दिल्ली को पहलबान, बाहे अपनी ताकत पे भोत गुमान थो।
बाने भोतसे दंगल जीते थे।
दिल्ली के असफेर कोई पहलबान नईं बचो थो, जो बासे कुस्ती लड़े।
एक दिना बाहे पता चलो आगरा में एक पहलबान हे, बो
भोतई बलबान हे पर बो कुस्ती लड़बे बाहर नईं जात थो।
तो दिल्ली के पहलबान ने सोची में खुद जाके आगरा के
पहलबान से कुस्ती लड़हूँ। बाने अपनी घरबारी से कई, में कुस्ती लड़बे परदेस जा रओ हूँ।
रस्ता में खाबे के लाने
एक बड़ी सी चद्दर में सत्तू बॉँधके धर दइयो।”
बाकी घरबारी ने सोची परदेस की बात हे, उते खाबे को सुभीता होय
न होय। जासे बाने दो चद्दरों में सत्तू की दो पुटरिएँ बाँध दई।
पहलबान ने दोई पुटरिएँ कन्धों पे धररी ओर चल दओ।
चलत-चलत बाहे गेल में जोर की मूँक लग आई, तो
बाने एक वला के किनारे जाके दोई पुटरिएँ खोल लईं ओर बो हाथ धोबे तला में गओ।
इत्ते में बड़े जोर को अन्धूड़ा
चलो ओर पूरों को पूरो सत्तू उड़के तला में घुर गओ।
पहलबान ने सोची जो अच्छो भओ सत्तू घोरबे की मुसीबत से
बचो। बाने सत्तू भरे पूरे तला पी गओ।
पीबे के बाद बाहे आलस आओ। बो भई पसरके सो गओ। बई तला को
पानी जंगली हथ्थी पियत थे।
हथ्थी जब पानी पीबे आए तो तला खाली डरे थो ओर उतई पहलबान सो रओ थो।
प्यासे हथ्थी गुस्सा में आके पहलबान हे कुंचलन लगे।
पहलबान है नींद में लगो बाके ऊपर कीड़ा चल रए हें। बो
बिन्हें उठा-उठाके फैकन लगो, बे हाथी दूसरे पहलबान के आँगन मे जाके गिरन लगे।
जब पहलबान की नींद
पूरी हो गई तो बो दूसरे पहलबान के घर चल दओ।
बाने पहलबान के घर पोहोंचके देखो, एक छोटी मोड़ी ह्थियों हे झड़ा-झड़ाके आँगन के बाहर फेंक रई है।
पहलबान ने मोड़ी से पूछी, “काय भोड़ी तेरे बाप का है।
” मोड़ी ने कई, “बब्बा तो सो गाड़ी बाँध के, जंगल
लकड़ी लाबे गओ हे।” पहलबान ने सोची जो अच्छो मोका हे, जंगल में जाकेई कुस्ती लड़ हूँ।
बो चल दओ
जंगल।
बई रस्ता से दूसरो पहलबान लकड़ी लदी गाड़िएँ खेंच के ला रओ थो।
पहलबान एक खोह में छुप गओ ओर
आखिरी गाड़ी के पहिया दोई हाथ से पकड़के थाम दए |
दूसरे पहलबान से गाड़ी नईं खिंची तो बाने पीछे आके
देखो ओर पहलबान से कई, “काय भाई का बात हे ?”
पहलबान बोलो “में तोसे कुस्ती लड़बे दिल्ली से रिंगके आ
रओ हूँ।” दूसरो पहलबान भी कुस्ती लड़बें तड़यार हो गओ।
पर एक बाधा आन खड़ी भई। हार-जीत को फेसला कोन करहे ?
इत्ते में गेल से एक डुकरियां आत दिखी ।
बा अपने मोड़ा के लाने खेत में येटी देबे जा रई थी।
पहलबानों ने बासे अपनी बात कई। डुकरिया बोली, “में
तुमरी कुस्ती को फेसला कर तो देती पर मोहे अभहे बड़ी उलात हे।
मेरे मोड़ा खेत में भूँको हुए, बाहे रोटी देबे जा
रई हूँ। जासे में तुमरी कुस्ती देखबे रुक नईं सकूँ ।
” जा सुनके पहलबान दुखी हो गए। डुकरिया बिन्हें'दुखी देखके
बोली, “ऐंसो करो तुम दोई जनें मेरी हथेली पे कुस्ती लड़त चलो।
में चलत जेहूँ ओर तुमरी कुस्ती भी देखत जेहूँ।”
दोई पहलबान बाकी बात मान गए ओर डुकरिया की हथेली पे कुस्ती लड़न लगे।
डुकरिया सो कदम धरके,
सो कोस दूर अपने खेत में पोहोंच गई।
उते बाको मोड़ा कुदाली से झल्दी-झल्दी खेत खोद रओ थो।
बासे खूब धूरा
उड़ रई थी। डुकरिया खेत की मेड़ पे पोंहची तो बाकी नाक में धूरा घुय गई। बाहे बड़ी जोर से छीक आई।
बा इत्ती
जोर से छींकी का दोई पहलबान बाकी हथेली से उड़ गए।
एक गिये दिल्ली में तो दूसरो जाके गिरो आगरा में। दोई
की हड्डी-पसलिएँ टूट गई ।
बिनको घमण्ड भी चूर-चूर हो गओ।