पता है ना मुझे बाहर का खाना बिल्कुल पसंद नहीं है, तो मुझे कह दिया होता मैं बना देती. लगता है अमन. अरे नहीं नहीं भाभी इसी.
मेरे रहते हुए आप किचन में खाना बनाएं।
काममिनी भले ही अपने में कम ही खाना बनाती थी लेकिन यहां तो उसका मकसद कुछ और था।
वह किचन में गई और उसके लिए फटाफट खाना बनाने लगी।
उसने ना सिर्फ खाना बनाया बल्कि अमन को खिलाया भी, कामनी सुबह शाम उसके घर आती और उसका खाना बनाती, अमन को कामिनी का यह स्वभाव बहुत अच्छा लगा ।
एक दिन अमन कामिनी भाभी मैं आपको क्या कहूं.
सच में आप मेरी बहुत मदद नहीं तो खाना बनाना और ऑफिस भी संभालना. सच में बहुत मुश्किल काम.
एक दिन की बात है।. कामिनी सुबह-सुबह अमन के घर आई। अमन को लगा कि हर दिन की तरह वो खाना बनाने आई होगी। लेकिन हर दिन वो आठ बजे के बाद आती थी.
लेकिन आज तो साथ ही बज रहे द. वह क्या है? मेरा शवर खराब हो गया है. बुरा ना मानो तो मैं आज तुम्हारे बाथरूम में नहा लूं. अमन ने हामी भर दी. इधर कामिनी तो किसी और फिराक में थी. उसने अमन के बाथरूम में कैमरा छुपाया और उसमें ऑटोमेटिक क्लिक बटन ऑन कर दिया. थोड़ी देर बाद वह जोर से चिल्लाई. अमन दर गया की आखिर क्या हो गया वह भाग भाग के पास गया. उसे देखकर कामिनी अचानक से उससे लिपट गई और उसे जोर से पकड़ लिया. अमन को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर हुआ क्या है. इधमरा अपना कम कर रहा था. कामिनी बहुत देर तक जब उसे लिपटी रही तो अमन को भी अब अच्छा लगे लगा था. लेकिन अचानक अमन को लगा की उससे गलती हो रही है।
इसलिए उसने उसे झटके से हटाया. काममिनी ओह.
सॉरी कि नहाते नहाते अचानक से पता नहीं कहाँ से दो- दोो छिप बाथर निकल आए।.
उसे देखकर ही मैं डर गई और ज़ोर से चिल्ला पड़ी।. अमन अब भी कामिनी से अपनी नज़रें नहीं मिला पा रहा था।.
इधर कामिनी अपने प्लान में कामयाब हो गई थी।
अमन के साथ उसकी सारी तस्वीरें कैमरे में कैद हो गई थी जिसमें उन दोनों ने एक दूसरे को गले से लगा रखा था।
अगले दिन वह सारी अमन को लिफाफे में अपने घर के बाहर पड़ी मिली. उन तस्वीरें को देखकर उसका दिमाग जानना गया।
तभी कामिनी वहां गई. उसके हाथ में भी एक लिफाफा था।. कामनीम ये देखो किसी ने, कल हमारी तस्.
वो मुझे ब्लैकमेल कर रहा है और कह रहा है कि अगर मैं एक लाख रुपए उसे नहीं दूंगी तो वह यह तस्वीरें मेरे पति को दिखा देगा।.
अमन देखो मैं एकधी भारतीय नारी हूं.
मुझे नहीं पता कल किसने यह हरकत की है. अमन को भी कुछ समझ नहीं ए रहा था. उसने एक लाख रुपए कामिनी को दे दिए. हालांकि उसे कामिनी पर रत्ती भर भी शक नहीं था. लेकिन कामिनी ने एक बार फिर से उसे पाँच लाख मांगे तो उसका दिमाग थन का फिर भी उसे ज्यादा श नहीं हुआ. उसने पाँच लाख भी उसे दे दिए. लेकिन जब अमन सुप्रिया के पास जाने की तैयारी कर रहा था तो कामिनी ने फिर से उसे दौ लाख।. इस बार अमन को लगा की डाल में जरूर कुछ काला है।
हालांकि ग. अमन ने बहुत सोचा और उसने सुप्रिया से माफी मांगते हुए उसे सारी बातें बता दीं।. सुप्रिया उसी समय अपने मायके से अमन के पास लौट आई.
उसे दिन कामिनी जब शाम को दौ लाख लेने आई तो उसने सुप्रिया को देखा।.
सुप्रिया को देखकर उसका चेहरा उतर गया।. तुम तुमु. कब आई सुप्रिया सुप्रिया जी अभी आई हँ भाभी।.
उसके बाद सुप्रिया ने अमन और काम दिखाई और कहा सुप्रिया भाभी आपने मुझे बताया क्यों नहीं. कोई आपको इन तस्वीरें के लिए ब्लैकमेल कर रहा है।
मैं अभी इनवीर को लेकर पुलिस स्टेशन जा रही हूं।. पुलिस का नाम सुनते ही काममिनी के.
उसे अपनी पोल खुलने का दर सताने लगा.
उसने पुलिस स्टेशन ना जाने की बात उनसे कही लेकिन सुप्रिया अ. रही. आखिरकार कामनी और रोते-रोते उसने अपना गुनाह कबूल कर लिया।.
सुप्रिया मुझे शर्म आती है आप जैसी औरतों पर जो अपने मतलब के लिए दूसरे मर्दों को फंसाती है.
मैं क्या कमी है वह बेचारे तो आपको हर खुशी देने की कोशिश करते हैं।
लेकिन पता नहीं आपको ऐसा क्या चाहिए जो आपका लालच खत्म ही नहीं होता।
कामिनी को अपनी गलती का एहसास हो गया था। उसने उन दोनों से माफी मांग ली।
लेकिन अमन और सुप्रिया ने कुछ दिनों बाद अपना फ्लैट खाली कर दिया और वो कहीं और रहने चले गए।
यह कहानी बहुत महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक होने वाली है।
कृपया कहानी में अंत तक जरूर पढ़े ।
दोस्तों एक समय की बात है एक गांव में एक लड़की रहती थी।
वह लड़की सुंदर नहीं थी और उसका कोई भी नहीं था।
वह अकेले ही रहा करती थी।
वह खुद ही मेहनत करती और अपने लिए दो वक्त की रोटी का प्रबन्ध किया करती।
यूँ तो उसे दो वक्त की रोटी मिल ही जाया करती थी लेकिन फिर भी वह अपने आप से खुश नहीं थी.
उसे दुनिया में सभी लोग सुखी नजर आते । सभी लोग खुशहाल नजर आते ।
दूसरों का जीवन देखकर वह खुद को को करती, खुद को तरह तरह की बातें कहती
वह कहती थी हे ईश्वर आपने सभी को खुशहाल बनाया है।
सभी को सुख दिया है, सभी को सुंदर बनाया है तो मुझे क्यों नहीं?
आखिर मैंने किया क्या था? आखिर मेरी गलती क्या थी? मैं जानती हूं आप मुझेसे कोई बदला ले रहे हैं।
इसी प्रकार एक दिन वह अपने आप से नाराज होकर निरसा होकर एक पेड़ के नीचे बैठी हुई थी और रो रही थी। तभी वहां सेक्षु गुर्जर रहे थे।
उन्होंने जब उसे लड़की को रोते हुए देखा तो वह उसके पास गए और उन्होंने उस लड़की से कहा पुत्री क्या बात है?
तुम क्यों रो रही हो? इसका जवाब देते हुए वह लड़की बौ भिक्षु से कहती है है गुरु मुझे कोई प्यार नहीं करता,
मुझे कोई पसंद नहीं करता क्योंकि मैं काली हूँ, मैं सुंदर नहीं हूँ और मेरे रंग को लेकर लोग मेरा मजाक बनाते हैं मेरा कोई नहीं मेरे पास तो धन भी नहीं है।
इस दुनिया में हर कोई सुखी है, हर किसी के पास सब कुछ है।
हर कोई अपना जीवन खुशहाली से जी रहा है, सभी के पास सब कुछ है तो मेरे पास क्यों नहीं?
आखिर मैंने क्या किया था? आखिर इसमें मेरा क्या कसूर है?
क्या मुझे सुखी होने का हक नहीं? क्या मुझे अपना जीवन खुशहाली से जीने का हक नहीं?
उन बौद्ध भिक्षु ने उस लड़की की साड़ी बातें ध्यानपूर्वक सुननी और उसके बाद वह उस लड़की से कहते हैं पुत्री अगर तुम मुझे उस अपने जीवन में सुखी हो तो मैं तुम्हें एक ऐसी चीज दूंगा जिससे तुम सुंदर और सुखी दोनों बन जाओगीे।
उन बौद्ध भिक्षु के मुख से यह सुनकर वह लड़की बहुत प्रश्न्न हुई और तुरंत ही उन बौद्ध भिक्षु से कहती हैं
क्या सचमुच ऐसा हो सकता है?
इस पर वह बौद्ध भिक्षु उसे लड़की से कहते हैं हा अवश्य ही हो।
तभी वह लड़की उन बौद्ध भिक्षु से कहती है ही गुरुवार.
यदि यहमुच संभव है, तो मैं एक ऐसे आदमी को जानती हूं जो बहुत सुखी है।
मैं उसे अभी लेकरती हूं आप मेरा यहीं पर इंतजार करना।
इस पर वह बौद्ध भिक्षु उसे जब तक तुम वापस नहीं lautogi मैं तुम्हारा यहीं पर इंतजार करूंगा।
इतना कहकर वह लड़की वहां से भाग अपने मलिक के पास पहुंची जो की एक किसान.
उसने किसान से कहा मलिक आप मेरे मुझे एक ब भिक्षु मिले।
जिन्हें मैं आपसे मिलवा चाहती हूं। उन्होंने कहा है की अगर मैं एक किसी सुखी व्यक्ति को उनके पास ले जाऊंगी तो वह मुझे सुंदर और सुखी दोनों बना देंगे।
उसे लड़की से कहता है मैं तुम्हें कहां से सुखी लगता हूं।
इस पर वह लड़की उसके कह मलिक आपके पास तो सब कुछ है।
आपके पास तो घर है अच्छा खाने के लिए है. रहने के लिए अच्छा मकान है, आपका अपना परिवार है।
और तो और आपके पास धन भी है. तो आप दुखी कैसे हो सकते हो.
इस पर वह किसान जवाब देते हुए कहता है अरे मूर्ख मेरी फसल अच्छी नहीं हो रही इसलिए उसके दाम भी अच्छे नहीं मिल रहे और राजा को लगान भी देनी है।
मेरे पास तो अब इतने पैसे भी नहीं है की मैं फिर से अच्छे किस्म के बीच खरीद सकूं और इस बार बरसात में मेरी सारी की सारी फसल भी खराब हो गई थी।. अब तो मेरे हालात और अधिक खराब हो चुके हैं और ऐसे हालातो में मैं सुखी कैसे र सकता हूं.
जाओ, किसी और को ढूंढ लो जो सचमुच में सुखी हो।
इस पर वह लड़की अपने मालिक से कहती है, मालिक तो आप ही बताइए आपके हिसाब से कौन सबसे ज्यादा सुखी है जिसे मैं अपने साथ ले जा सुकून.
इस पर वह किसान कुछ देर विचार कर उसे लड़की से कहता है।
मुझे लगता है की व्यापारी बहुत सुखी है। उन्हें ना तो फसल उगने की चिंता है और ना ही फसलों की देखरेख करने की
उन्हें तो बस फसल खरीदनी होती है और वह उसे कहा से भी खरीद सकते हैं और तो और वे अन्य चीजों का भी व्यापार करते हैं जिनका मौसम से कोई लेना देना नहीं होता और वे लोग हमसे कहानी ज्यादा अधिक धन भी कमाते. लोग उनका आदर सम्मान भी करते हैं।
मुझे तो लगता है कि वही सबसे सुखी है तुम उन्हें के पास जो वह लड़की अपने मलिक की बात सुनकर वहां से भाग भाग एक व्यापारी के पास जा पहुंची
और उसे व्यापारी से कहती है.
आप मेरे साथ चलिए. मुझे भिक्षु मिले हैं, जिन्हें मैं आपसे मिलवा
उन्होंने कहा है की किसी ऐसे सुखी व्यक्ति को ले आओ जो सचमुच सुखी हो और उसके बाद वो मुझे एक ऐसी चीज देंगे जिससे मैं सुंदर और सुखी दोनों हो जाऊंगी।.
उस लड़की की बात सुनकर वह व्यापारी दुःख भरे शब्दों में उस लड़की से कहता है अरे हमारे जीवन में कहाँ सुख है चारों और से तो हमें दुख नहीं घर रखा है चोर लुटेरे हमें सबका ध्यान पड़ व्यापार में अभी बहुत घटा भी चल रहा है और तो और राजा हमसे अतिरिक्त कर्ज भी वसूल रहे हैं जिससे व्यापार करने में बहुत दिक्कत आने लगी है।
हमें सुरक्षा भी नहीं मिल का रही। जीवन पर हमेशा कोई ना कोई संकट मंडराता ही रहता है।
मुझे तो ऐसा लगता है कि मुझसे दुखी इस दुनिया में और कोई नहीं।
इस पर वह लड़की उस व्यापारी से कहती है परंतु मालिक आपके पास तो इतना धन है, आपके पास इतनी ज़न जायदाद है,
आपके पास इतना अन्न है रहने के लिए इतना बड़ा मकान और खानेपीने के लिए हर प्रकार की सुविधाएं हैं।
इसके बाद भी आप दुखी हैं. यह बहुत अजीब सी बात है. मुझे तो लगता था की आप बहुत सुखी होंगे.
नहीं कृपया करके मुझे कोई ऐसा व्यक्ति जो आपके हिसाब से बहुत सुखी हो जिसे मैं उन बौद्ध भिक्षु के पास ले जा
क. इस पर वह व्यापारी कुछ डर सोच विचार कर उसे लड़की से कहता है. मुझे लगता है कि राज्य के अधिकारी बहुत सुखी हैं.
वह सीधा राजा से संबंध रखते हैं. उनके पास अधिकार है और वह धनवान भी है. वह चोर लुटेरे और डकैत से भी नहीं डरते और वही लोग हमसे धन भी वसूलते और हमें उनके सामने उनके आदर में झुकना ही पड़ता है और सभी लोग उनका बहुत मान सम्मान भी करते हैं।
मुझे नहीं लगता की उनके जीवन में कोई भी दुख होगा और मुझे लगता है की वही सबसे सु सुखी है.
काश मैं भी राजा अधिकारी होता तो मैं भी अपना जीवन आराम से बीता रहा होता.
इस पर वह लड़की उसे व्यापारी से कहती है मलिक.
क्या किसी अधिकारी को जानते? क्या आप मुझे उनसे मिलवा सकते हैं?
मैं उन्हें अपने साथ ले जाऊंगी अगर वह सबसे सुखी हुए तो. इसके बाद मुझे वह बौद्ध भिक्षु कुछ ऐसी चीज मुझे देंगे जिससे मैं भी सुंदर और सुखी हो जाऊंगी. बताइए ना, मुझे किसी अधिकारी से मिलवा सकते हैं. मैं आपकी बहुत आभारी रहूंगी. व्यापारी को उसे लड़की पर दया ए गई. उसने उसे लड़की को एक अधिकारी से मिलवा ही दिया जिसे वह व्यापारी जानता था. लड़की ने अधिकारी से मिलने के उसे अधिकारी से कहा, मलिक आप मेरे साथ चलिए, मुझे भिक्षु मिले हैं जिन्हें मैं आपसे मिलवाना चाहती हूं. उन्होंने मुसे कहा है की अगर मैं एक सुखी व्यक्ति को उनसे मिलवा दूंगी तो वह मुझे एक ऐसी चीज देंगे जिससे मैं सुंदर और सुखी दोनों हो जाऊंगी.
इस पर वह अधिकारी उसे लड़की से कह तुम्हें किसने का दिया की मैं सुखी हूं, अरे मेरे जैसा दुखी व्यक्ति तो इस दुनिया में और कोई नहीं होगा, तुम्हें नहीं पता लेकिन हम पर कितना दबाव होता है, हमारे ऊपर कितनी जिम्मेदारियां होती हैं, हमें हर एक आदेश को पूरा करना होता है और वह आदेश भी इतनी आसानी से पूरे नहीं होते उनके लिए हमें कितनी मुश्किलें उठानी पड़ती है, कितनी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है राज, कुछ भी आदेश पार और उसे हमें लागू करना पड़ता है।
जनता का गुस्सा और तरह परिणाम हमें ही झलना पढ़ते हैं और तुम्हें लगता है की मैं सुखी हूं ऐसा कुछ भी नहीं है अगर वह भिक्षु तुम्हें सुखी कर दे तो तुम उसे मुझे भी मिलवाना मैं भी तो सुखी होना चाहता हूँ मुझे भी अपना जीवन खुशहाली से बिताना ।
अधिकारी बनकर मुझे क्या मिला रोजरोज की तरह की त. इस पर वह लड़की आश्चर्य से उसे अधिकार से कहती है.
तक मैं सोचती थी की आप सबसे सुखी हैं लेकिन आप भी सुखी नहीं ग. परंतु आपको क्या लगता है इस दुनिया में कोई ऐसा व्यक्ति है जो सबसे सुखी होगा? क्या आप मुझे बता सकते हैं? मैं आपकी बहुत-बहुत आभा. उसे लड़की की साड़ी बातें सुनने के बाद उसे अधिकारी को उसे लड़ दया ए गई. उसे अधिकारी ने उसे लड़की से कहा, देखो, मुझे तो ऐसा की इस पूरे राज्य में एकमात्र व्यक्ति ही सुखी है और वह है इस राज्य का राजा.
मुझे तो केवल वही सुखी लगते हैं. उन्हें किसी की सुी नहीं पड़ती. वह नियम बनाते हैं, आदेश देते हैं, सुरक्षा से घिरे रहते हैं और सब उनके सामने झुकते भी हैं. ना उन्हें धन की कमी है और ना जमीन जायदाद की सारी धरती को उन्होंने जीत लिया है, वह सब के मालिक है और सबसे उच्च वही है जो एकमात्र सुखी व्यक्ति है. काश मैं भी किसी राजा के घर पर जन्मा होता तो आज मैं भी बहुत सुखी होता.
उस अधिकारी की यह सारी बातें सुनकर वह लड़की उसे अधिकारी से कहती है मलिक आपसे एक विनती है. क्या आप मुझे एक बार राजा से मिलवा सकते हैं? कृपया कीजिए आपका बहुत बस एक बार मुझे राजा से मिलन है. मैं उनसे कुछ पूछना चाहती हूं. लड़की का चेहरा देखकर अधिकारी को लड़की पर दया ए गई. उसने कहा चलो ठीक है. मैं अभी राज दरबार ही जा रहा ह. एक काम करो. तुम भी मेरे साथ ही चलो और वहां पर राजा से पूछना है वह पूछ लेना. इतना कहकर वह उसे लड़की को राजदरबार ले गया. राजदरबार में पहुंचने के बाद करने राजा उसे लड़की की बात सुनने के लिए तैयार हो गए और उसे लड़की को राज दरबार में बुलाया गया. राजा ने उसे लड़की से कहा.
तुम अपनी बात निडर होकर कहो तुम्हें क्या कहना है?
तुम मुझसे क्या पूछने आई हो? इस पर वह लड़की थोड़ा घबराते हुए थोड़ा डरते हुए राजा से कहती है ।
राजन मैं एक संपूर्ण सुखी व्यक्ति को ढूंढ रही हूंँ. मुझे एक भिक्षु मिले हैं और उन्होंने मुझसे कहा है कि यदि तुम कोई ऐसा सुखी व्यक्ति मुझसे मिलवा दो तो मैं तुम्हें एक ऐसी चीज दूंगा जिससे तुम सुंदर और सुखी दोनों हो. जोगी.
काफी लोगों से मिलने के बाद मुझे यह पता चला की आप ही हैं जो इस दुनिया में एकमात्र सुखी व्यक्ति है. तो क्या आप मेरे साथ उसे भिक्ष आपका बड़ा एहसान होगा? राजा उसे लड़की की बात ध्यान पूर्वूर्वक और उसके बाद जोर-जोर से हंसने लगता है और उसे लड़की से कहता है. अच्छा सब की तरह तुम्हें भी लगता है की मैं इस दुनिया का सबसे सुखी व्यक्ति हूं लेकिन यदि कोई मुझे पूछे की इस दुनिया में सबसे दुखी व्यक्ति कौन है? तो वह मैं ही हूँ.
मेरे पास नींद नहीं है. मेरे पास आराम नहीं है. मैं आराम से सो नहीं. पता.
अंगरक्षक हमेशा मेरे आसपास रहते. उनके बिना मैं अकेले कहानी जा भी नहीं सकता. जरा सी आर्ट होती है तो नींद टूट जाति है.
डर हमेशा लगा राहत है क्योंकि मेरे दुश्मन मेरे घर में ही रहते हैं जिनका मुझे पता तक नहीं कौन, कब और कहाँ से मुझमें पर वार कर दे कोई नहीं कह सकता. यहाँ पर बैठे सभी लोग मेरे दुश्मनी ही तो हैं. वे सभी मेरे शत्रु हैं.
यहां पर बैठा हर एक व्यक्ति मेरे राज दरबार का ही है. किंतु मुझे सब पर शक करना पड़ता है. हर एक मुझे भारी मालूम पड़ती है. इतने बड़े राज्य की जिम्मेदारी उठाना इतना आसान नहीं।. तुम्हें लगता होगा कि राजा के पास तो सभी ऐशो आराम है, धन है, दौलत है, ज़मीन जायदाद है, उनके पास किसी चीज़ की कोई कमी नहीं है और इस हिसाब से तो उन्हें सुखी होना ही चाहिए. किंतु मैं तुम्हे बता दूँ कि यह सब सुख नहीं देते.
इस पर वह लड़की राजा से कहती है ही राजन क्षमा कीजिएगा परंतु यदि सुख धन दौलत नहीं देती, जमीन जायदाद नहीं देती, ऐशों आराम नहीं देता तो क्या हुआ? कम से कम सुंदरता तो सुख देती है. इस पर वह राजा एक बार फिर मुस्कुराते हुए उसे लड़की से कहता है पुत्री सुंदरता जो मैंने देखी है.
जो लोग शक्ल से सुंदर होते हैं उनके मन सुंदर नहीं होते.
वे लोग तो एक मुखौटा लगाए घूमते रहते हैं वे दूसरों को दिखाते हैं की मैं कितना सुंदर हूं लेकिन समय सबकी सुंदरता छीन ले एकमात्र सुंदरता मन में ही रहती है और जिसका मन सुंदर है वह हमेशा ही सुंदर रहता है. इस पर वह लड़की राजा से कहती है तो आप ही बताइए.
की आपके हिसाब से इस दुनिया में सबसे सुंदर और सुखी कौन है? इस पर वह राजा लड़की से कहता है, मेरे हिसाब से तो एक गरीब व्यक्ति जो दो वक्त की रोटी का प्रबंध कर सके, जो किसी तंत्र बिना किसी बंदिशों के, बिना किसी भी दिशा में घूम सके, उसे कुछ भी छिन जाने का डर ना हो, कुछ भी लूट जाने का खौफ न हो, जिसे रात को अच्छी नींद आती हो.
मुझसे पूछोगे तो सबसे ज्यादा सुखी वही होगा. और इस हिसाब से मैं तुम्हें देखता हूँ कि तुम सबसे सुखी हो, तुम्हारे पास नींद है, अच्छा मन है, चारों दिशाएं हैं और कोई डर नहीं, कोई साज़िश नहीं, कोई षड्यंत्र नहीं, बस जीवन है. खुला जीवन मेरे हिसाब से तुम ही सबसे सुखी हो.
राजा की यह सारी बातें सुनकर एक पल के लिए वह लड़की सोच में पड़ गयी और तभी उसे इस बात का एहसास भी हो गया. वाकई में वह एकमात्र सुखी है, वही सुंदर है और अब वह जो थी, जैसी भी थी. उसे खुद के होने पर गर्व होने लगा. पूरे दिन यहाँवहााँ भटकते हुए आखिरकार थक हार कर सम्पूर्ण सुख लिए वह चेहरे पर मुस्कान लायी।. प्रकृति से बातें करते हुए वह उन बौद्ध भिक्षु के पास वापस लौटी और उसने उन बौद्ध भिक्षु से कहा, हे गुरुवार मैं यहाँ से गई थी तो मुझे लग रहा था की मैं ही सबसे दुखी हँ.
और मैं ही सबसे बदसूरत हँ.
लेकिन यहाँ से जाने के बाद जैसे जैसे मैं लोगों से मिलती गयी मुझे यह एहसास होने लगा की इस दुनिया में सबसे सुखी व्यक्ति तो मैं ही हूँ.
हाँ.
यह बात और है मैं किसी सुखी व्यक्ति को आपके पास लाना साकी.
क्योंकि मुझे लगता था की मुझे छोड़कर सब सुखी है. लेकिन बात तो कुछ उल्टी ही हो गयी. यहाँ तो मुझे छोड़कर सभी दुखी हैं. सभी को किसी न किसी चीज़ का डर है, कुछ ना कुछ खो जाने का डर है, कुछ ना पाने का डर खुलकर ना जी पाने का डर. इस हिसाब से तो मेरे पास सब कुछ है. मैं खुशशी से झूम सकती हूँ, गा सकती हूँ. जहाँ मन करे वहाँ जा सकती हूँ. और दो वक्त की रोटी का इंतजाम करने के लिए मेरे पास यह हाथ और पैर भी है. मुझे किसी चीज का कोई गम नहीं. मेरे पास ऐसा कुछ नहीं जिसके खोने का डर मुझे सताए. इस पर वह बौद्ध भिक्षु उस लड़की से कहते हैं पुत्री आखिरकार तुम्हें वह सुंदरता और सुख मिल ही गया.
अब से तुम सुंदर और सुखी हो यह कहकर वह ब अपने आश्रम लोट गए और वह लड़की भी अब जान चुकी थी की वही सबसे सुन्दर और सुखी है. अब उसे किसी बात का कोई गम नहीं था. वह कभी अपने आप पर अफसोस नहीं करती थी बल्कि वह अपने आप में हमेशा खुश रहती थी, हमेशा मस्त रहती थी. दोस्तों हमें भी ऐसा ही लगता है कि हमारे पास कुछ नहीं और सामने वाले के पास सब कुछ है. वह कितना सुखी है. उसके पास हर चीज़ है, है, हर सुविधाएं हैं किंतु ऐसा है नहीं. यह केवल आपके देखने का निया है. असली सुख तो आपके पास ही है और वे है संन्तुष्टि.
यदि आप अपने आप से संतुष्ट हैं. आपके पास जो कुछ भी है उसमें यदि आप खुश हैं तो आपको कोई भी गम डरा नहीं सकता. आपको कोई भी दुख परेशान नहीं कर सकता.
किन्तु हमारी सबसे बड़ी तकलीफ यही है कि हम खुद को नहीं बल्कि दूसरों को ज्यादा देखते हैं. दूसरों से हम ज्यादा प्रेरित होते हैं और उनकी खुशी देखकर हमारे भीतर ईर्ष्या का भाव उत्पन्न होने लगता है. हमें तकलीफ होती है की उनके पास इतना सुख कैसे हैं और हम इतने दुखी क्यों हैं?
हम केवल हरफ नजर गराये हुए हैं हमने तो अपने पास देखा ही नहीं. हमारे पास क्या है हम उस पर कभी ध्यान नहीं देते बल्कि हम तो हमेशा इस पर ध्यान देते हैं कि हमारे पास क्या नहीं है और यही नजरिया आपको दुख और तकलीफ की ओर ले जाता है. आप चाहकर भी सुखी नहीं रह पाते क्योंकि आपने अपना नजर क्या नहीं है उस पर गड़ाा रखा है. वहीं पर यदि आप इस तरह से सोचे कि मेरे पास बहुत कुछ है रहने के लिए अच्छा घर है, खाने के लिए अच्छा खाना है, पहने के लिए अच्छे कपड़े हैं, कम से कम दो वक्त की रोटी का आपके लिए इंतजाम भी हो जाता है. लेकिन बहुतों के पास तो यह भी नहीं होता. तो क्या आप सुखी नहीं है? क्या आपके पास वह सब नहीं है जो उनके पास नहीं ज़रा एक पल के लिए सोच कर देखिएगा.
इस संसार में जब से हम आते हैं तभी पैदा होने के साथ ही एक तरह की प्रतिस्पर्धा शुरू हो जाती है।
यह दौड़, यह प्रतिस्पर्धा जीवन भर आखिरी सांस तक चलती रहती है।
इन सबके बीच ईश्वर ने जो हमें बहुमूल्य जीवन दिया है, उसका मोल हम नहीं समझ पा. राहुल पच्चीस वर्ष का एक युवा है. इतना युवा होकर भी वह अभी.
उसे लगा था की वह जीवन में कुछ नहीं कर पाएगा।
अच्छी नौकरी करके सेटल हो चुके था।
जबकि राहुल की एक छोटी सी नौकरी थी जो छूट गई थी।
राहुल अब एक नई नौकर की तलाश में भटक रहा था।
वह हमेशा मन ही मन निराशा में ईश्वर से शिकायत करता कि उसने किसी का बुरा नहीं किया फिर भी उसके साथ ऐसा हो रहा है।
वह परेशान और भटकता हुआ महसूस कर रहा था।
नौकरी के लिए वह लोकल बस में सफ़र करता था।
उसके चेहरे पर निराशा ही रहती थी।
वह किसी से अच्छे से बात भी नहीं करता था।
बस में कई लोग सफ़र करते थे।
लेकिन एक विशेष व्यक्ति ऐसा था जो सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेता था।।
वह व्यक्ति लगभग पैंतीस साल का था।।
वह रोज विंडो सीट पर बैठता था और अगर उसे विंडो सीट नहीं मिलती तो जो भी वह बैठा रहता उससे विनती करता कि उसे खिड़की पर बैठने दे.
वह व्यक्ति बढा अजीब था. रंग-बिरंगे कपड़े पहनता था और हाथ में सात रंगों के बंद पहनता था।
बस में हमेशा जोश में रहता था।
उसकी आंखें बाहर खिड़की की ओर ही देखती रहती थी।
कभीकी तो वह बाहर देखते-देखते खुशी में उछल पड़ता था।
बस में कुछ लोग उससे खुश रहते तो कुछ को उसकी हरकतें अजीब लगती।
लेकिन उसे कोई फर्क नहीं पड़ता था।
वह हमेशा खुश रहता था. सभी ने उसका नाम रंगीला रख दिया था।
एक दिन वह बस में चडढा तो उसने राहुल से विनती की की. उसे खिड़की पर बैठने दे।
राहुल कई दिनों से उसे देख रहा था।
इसलिए उसकी आदत जानता था कि वह हमेशा किसी न किसी से यह request करता है।. राहुल ने उसे सीट पर बैठ गया.
रंगीले की ऊर्जा से राहुल प्रभावित हुआ और उसे हंसते देख राहुल के चेहरे पर भी मुस्कान ए गई।
रंगीले की अजीब हरकतें और अपने आप में ही कुछ बोलते रहना राहुल को अच्छा लगा।
उसके इस तरह के स्वभाव के कारण राहुल का उससे बात करने का मन हुआ।
राहुल ने उससे पूछ लिया तुम क्या करते हो? वो बोला, अभी मैं कुछ नहीं करता.
राहुल को थोड़ा अजीब लगा और उसने कहा क्या मतलब कुछ नहीं करते कोई कम नहीं करते?
वह बोला नहीं मैं कम नहीं कर रहा हूं।
राहुल ने सोचा की शायद वह अमीर घराने से होगा वह बोला तो फिर तुम अमीर घराने से होंगे रंगीला हंसते हुए बोला अ. पास कोई दौलत नहीं है जो भी था वह भी सब चला गया को उसकी बातों पर यकीन नहीं हुआ और उसने सोचा की शायद वह झूठ बोल रहा है इसलिए राहुल ने उसे बात को वहीं खत्म कर दिया और फिर से चुपचाप बैठ गयांगीला बोला अरे क्या हुआ तुम तो चुप हो गए मैं तो तुम्हें अक्सर देखता हूँ तुम हमेशा निराश रहते हो।
हँसते ही नहीं क्या हुआ कुछ बताओगे।
राहुल ने थोड़ा तंज कस हुए कहा, भाई हंसने के लिए भी पैसा चाहिए।
हम तुम्हारी तरह नहीं हैं।. खुश होने की कोई वजह तो हो. हमारी किस्मत में यही लिखा है।
हमारा साथ तो भगवान भी नहीं देता।
रंगीला हँसते हुए बोला, अच्छा ऐसी बात है तो तुम मेरे आज से पक्के दोस्त।
मैं तुम्हें अभी दौ करोड़ दूंगा. राहुल ने उसकी इस बात को हसीी में उड़ा दिया. वह फिर बोला, सच में दूँगा लेकिन मेरी एक शर्त है दो करोड़ के बदले. क्या तुम मुझे अपनी आँखें दोगे.
राहुल को यह सुनकर बड़ा बुरा लगा और उसने कहा क्या बकवास करते हो पागल हो क्या रंगीला?
फिर बोला अच्छा चलो पाँच करोड़. अब दोगे. राहुल ने कहा अगर तुमने बकवास की तो मैं यहाँ से चला जाऊँगा।
र बोला अरे भाई बुरा मत मानो. समझो तुम पाँच करोड़ तो क्या कितने भी पैसों में अपनी आँखें किसी को नहीं दोगे
मतलब तुम्हारी आंखों का कोई मोल नहीं है।
यह अनमोल है और ईश्वर ने तुम्हें यह मुफ्त में दी है।
न सिर्फ आँखें बल्कि तुम्हारे पास जो कुछ भी है वह अनमोल है. तो बताओ तुम गरीब कैसे हुए को सुनने लगा।
रंगीला बोला सोचो अगर तुम्हारी आँखें नहीं होती और तुम कुछ देख नहीं सकते तो क्या करते?
राहुल बोला मैं किसी भी तरह से अपनी आंखें मांगता. रंगीला बोला ईश्वर ने तुम्हें सब कुछ दिया है उसका धन्यवाद करो।
मैं भी तुम्हारी तरह ही सोचता था फिर आज से सात साल पहले एक बीमारी की वजह से मेरी आंखें नहीं रहीं।
तब मुझे एहसास हुआ की मेरे पास कितनी अनमोल चीज थी जिसकी मैंने कद्र नहीं की. कई सालों बाद ऑपरेशन से मुझे अब आंखें मिली और मैं सिर्फ यही मांगता था की मुझे मेरी आंखें मिल जाए.
अब जब मैं देख सकता हूँ तो मुझे लगता है कि मुझे कुछ भी नहीं चाहिए. ईश्वर की बनाई यह दुनिया मैं फिर से देख सकता हूं।
सारे रंगों में मेरे घरवालों ने जो कुछ भी किया सिर्फ इसलिए किया।
अब मैं बस यही मानता हूं की मेरी जिंदगी में सब कुछ है और मुझे ईश्वर का आभार मानना चाहिए।
उसकी बातें राहुल के दिल तक पहुंच गई. उसी क्षण राहुल की निराशा खत्म हो गई।
एक क्षण ही उसे जगाने के लिए काफी था।
अब वह सिर्फ ईश्वर का धन्यवाद देने लगा और जीवन को एक न नजर से देखने लगा बिना किसी शिकवे के सिर्फ अपने कर्म पर ध्यान देने लगा।
इस कहानी का संदेश यही है कि हम अक्सर अपनी जिंदगी की अनमोल चीजों की कद्र नहीं कर पाते.
निराशा और असफलताओं के बीच हम भूल जाते हैं की ईश्वर ने हमें बहुमूल्य उपहार दिए हैं जैसे हमारी आंखें, हमारा शरीर और यह खूबसूरत दुनिया.
दोस्तों जिंदगी में किसी भी मुश्किलड़ी में हमें याद रखना चाहिए की जो हमारे पास है वह किसी वरदान से कम नहीं है।
हर एक दिन एक नया मौका है इसे जिए ।
एक छोटे से गांव में सकुबाई नाम की औरत रहा करती थी।
वह ही गरीब थी. किराए के घर में रहती थी।
उसके पति को गुजरे दौ साल हो गए. द. उसे लड़का था।
उसका नाम था राजेश. पढ़ में बहुत था।
पति के गुजरने के बाद घर चलने की सारी जिम्मेदारी थी।
साथ में राजेश की पढ़ाई का बोझ भी था।
सकोबाई हमेशा सोचती कि उसका बेटा एक दिन बड़ा अफसर बने।
सकुबाई जब कम करती तो राजेश भी उसके साथ जाता।
सु भाई लोगों के घर जाकर बर्तन मानती तो कहीं खाना बना देती तो बैठे लोगों के घर आए अखबार को बड़े ध्यान से पता।
एक दिनेश पने लगा तो एक माल ने बड़ी गु से कहा अरे राजेश अखबार प बन जाएगा।
इससे अच्छा तो मैन के कम में हाथ बता. कम से कम उसेसे कुछ मदद तो हो जाएगी. राज।
मुझे बड़ा अवसर बन्ना हैनेक्टर बन्ना है हम किताबें नहीं ले सकते इसलिए ज्यादा ज्ञान के लिए मैं अखबार पढ़ता हूं और कलेक्टरि।
आपने और मा जोर-जोर से हंसने लगी को यह बात बहुत बुरी लगी और वह दोनों से चले गए।
फिर सकाई ने शादियों में रोटी बनाने का काम शुरू किया वह ही पंद्रह हज़ार पाँच सौ बीस कि की रोटती थी।
इसके लिए तीन अपना काम शुरू करती थी। उसके साथेश और मां को मदद करके अपनी पढ़ाई करता था।
एक दिनचानक म मालिक उनके पास आए और बोले और तुम्ह तीन ही उठ जाते हो और यह लाइट जलाते हो।
बिजली का बिल ज्यादा है. तुम्हारी वजह से तो ज्यादा करो या फिर कमरा खाली कर दो और गुस्से से वहां से चले गए।
फिर राजेश ने लालटेन चलाई और पढ़ करने लगा मैन भी उसे प्रकाश में रोटियां करने लगी।
ऐसे ही राजेश ने अगले कुछ साल जी लगाकर पढ़ाई की और क्लास में हमेशा अव्व आने लगा राजेश की लगन
देखकर अगली पढ़ाई के लिए उसके गुरुजी ने उसे दिल्ली जाने की सलाह दी और खुद खर्चा उठाने की जिम्मेदारी ली।
राजेश तो बाईस साल का हो गया था। फिर क्या था राजेश दिल्ली चला गया और वहां खूब पढ़ाई कि वह घंटों लाइब्रेरी में
किताबें पढ़ता रहता. फिर एक दिन जब एग्जाम का टाइम आया, जाते-जाते किसी गाड़ी वा से ठोक गया।
राजेश जमीन पर गिर गया उसके सिर और बाएं हाथ को चोट आई अब वह सोचने लगा मेरे हाथ में चोट लग गई है ।
और से खून है इस अस्पताल जाऊं या एग्जाम देने अगर अस्पताल गया तो मेरा ये पूरा साल बर्बाद हो जायेगा और मेरे लिए मुमकिन नहीं है ये।
फिर दिल्ली में रहने का मेरा खर्चा भी कौन उठेगा। मेरे सिर्फ बाएं हाथ पर चोट लगी है।
पर दाएं हाथ तो अभी अच्छा है. मैं इस हाथ से और फिर सेधा परीक्षा केंद्र गया और परीक्षा दी।
परीक्षा देने के बाद राजेश अस्पताल में भर्ती हुआ और इलाज करवाया. राजेश ने अस्पताल में भी पढ़ाई जारी रखी और इंटरव्यू अटे किया।
फिर कुछ दिन के लिए राजेश मां के पास गांव वापस चला गय।
कुछ दिनों बाद रिजल्ट के दिन मां ने अखबार खरीद कर लाया और राजेश को परिणाम देखने को कहा तो उसने जोर से चीख निकाली. मा. मैं पास हो गया।
तुम्हारा बेटा अफसर बन गया। यह सुनते ही मां की आंखों से आंसू आ गए और वह दोनों रोने लगे।
तो दोस्तों क्या समझे इस कहानी से कि हमें हमेशा अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए मेहनत करनी चाहिए।
एक बार की बात है काशीपुर नाम के एक गांव में जगन नाम का एक भिखारी अपनी के साथ रहता था।
गौरी की मान का गांव में फैली महामारी के कारण देहांत हो गया था और जगन को ठीक से दिखाई नहीं देता।
इसी वजह से उसे काम नहीं मिलता और मजबूरन उसे पेट पालने के लिए
अपनी बेटी गौरी के साथ भीख मांगना पड़ता. लेकिन गौरी को भीख मांगना पसंद नहीं था।
वह पढ़ना लिखना चाहती थी।
जब भी गौरी पिता के संग गांव के सेठाने के घर भीख मांगने पहुंचती तो वहां उनके बेटे राजू को
पढ़तेलते देख उसे खुद के लिए बहुत बुरा लगता और ये देख सेठानी ताने देते हुए कहती हरिया देख दरवाजे पे फिर से वही भिखारी होगा।
कुछ भीख देकर उसे भागगा।
जल्दी से गांव में एक भी अस्पताल नहीं है और अगर इन मनूसों की महामारी मेरे बेटे राजू को लग गई तो मैं क्या करूंगी।
ये सुन दोनों दुी होकर वहां से चले गए।
तब गौरी ने कहा पिताजी सारा गांव हमसे दूर क्यों भाग बुरे लोग हैं?
तो पिताजी ने कहा अरे नहीं बेटा बुराई तो हमारी गरी और की सोच में।
पि एक दिन डॉक्टर बनकर आंखों का इलाज करूंगी मैं इस गांव में एक अस्पताल हमारे लिए तो दो वक्त की रोटी जुटा ही कठिन है।
यह सब तो बड़े लोगों के सपने हैं. मैं तुम्हारे लिए कुछ कर पाता।
तब औरत नेी को पास बुलाया और कहा अरे ओी अगर तुम हमारा टॉयलेट साफ कर दोंगी तो मैं तुम्हें कुछ रुपए भी दूंगी।
उनकी बात मानी और उनका टॉयलेट साफ कर दिया लेकिन को यह बात बहुत ही बुरी लगी तभ।
यह फैसला कर लिया कि वह डॉक्टर बनेगी।
गौरी ने अपने पिता को मंदिर के बाहर रहीम चाचा के पास बिठा दिया और वो खुद कई दिनों तक
खिलौने गांव में बेचकर पैसे कमाने लगी और फिर एक दिन गांव के शिक्षिका रेनू दीदी से मिलकर वो गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ने जाने लगी
अब गी रोज स्कूल से आने के बाद खिलौने बेचती और पैसे कमाती और अपने पिता की देखभाल करतीत।
रात भर जकर पढ़ाई किया करती और हमेशा अच्छे अंकों से पास होती की हिम्मत और सफलता देख सेठानी और
अन्य गांव के लोग सभी हैरान थे और वह जगन और गौरी से जलने भी लगे थे प।
ये भ कारण पढ़ लिखकर कौन सा डॉक्टर कलेक्टर बन जाएगी।
मैं हर साल अच्छे अंकों से पास होती और रेणू भी की पढ़ाई में खूब मदद करती।
धीरे-धीरे समय गुजरता गया और बड़ी होती गई।
उसने अपनी मेहनत और लगन से अपने स्कूल की पढ़ाई पूरी की और आगे डॉक्टर की पढ़ाई पढ़ने के लिए
कॉलेज में दाखिले के लिए इम्तिहान दिया और इम्तिहान में टॉप भी किया।
यह खबर सुनकर गौरी के पिता और शिक्षिका रेणु दोनों बहुत खुश हुए।
पिताजी डॉक्टरी के पढ़ाई के लिए मुझे स्कॉलरशिप लेकिन को
अपने पिता को छोड़कर डॉक्टर की पढ़ाई के लिए शहर जाना था।
वह उदास हो गई. तब रेणु ने कहा।
फिक्र मत कर यहाँ सब में समभाल लूंग तू बस शहर जा और जल्दी ही डॉक्टर बनकर आना।
गुजरते समय के साथ वह अपने सपने की तरफ तेजी से कामयाबी के साथ बढ़ रही थी।
कई दिनों तक उसकी कोई खोज खबर नहीं आई।
कुछ साल बाद गांव में दोबारा महामारी की बीमारी तेजी से फैल गई और रेनु के पिता सहित सेठाने और उसका बेटा राजू सभी बहुत बीमार हो गए
और नगर के एक छोटे से सरकारी अस्पताल में पड़े पर कई दिनों से कोई डॉक्टर नहीं और भगवान से जिंदगी की प्रार्थना करने लगे।
तभी एक नर्स ने सभी को खबर. तुम लोग चिंता करने की जरूर।
शहर की सबसे बड़ी डॉक्टर साहिबा आपका इलाज करने आने वाली यह खबर सुन गांव वाले बहुत खुश हो गए।
तभी हॉस्पिटल के सामने एक कर आकर रुकी और उसमें से एक डॉक्टर उतरी।
नगर सरपंच ने उन्हें माला पहनाकर उनका स्वागत किया।
जब वह अस्पताल के अंदर आई तो उसे देख सभी हैरान रह गए।
क्योंकि वह डॉक्टर कोई और नहीं बल्कि थी।
ने अपने पिता के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया और फिर उसने सभी गांवों का इलाज करना शुरू किया।
इलाज से ही कुछ दिनों में ने अपने पिता की आंखों का ऑपरेशन करवाकर उनकी रोशनी भी वापस लाई।
की मेहनत, लगन और सफलता की वजह से एक बार फिर सारा गांव महामारी से पूरी तरह मुक्त हो गया और गांव वालों को अपनी गलती का एहसास हो गया।
वह सभी कोल मालाओं कारकर उसके नाम का जय जयकार करने लगे और यह देख के पिता का सी गर्व से चौड़ा हो गया।
तो बच्चों इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि अगर की तरह मेहनत,
लगन और दृढ़ निश्चय से किसी काम को किया जाए तो उसमें हमें कामयाबी जरूर मिलती है।
एक गांव में विमला नाम की एक गरीब औरत अपने बेटे रोशन और बहुगौरी के साथ रहती थी।
विमला के पति का देहांत हो गया था जिससे सारी जिम्मेदारी उसके बेटे रोशन पर आ गई थी।
लेकिन गांव में रोशन को कोई मिलने के कारण गरीबी और बेरोजगारी से उसकी मुसीबत बढ़ती चली गईं।
विमला की बहु गौरी बहुत ही स्वार थी और लालची स्वभाव की थी।
एक दिन उसने अपने पति से कहाए अब यहां कुछ नहीं रखा है।
हमें शहर चले जाना चाहिए तभी हमारे हालात सुधर पाएंगे वरना हमें भूखा ही मरना पड़ेगा। तब रोशन बोला।
पर मा तो यह अकेली कैसे?
तो ग बोली ओ हो।
अब मां की चिंता मत कीजिए जब आपको नौकरी मिल जाएगी तब हम माँ को पैसे भेज दिया करेंगे।
रोशन अपनी मां को अकेला छोड़ पत्नी गौरी के साथ शहर चला गया।
कई महीने बीत जाने के बाद भी उसकी कोई खबर नहीं आई।
बेटे और बहु के शहर चले जाने के बादमलाेट पालने के लिए दर-दर भटकने लगी और भीख मांग कर अपना गुजारा करने को मजबूर हो गई।
हमेशा अपने बेटेने का इंतजार करती पर उनकी ना तो कोई खबर आई और उनकी तरफ से कोई पैसा विमला मंदिरों और रेलवे स्टेशन में भीख मांगने लगी
पर उसे ज्यादा पैसे नहीं मिलते और कई दिन उसे भूखा ही सोना पड़ताम की आवाज बहुत ही सुरी थी और उसे गाने का शौक भी था
इसलिए उसने गाना गाकर भीख मांगना शुरू कर दिया जिससे बाद में धीरे-धीरे लोग विमला का गाना सुनने के लिए इकट्ठा होने लगे।
जिगी प्यार का गत है, इससे हर दिल को गाना पड़गा।
जिंदगी गमगरंस के उस पार जाना पड़ेगा।
विम के गाने से लोगों का अच्छा मनोरंजन होता और विमला को भीख में थोड़े अच्छे पैसे मिल जाते थे।
अब विमला रेलवे स्टेशन पर ही गाना गाती और उसे दो वक्त खाने को भी मिल जाता।
एक दिन विमला रेलवे स्टेशन पर बैठे गाना गा रही थी जिंद प्यार का गत है, इससे हर दिल को गाना पड़गा, ज़ंदगी गमगर।
के उस पार जाना पड़ेगा तभी वहां एक सज्जन व्यक्ति जिसका नाम था आलोक।
वह विमला के पास आया और आलोकरेक्टर था।
वहला को इतने सुरी आवाज में गाते हुए सुनकर हैरान रह गया के पास आकर बोलां जी मैंने आपका गाना सुना है।
आप बहुत ही सुरीली गाती हैं. मैं चाहता हूं कि आप मेरी नई फिल्म में गाना गा।
मुझे आप ही तरह एक. यह सुनकर विमला की आंखों में आंसू ए गए।
आलोक विमला को अपने साथ मुंबई शहर ले गया औरमला से अपने फिल्म में गाना और इसके बदले को खूब सारे पैसे मिले।
देखते ही देखते विमला का गया हुआ गाना हर जगह खूब सुनने में आया और पसंद भी किया जाने लगा।
हर जगह खूब मशहूर हो गई. अब विमला की जिंदगी पूरी तरह से बदल चुकी थी. वह मशहूर गाय का बन गई थी।
उसे tv news में हर जगह दिखाया जाने लगा. एक दिन जबgu ने अपनी विमला को tीv पर देखा तो उसकी आंखें फटी रह गई।
उसके मन में पैसे का लालच उसने तुरंत ही अपने पति रोशन को यह बात बताई और बोली
अजी यह देखिए मां जी टीवी पर अब वह काफी मशहूर और अमीर बन चुकी है. कितने साल बीट गए।
माझ से नहीं मिले. अब हमें उनके पास चलना चाहिए. आखिर हमारे सेवा उनका है. यह कौन, कहा, हां।
तुम ठीक ही कहती हो रोशन और गौरी दोनों विमला के पास पहुंचे जहां वह एक बड़े बंगले में रहती थी।
Security ने दोनों को अंदर जाने से रो. तबम ने अपने बेटे की आवाज़ सुनी और बाहर आई और अपने बेटे को देख की आंखों में आंसू छलक पड़ी।
उसने अपने बेटे को गले से लगा लिया और रोती हुई बोली मेरा बेटा
आज तुझे अपनी मां की मैंने तुझे कितना तलाश किया अपनी माँ की ऐसी ममता और प्रेम को देखकर।
रोशन और गौरी दोनों को गलती का पछतावा हुआ और दोनों माफी मांग और मां के लिए अपने बच्चों की खुशी से बढ़कर और कुछ भी नहीं होता है।
इसलिए वि दोनों को माफ कर उन्हें गले तो बच्चों मां की खुशी से बढ़कर दुनिया में और कुछ भी नहीं इसलिए।
हमें अपने स्वार्थ को त्याग कर अपने मां-बाप को कभी अकेला और बेसहारा नहीं छोड़ना चाहिएल।
एक गांव में सुजान सिंह नाम का एक अमीर व्यापारी अपनी पत्नी देवकी के साथ रहता था।
उसके पास धन की कोई कमी नहीं थी पर उसके घर में उसकी कोई संतान न होने के कारण वह हमेशा दुखी रहता था।
वह हमेशा सोचता कि एक बेटा हो जो उसके कारोबार को सम्भालाएँ।
संतान न होने की वजह से देवकी को अपने सा-ससुर के ताने सहने पड़ते और वो दुखी होकर घर के किसी कोने में जाकर अकसर रोया करती
सुजान सिंह भी उनसे कहते की मां और पिताजी अपने पोते का सुख चाहते हैं अगर तुम उन्हें सुख नहीं दे सकती तो मुझे दूसरी शादी करनी पड़ेगी।
सुजांत सिंह की यह बात सुनकर देवकी को बहुत दुख पहुंचा।
कुछ सालों बाद देवकी की भगवान ने सुन ली और उसने एक बच्चे को जन्म दिया लेकिन तब भी सभी लोग निराश थे
और सुजा सिंह भी खुश नहीं था क्योंकि देवकी ने एक बेटी को जन्म दिया था।
बेटी के पैदा होने से ही जैसे घर में मातम छा गया है।
लेकिन जैसे-तैसै अपनी बेटी कृष्णवी को अच्छे से पालने लगी और कृष्णवी बड़ी हो गई।
वह बहुत समझदार और दिमागदार लड़की थी।
उसने एक दिन बच्चों को स्कूल जाते देखा तो उसने अपने पिता के सामने स्कूल जाने की इच्छा जाहिर की।
लेकिन सूजा सिंह बोला तुझे पालने पोसने में पहले ही मेरा बहुत खर्चा हो चुका है।
अब स्कूल के नाम पर मैं और पैसे बर्बाद नहीं करूंगा।
जा और जाकर अपनी मां के साथ चूल्हा चौका करें।
बड़ी आयी स्कूल जाने वाली।
धीरे-धीरे कृष्ण पाँच वर्ष की हुई और देवकी एक बार फिर मां बनने वाली थी।
इस बार उसने एक बेटे को जन्म दिया और सिंह नेीख पूरे गांव में मिठाइयां बटवाई और उसने अपने बेटे का नाम पारस रखा।
कृष्णवी देखती कि सब पारस के साथ खूब खेलते और प्यार करते तो एक दिन उसने अपनी मां देवकी से पूछ लिया, मा।
मेरे साथ पिताजी कभी क्यों नहीं खेलते।
आंखों में आंसू आ गए और उसने अपनी बेटी से कहा यहां बेटियों से ज्यादा बेट को प्यार मिलता है
पर तू चिंता मत कर बेटी मैं तो तुझसे प्यार करती हूँ न।
कृष्णवी ने ये सुनकर अपनी माँ के आंसू पोछे और उसे गले लगा लिया।
कुछ समय बीता और अब मां के ज़िद के चलते पारस के साथ कृष्णवी भी स्कूल जाने लगी।
कृष्णवी पढ़ाई में बहुत ही होशियार थी और हमेशा अच्छे नंबर लाती थी।
पर उसके भाई पारस का मन पढ़ाई लिखाई में नहीं लगता और वह हमेशा परीक्षा में फेल होता।
एक दिन कृष्णवी ने अपने स्कूल में टॉप किया वहीं दूसरी तरफ उसका भाई फेल हो गया।
बहुत खुश थी तो उसने घर पहुंचकर अपने पिता सूजन सिंह से कहा पिता
मैंने स्कूल की परीक्षा में टॉप किया हुए कोई जवाब नहीं दिया।
थोड़ी ही देर बाद पारस सूजा सिंह के पास मायूस होकर आया और उसने सूजा सिंह से कहा पिताजी मैं इस बार फेल हो गया।
पारस की यह बात सुनकर सुजा सिंह ने खुश होकर कहा और कोई बात नहीं बेटा तो इतनी से मायूस हो गए।
अगली बार थोड़ी और मेहनत कर लेना।
अच्छा जो तुमने साइकिल हमसे मांगी थी ना वो हम तुम्हें आज दिलवाएंगे.
चलो मेरे साथ और यह कहकर सू. सिंह ने पारस को गले लगाया और दूर खड़ी कृष्ण यह देखती रही।
कृ् मायूस हो गई और रोने लगी।
तभी उसकी रोने की आवाज़ सुनकर देवकी उसके पास आई और उसने अपनी बेटी से कहा बेटा तुम अपने बुरा मत मानो मैं
बहुत खुश हूं की तुमने स्कूल टॉप किया और इसी खुशुशी में मैंने तुम्हारे लिए मनपसंद खीर बनाई है।
कुछ दिन बाद दोनों बच्चे जवान हो गए और कृषणवी की शादी एक शहर के साथ हो गई जो उम्र में उससे काफी बड़ा था।
कृष्णवी अपने ससुराल चली गई।
उसके पिता के लार ने इतना बिगाड़ दिया था कि वह बिल्कुल आलसी बन चुका था।
एक दिन पारस ने अपने पिता सुजांत सिंह के पास जाकर कहा, पिताजी मैंने इस लड़की से शादी कर ली है।
सुजा सिंह अपने की यह बात सुनकर खुश हो गया और अपने कारोबार की सारी जिम्मेदारी अपनेस को सौंप दी
और देवकी ने घर की जिम्मेदारी अपनी बहु मानसी को दे दी।
पारस तो अपनी पत्नी का जैसे गुलाम ही था।
एक बार सूजा सिंह को दिल का दौरा पड़ा और वह बीमार रहने लगा तो एक दिन पारस की पत्नी ने उससे कहा,
सुनो जी, मैं सोचती हूँ कि हमें शहर चले जाना चाहिए. यहाँ गांव में रखा ही क्या है?
बीमार मां-बाप की सेवा और फालतू का खर्च कहा।
तुम ठीक कहती हो उसमे पत्नी से कहा।
वह सूजा सिंह के पास गया और उसने कहा
पिताजी, मैंने और मानसी ने फैसला किया है की हम शहर में रहेंगे।
हमें गांव में नहीं रहना है। क्या
कह रहे हो बेटा हमारा तुम्हारे सिवा है ही कौन? अगर तुम हमें इस हाल में छोड़कर चले जाओगे तो किसके सहारे हम जिंदा रहेंगे।
तुम्हारे बाबूजी ने हमेशा तुम्हारे लिए कितना कुछ नहीं किया है की नहीं।
लेकिन उसने अपनी पिताजी की एक बात नहीं सुनी और वहां से अपनी पत्नी को लेकर शहर चला जाता है।
सिंह की तबीयत दिनब-दिन खराब होती चली जाती है।
कृषण को एक दिन पता चलता है कि उसके माता-पिता किन हालातों से गुजर रहे हैं.
कृष्णवी अपने घर आती है और अपने माता-पिता का इलाज करवाती है।
यह देख कर समझ आ गया था कि जिस बेटे को उसने इतना प्यार दिया वह उसे अपनी पत्नी के कहने पर छोड़कर चला गया
और जिस बेटी के लिए उसने कभी कुछ नहीं किया उनके हाल में उनका सहारा बनकर खड़ी है।
सिंह की आंखों में आंसू आ गए।
उसने कृष्ण को हॉस्पिटल में अपने पास बुलाया और उसे कहा.
बेटा मुझे माफ कर दो मैं गलत था असली में तो तुम ही मेरा सच्चा बेटा है और इतना कहकर उसने अपनी बेटी कृषणवी को रोते हुए गले लगा लिया।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी बेटे और बेटियों में फर्क नहीं करना
चाहिए और हमें उन्हें बराबरी का सम्मान और हक देना चाहिए।
एक गांव में एक छोटे से परिवार में विक्रम और उनके दो बच्चे रहते थे।
बड़ी बेटी का नाम सुकन्या और छोटे बेटे का नाम था सुयश।
विक्रम एक सरकारी दफ्तर में काम करते थे।
दौ साल पहले ही एक लंबी बीमारी के कारण उनकी मां का देहांत गया था।
सुरयज की उम्र सात साल थी और सुकन्या ग्यारह साल की थी।
सु अपने छोटे भाई का बड़ा ख्याल रखती थी।
छोटे भाई को एकद छींक भी आ जाए तो वह परेशान हो जाती थी. सुकन्या ने कहा,
चलो जल्दी सेो और फिर नाश्ता करके स्कूल भी जाना है, दीदी आज नहाने का मन नहीं कर रहा है।
हाथ मुंह धो लू नहीं-नहीं यह ठीक नहीं अच्छे लड़के नहाए बिना स्कूल नहीं जाते सुकन्या ने अपने हाथों से ही बड़े प्यार से नहलाया और स्कूल के लिए तैयार किया।
सुयश ने नाश्ता किया और स्कूल चला गया।
शाम को बाबूजी जब ऑफिस से घर आए तो साथ में गर्म- गम जलेबियां भी लेकर आए उन्होंने उसे दो भाग में विभक्त करके दोनों को दे दिया,
सुयश ने अपनी जलेबी जल्दी से खा ली और अपनी दी का मुंह देखने लगा तो ने कहा बात है
तुम्हारी जलेबी भी खत्म हो गई क्या?
तो उसने अपने हिस्से की जलेबी में से एक जलेबी सुयश को दे दी।
सुरयश ने जल्दी-जल्दी जलेबी खा ली और देखने लगा इस तरह सेकन्या ने अपने हिस्से की
बहुत सारी जलेबियांँ सुरयश को खिला दी. तो बाबूजी ने कहा.
सुरज बेटा एक जलेबी तो अपने दीदी को भी खा लेने दो।
दीदी तुम भी जलेबी खाओं और उसने आखिर जलेबी उसके हाथों में रख दी और उसने सिर्फ पानी पी लिया।
एक दिन वह अपने छोटे भाई को लेकर गांव में जा रही थी।
अचा लगा से सूर को पीछे करके सामने आ गई और कुत्ते से का बचाव करने लगी।
कुत्ता सूर के पीछे दौड़ने लगा तो गोद में उठा लिया और तेजी से भागने लगी और कुत्ता
पिछ गयादी का यह रूप देखकर क्योंकि एक बहुत अच्छी लीट थी।
वह शानदार दौड़ती थी। उसके पास नेशनल लेवल पर खेलने का मौका था।
दीदी तुम इतना तेज दौड़ती हो, हवा से बातें करती हो, मुझको भी दौड़ा तो मैं मानूं अगर तुमने लगातार मेहनत की प्रैक्टिस की तो तुम
भी हवा से बातें कर सकते हो। इसी तरह दिन बीतते गए।
एक दिन सूरेश बीमार हो गया और जांच करने के बाद पता चला कि उसकी दोनों किनियां खराब हो चुकी है।
विक्रम के जीवन में यह दूसरा आघ था।
वह बहुत दुखी हो चुका था।
मैंने जितने डॉक्टरों से संपर्क किया वह सभी ने यही कहा कि दूसरी किडनी जो मैच हो पड़ेगी,
इस बीच सुकन्या आयी और बोली बाबूजी, मैं अपने सूरेश भैया के लिए अपनी किडनी दे दूंगी।
उसकी पुरी जिंदगी पड़ी है।
वो बोले की उसके बाद तुम नहीं जी पाओगी तुम्हारा करियर खत्म हो जाएगी मैं कोई दूसरा ढूंढ लेता हूँ।
इस तरह दिन बीतते जा रहे थे लेकिन सूर के लिए कोई डोनर नहीं मिला।
तब सुकन्या ने कहा बापूजी मेरा करिय मेरे छोटे भैया की जिंदगी से बढ़कर तो नहीं है।
आप मेरा टेस्ट करवाइए।. मैं अपने भाई के लिए किडनी दूंगी।
सुकन्या बेटी की ज़िद के आगे बाबूजी को उसकी बात माननी पड़ी और सुकन्या की किडनी ऑपरेशन के जरिए सुरेश को लगा दी गई।
सूर जिंदगी मिल गई। विक्रम औरन को लेकर घर आ गए।
थोड़े दिन में ठीक हो गया और अपने दी से पूछा।
आपके दौड़ के सिलेक्शन का क्या हुआ?
वो बोली की मेरा सिलेक्शन नहीं हुआ क्योंकि मैं दौड़ में हार गई।
मेरी दीदी हार ही नहीं सकती।
जरूर उन्होंने कोई चीटिंग की होगी।
मायूस न हो अगली बार आप जरूर जीतगी।
यह सुनकर सुन की आंखें नम हो गई।
एक दिन सूर को घर के कोने में कुछ फटे हुए कागज के टुकड़े दिखाई दिए।
उसने उन टुों को उठाया और मिलाया और पढ़ा तो सुय को पता चला कि इंडियन एथली टीम में सुकन्या का सिलेक्शन हो गया था
और उसे बुलाया गया था। इसके बाद सुरेश को सारी बात समझ आ गई।
खुद के लिए अपनी बहन का इतना बड़ा त्याग देख सुर का बुरा हाल हो गया।
बहन ने अपने भाई के लिए अपने सुनहरे करियर की कुर्बानी दे दी।
तो बच्चों इस कहानी में हमें यह सीख मिलती है कि भाईबहन को मिलजुलकर
हमेशा प्यार से रहना चाहिए क्योंकि दुनिया में इससे प्यारा रिश्ता और कोई नहीं है।
माँ को अपने बेटे, साहूकार को अपने देनदार और किसान को अपने लहलहाते खेत देखकर जो आनंद आता है,
वही आनंद बाबा भारती को अपना घोड़ा देखकर आता था।
भगवत-भजन से जो समय बचता, वह घोड़े को अर्पण हो जाता।
वह घोड़ा बड़ा सुंदर था, बड़ा बलवान।
उसके जोड़ का घोड़ा सारे इलाक़े में न था।
बाबा भारती उसे “सुलतान” कह कर पुकारते, अपने हाथ से खरहरा करते, ख़ुद दाना खिलाते और देख-देखकर प्रसन्न होते थे।
ऐसे लगन, ऐसे प्यार, ऐसे स्नेह से कोई सच्चा प्रेमी अपने प्यारे को भी न चाहता होगा।
उन्होंने अपना सब-कुछ छोड़ दिया था, रुपया, माल, असबाब, ज़मीन, यहाँ तक कि उन्हें नागरिक जीवन से भी घृणा थी।
अब गाँव से बाहर एक छोटे-से मंदिर में रहते और भगवान का भजन करते थे; परंतु सुलतान से बिछुड़ने की वेदना उनके लिए असह्य थी।
मैं इसके बिना नहीं रह सकूँगा, उन्हें ऐसी भ्रांति-सी हो गई थी।
वे उसकी चाल पर लट्टू थे।
कहते, ऐसे चलता है जैसे मोर घन-घटा को देखकर नाच रहा हो।
गाँवों के लोग इस प्रेम को देखकर चकित थे, कभी-कभी कनखियों से इशारे भी करते थे, परंतु बाबा भारती को इसकी परवा न थी।
जब तक संध्या-समय सुलतान पर चढ़कर आठ-दस मील का चक्कर न लगा लेते, उन्हें चैन न आता।
खड्गसिंह उस इलाक़े का प्रसिद्ध डाकू था। लोग उसका नाम सुनकर काँपते थे।
होते-होते सुलतान की कीर्ति उसके कानों तक भी पहुँची।
उसका हृदय उसे देखने के लिए अधीर हो उठा।
वह एक दिन दोपहर के समय बाबा भारती के पास पहुँचा और नमस्कार करके बैठ गया।
बाबा भारती ने पूछा, “खड्गसिंह, क्या हाल है?”
खड्गसिंह ने सिर झुकाकर उत्तर दिया, “आपकी दया है।”
“कहो, इधर कैसे आ गए?”
“सुलतान की चाह खींच लाई।”
“विचित्र जानवर है। देखोगे तो प्रसन्न हो जाओगे।”
“मैंने भी बड़ी प्रशंसा सुनी है।”
“उसकी चाल तुम्हारा मन मोह लेगी!”
“कहते हैं देखने में भी बहुत सुंदर है।”
“क्या कहना! जो उसे एक बार देख लेता है, उसके हृदय पर उसकी छवि अंकित हो जाती है।”
“बहुत दिनों से अभिलाषा थी, आज उपस्थित हो सका हूँ।”
बाबा और खड्गसिंह दोनों अस्तबल में पहुँचे।
बाबा ने घोड़ा दिखाया घमंड से, खड्गसिंह ने घोड़ा देखा आश्चर्य से।
उसने सैकड़ों घोड़े देखे थे, परंतु ऐसा बाँका घोड़ा उसकी आँखों से कभी न गुज़रा था।
सोचने लगा, भाग्य की बात है। ऐसा घोड़ा खड्गसिंह के पास होना चाहिए था।
इस साधु को ऐसी चीज़ों से क्या लाभ?
कुछ देर तक आश्चर्य से चुपचाप खड़ा रहा।
इसके पश्चात् हृदय में हलचल होने लगी।
बालकों की-सी अधीरता से बोला, “परंतु बाबाजी, इसकी चाल न देखी तो क्या?”
बाबा जी भी मनुष्य ही थे।
अपनी वस्तु की प्रशंसा दूसरे के मुख से सुनने के लिए उनका हृदय अधीर हो गया।
घोड़े को खोलकर बाहर लाए और उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगे।
एकाएक उचककर सवार हो गए। घोड़ा वायु-वेग से उड़ने लगा।
उसकी चाल देखकर, उसकी गति देखकर खड्गसिंह के हृदय पर साँप लोट गया।
वह डाकू था और जो वस्तु उसे पसंद आ जाए उस पर अपना अधिकार समझता था।
उसके पास बाहुबल था और आदमी भी। जाते-जाते उसने कहा, “बाबाजी, मैं यह घोड़ा आपके पास न रहने दूँगा।”
बाबा भारती डर गए।
अब उन्हें रात को नींद न आती थी। सारी रात अस्तबल की रखवाली में कटने लगी।
प्रतिक्षण खड्गसिंह का भय लगा रहता, परंतु कई मास बीत गए और वह न आया।
यहाँ तक कि बाबा भारती कुछ लापरवाह हो गए और इस भय को स्वप्न के भय की नाई मिथ्या समझने लगे।
संध्या का समय था। बाबा भारती सुलतान की पीठ पर सवार होकर घूमने जा रहे थे।
इस समय उनकी आँखों में चमक थी, मुख पर प्रसन्नता।
कभी घोड़े के शरीर को देखते, कभी उसके रंग को, और मन में फूले न समाते थे।
सहसा एक ओर से आवाज़ आई, “ओ बाबा, इस कंगले की सुनते जाना।”
आवाज़ में करुणा थी। बाबा ने घोड़े को रोक लिया।
देखा, एक अपाहिज वृक्ष की छाया में पड़ा कराह रहा है। बोले, “क्यों तुम्हें क्या कष्ट है?”
अपाहिज ने हाथ जोड़कर कहा, “बाबा, मैं दुखियारा हूँ। मुझ पर दया करो।
रामाँवाला यहाँ से तीन मील है, मुझे वहाँ जाना है। घोड़े पर चढ़ा लो, परमात्मा भला करेगा।”
“वहाँ तुम्हारा कौन है?”
“दुर्गादत्त वैद्य का नाम आपने सुना होगा। मैं उनका सौतेला भाई हूँ।”
बाबा भारती ने घोड़े से उतरकर अपाहिज को घोड़े पर सवार किया और स्वयं उसकी लगाम पकड़कर धीरे-धीरे चलने लगे।
सहसा उन्हें एक झटका-सा लगा और लगाम हाथ से छूट गई।
उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा, जब उन्होंने देखा कि अपाहिज घोड़े की पीठ पर तनकर बैठा और घोड़े को दौड़ाए लिए जा रहा है।
उनके मुख से भय, विस्मय और निराशा से मिली हुई चीख़ निकल गई। वह अपाहिज डाकू खड्गसिंह था।
बाबा भारती कुछ देर तक चुप रहे और कुछ समय पश्चात् कुछ निश्चय करके पूरे बल से चिल्लाकर बोले, “ज़रा ठहर जाओ।”
खड्गसिंह ने यह आवाज़ सुनकर घोड़ा रोक लिया और उसकी गरदन पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा, “बाबाजी, यह घोड़ा अब न दूँगा।”
“परंतु एक बात सुनते जाओ।”
खड्गसिंह ठहर गया।
बाबा भारती ने निकट जाकर उसकी ओर ऐसी आँखों से देखा जैसे बकरा क़साई की ओर देखता है और कहा, “यह घोड़ा तुम्हारा हो चुका है।
मैं तुमसे इसे वापस करने के लिए न कहूँगा।
परंतु खड्गसिंह, केवल एक प्रार्थना करता हूँ।
इसे अस्वीकार न करना, नहीं तो मेरा दिल टूट जाएगा।”
“बाबाजी, आज्ञा कीजिए। मैं आपका दास हूँ, केवल यह घोड़ा न दूँगा।”
“अब घोड़े का नाम न लो।
मैं तुमसे इस विषय में कुछ न कहूँगा।
मेरी प्रार्थना केवल यह है कि इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना।”
खड्गसिंह का मुँह आश्चर्य से खुला रह गया।
उसका विचार था कि उसे घोड़े को लेकर यहाँ से भागना पड़ेगा, परंतु बाबा भारती ने स्वयं उसे कहा कि इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना।
इससे क्या प्रयोजन सिद्ध हो सकता है?
खड्गसिंह ने बहुत सोचा, बहुत सिर मारा, परंतु कुछ समझ न सका।
हारकर उसने अपनी आँखें बाबा भारती के मुख पर गड़ा दीं और पूछा, “बाबाजी, इसमें आपको क्या डर है?”
सुनकर बाबा भारती ने उत्तर दिया, “लोगों को यदि इस घटना का पता लग गया तो वो किसी ग़रीब पर विश्वास न करेंगे।”
और यह कहते-कहते उन्होंने सुलतान की ओर से इस तरह मुँह मोड़ लिया जैसे उनका उससे कभी कोई संबंध ही न रहा हो।
बाबा भारती चले गए। परंतु उनके शब्द खड्गसिंह के कानों में उसी प्रकार गूँज रहे थे।
सोचता था, कैसे ऊँचे विचार हैं, कैसा पवित्र भाव है!
उन्हें इस घोड़े से प्रेम था, इसे देखकर उनका मुख फूल की नाई खिल जाता था।
कहते थे, “इसके बिना मैं रह न सकूँगा।” इसकी रखवाली में वे कई रात सोए नहीं।
भजन-भक्ति न कर रखवाली करते रहे। परंतु आज उनके मुख पर दुःख की रेखा तक दिखाई न पड़ती थी। उन्हें केवल यह ख़याल था कि कहीं लोग ग़रीबों पर विश्वास करना न छोड़ दें। उन्होंने अपनी निज की हानि को मनुषयत्व की हानि पर न्योछावर कर दिया। ऐसा मनुष्य, मनुष्य नहीं देवता है।
रात्रि के अंधकार में खड्गसिंह बाबा भारती के मंदिर पहुँचा। चारों ओर सन्नाटा था।
आकाश पर तारे टिमटिमा रहे थे। थोड़ी दूर पर गाँवों के कुत्ते भौंक रहे थे।
मंदिर के अंदर कोई शब्द सुनाई न देता था। खड्गसिंह सुलतान की बाग पकड़े हुए था।
वह धीरे-धीरे अस्तबल के फाटक पर पहुँचा।
फाटक किसी वियोगी की आँखों की तरह चौपट खुला था।
किसी समय वहाँ बाबा भारती स्वयं लाठी लेकर पहरा देते थे, परंतु आज उन्हें किसी चोरी, किसी डाके का भय न था।
हानि ने उन्हें हानि की तरफ़ से बे-परवाह कर दिया था।
खड्गसिंह ने आगे बढ़कर सुलतान को उसके स्थान पर बाँध दिया और बाहर निकलकर सावधानी से फाटक बंद कर दिया।
इस समय उसकी आँखों में नेकी के आँसू थे।
अंधकार में रात्रि ने तीसरा पहर समाप्त किया, और चौथा पहर आरंभ होते ही बाबा भारती ने अपनी कुटिया से बाहर निकल ठंडे जल से स्नान किया।
उसके पश्चात्, इस प्रकार जैसे कोई स्वप्न में चल रहा हो, उनके पाँव अस्तबल की ओर मुड़े।
परंतु फाटक पर पहुँचकर उनको अपनी भूल प्रतीत हुई।
साथ ही घोर निराशा ने पाँवों को मन-मन-भर का भारी बना दिया। वे वहीं रुक गए।
घोड़े ने स्वाभाविक मेघा से अपने स्वामी के पाँवों की चाप को पहचान लिया और ज़ोर से हिनहिनाया।
बाबा भारती दौड़ते हुए अंदर घुसे, और अपने घोड़े के गले से लिपटकर इस प्रकार रोने लगे, जैसे बिछुड़ा हुआ पिता चिरकाल के पश्चात् पुत्र से मिलकर रोता है।
बार-बार उसकी पीठ पर हाथ फेरते, बार-बार उसके मुँह पर थपकियाँ देते और कहते थे “अब कोई ग़रीबों की सहायता से मुँह न मोड़ेगा।”
थोड़ी देर के बाद जब वह अस्तबल से बाहर निकले, तो उनकी आँखों से आँसू बह रहे थे।
ये आँसू उसी भूमि पर ठीक उसी जगह गिर रहे थे, जहाँ बाहर निकलने के बाद खड्गसिंह खड़ा रोया था।
दोनों के आँसुओं का उसी भूमि की मिट्टी पर परस्पर मिलाप हो गया।
गाँव के एक कोने में एक छोटा सा स्कूल था, जिसे मास्टरजी चलाते थे।
मास्टरजी का असली नाम रामप्रसाद था, लेकिन गाँव के सभी बच्चे उन्हें मास्टरजी ही बुलाते थे।
मास्टरजी का सपना था कि गाँव के सभी बच्चे अच्छी शिक्षा प्राप्त करें और जीवन में सफलता हासिल करें।
यह उनकी और एक छात्रा की प्रेरणादायक कहानी है।
गाँव की एक लड़की, राधा, बहुत ही होनहार थी।
उसकी उम्र केवल 12 साल थी, लेकिन उसकी बुद्धिमानी और मेहनत ने सभी को प्रभावित किया था।
उसके माता-पिता बहुत गरीब थे और वे उसकी शिक्षा का खर्चा नहीं उठा सकते थे।
लेकिन राधा का सपना था कि वह एक दिन डॉक्टर बने और गाँव के लोगों की मदद करे।
यह राधा की संघर्ष और सफलता की कहानी है।
राधा हर दिन स्कूल जाती और मास्टरजी से पढ़ाई करती।
मास्टरजी ने उसकी मेहनत और लगन को देखकर उसे प्रोत्साहित किया और उसकी मदद करने का निर्णय लिया।
उन्होंने राधा के माता-पिता से बात की और उन्हें समझाया कि शिक्षा की महत्ता क्या होती है।
यह शिक्षा के महत्व को दर्शाने वाली है।
मास्टरजी ने राधा को एक स्कॉलरशिप दिलवाई जिससे उसकी पढ़ाई का खर्चा पूरा हो सके।
राधा ने भी मास्टरजी की उम्मीदों को पूरा करने के लिए और भी मेहनत की।
वह दिन-रात पढ़ाई करती और अपने सपनों को साकार करने के लिए हर संभव प्रयास करती।
यह राधा की मेहनत और समर्पण की कहानी है।
समय बीतता गया और राधा ने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी कर ली।
उसने मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया और वहाँ भी अपनी मेहनत और लगन से सभी को प्रभावित किया।
मास्टरजी की शिक्षा और मार्गदर्शन ने उसे एक मजबूत आधार दिया था।
यह राधा की सफलता की यात्रा को दर्शाती है।
कुछ साल बाद, राधा डॉक्टर बन गई और उसने अपने गाँव में एक छोटा सा क्लिनिक खोला।
वह गाँव के लोगों का मुफ्त में इलाज करती और उनकी हर संभव मदद करती।
मास्टरजी का सपना साकार हो गया था और राधा ने अपने सपनों को हकीकत में बदल दिया था।
यह शिक्षा की शक्ति और उसकी महत्ता को दर्शाती है।
राधा ने मास्टरजी को धन्यवाद कहा और उनके योगदान को हमेशा याद किया।
मास्टरजी ने भी राधा की सफलता पर गर्व महसूस किया और उसे आशीर्वाद दिया।
यह शिक्षा के महत्व और उसकी परिवर्तनकारी शक्ति को दर्शाने वाली है।
इस प्रकार, यह सभी के दिलों में बस गई और एक प्रेरणा स्रोत बन गई।
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि शिक्षा ही वह शक्ति है जो हमारे जीवन को बदल सकती है
और हमें सफलता की ओर ले जा सकती है।
गाँव के एक छोटे से घर में अजय नाम का एक लड़का रहता था।
उसकी माँ, विमला देवी, एक मेहनती महिला थी जो दिन-रात मेहनत करके अपने बेटे की परवरिश करती थी।
अजय की उम्र 14 साल थी और वह बहुत ही होनहार और मेहनती छात्र था।
यह अजय और उसकी माँ की संघर्ष और सफलता की कहानी है।
अजय का सपना था कि वह एक दिन इंजीनियर बने और अपने गाँव का नाम रोशन करे।
लेकिन उसकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी।
उसके पास किताबें खरीदने के पैसे नहीं थे और न ही पढ़ाई के लिए उचित सुविधाएँ। लेकिन अजय ने हार नहीं मानी और अपनी
माँ के साथ मिलकर अपने सपनों को साकार करने का निर्णय लिया।
यह अजय की मेहनत और संघर्ष की कहानी है।
अजय हर दिन स्कूल जाता और वहाँ से जो कुछ भी सीखता, उसे घर आकर दोहराता।
रात को जब सभी सो जाते, तो अजय एक स्ट्रीट लाइट के नीचे बैठकर पढ़ाई करता।
उसकी माँ भी उसके साथ जागती और उसे प्रोत्साहित करती।
यह अजय की माँ के त्याग और समर्पण को दर्शाती है।
समय बीतता गया और अजय ने अपनी मेहनत से अच्छे अंकों के साथ स्कूल की परीक्षा पास कर ली।
उसने इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया और वहाँ भी अपनी मेहनत और लगन से सभी को प्रभावित किया।
उसकी माँ का सपना साकार हो रहा था और अजय ने अपने सपनों को हकीकत में बदलने का हर संभव प्रयास किया।
यह अजय की सफलता की यात्रा को दर्शाती है।
कुछ साल बाद, अजय एक सफल इंजीनियर बन गया और उसने अपने गाँव में एक बड़ा प्रोजेक्ट शुरू किया।
उसने गाँव के लोगों के लिए नई सड़कें, स्कूल और अस्पताल बनवाए।
उसकी माँ का सपना साकार हो गया था और अजय ने अपने सपनों को हकीकत में बदल दिया था।
यह शिक्षा की शक्ति और उसकी महत्ता को दर्शाती है।
अजय ने अपनी माँ को धन्यवाद कहा और उनके योगदान को हमेशा याद किया।
उसकी माँ ने भी अजय की सफलता पर गर्व महसूस किया और उसे आशीर्वाद दिया।
यह शिक्षा के महत्व और उसकी परिवर्तनकारी शक्ति को दर्शाने वाली है।
इस प्रकार, यह सभी के दिलों में बस गई और एक प्रेरणा स्रोत बन गई।
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि शिक्षा ही वह शक्ति है जो हमारे जीवन को बदल सकती है
और हमें सफलता की ओर ले जा सकती है।