Cinderella In Hindi- Cinderella Pari Katha

Hansel and Gretel Kahani Hindi - Hansel and Gretel Story In Hindi

हँसेल और ग्रेटल की कहानी - बच्चों के लिए परी कथा



हँसेल और ग्रेटल - Hansel and Gretel

एक गरीब लकड़हारा जंगल में एक छोटी झोंपड़ी में अपने दो बच्चों के साथ रहता था।

उसके लड़के का नाम हंसल और लड़की का नाम ग्रेटल था।

लकड़हारे की पहली पत्नी की मौत हो चुकी थी और उसने दूसरी शादी कर ली थी।

उसकी दूसरी पत्नी का स्वभाव बिलकुल अच्छा नहीं था।

वह हंसल-ग्रेटल के साथ बुरा बर्ताव करती थी और लकड़हारे से बात-बात पर लड़ती-झगड़ती रहती थी।

एक दिन वह गुस्से में लकड़हारे से बोली, "तुम्हें लकड़ियाँ काटकर मिलता ही कितना है!

और तुम्हारे बच्चों को पेटभर खाने को चाहिए।

कहाँ से लाऊँ मैं?

इतनी कम आमदनी में चार आदमियों का गुजारा होना मुश्किल है।

हमें तुम्हारे दोनों बच्चों को अपने रास्ते से हटाना होगा।

वे नहीं होंगे तो हमें पेटभर खाना मिल सकेगा।”

लकड़हारे को उसकी बातें सुनकर बड़ा दुख हुआ, पर वह कुछ नहीं बोला।

उसकी पत्नी आगे बोली, “तुम हंसल और ग्रेटल को घर से दूर जंगल में छोड़

आओ। इतनी दूर कि वे वापस न आ सकें।"

संयोगवश हंसल और

ग्रेटल ने उसकी बातें सुन लीं।

सौतेली माँ की बात सुनकर ग्रेटल डर गई।

हंसल ने उसे धैर्य बँधाते

हुए कहा, “ ग्रेटल! तुम डरो मत।

यदि वे लोग हमें जंगल में छोड़ देंगे तो हम घर का रास्ता ढूँढ लेंगे।”

हंसल ने रात को सोने से पहले कुछ सफेद छोटे

कंकड़ जमा करके अपनी

जेब में रख लिए।



उस रात लकड़हारे की पत्नी पूरी रात उस पर बच्चों को

जंगल में छोड़ आने के लिए दवाब डालती रही।

उसने लकड़हारे को मजबूर कर दिया कि वह अगली सुबह बच्चों को जंगल में छोड़ आए।

अगले दिन लकड़हारा हंसल-ग्रेटल को अपने साथ लेकर जंगल की ओर चल पड़ा।

हंसल रास्ते में कंकड़ फेंकता गया, ताकि उसे रास्ता याद रह सके।

जंगल में काफी दूर आने के बाद लकड़हारे ने हंसल-ग्रेटल से कहा, "मैं अभी थोड़ी देर में लकड़ियाँ काटकर आता हूँ।

तुम दोनों यहीं पर ठहरो।" और वह उन्हें छोड़कर चला गया।

हंसल-ग्रेटल दोनों लकड़हारे की प्रतीक्षा करने लगे कि शायद वह आ जाए लेकिन शाम होने तक भी लकड़हारा नहीं लौटा।

हल्का अंधेरा भी घिर आया था।

ग्रेटल डर के मारे रोने लगी।

हंसल को भी डर लग रहा था, लेकिन उसने अपने डर को छुपाते हुए कहा,“ग्रेटल !

तुम रो मत! मैं हूँ न, मैं तुम्हें घर लेकर जाऊँगा।”

“लेकिन कैसे?

तुम्हें भी तो घर का रास्ता मालूम नहीं है।''

ग्रेटल ने सुबकते हुए

कहा।

‘“मैंने रास्ते में सफेद कंकड़ डाल दिए हैं, ताकि हम उनके सहारे घर तक पहुँच सकें।''

हंसल ने उसे बताया।

सौभाग्यवश उस दिन चाँदनी रात थी और चाँद की रौशनी में सफेद कंकड़ स्पष्ट चमक रहे थे।

हंसल ने ग्रेटल का हाथ पकड़ा और घर की ओर चल पड़ा।

कंकड़ों के सहारे वे दोनों घर पहुँच गए।



घर का दरवाजा बंद था।

लेकिन एक छोटी खिड़की खुली थी।

इसलिए वे दोनों अपने माता-पिता को जगाए बिना खिड़की के रास्ते घर में घुस गए और अपने-अपने बिस्तर पर जाकर सो गए।

सुबह जब सौतेली माँ ने हंसल-ग्रेटल को घर में वापस पाया तो उसके गुस्से का कोई ओर-छोर न रहा ।

उसने गुस्से में बच्चों को बुरा-भला कहा और उन्हें कमरे में बंद कर दिया।

फिर वह लकड़हारे के पास जाकर बोली,“तुम किसी काम के

नहीं हो!

मैंने तुमसे हंसल और ग्रेटल को जंगल में छोड़ आने को कहा था,

पर तुमसे ये काम भी ठीक से नहीं हुआ।

वे दोनों घर लौट आए हैं।"

लकड़हारा हंसल और ग्रेटल के घर आने की खबर सुनकर खुश हुआ पर अपनी दुष्ट पत्नी के सामने कुछ नहीं बोला।

सौतेली माँ ने हंसल और ग्रेटल को पूरा दिन कमरे में बंद रखा और उन्हें खाने-पीने के लिए कुछ नहीं दिया।

रात को उनके सामने सूखी रोटी फेंक दी।

ग्रेटल बहुत भूखी थी, इसलिए वह अपनी रोटी झट से खा गई, लेकिन हंसल ने अपनी रोटी संभालकर रख ली।

अगले दिन लकड़हारा उन्हें फिर से जंगल में छोड़ आया।

हंसल ने घर का रास्ता पहचानने के लिए रास्ते में रोटी के छोटे-छोटे टुकड़े बिखेर दिए थे,

लेकिन बेचारा बच्चा भूल गया था कि पक्षी उन्हें खा जाएँगे।

इसलिए जब ग्रेटल के साथ घर की ओर चला तो वह घर का रास्ता नहीं ढूंढ पाया।

ग्रेटल रोने लगी। वह बोली, “भैया! मुझे डर लग रहा है।



मुझे भूख लगी है और ठंड भी लग रही है।

" हंसल बोला, “तुम डरो मत! चलो उस बड़े पेड़ के नीचे चलकर बैठते हैं।"

दोनों भाई-बहन ने डरते-डरते सारी रात उस पेड़ के नीचे काटी।

अगले दिन सुबह होने पर दोनों फिर से घर का रास्ता ढूँढने लगे।

लेकिन वे जंगल में पूरी

तरह भटक चुके थे।

जंगल में भटकते-भटकते अचानक उन दोनों की नजर एक झोंपड़ी पर पड़ी।

वे दोनों झोंपड़ी के पास गए।

हंसल हैरानी से बोला, "अरे !

यह झोंपड़ी तो चॉकलेट, आइसक्रीम, बिस्कुट आदि से बनी है।"

“हाँ भैया ! बहुत भूख लगी है।

चलो, चलकर कुछ खा लेते हैं।''

ग्रेटल बोली। दोनों ने झोंपड़ी से चॉकलेट और आइसक्रीम का एक-एक टुकड़ा निकाला और खाने लगे।

तभी झोंपड़ी का दरवाजा खुला।



वह बिस्कुट से बना हुआ था।

दरवाजे पर एक बूढ़ी भद्दी-सी महिला खड़ी थी।

उसे देखकर हंसल-ग्रेटल सहम गए।

बूढ़ी महिला बोली, “डरो मत, प्यारे बच्चो ! मैं जानती हूँ कि तुम अपने घर का रास्ता भटक गए हो,

पर तुम चिंता मत करो।

मैं तुम्हें तुम्हारे घर तक पहुँचाने में

तुम्हारी मदद करूँगी। पहले अंदर आकर कुछ खा-पी लो। "

हंसल-ग्रेटल उसकी बात सुनकर खुश हो गए और बुढ़िया के साथ झोंपड़ी के अंदर चले गए।

दरअसल वह बुढ़िया एक दुष्ट जादूगरनी थी और रास्ता भटके हुए लोगों को अपना शिकार बनाती थी।

जादूगरनी ने पहले उन्हें खिलाया- पिलाया और फिर बोली, “ऐ लड़की!

तुम आज से घर का सारा काम करोगी और इस लड़के को तो मैं खाऊँगी।

लेकिन लड़के तुम अभी बहुत दुबले-पतले हो।



पहले खा-पीकर मोटे हो जाओ, तब तेरी दावत उड़ाऊँगी।"

यह कहकर उसने हंसल को पिंजरे में कैद कर दिया और ग्रेटल को घर के काम में लगा दिया।

जादूगरनी रोज हंसल को अच्छा-अच्छा खाना खिलाती, ताकि वह मोटा हो जाए और वह उसे खा सके।

जादूगरनी रोज हंसल की अँगुली छूकर देखती कि वह कितना मोटा हुआ है।

जादूगरनी को कम दिखाई पड़ता था, इस बात का फायदा उठाकर ग्रेटल ने अपने भाई को मुर्गे की एक पतली हड्डी थमा दी।

अब जब कभी भी जादूगरनी हंसल को अपनी अँगुली दिखाने को कहती

तो वह मुर्गे की हड्डी आगे कर देता और जादूगरनी उसे छूकर गुस्से से भर उठती,

"ओहो ! इतना खाता है, पर मोटा नहीं होता ।

अब तो बर्दाश्त नहीं होता।”

एक दिन जादूगरनी का धैर्य जवाब दे गया।

उसने ग्रेटल से कहा, “आज मैं तुम्हारे भाई का गोश्त खाऊँगी।

जाओ, जल्दी से भट्टी गर्म करो।"

ग्रेटल रसोई में जाकर भट्टी में आग जला दी।

थोड़ी देर बाद जादूगरनी बोली, “जाओ, देखकर आओ कि भट्टी गर्म हुई या नहीं !”

ग्रेटल दौडी-दौड़ी रसोई में गई और थोड़ी देर में वापस आकर बोली,

"मुझे तो पता ही नहीं लग रहा कि भट्टी गर्म हुई है या नहीं।

आप खुद ही देख लीजिए। "



“यह लड़की भी किसी काम की नहीं है।

जरा-सा काम नहीं कर सकती।”

गुस्से में जादूगरनी रसोई में गई और भट्टी में झाँककर देखने लगी।

ग्रेटल भी उसके पीछे-पीछे रसोई में चली आई थी।

जब जादूगरनी झुककर भट्टी देखने लगी तो ग्रेटल ने उसे जोर से धक्का देकर भट्टी में गिरा दिया और भट्टी का ढक्कन बंद कर दिया।

जादूगरनी भट्टी में जलकर राख हो गई।

फिर ग्रेटल ने अपने भाई हंसल को पिंजरे से बाहर निकाला और उसे जादूगरनी के मरने का

समाचार सुनाया। हंसल ने ग्रेटल को गले से लगा लिया।

दोनों भाई बहन कुछ दिन तक वहीं पर रहे। फिर उन्होंने वापस घर जाने का निर्णय लिया।

उन्होंने एक बड़ी-सी टोकरी में खाने पीने का सामान रखा और जादूगरनी द्वारा छुपाए गए सोने के सिक्के एक संदूकची में डाले और घर की ओर चल पड़े।

इस बार किस्मत ने उनका साथ दिया और वे अपने घर का रास्ता ढूँढने में सफल रहे।

दो दिन का सफर तय करने के बाद वे अपने घर पहुँचे।

उन्होंने देखा कि उनके पिता उदास होकर घर के बाहर बैठे हुए हैं।



वे दौड़कर अपने पिता के पास गए।

लकड़हारा उन्हें गले से लगाते हुए बोला, “मेरे बच्चो ! मैं तुम्हें देखकर बहुत खुश हूँ।

अब तुम दोनों को यहाँ पर कोई परेशानी नहीं होगी। तुम्हारी सौतेली माँ की मृत्यु हो चुकी है।"

ग्रेटल बोली,‘“वादा करो कि आप हमें कभी जंगल में अकेले नहीं छोड़ेगे।" “हाँ, बेटी ! वादा, पक्का वादा।"

लकड़हारे ने ग्रेटल का माथा चूमते हुए कहा ।

“पिताजी ! अब हमें किसी बात का कष्ट नहीं होगा।

अब हम भरपेट खा सकेंगे और एक अच्छी जिंदगी बिता सकेंगे।

ये देखिए, सोने की मोहरें !" हंसल ने संदूकची दिखाते हुए कहा।

लकड़हारा बहुत खुश हुआ और उसने दोनों को गले से लगा लिया ।

अब वे सुख व आराम से रहने लगे।