Hatimtai Story In Hindi- Hatimtai Ki Kahani

Hatimtai Story In Hindi- Hatimtai Ki Kahani

हातिमताई की कहानी - हातिमताई कथा



हातिमताई

हातिमताई

बहुत समय पहले यमन देश में एक बड़े ही रहमदिल और दानी बादशाह राज करते थे।

उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली थी।

उन्हें अपनी जनता से बेहद प्यार था ।

बदले में जनता उन्हें खूब प्यार और आदर देती थी।

उनके साम्राज्य में किसी चीज़ की कोई कमी न थी।

ऐसे बादशाह को पाकर सल्तनत के सभी लोग अपने आप को खुशकिस्मत मानते थे।

मगर इतना सब कुछ होने के बावजूद बादशाह को एक कमी हमेशा खलती रहती थी

और वह कमी थी औलाद की।

उन्हें अपनी किसी भी बेगम से औलाद न थी।

उम्र बढ़ने के साथ-साथ उन्हें एक ही चिंता खाए जा रही थी,

'क्या मेरे ही नसीब में कुल का आखिरी चिराग बनना लिखा है।'

देश विदेश के वैद्य-हकीम भी जब कुछ न कर सके, तब वह बिल्कुल निराश हो गए।

वह अक्सर सोचते, 'अल्लाह ने मुझे क्या नहीं दिया, पर ज़िंदगी को रोशन करने वाला चिराग मैं कहाँ से लाऊँ ।'

फिर भी कोई दिन ऐसा न होता कि बादशाह और उनकी बेगमों ने बेटा माँगने के लिए खुदा के आगे झोली न फैलाई हो ।

आखिरकार, अल्लाह को उन पर रहम

आ ही गया।



एक दिन सुबह-सुबह बादशाह उठे ही थे कि उनकी सबसे प्रिय बेगम की एक सेविका ने आकर कहा,

"आलमपनाह ! बधाई हो! आप अब्बा बनने वाले हैं।'' ऐसी खबर पाकर भला बादशाह खुद को कैसे रोक पाते। उन्होंने उसे हीरे का हार देते हुए कहा, "इससे अच्छी खबर और क्या होगी?"

आखिर वह शुभ घड़ी भी आ ही गई, जिसका सबको वर्षों से इंतजार था ।

बेगम ने एक सुंदर-सलोने बेटे को जन्म दिया।

वर्षों की मुराद पूरी होने पर अल्लाह को शुक्रिया करने के बाद बादशाह ने ऐलान किया,

"आज धरती पर मुझ जैसा खुशनसीब कोई और नहीं।

महल के साथ-साथ पूरे शहर को हफ्ते भर के लिए सजा दिया जाए।

हर किसी को खुशियाँ मनाने की पूरी छूट होगी।"

खुशी के इस मौके पर बादशाह ने दिल खोलकर रुपये-पैसे और अन्य चीजें दान कीं।

मुल्क के कोने-कोने से आए किसी भी गरीब दुखिया की झोली खाली न रही।

एक सप्ताह बाद बादशाह के बुलावे पर पूरे साम्राज्य से बड़े-बड़े ज्योतिषी महल में आए।

बादशाह ने अपने मेहमानों की खातिरदारी में कोई कसर न छोड़ी।



उसके बाद बादशाह ने ज्योतिषियों से कहा,

“मुझे बताइए मेरा शहज़ादा अपने पुरखों का नाम कितना रोशन करेगा?"

यह सुनकर सभी विद्वान ज्योतिषियों ने नन्हें बालक के हाथों को गौर से देखना शुरू

किया और ग्रह-नक्षत्रों की गणना भी की।

फिर आपस में चर्चा करने के बाद उन्होंने कहा, ‘“जहाँपनाह! शहजादे की तकदीर तो कमाल की है।

यह बड़े होकर शोहरत की बुलंदियों को छुएँगे।

ज्ञान-विज्ञान और धन-दौलत के मामले में भी यह बेमिसाल होंगे।

यह आने वाले कल के ऐसे हीरे हैं कि जिससे पूरी दुनिया रोशन होगी।

ऐसा बालक तो सदियों बाद ही धरती पर आता है।"

बादशाह खुश होकर बोले, “बेशक अल्ला मियाँ मुझपर बड़े मेहरबान हैं।"

फिर उन्होंने सभी ज्योतिषियों को बेशकीमती रत्न-मोती दे देकर विदा किया।

उसके बाद उन्होंने यह भी ऐलान करवाया, "जिस रोज़ शहज़ादे का जन्म हुआ है,

उस रोज़ पैदा होने वाले सभी बच्चों की परवरिश शाही अंदाज़ से की जाएगी और उन्हें महल में ही रखा जाएगा।"

फिर क्या था, उस रोज़ जन्मे सभी छह हज़ार बालक शाही महल में लाए गए।

बादशाह ने पूरे जोश-खरोश से उनका स्वागत किया।



हर बालक पर एक-एक

उसके बाद बादशाह ने ज्योतिषियों से कहा, “मुझे बताइए मेरा शहज़ादा

अपने पुरखों का नाम कितना रोशन करेगा?"

यह सुनकर सभी विद्वान ज्योतिषियों ने नन्हें बालक के हाथों को गौर से देखना शुरू किया

और ग्रह-नक्षत्रों की गणना भी की।

फिर आपस में चर्चा करने के बाद उन्होंने कहा, ‘“जहाँपनाह!

शहजादे की तकदीर तो कमाल की है।

यह बड़े होकर शोहरत की बुलंदियों को छुएँगे।

ज्ञान-विज्ञान और धन-दौलत के मामले में भी यह बेमिसाल होंगे।

यह आने वाले कल के ऐसे हीरे हैं कि जिससे पूरी दुनिया रोशन होगी।

ऐसा बालक तो सदियों बाद ही धरती पर आता है।"

बादशाह खुश होकर बोले, “बेशक अल्ला मियाँ मुझपर बड़े मेहरबान हैं।"

फिर उन्होंने सभी ज्योतिषियों को बेशकीमती रत्न-मोती दे देकर विदा किया।

उसके बाद उन्होंने यह भी ऐलान करवाया, "जिस रोज़ शहज़ादे का जन्म हुआ है,

उस रोज़ पैदा होने वाले सभी बच्चों की परवरिश शाही अंदाज़ से की जाएगी और उन्हें महल में ही रखा जाएगा।"

फिर क्या था, उस रोज़ जन्मे सभी छह हज़ार बालक शाही महल में लाए गए।

बादशाह ने पूरे जोश-खरोश से उनका स्वागत किया।

हर बालक पर एक-एक



साथ महल में लाए। फिर वह शहज़ादे की तरफ इशारा करते हुए बोले, "यह बालक कल रात से ही भूखा है। बड़े-बड़े वैद्य-हकीम भी अब तक

इसकी बीमारी नहीं पकड़

सके।"

सारी बातें सुनने और बालक

को गौर से देखने के बाद पीर

बोले, " अरे वाह! धरती पर

इतना उदार व्यक्ति भला कौन हो सकेगा?

इसमें अभी से ही उदारता के गुण दिखने लगे हैं।

इस वक्त इसे अपने साथियों की चिंता सता रही है।

महल में रहने वाला एक-एक बालक का पेट जब तक नहीं भरेगा, तब तक यह दूध पीना कैसे शुरू करेगा?”

इतने छोटे से बालक के बारे में ऐसी बातें सुनकर बादशाह हैरान रह गए।

बादशाह की आज्ञा मिलते ही फौरन सभी बच्चों को दूध पिलाया जाने लगा।

सभी बच्चों के दूध पी लेने पर शहज़ादे ने भी दूध पीना शुरू कर दिया।

सभी लोग आँखें फाड़कर उसे देखते रह गए।

इस प्रकार महल की रौनक फिर से लौट आई।

साथ ही साथ देशवासियों ने भी मिलकर खूब खुशियाँ मनाईं।

सबने शहजादे की उदारता की तारीफ़ की और उसे खूब आशीर्वाद भी दिया।

इस प्रकार सबका प्यार और आशीर्वाद पाते हुए हातिमताई धीरे-धीरे बड़े होते गए।

अब वह इतना खूबसूरत लगने लगे थे कि जो भी उन्हें देखता बस देखते ही रह जाता।

हातिमताई की उम्र अभी बस बारह साल की ही थी कि बादशाह अल्लाह को प्यारे हो गए।

यह खबर सुनते ही पूरे यमन में मातम छा गया।

अपने अब्बा को खोकर हातिमताई भी काफी दुखी हुए।



देशवासियों का ख्याल रखते।

चौदह साल की छोटी आयु में ही उन्हें सल्तनत का भार उठाना पड़ा।

थोड़ी उम्र बढ़ने पर वह लम्बे तगड़े नौजवान दिखने लगे।

वह भी अपने पिता की तरह ही न्यायप्रिय और दानी थे।

अब उनकी ख्याति आसपास के साम्राज्यों में भी फैलने लगी थी।

उन्हें हर समय महल में रहने वाले अपने छह हज़ार भाइयों की चिंता लगी रहती थी।

वह इस बात का हमेशा ख्याल रखते थे कि उनके सभी भाई किसी भी क्षेत्र में उनसे थोड़े भी कम न हों ।

हातिमताई गरीब और लाचार लोगों के मसीहा थे।

उन्होंने अपने द्वारपालों से कह रखा था, "मुल्क के किसी कोने से किसी भी समय अगर कोई मुझसे मिलने आ जाए,

तो उसे मुझसे जरूर मिलने देना।" उनका शाही खज़ाना जरूरतमंदों के लिए हमेशा खुला रहता था ।

इतना ही नहीं उन्हें पशु-पक्षियों से भी बहुत प्यार था।

शिकार करने का उनका अंदाज़ भी सबसे निराला था।

शिकार करते समय वह धनुष-बाण, तलवार आदि शस्त्रों का इस्तेमाल भूलकर भी नहीं करते थे।

वह अपने सेवकों को कहा करते थे, “कभी-कभी इन जंगली जानवरों को भी ठीक से भोजन नहीं मिल पाता।

ऐसा होने पर तुम इन्हें वैसी जगह पहुँचा देना, जहाँ भरपूर भोजन मिल सके।”



अन्य राजाओं की तरह वह भी जानवरों का पीछा कर उन्हें पकड़ते थे,

मगर बस यह देखने के लिए कि कहीं वे भूखे तो नहीं।

इसी प्रकार शिकार करते-करते एक दिन अचानक उनके सामने एक शेर आ पहुँचा।

शेर को सामने देख उनके घोड़े का बुरा हाल था।

सिपाहियों और सेवकों के भी प्राण सूख गए थे।

मगर हातिमताई ने शेर से कहा, “शेर राजा ! मैं जानता हूँ कि तुम यहाँ क्यों आए हो और यह भी

जानता हूँ कि हर किसी को अपना पेट भरने का पूरा अधिकार है।

इसलिए तुम मुझे और मेरे आदमियों को खाकर अपना पेट भर सकते हो।

मगर तुम मेरे घोड़े को न मारना। बस एक यही आरज़ू है मेरी। "

हातिमताई की बात सुनकर शेर ने सोचा, 'यह कोई साधारण इंसान नहीं हो सकता।

यह चाहता तो एक ही वार में अपनी तलवार से मेरी गर्दन उड़ाकर अपने साथ-साथ सबकी जान बचा लेता।

मगर इसे तो अपनी जान से भी ज्यादा हम जानवरों की जान प्यारी है।'

यही सोच वह जिधर से आया था उधर ही चला गया।

यह सब देख सभी सिपाही और सेवक हैरान रह गए।