Cinderella In Hindi- Cinderella Pari Katha

Cinderella In Hindi- Cinderella Pari Katha

सिंड्रेला परी की कथा | सिंड्रेला परी की कहानी | एक परी सिंड्रेला की कहानी

सिंड्रेला

बहुत समय पहले सिंड्रेला नाम की एक सुंदर लड़की थी।

उसकी माँ की मौत होने के बाद उसके पिता ने दूसरी शादी कर ली थी।

अब सिंड्रेला अपनी सौतेली माँ और दो सौतेली बहनों के साथ रहती थी।

उसकी सौतेली माँ व सौतेली बहनें उसके साथ बहुत बुरा व्यवहार करती थीं।

सिंड्रेला की सौतेली माँ उससे घर का सारा काम करवाती और डाँटती डपटती रहती।

सिंड्रेला सुबह से लेकर शाम तक घर का काम करती, खाना बनाती, झाड़ लगाती, कपड़े धोती और सौतेली माँ व उसकी बेटियों की सेवा करती।

इस सबके बाद भी उसे न तो भरपेट भोजन नसीब होता और न ढंग के कपड़े।

उसे अपनी सौतेली बहनों के फटे-पुराने कपड़े पहनने पड़ते ।

सौतेली माँ और उसकी बेटियाँ तो बड़े ठाट-बाट से रहतीं और उस बेचारी को रसोईघर में सोना पड़ता।

रसोईघर ही सिंड्रेला का कमरा था। वह वहीं चूल्हे के पास सोती थी।

एक दिन सिंड्रेला की सौतेली माँ अपनी बेटियों के लिए नए खूबसूरत गाउन

लेकर आई। सिंड्रेला ने गाउन देखे तो उसका मन भी ललचा गया, पर उसमें इतनी हिम्मत न थी कि वह सौतेली माँ से कुछ कहे।

उसे सौतेली माँ और सौतेली ने बहनों की बातचीत से पता चला कि राजमहल में राजकुमार ने एक उत्सव का

आयोजन किया है, जिसमें सभी को बुलाया गया है।

सिंड्रेला भी राजमहल जाना चाहती थी, लेकिन उसके पास वहाँ जाने के लिए ढंग के कपड़े नहीं थे ।

थोड़ी ही देर में सिंड्रेला की सौतेली माँ व सौतेली बहनें तैयार होकर राजमहल जाने लगीं।

जाते-जाते सौतेली माँ बोली, “सिंड्रेला, घर का ध्यान रखना और अपनी बहनों का बिस्तर आदि लगा देना और हाँ, सारा काम ध्यानपूर्वक करना, वरना तेरी खैर नहीं।

आराम मत करने लगना, समझी !"

उनके जाने के बाद सिंड्रेला घर पर अकेली रह गई ।

वह उदास होकर चूल्हे के

पास बैठ गई और रोने लगी। तभी वहाँ एक परी प्रकट हुई।

वह बोली, “सिंड्रेला! उठो, मैं तुम्हारी मदद करने आई हूँ।

मैं जानती हूँ कि तुम राजमहल जाना चाहती हो।

और तुम जाओगी, जरूर जाओगी।"

“पर कैसे? मेरे पास तो वहाँ जाने के लिए ढंग के कपड़े भी नहीं हैं।

" सिंड्रेला ने उदास होकर कहा ।

"मैं आ गई हूँ न सब ठीक हो जाएगा।

बस, मुझे कुछ चीजें चाहिए। तुम उन्हें ला दो और समझो कि तुम राजमहल पहुँच गई।"

परी ने सिंड्रेला के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा ।

सिंड्रेला बोली, “ बताइए, आपको क्या चाहिए?

मैं अभी ला देती हूँ ।"

"तुम जल्दी से एक बड़ा-सा कद्दू ले आओ।

" परी ने कहा ।

सिंड्रेला दौड़कर बगीचे से एक बड़ा-सा कद्दू उठा लाई । फिर परी बोली,

अब मुझे चूहों की जरूरत पड़ेगी, तुम सात चूहे पकड़ लाओ।'

' सिंड्रेला बगीचे से चूहेदानी में सात चूहे पकड़ लाई।

परी खुश होकर बोली, “ये हुई न बात !

अब देखो मेरा जादू!" यह कहकर परी ने अपनी जादुई छड़ी घुमाई और कद्दू रथ में व छह चूहे घोड़ों में बदल गए।

सातवाँ चूहा कोचवान बन गया।

सिंड्रेला के कपड़े भी एकदम नए व भव्य हो गए।

वह नए कपड़ों में किसी राजकुमारी से कम नहीं लग रही थी।

यह देखकर सिंड्रेला की आँखें फटी की फटी रह गईं।

उसे अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था।

सिंड्रेला की मनोदशा भाँपते हुए परी बोली, “अरे! अब जल्दी करो!

ऐसे क्यों खड़ी हो ? चलो, जल्दी से रथ में बैठो।"

सिंड्रेला तुरंत रथ में जा बैठी।

उसने परी का शुक्रिया अदा किया और उससे विदा चाही।

परी ने सिंड्रेला को विदा करते हुए कहा, “सिंड्रेला ! जाओ और उत्सव का आनंद लो।

लेकिन हाँ, एक बात का ध्यान रखना कि बारह बजे से पहले लौट आना।

क्योंकि बारह बजते ही तुम रथ, घोड़े और कोचवान सब असली रूप में आ जाओगे।"

"जी, मैं आपकी कही बात का ध्यान रखूँगी,” और सिंड्रेला राजमहल की ओर चल पड़ी।

राजमहल के द्वार पर जब उसका भव्य रथ रूका तो वह तेजी से उत्सव वाले कमरे की ओर बढ़ चली।

जब उसने उत्सव वाले कमरे में प्रवेश किया तो वहाँ उपस्थित सभी लोगों की नजरें उस पर ठहर गईं।

सब उसकी सुंदरता देखकर विस्मित रह गए। सभी आपस में उसके बारे में

बात करने लगे। यहाँ

तक कि उसकी सौतेली

माँ और सौतेली बहनें भी उसे नहीं पहचान सकीं।

जब राजकुमार ने सिंड्रेला को देखा तो वह उसकी सुंदरता पर लट्टू हो गया।

वह उसके पास आया और उसके सामने नृत्य करने का प्रस्ताव रखा।

सिंड्रेला ने हामी भर दी और वह राजकुमार के साथ नृत्य करने लगी।

सिंड्रेला को राजकुमार के साथ नृत्य करता देख सारी लड़कियाँ उससे जल-भुन गईं ।

राजकुमार ने सिंड्रेला से पूछा, "हे सुंदरी! तुम कौन हो और कहाँ से आई हो?"

सिंड्रेला ने बात टालते हुए कहा, “राजकुमार !

इससे क्या फर्क पड़ता है कि मैं कौन हूँ, अभी तो बस उत्सव का आनंद लेने का समय है।

और वैसे भी आप मुझे दोबारा नहीं मिल पाएंगे।"

“लेकिन मुझे भरोसा है कि हम दोबारा जरूर मिलेंगे।' राजकुमार ने कहा ।

इसी प्रकार बातें व नृत्य करते हुए सिंड्रेला को समय का ध्यान ही नहीं रहा ।

तभी घड़ी ने बारह बजे का

पहला घंटा बजाया। सिंड्रेला ने घड़ी की ओर देखा और उसे परी की कही बात याद आई।

वह राजकुमार से बिना कुछ कहे तुरंत उसे छोड़कर बाहर की ओर भागी ।

तेजी से सीढ़ियाँ उतरते समय उसका एक चप्पल छूट गया।

वह तुरंत रथ में बैठी

और अपने घर की ओर चली गई। राजकुमार भी उसके पीछे आया, पर तब तक वह जा चुकी थी।

राजकुमार ने सिंड्रेला की चप्पल उठा ली और अपने मंत्री को बुलाकर कहा, “यह चप्पल लेकर जाओ

और नगर की प्रत्येक लड़की के पैर में पहनाकर देखो कि आखिर यह चप्पल किसकी है?

जिसकी यह चप्पल है, उस लड़की को ढूँढे बिना वापस नहीं आना।

मैं उस लड़की से शादी करना चाहता हूँ।"

मंत्री अगले दिन से नगर के प्रत्येक घर में जा-जाकर लड़कियों को चप्पल पहनाकर देखने लगा।

इसी क्रम में वह सिंड्रेला के घर भी पहुँचा।

उसने सिंड्रेला की दोनों सौतेली बहनों के पैर में चप्पल पहनाई पर उनके पैर में चप्पल सही नहीं आई,

तब उसने पास खड़ी सिंड्रेला से कहा, "आओ, आजमा लो।

शायद तुम्हारे पैर में यह चप्पल आ जाए।" तुम भी अपना भाग्य

सिंड्रेला ने चप्पल पहनी तो उसके पैर में एकदम सही आई।

मंत्री चकित रह गया।

यह देखकर उसकी सौतेली माँ बोली, “अरे! ये लड़की तो राजकुमार के लायक ही नहीं है।

इसके कपड़े देखो और इसकी शक्ल ! ऐसा लग रहा है जैसे राख के ढेर से निकलकर आ रही है।

तुम राजकुमार से कहना कि वे मेरी दोनों बेटियों में से किसी एक से शादी कर लें।"

तभी अचानक वहाँ पर परी प्रकट हुई।

वह गुस्से में चिल्लाते हुए बोली, “चुप रहो ! बहुत हो गया।

तुम्हें इस पर जरा भी दया नहीं आती।''

यह कहकर परी ने अपनी छड़ी घुमाई और सिंड्रेला के कपड़े फिर से नए व चमचमाते हुए हो गए।

अब उसकी सुंदरता देखते ही बनती थी।

यह देखकर उसकी सौतेली माँ और सौतेली बहनें अपना-सा मुँह लेकर रह गईं।

मंत्री ने सिंड्रेला से कहा, "हे सुंदरी ! आप हमारे साथ राजमहल चलें।

राजकुमार आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।

" सिंड्रेला मंत्री के साथ राजमहल चली आई।

राजकुमार सिंड्रेला को देखकर बहुत खुश हुआ।

फिर उन दोनों की शादी खूब धूमधाम से सम्पन्न हुई और वे खुशी- खुशी रहने लगे।