Dusri Pheli Hatimtai Story In Hindi- Dusri Pheli Hatimtai Kahani

Dusri Pheli Hatimtai Story In Hindi- Dusri Pheli Hatimtai Kahani

दूसरी पहेली हातिमताई की कहानी - दूसरी पहेली हातिमताई कथा



दूसरी पहेली

इस प्रकार हुस्न बानो की दूसरी पहेली का हल खोजने के लिए हातिमताई

उत्तर की तरफ चल पड़े।

कई दिनों तक लगातार चलने के बाद वह एक जंगल में पहुँचे।

उन्होंने सोचा, ‘“रात को खतरनाक जानवर यूँ ही घूमते-फिरते रहते हैं।

क्यूँ न मैं किसी ऊँचे पेड़ पर चढ़कर रात बिता दूँ।"

फिर उन्होंने ऐसा ही किया।

वह एक पेड़ की ऊँची शाख पर जाकर आराम करने लगे।

तभी अचानक किसी आदमी के रोने की आवाज सुनकर उनकी नींद खुल गई ।

उन्होंने सोचा, 'ज़रूर ही कोई आदमी मुसीबत में फँस गया है।'

यही सोचकर वह जल्दी-जल्दी पेड़ से नीचे उतरे।

तभी अचानक उनकी नज़र एक नौजवान पर गई।

वह लगातार रोए जा रहा था।

हातिमताई ने उसके पास जाकर पूछा, “ भाई!

तुम कौन हो और इतनी रात को यहाँ इस तरह क्यों रो रहे हो, बताओ, तुम्हे क्या दुख है?"

वह बोला, “मैं एक सौदागर हूँ और मेरा घर इस जंगल के पास वाले शहर में ही है।

मैं हरीस नाम के एक सौदागर की लड़की को मन ही मन दिल दे बैठा था।

मगर उसने अपनी शादी के लिए पहले ही से तीन शर्तें रखी हुई थीं। तीनों शर्तें पूरी

करने पर ही कोई उसका शौहर बन सकता था।

साथ

ही साथ शर्त में यह भी बात जुड़ी हुई थी कि शर्त हारने वाले की चल-अचल

सारी सम्पत्ति पर लड़की का अधिकार होगा।

उस लड़की के प्यार में पागल होकर मैंने उसकी सारी शर्तें स्वीकार कर लीं।

मगर मैं उन कठिन शर्तों



दूसरी पहेली

इस प्रकार हुस्न बानो की दूसरी पहेली का हल खोजने के लिए हातिमताई

उत्तर की तरफ चल पड़े। कई दिनों तक लगातार चलने के बाद वह एक जंगल में पहुँचे।

उन्होंने सोचा, ‘“रात को खतरनाक जानवर यूँ ही घूमते-फिरते रहते हैं।

क्यूँ न मैं किसी ऊँचे पेड़ पर चढ़कर रात बिता दूँ।"

फिर उन्होंने ऐसा ही किया। वह एक पेड़ की ऊँची शाख पर जाकर आराम करने लगे।

तभी अचानक किसी आदमी के रोने की आवाज सुनकर उनकी नींद खुल गई ।

उन्होंने सोचा, 'ज़रूर ही कोई आदमी मुसीबत में फँस गया है।'

यही सोचकर वह जल्दी-जल्दी पेड़ से नीचे उतरे।

तभी अचानक उनकी नज़र एक नौजवान पर गई।

वह लगातार रोए जा रहा था।

हातिमताई ने उसके पास जाकर पूछा, “ भाई! तुम कौन हो और इतनी रात को यहाँ इस

तरह क्यों रो रहे हो, बताओ, तुम्हे क्या दुख है?"

वह बोला, “मैं एक सौदागर हूँ और मेरा घर इस जंगल के पास वाले शहर में ही है।

मैं हरीस नाम के एक सौदागर की लड़की को मन ही मन दिल दे बैठा था।

मगर उसने अपनी शादी के लिए पहले ही से तीन शर्तें रखी हुई थीं। तीनों शर्तें पूरी

करने पर ही कोई उसका शौहर बन सकता था। साथ

ही साथ शर्त में यह भी बात जुड़ी हुई थी कि शर्त हारने वाले की चल-अचल सारी सम्पत्ति पर लड़की का अधिकार होगा।

उस लड़की के प्यार में पागल होकर मैंने उसकी सारी शर्तें स्वीकार कर लीं।

मगर मैं उन कठिन शर्तों



तलाशना पड़ेगा।

वह सवाल यह है कि इस शहर से सटी हुई गुफा कहाँ जाकर खत्म होती है?

और जंगल में हर जुम्मे की आधी रात को एक आवाज़ सुनाई पड़ती है,

‘ओह ! काश मैं वैसा कर पाता, तो यह रात मेरे लिए मददगार साबित होती।'

आपको इसके पीछे का रहस्य जानना है।

आखिरी शर्त के तौर पर आपको साँप के पेट से मणि निकालकर लाना है।

हरीस की बेटी की शर्तें सुनकर हातिमताई गुफा के पास गए।

तभी गुफा का दरवाज़ा खुला और सींग वाले कुछ दैत्य उनकी तरफ दौड़ पड़े।

उसके बाद दैत्यों ने उन्हें पकड़ लिया।

फिर वह दैत्यों के राजा के पास लाए गए।

उस रोज़ उसकी हालत अच्छी न थी।

वह किसी बात से बहुत परेशान था ।

हातिमताई बोले, " आपको क्या दुख है जो इस तरह आहें भर रहे हैं?"

वह बोला, “ ओह ! क्या कहूँ, मेरी पत्नी कब से आँख के दर्द से परेशान है, पर मैं



उसके लिए कुछ भी नहीं कर पा रहा। अब मुझसे उसका दर्द देखा नहीं जाता।”

वह बोले, “मुझे उनके पास ले चलिए ।

शायद मैं उनकी बीमारी ठीक कर सकूँ।''

यह सुनकर दैत्यराज हातिमताई को साथ लेकर अपनी पत्नी के पास जा पहुँचा।

दैत्यराज की पत्नी की आँखों के ऊपर हातिमताई ने जैसे ही मणि रगड़ी, उसका दर्द छू मंतर हो गया।

यह देख दैत्यराज ने हातिमताई को गले लगाकर कहा,‘“मित्र!

मुझे मेहमाननवाज़ी करने का मौका दो।"

दैत्यराज का दिल रखते हुए हातिमताई उसके यहाँ कुछ दिन ठहर गए।

एक दिन बातों ही बातों में दैत्य ने कहा,“मित्र !

एक लंबे अरसे से मैं पेट का रोगी हूँ।

तुम मेरे पेट के दर्द को ठीक करने के बारे में ज़रा सोच-विचार करना । "

तभी दैत्यराज के आगे तरह-तरह के भोजन परोसे गए।

हातिमताई ने अपनी आंतरिक शक्तियों के बल पर उन व्यंजनों की जाँच-पड़ताल की।

वह अन्य चटोर दैत्यों की काली करतूतें देखकर दंग रह गए।

सभी दैत्य अपने राजा के भोजन को चटकर उसे कीड़े में बदल दिया करते थे।

मगर दैत्यराज की आँखें उन

कीड़ों को नहीं देख पाती थीं और वह हर रोज़ कीड़े खाकर अपनी भूख मिटा लेता।

दैत्यराज भोजन करके उठा ही था कि हातिमताई ने कहा, " चलिए हम दोनों शहर चलें।"

उसके बाद दोनों बगीचे की ओर चल पड़े।

बगीचे में पहुँचने के बाद हातिमताई ने दैत्यराज से कहा,"

आपको इस तरह समूह में नहीं खाना चाहिए। कल से



उसके लिए कुछ भी नहीं कर पा रहा।

अब मुझसे उसका दर्द देखा नहीं जाता।”

वह बोले, “मुझे उनके पास ले चलिए ।

शायद मैं उनकी बीमारी ठीक कर सकूँ।''

यह सुनकर दैत्यराज हातिमताई को साथ लेकर अपनी पत्नी के पास जा पहुँचा।

दैत्यराज की पत्नी की आँखों के ऊपर हातिमताई ने जैसे ही मणि रगड़ी, उसका दर्द छू मंतर हो गया।

यह देख दैत्यराज ने हातिमताई को गले लगाकर कहा,‘“मित्र! मुझे मेहमाननवाज़ी करने का मौका दो।"

दैत्यराज का दिल रखते हुए हातिमताई उसके यहाँ कुछ दिन ठहर गए।

एक दिन बातों ही बातों में दैत्य ने कहा,“मित्र ! एक लंबे अरसे से मैं पेट का रोगी हूँ।

तुम मेरे पेट के दर्द को ठीक करने के बारे में ज़रा सोच-विचार करना । "

तभी दैत्यराज के आगे तरह-तरह के भोजन परोसे गए।

हातिमताई ने अपनी आंतरिक शक्तियों के बल पर उन व्यंजनों की जाँच-पड़ताल की।

वह अन्य चटोर दैत्यों की काली करतूतें देखकर दंग रह गए।

सभी दैत्य अपने राजा के भोजन को चटकर उसे कीड़े में बदल दिया करते थे। मगर दैत्यराज की आँखें उन

कीड़ों को नहीं देख पाती थीं और वह हर रोज़ कीड़े खाकर अपनी भूख मिटा लेता।

दैत्यराज भोजन करके उठा ही था कि हातिमताई ने कहा, " चलिए हम दोनों शहर चलें।"

उसके बाद दोनों बगीचे की ओर चल पड़े।

बगीचे में पहुँचने के बाद हातिमताई ने दैत्यराज से कहा,"

आपको इस तरह समूह में नहीं खाना चाहिए। कल से



इस प्रकार दैत्यों के शहर को पार कर गुफा से होकर हातिमताई हरीस के शहर में जा पहुँच गए।

फिर उन्होंने हरीस की लड़की को उसके पहले सवाल का हल सुनाकर पूरी तरह से संतुष्ट कर दिया।

अब अगले सवाल का जवाब ढूँढ़ने के लिए वे एक दूर-दराज़ के गाँव में जा पहुँचे।

उस दिन पूरे गाँव में मातम छाया हुआ था। पूछने पर एक ग्रामीण बोला,

‘“क्या बताऊँ! हर सप्ताह हमारे किसी न किसी भाई को अपनी जान गँवानी पड़ती है

और आज तो ग्राम प्रधान के बेटे की ही बारी है।

इस सप्ताह राक्षस उसे खाकर अपनी भूख मिटाएगा।"

यह सुनकर हातिमताई गाँव के मुखिया के पास गए और बोले,

“इस तरह एक राक्षस का ज़ुल्म आप लोग कब तक सहते रहेंगे?"

ग्राम प्रधान रोते-रोते बोला, “हलूका जैसे राक्षस से लोहा लेना हम जैसे आदमियों के वश की बात नहीं।

वह छह सौ फीट लम्बा और दो सौ फीट चौड़ा है।

वह अकेला सौ शेरों और हज़ार हाथियों पर भी भारी पड़ता है। तुम्हीं कहो,

क्या हमारे लिए उसे मार पाना मुमकिन है?" हातिमताई बोले, “हाँ,

यह मुमकिन है। आप लोग हलूका से हमेशा के लिए छुटकारा पा सकते हैं। पर मुझे छह सौ फीट

लम्बा और दो सौ फीट-

चौड़ा एक आईना और

उसी आकार का एक

कपड़ा भी चाहिए।"

ग्राम प्रधान ने उसी समय



काँच के सबसे बड़े कारीगर को बुलाकर यह कार्य उसे सौंप दिया।

कारीगर ने कुछ ही समय में आईना तैयार भी कर दिया।

हातिमताई के कहने पर आईना गाँव की सीमा के पास उस जगह पहुँचाया गया,

जहाँ से होकर वह राक्षस गाँव में आया-जाया करता था।

उसके बाद एक बड़े से कपड़े से ढककर आईने को अच्छी तरह से खड़ा कर दिया गया।

और तब हातिमताई आईने के पीछे खड़े होकर हलूका के आने का इंतज़ार करने लगे।

थोड़ी देर के बाद ही अपने बड़े और डरावने मुँह से आग और धुआँ उगलता हुआ हलूका वहाँ आ धमका।

आईने के पीछे छिपे हातिमताई भारी आवाज में बोले, "कौन हो, वहीं रुक जाओ।

आज तुम्हारा सामना किसी आदमी से नहीं बल्कि एक महाराक्षस से है। मेरे हाथों मरने के लिए तैयार हो जाओ।"

इतना कहकर हातिमताई ने आईने पर रखे हुए कपड़े को अचानक खींच लिया।

कपड़ा हटते ही हलूका को आईने में अपना ही प्रतिबिम्ब नज़र आया।

मगर वह उसे महाराक्षस समझ बैठा।

धुआँ और आग उगलते हुए अपने ही विशालकाय और डरावने रूप को देख हलूका के होश उड़ गए

और वह धड़ाम से ज़मीन पर गिर पड़ा। ज़मीन



काँच के सबसे बड़े कारीगर को बुलाकर यह कार्य उसे सौंप दिया।

कारीगर ने कुछ ही समय में आईना तैयार भी कर दिया।

हातिमताई के कहने पर आईना गाँव की सीमा के पास उस जगह पहुँचाया गया,

जहाँ से होकर वह राक्षस गाँव में आया-जाया करता था।

उसके बाद एक बड़े से कपड़े से ढककर आईने को अच्छी तरह से खड़ा कर दिया गया।

और तब हातिमताई आईने के पीछे खड़े होकर हलूका के आने का इंतज़ार करने लगे।

थोड़ी देर के बाद ही अपने बड़े और डरावने मुँह से आग और धुआँ उगलता हुआ हलूका वहाँ आ धमका।

आईने के पीछे छिपे हातिमताई भारी आवाज में बोले, "कौन हो, वहीं रुक जाओ।

आज तुम्हारा सामना किसी आदमी से नहीं बल्कि एक महाराक्षस से है।

मेरे हाथों मरने के लिए तैयार हो जाओ।

" इतना कहकर हातिमताई ने आईने पर रखे हुए कपड़े को अचानक खींच लिया।

कपड़ा हटते ही हलूका को आईने में अपना ही प्रतिबिम्ब नज़र आया।

मगर वह उसे महाराक्षस समझ बैठा।

धुआँ और आग उगलते हुए अपने ही विशालकाय और डरावने रूप को देख हलूका के होश

उड़ गए और वह धड़ाम से ज़मीन पर गिर पड़ा। ज़मीन



भोजन के बर्तन भी आ गए। फिर सबने खाना शुरू किया।

सबकी थाली मज़ेदार व्यंजनों से भरी थीं।

मगर उन्हीं थालों में से एक थाल खून और कीड़ों से भरी हुई थी।

वह थाल जिसके हाथ में थी, वह आदमी भी सबसे अलग और एकदम बदसूरत दिखता था।

कीड़े खाने और खून पीने के बाद वह आदमी बोला, "ओह!

काश मैं वैसा कर पाता तो यह रात मेरे लिए मददगार साबित होती ।" " आप कौन हैं और

यह सुनकर हातिमताई उस व्यक्ति के पास गए और पूछा, खुद को ऐसी सजा देने के लिए क्यों मजबूर हैं?"

वह आदमी बोला, “पिछले जन्म में मैं चीन का एक अमीर सौदागर था ।

मेरे देश के सभी लोग अपनी कमाई का कुछ हिस्सा दान में दिया करते थे।

मगर मैंने कभी भी किसी को कोई दान न दिया।

कभी किसी गरीब - दुखिया को एक पैसे से भी मदद न की और शायद मुझे उसी संगीन अपराध की सज़ा मिली है।

मेरी सारी दौलत मेरे ही महल के भीतर मिट्टी में गाड़ दी गई।

काश! तब मैंने भी अपनी कमाई को दान में लगाया होता,

तो अन्य लोगों की तरह मुझे भी कब्रगाह में आज अच्छे-अच्छे भोजन नसीब होते।

तब शायद हर जुम्मे की आधी रात को कब्र से



निकलने के बाद मेरे मुँह से ये लफ्ज भी न निकलते।”

यह सब सुनकर हातिमताई बोले, “अब आपको जल्दी ही अपने दुखों से छुटकारा मिल जाएगा।

मैं वादा करता हूँ कि आपके देश जाकर मैं आपकी समस्या का कुछ न कुछ हल ज़रूर ढूँढ़ लाऊँगा।"

सुबह होते ही हातिमताई ने चीन की यात्रा शुरू कर दी।

कुछ दूर जाने पर अचानक उन्हें एक आदमी की चीख सुनाई पड़ी।

चीख सुनकर वह इधर उधर देखने लगे।

तभी अचानक उनकी नज़र एक विशालकाय साँप पर पड़ी, जो एक आदमी को कुएँ में खींचकर लेकर चला गया।

यह देखकर हातिमताई से रहा न गया और वह झटपट कुएँ में कूद पड़े।

मगर कुएँ के निचले तल पर पहुँचते ही वह हैरान रह गए।

वहाँ एक बड़ा और खूबसूरत-सा बगीचा था। तभी अचानक



उनकी नज़र एक तरफ बड़ा-सा मुँह खोले हुए उसी साँप पर पड़ी, जिसने कुएँ में

से निकलकर उस आदमी को पकड़ा था।

हातिमताई उसके मुँह से होते हुए सीधे उसके पेट में घुस गए।

तभी उन्हें एक आवाज़ सुनाई पड़ी, "हातिमताई !

तुम्हारा हाथ जिस चीज़ को स्पर्श करे, उसे तोड़ डालो।

तभी तुम इस अँधेरी जगह से बाहर आ सकोगे।"

हातिमताई ने ऐसा ही किया। उन्होंने उस चीज़ को चकनाचूर कर दिया जो उनके हाथ के सामने आई।

मगर ऐसा करते ही उनके आस-पास की पूरी दुनिया ही बदल गई।

अब वह ढेर सारे लोगों के बीच खड़े थे ।

सभी लोग हातिमताई से बोल रहे थे, “हातिमताई! आपने हमें नया जीवन दिया है।

वरना उस विशालकाय दुष्ट साँप के पेट में जाने के बाद हम सब हड्डियों का बस ढाँचा ही रह गए थे ।

आपने अपने हाथों से जादुई शक्तियों वाली डिबिया को चकनाचूर कर हम लाचार लोगों को अदृश्य कैद से हमेशा

के लिए मुक्ति दिला दी।हमारे घर वाले भी हमें पाकर बहुत खुश होंगे।"

उसके बाद हातिमताई आगे बढ़ चले। थोड़ी दूर जाने पर वह एक बड़े-से द्वार के पास पहुँच गए।

मगर उन्होंने जैसे ही उस द्वार से अंदर जाना चाहा उन्हें द्वारपालों ने पकड़ लिया और वह वहाँ के

बादशाह के सामने लाए गए।

उस शानदार और अद्भुत महल की शोभा देखते ही बनती थी।

हातिमताई ने बादशाह से पूछा,



आलमपनाह ! मैं समझ नहीं सका कि मुझे इस तरह पकड़कर

आपके पास क्यूँ लाया गया है?"

बादशाह बोले, "यह तो यहाँ का पुराना दस्तूर है कि जो भी अजनबी हमारी सरहद के अंदर आना चाहेगा

उसे यहाँ की शहज़ादी के सवालों के ठीक-ठीक जवाब देने होंगे, वरना उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा।”

उसके बाद हातिमताई को शहज़ादी के कमरे में लाया गया।

शहज़ादी ने पूछा,

“ सबसे मीठा फल क्या है?"

वह बोले,“ पुत्र सबसे मीठा फल है।"

शहजादी ने पूछा,‘“ क्या दैत्य सब कुछ खत्म कर देता है?"

वह बोले, “नहीं, मौत कुछ बाकी नहीं छोड़ती।”

इससे पहले कि शहज़ादी कुछ बोलती, उसका सिर चकराने लगा और वह बेहोश हो गई।

तभी अचानक एक ज़हरीला साँप हातिमताई पर कूद पड़ा।

उन्होंने झट से उसकी गर्दन पकड़ी और उसे शीशे के एक बर्तन में बंद कर दिया।

बर्तन के अंदर साँप के बंद होते ही शहज़ादी बिल्कुल स्वस्थ हो गई।

बात यह थी कि वह साँप, एक जिन्न था, जिसने कई सालों से राजकुमारी को पकड़ रखा था।

यह सब देखकर महल की नौकरानी दौड़कर बादशाह के पास गई और बोली,

'आलमपनाह ! हातिमताई ने शहज़ादी को जिन्न से छुटकारा दिला दिया।" यह



सुनकर बादशाह की खुशी का ठिकाना न रहा।

उन्होंने घोषणा की, "मेरी बेटी की शादी हातिमताई के साथ होगी।"

फिर क्या था, राजमहल में शहनाइयाँ गूँज उठीं और हातिमताई एवं शहज़ादी

शादी के बंधन में बंध गए।

अपनी बेगम के साथ कुछ दिन बिताने के बाद हातिमताई ने उससे इजाज़त लेकर फिर से

अपना सफर शुरू किया।

चलते- चलते कुछ दिनों के बाद वह चीन जा पहुँचे।

उनके कहने पर वहाँ के लोगों ने उन्हें उस सौदागर की हवेली के पास पहुँचा दिया।

पूरी हवेली धूल और गंदगी से भरी हुई थी।

हातिमताई ने हवेली के अंदर जाकर गड्ढा खोदना शुरू किया।

थोड़ी देर बाद ही उन्हें ज़मीन के अंदर सोने-चाँदी, हीरे-जवाहरात से भरी हुई कुछ बड़ी-बड़ी संदूकें मिलीं।

उस पूरी ज़मीन को चार बराबर भागों में बाँटने के बाद उन्होंने उसका एक हिस्सा सौदागर के इकलौते बेटे को सौंप दिया।

उसके बाद बचे तीन हिस्सों को वहाँ के गरीब लोगों में बाँट दिया।

इस प्रकार हवेली के अंदर दबी सौदागर की पूरी सम्पत्ति का निपटारा करने के बाद हातिमताई ने फिर से उसी कब्रगाह की मुश्किल

और थका देने वाली यात्रा शुरू की जहाँ से चलकर वह यहाँ पहुँचे थे।

रास्ते में चलते-चलते वह सोच रहे थे, 'कहीं ऐसा न हो कि इस जुम्मे

की रात बीतने के बाद मैं कब्रगाह में पहुँच



पाऊँ।' मगर उनकी किस्मत अच्छी थी।

वह ठीक जुम्मे की शाम को ही वहाँ पहुँच गए।

आधी रात होते ही सफेद दाढ़ी वाले अन्य आदमियों के साथ-साथ सौदागर भी

अपनी कब्र से बाहर निकला।

मगर आज वह भी अन्य लोगों की तरह रेशमी लिबास पहने हुए था।

वह साफ-सुथरा था और आज उसका चेहरा भी चमचमा रहा था।

आज उसकी थाल भी स्वादिष्ट व्यंजनों से भरी हुई थी।

हातिमताई यह सब देखकर बहुत खुश थे।

सौदागर ने खुदा को याद किया और कहा, “परवरदिगार! आज मुझे भी हर खुशी नसीब हो गई है।

मगर मैं हातिमताई का शुक्रगुज़ार हूँ क्योंकि उन्होंने ही मुझे मेरे दुखों से छुटकारा दिलाया है ।

आप उन पर अपनी रहमत बनाए रखना।"

इस प्रकार सौदागर को गम से छुटकारा दिलवाने के बाद हातिमताई रात को ही वहाँ से चल पड़े।

सुबह होने के बाद उन्हें राह में एक बूढ़ी औरत मिली।

वह दर्द के मारे कराह रही थी।

हातिमताई जैसे ही उस औरत के पास पहुँचे कि कुछ लुटेरों ने उन पर हमला कर दिया और वह बेहोश हो गए।

लुटेरों ने उनकी सभी चीज़ें और कीमती तोहफे लूटकर उन्हें एक कुएँ में फेंक दिया।

मगर मणि उनके हाथ न लग सकी।

दरअसल वह बूढ़ी औरत ही उन लुटेरों की माँ थी और उसने बीमार होने का नाटक किया था,

ताकि जो भी उस राह से गुज़रे वह उसके पास



आए और उसके सातों बेटे मिलकर आसानी से उसे लूट सकें ।

थोड़ी देर के बाद होश आने पर हातिमताई का बदन दर्द से फटा जा रहा था।

उनके बदन पर जहाँ-तहाँ ढेर सारे ज़ख्म भी थे।

उन्होंने मणि को निकालकर बारी-बारी से सभी ज़ख्मों पर रगड़ा ।

जादुई मणि के कारण कुछ ही देर में वे पूरी तरह स्वस्थ हो गए।

मगर काफी थक जाने के कारण उन्होंने उस कुएँ में ही थोड़ी देर आराम करने की बात सोची।

आँख लगते ही उन्होंने एक आवाज़ सुनी, “हातिमताई !

इस कुएँ की दीवार में एक बड़ा-सा खज़ाना पड़ा है।

तुम उसे खोज निकालो।”

यह सुनकर वह खज़ाने को ढूँढ़ने लगे। आखिरकार, ढूँढ़ते-ढूँढ़ते उन्हें वह खज़ाना मिल ही गया।

बेशुमार सोने-चाँदी और हीरे-जवाहरात ।

तभी पानी निकालने के लिए कोई आदमी कुएँ के पास आया।

हातिमताई ने आवाज़ लगाई, 'भाई! कुएँ से निकलने में मेरी मदद करो।"

इस प्रकार उस आदमी की मदद से हातिमताई उस गहरे कुएँ से बाहर निकल आए।

कुएँ से बाहर निकलकर उन्होंने सोचा, 'वह बूढ़ी औरत और वे सात आदमी बुरे इंसान तो नहीं लगते।

शायद उन्हें धन की ज़रूरत थी इसलिए वे गलत राह की ओर चल पड़े हैं।

खैर, मैं इस खज़ाने में से उन्हें कुछ धन दे दूँगा ।



मुझे यकीन है कि तब वे इस धंधे को छोड़कर अच्छी

जिंदगी बसर करेंगे।'

यही सोचकर वह उनकी

तलाश करने लगे ।

आखिरकार उन्होंने बूढ़ी औरत और उसके सात बेटों को खोज ही लिया। उन्होंने उन्हें खजाने का एक बड़ा

हिस्सा भी दिया। यह देख

10 उनकी आँखे भर आईं। सबने

कहा, “अब हमारी आँखें

खुल चुकी हैं । अब से हम भी ईमानदारी और सच्चाई के साथ ज़िंदगी गुज़ारेंगे।”

उसके बाद हातिमताई वहाँ से आगे बढ़ चले।

थोड़ी दूर जाने पर राह में उन्हें एक कुत्ता मिला।

वह उसके पास गए और बड़े प्यार से अपने हाथ उसके सिर पर फेरने लगे।

तभी अचानक उनकी हथेली किसी ठंडी और सख्त चीज़ से जा टकराई।

कुत्ते के सिर में एक बड़ी-सी कील चुभी हुई थी।

उन्हें कुत्ते पर दया आने लगी और उन्होंने फौरन ही कील को बाहर निकाला।

मगर कील निकलते ही हातिमताई हैरान रह गए, क्योंकि कुत्ते की जगह अब वहाँ मुस्कराता हुआ एक खूबसूरत-सा नौजवान खड़ा था।

नौजवान बोला, “आपने मेरे माथे से कील निकालकर मुझपर बड़ा एहसान किया है।

मैं एक सौदागर का लड़का था।

मगर मेरी पत्नी ने मेरे नौकर को अपने साथ मिलाकर मुझपर बड़ा जुल्म किया और

जादू-टोना करके मेरे माथे पर यह कील ठोकवा दी थी जिसके कारण मैं उसी समय कुत्ता बन गया।

कील के निकलते ही मुझपर उसके जादू का असर खत्म हो गया और मैं फिर से अपने पुराने रूप में लौट आया। "



हातिमताई ने कहा, ‘“सचमुच तुम्हारे साथ बड़ा जुल्म हुआ है।

पर अब तुम्हें डरने की कोई ज़रूरत नहीं।

बस मुझे अपने साथ अपनी हवेली ले चलो।'

फिर वह उस नौजवान के साथ-साथ उसकी हवेली जा पहुँचे।

वहाँ पहुँचकर सबसे पहले उन्होंने अपनी तलवार से उस दगाबाज़ नौकर की गर्दन उड़ा दी।

उसके बाद उन्होंने झट से उस नौजवान की पत्नी के माथे में जादू-टोने वाली कील घुसेड़ दी।

बस अगले ही क्षण वह औरत कुतिया बन गई।

इस प्रकार हातिमताई ने उस नौजवान को उसकी ज़ालिम बीबी के ज़ुल्म से छुटकारा दिला दिया ।

उसके बाद उन्होंने सीधे हरीस की बेटी के पास जाकर उसके दूसरे सवाल का जवाब दिया।

जवाब देकर वह उसके अंतिम सवाल का जवाब ढूँढ़ने के लिए फिर से शहर के पास वाली गुफा की ओर चल पड़े।

इस बार भी दैत्यराज ने उनका खूब आदर-सत्कार किया।

अपना हाल-चाल बताने के बाद हातिमताई ने कहा,“ अब मुझे साँप के पेट में से मणि निकालकर लानी है। "

दैत्यराज ने अपने कुछ दैत्यों को बुलाकर कहा, "जाओ, इन्हें पास वाले पहाड़ के पास पहुँचा आओ।"



इस प्रकार हातिमताई उस रहस्यमय पहाड़ के नीचे पहुँच गए।

थोड़ी देर बाद ही परीलोक के कुछ नौजवानों ने उन्हें उठाकार आग में फेंक दिया।

मगर साफे में रखे हुए जादुई मणि के कारण वे आग में से एकदम सही-सलामत बाहर निकल आए।

यह देखकर उन नौजवानों ने उन्हें नदी की तेज़ धारा में डाल दिया।

नदी की धार में गिरते ही एक विशालकाय मगरमच्छ ने उन्हें धर दबोचा और अगले ही क्षण वह उसके पेट में जा पहुँचे।

मगर उन्हें निगलते ही मगरमच्छ के पेट में हलचल मच गई और वह दर्द से बेचैन हो उठा।

फिर कुछ ही मिनटों के बाद मगरमच्छ ने उन्हें अपने मुँह से बाहर फेंक दिया।

मगरमच्छ के पेट से बाहर आने के बाद हातिमताई नदी किनारे तो पहुँच गए,



मगर बेहद कमज़ोर हो जाने के कारण वह वहीं पर बेहोश होकर गिर पड़े।

तभी हुस्ना नाम की एक खूबसूरत परी ने उन्हें देखा और उठाकर अपने साथ परीलोक ले आई।

फिर उसने कुछ खास किस्म की जड़ी-बूटी सुलगाई।

खुशबूदार धुएँ के निकलते ही हातिमताई की बेहोशी दूर हो गई।

हुस्ना के पूछने पर हातिमताई ने उसे अपने बारे में सब कुछ बताया।

साथ ही साथ उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें साँप के पेट में से मणि प्राप्त करनी है ।

उनकी बातें सुनकर हुस्ना बोली, “हातिमताई! तुम्हें जिस मणि की तलाश है, वह अब साँप के पेट में नहीं,

बल्कि यहाँ के बादशाह मेहरू के पास है ।

उसे पाने के लिए तुम्हें उसी के पास जाना होगा।"

बादशाह मेहरू को इस बात की जैसे ही खबर मिली कि उसके राज्य में एक परदेसी घुस आया है

और वह उसकी कीमती मणि लेना चाहता है तो वह आग बबूला हो गया।

उसने अपने सैनिकों को आज्ञा दी, “जाओ, जाकर फौरन उसे

"

पकड़ लाओ। आज्ञा पाते ही सैनिक हातिमताई की तलाश में चल पड़े और जल्दी ही हातिमताई बादशाह के

दरबार में लाए गए। बादशाह ने पूछा, “क्या यह सच है कि तुम मुझसे मेरी मणि हड़पना चाहते हो?"



हातिमताई ने बादशाह को मणि से जुड़ी सारी कहानी कह सुनाई।

सारी बात सुनकर बादशाह ने कहा, "मेरा एक लड़का है और उसे मैं जान से भी ज़्यादा चाहता हूँ।

मगर कुछ महीने पहले किसी बीमारी के कारण उसकी आँखों की रोशनी चली गई।

तब से उसकी आँखों में काफी दर्द भी रहता है।

अगर तुम मेरे बेटे की आँखें ठीक कर दो तो मैं तुम्हें वह मणि ज़रूर दे दूँगा ।'

हातिमताई ने शहज़ादे को देखा।

फिर अपने जादुई मणि को निकालकर उसकी आँखों के ऊपर रगड़ा।

चंद मिनटों में शहज़ादे को दर्द से राहत मिल गई।

उसके बाद हातिमताई बादशाह से बोले, "यह तभी देख सकेंगे,

जब अँधेरे-देश में पाए जाने वाले प्रकाश-वृक्ष की पत्तियों का रस लाकर इनकी आँखों में डाला जाएगा।"

बादशाह की आज्ञा पाते ही उनके कुछ लोग अँधेरे-देश की ओर चल पड़े।

मगर वहाँ पहुँचना उनके वश की बात न थी। क्योंकि वहाँ



पहुँचना खतरों से खाली न था।

रास्ते में कई अत्याचारी दैत्य भी मिला करते थे।

यह सब देख हुस्ना ने उनकी मदद की और उन खतरनाक दैत्यों का सामना करते हुए वह खुद ही वहाँ जा पहुँची।

फिर वह पूरी हिफाज़त के साथ रोशनी देने वाले पेड़ की पत्तियों का रस लेकर बादशाह के दरबार में गई।

हातिमताई ने रस की कुछ बूँदें शहज़ादे की आँखों में टपकाईं।

उस जादुई रस के पड़ते ही शहज़ादे की दुनिया फिर से जगमगा उठी।

यह देखकर बादशाह बहुत खुश हुए।

उन्होंने हातिमताई की खूब तारीफ की।

साथ ही साथ उन्हें वह बेशकीमती मणि भी दे दी, जिसकी उन्हें सख्त ज़रूरत थी।

मणि लेकर हातिमताई फौरन ही हरीस के शहर की ओर चल पड़े।

वहाँ पहुँचने के बाद उसकी बेटी को मणि देकर उन्होंने उसकी तीनों शर्तें पूरी कर दी।

इसके कुछ ही दिनों के बाद हवेली में शहनाइयाँ गूँज उठीं।

हातिमताई उस नौजवान सौदागर को हरीस की बेटी के दूल्हे के रूप में देखकर काफी खुश हुए।

फिर अगली ही सुबह वह अपने नये सफर पर चल पड़े।

महीने भर चलते रहने के बाद वह नदी किनारे स्थित एक आलीशान महल के पास जा पहुँचे।

महल की बाहरी दीवार पर काफी बड़े-बड़े और सुंदर उभरे हुए अक्षरों में लिखा था,

'नेकी कर दरिया में डाल।'

फिर क्या था, हातिमताई सीधे महल के अंदर चले गए।



अंदर एक बड़े-से कमरे में एक सफेद दाढ़ी वाला बुजुर्ग व्यक्ति सोने के सिंहासन

पर बैठ कर आराम फरमा रहा था।

उसका इशारा पाते ही वह उसके पास जा बैठे।

खूब स्वादिष्ट भोजन कराने के बाद उस बूढ़े आदमी ने उनसे वहाँ आने का कारण पूछा।

हातिमताई बोले, "हुजूर! मैं जानना चाहता हूँ कि ‘नेकी कर दरिया में डाल' का क्या रहस्य है?"

बूढ़ा आदमी बोला, “ठीक है, पहले मैं तुम्हें इससे जुड़ी सारी कहानी सुनाता हूँ।

मैं पिछले जन्म में एक शातिर चोर था।

मगर उम्रभर लूटपाट करते रहने के बाद भी मैंने एक नेक काम करना कभी नहीं छोड़ा।

मैं हर रोज़ दो रोटियों को टुकड़े- टुकड़े करके इसी दरिया में डाल दिया करता था।

मरने के समय मेरा वही नेक काम मेरे काम आया।

जब एक जानलेवा बीमारी ने मुझे धर दबोचा तब मेरी मौत का पैगाम लेकर दो शैतान मेरे पास आए।

उन्होंने मुझे घसीटकर दोजख के दरवाज़े के पास पहुँचा दिया।

तभी अचानक दो फरिश्तों ने आकर मुझे उनसे छुटकारा दिलाया और कहा,“तुम दोजख नहीं जन्नत के हकदार हो।"

इतना कहकर उन्होंने मुझे जन्नत में पहुँचा दिया। फिर मुझ पर खुश होकर जन्नत के



एक फरिश्ते ने सौ साल और जीने के लिए मुझे फिर से धरती पर भेज दिया

और अगले ही क्षण मैंने खुद को यहाँ बिस्तर पर पड़ा पाया।

तभी मैंने महसूस किया कि मेरे द्वारा दरिया में फेंकी गई दो रोटियाँ ही मेरे लिए दो फरिश्ते बनकर आई थीं।

इस नई ज़िंदगी को पाकर भी मैंने दरिया में दो रोटियाँ डालना कभी नहीं छोड़ा।

इस नेक काम के बदले मुझे हर रोज़ इस दरिया में से दो सौ अशर्फियाँ प्राप्त होती हैं।

जो मैं गरीब-दुखियों में बाँट देता हूँ।

उसके बाद मुझे उन अशर्फियों के बारे में कुछ भी याद नहीं रहता।

मेरे दिल से पूछो तो वह हमेशा यही कहेगा कि हमें फल की कामना छोड़कर हमेशा

नेक काम करते रहना चाहिए और नेकी कर दरिया में डाल लिखे जाने का मतलब भी यही है।"

इस प्रकार इस पहेली का हल ढूँढकर वह हुस्न बानो के शहर की ओर बढ़ चले।

थोड़ी दूर आगे जाने पर उन्होंने क्या देखा कि एक सुनहरे साँप को एक



विशालकाय काले अजगर ने बाँध रखा है और उसे निगल जाना चाहता है।

यह देख हातिमताई ने झट से अपनी तलवार निकाली और पलभर में अजगर का सिर उसके धड़ से अलग कर दिया।

अगले ही क्षण सुनहरे साँप ने एक खूबसूरत नौजवान का रूप लेकर कहा,

'आपने मेरी जान बचाकर मुझ पर बड़ा ही एहसान किया है,

वरना आज मैं अपने ही दास के हाथों मारा जाता।

मैं जिन्नों के बादशाह का बेटा हूँ।

मुझे बड़ी खुशी होगी अगर आप मेरे साथ मेरे महल को चलें और मुझे मेहमाननवाज़ी का मौका दें।"

महल में पहुँचने पर जिन्नों के बादशाह ने हातिमताई को गले लगाया और कहा, 'आपने शहज़ादे की जान बचाई है।

इसके लिए मैं आपका शुक्रगुज़ार हूँ।

आज ये आप मेरे खास मेहमान हैं।"

बादशाह ने उन्हें ढेर सारे तोहफे भी दिए।

इस प्रकार कुछ दिन वहाँ ठहरने के बाद वे फिर से हुस्न बानो के शहर पहुँचे और

उसका दूसरी पहेली का हल सुनाया।

जवाब से संतुष्ट होने के बाद हुस्न बानों ने कहा, "जाइए, अब आप मेरी तीसरी

पहेली-बुरा का नतीजा बुरा ही होता है-के रहस्यों पर से पर्दा हटाइए।

इसके लिए आपको जंगल में जाना पड़ेगा।"