Husn Bano Story In Hindi- Husn Bano Kahani

Husn Bano Story In Hindi- Husn Bano Kahani

हुस्न बानो की कहानी - हुस्न बानो कथा



हुस्न बानो

बहुत समय पहले खोरासन में एक बड़े ही दयालु और दानी बादशाह राज करते थे।

उनके देश में बरजख नामक एक सौदागर भी रहते थे।

व्यापार के क्षेत्र में उनकी सूझबूझ इतनी अच्छी थी कि खुद बादशाह भी उनकी तारीफ़ किए बिना नहीं रह पाते।

यही नहीं वह बादशाह के खास दोस्त भी थे।

एक बार बरजख ऐसे बीमार पडे कि उन्हें उठने-बैठने की भी ताकत न रही।

कुछ हफ्तों से बीमार रहने के कारण उन्हें ऐसा लगने लगा था कि अब जल्दी ही अल्लाह के घर से उन्हें बुलावा आने वाला है।

यही सोचकर उन्होंने अपने दोस्त के पास पैगाम भेजा,‘“आलमपनाह ! मुझे आपकी ज़रूरत है।”

पैगाम मिलते ही बादशाह अपने दोस्त से मिलने के लिए चल पड़े।

अपने दोस्त की हवेली में पहुँचकर वह सीधे उनके कमरे में गए।

फिर वह अपने दोस्त का हाथ थामते हुए बोले, “मित्र! आप ठीक तो हैं?

कहिए, मैं आपकी क्या सेवा करूँ?”

बरजख ने कहा, “आलमपनाह! मेरे दोस्त! मेरी ज़िंदगी की शाम नज़दीक आ गई है,

मगर मैं अपने दिल पर बोझ लिए दुनिया से रुखसत नहीं होना चाहता।"

बादशाह बोले,‘“यह दोस्त आपके काम कब आएगा, मुझे क्या करना है?"



बजरख बोले, "मेरी बेटी काफी छोटी थी, तभी

उसकी माँ ने दुनिया को अलविदा कह दिया।

यह सोचकर कि इसे अपनी माँ की कमी ज़्यादा न खले,

मैंने इसे बड़े लाड़-प्यार से पाला पोसा।

अब मुझे हर पल बस यही चिंता रहती है कि मेरे जाने के बाद इस नन्हीं-सी जान का क्या होगा?

मैं चाहता हूँ कि आप मेरी बच्ची हुस्न बानो को अपना लें।

फिर मैं भी सकून से मर सकूँगा और इसका भविष्य भी बन जाएगा।

मैं अपनी सारी धन-दौलत आपके जिम्मे कर देना चाहता हूँ ताकि उम्र बढ़ने के बाद समझदार होने पर

ही यह उसका उपयोग कर सके। आप वादा कीजिए कि मेरी आरज़ू पूरी करेंगे। "

बादशाह ने उनका हाथ थामकर कहा, “दोस्त !

मेरे रहते आपको चिंता करने की क्या ज़रूरत !

क्या हुस्न बानो मेरी बेटी नहीं?

आज से आपकी बेटी मेरे साथ मेरे महल में शहज़ादी बनकर रहेगी।"

बादशाह के मुख से ऐसी बात सुनने के बाद बरजख के मुख से अंतिम शब्द निकला,

‘“अल्लाह!” और वह खुदा को प्यारे हो गए।

बादशाह ने रोती हुई बच्ची के सिर पर हाथ रखा और उसे ढाढ़स बँधाया।



कुछ दिनों के अंदर ही बादशाह अपने दोस्त की ज़मीन-जायदाद के सारे

कागज़ात दुरुस्त करवाकर

हुस्न बानो को अपने साथ

राजमहल में ले आए। रेशमी

कपड़े, हीरे-जवाहरात के

आभूषणों को पहनने के बाद

हुस्न बानो एक खूबसूरत

शहज़ादी बन गई। उसकी

देख-रेख के लिए बुद्धिमान

और एक अनुभवी औरत को नियुक्त कर बादशाह बोले, “देखो,

हुस्न बानो को किसी तरह की कोई कमी न होने पाए, इस बात का ध्यान रखना।

अब तुम्हीं उसकी दोस्त भी हो और तुम्हीं माँ भी।"

इस प्रकार शाही महल में पलते-बढ़ते हुस्न बानो सोलह साल की हो गई।

बादशाह ने सोचा, ‘उम्र बढ़ने के साथ-साथ हुस्न बानो अब समझदार भी हो गई है।

क्यों न उसके हिस्से की दौलत में अपनी ओर से कुछ और मिलाकर उसे सौंप दूँ?'

और उन्होंने ऐसा ही किया। फिर अपने महल के पास ही उन्होंने उसके लिए एक छोटा-सा खूबसूरत महल बनवाया।

वह उस महल में शहजादी की तरह रहने लगी।

बादशाह ने उसे हर दूसरी सुविधा दे रखी थी।

सेवक, सेविका, द्वारपाल, सैनिक सभी नियुक्त किए गए थे।

सचमुच हुस्न बानो जितनी खूबसूरत थी, उतना ही खूबसूरत उसका महल भी था।

कुछ ही समय में उसकी गिनती सुंदर, बुद्धिमान और धनवान राजकुमारियों में होने लगी

और उसकी ख्याति पूरी दुनिया में फैल गई।

एक दिन वह अपने महल में अपनी उस बूढ़ी सेविका के साथ बैठी थी, जिसे



बादशाह ने उसके लिए खासतौर से नियुक्त कर रखा था।

तभी खिड़की के पास आने पर उसकी नज़र गली से गुजरते हुए एक भिखारी पर गई।

भिखारी को देख उसका दिल दया से भर आया और उसने सेविका से कहा,“अम्मा !

गरीब और मजबूर लोग भी तो इंसान ही हैं और एक इंसान ही इंसान के काम आता है।

मेरी सारी सम्पत्ति ऐसे-ऐसे गरीब-दुखियों की जिंदगी सुधारने के काम आ जाए,

इससे बढ़कर खुशी मेरे लिए भला और क्या हो सकती है?"

सेविका ने कहा,‘“बेटी ! सचमुच बहुत बड़ा दिल है तुम्हारा।

मगर अब तुम्हारा उन ज़िम्मेदारियों को निभाने का भी वक्त आ चला है,

जिन्हें पूरा करने के लिए ही एक औरत का जन्म होता है ।'

हुस्न बानो ने कहा,‘“अम्मा ! कहिए तो, कौन-सी ज़िम्मेदारी निभानी है मुझे?"

सेविका बोली, “बेटी! तुम सयानी हो गई हो।

अब वक्त आ चला है कि तुम अपना घर-बार बसा लो । "

अचानक शादी की बात सुनकर हुस्न बानो की नज़रें नीचे झुक गईं और वह शर्माती हुई बोली,‘“मैं क्या, आपकी सूझबूझ की तो बादशाह भी

तारीफ करते हैं। आपके प्यार और मेहनत की बदौलत ही तो आज मैं इतनी बड़ी हुई हूँ,

पर मुझे शादी के नाम से बड़ा डर लगता है।

मैं यह कैसे जान सकूँगी कि जिसके



साथ मुझे ज़िंदगी गुजारनी है, वह मुझे प्यार करेगा भी या नहीं?

मैं तो अपने जीवन की डोर बस उसी आदमी के साथ बाँधना चाहती हूँ जो मुझे दिल से प्यार करे। हाँ अम्मा,

मुझे

वैसा रिश्ता हरगिज़ पसंद नहीं

जो सिर्फ मेरी खूबसूरती और

सम्पत्ति से खिंचा चला आए।"

सेविका बोली,‘“बेटी ! तो तुम्हें

पाक दिलवाले किसी सच्चे साथी की तलाश है। फिर तो तुम्हें अपनी शादी के लिए कुछ शर्त रखनी चाहिए।

जो भी तुम्हारी शर्तों को पूरा करेगा वह तुम्हारे इम्तिहान में सफल होगा।

फिर तुम्हें अपने लायक ऐसा शौहर भी मिल जाएगा, जो हर कदम पर तुम्हारा साथ दे।"

यह सुनकर हुस्न बानो का चेहरा खिल उठा। वह बोली, “पर मुझे किस तरह की शर्तें रखनी चाहिए?"

सेविका बोली, “बेटी! शादी की चाह लेकर आए हुए लोगों के सामने तुम ये सात पहेलियाँ रखना''

1. एक बार देखा है, फिर देखने की चाह है,

2. नेकी कर दरिया में डाल,

3. बुरा का नतीजा बुरा ही होता है,

4. सच बोलना ही अच्छा है,

5. बोलने वाला पर्वत,

6. बत्तख़ के अंडे के आकार वाला मोती,

7. हम्माम बादगार्ड.



शर्त सुनकर हुस्न बानो बोली, “वाह! क्या खूब पहेलियाँ है पर अम्मा,

अब यह भी तो आप ही को बताना होगा कि मैं इन्हें सबके सामने रखूँगी कैसे?"

वह बोली, “बेटी! बेहतर तो यह होगा कि तुम अपने महल की दीवार पर ही सारी पहेलियाँ लिखवा दो।

साथ ही साथ यह भी लिखवा देना- जिसे भी मेरी शादी की सभी शर्तें मंजूर न हो वह महल के अंदर न आए।"

इस प्रकार, मन में शादी की आस लिए बहुत से लोग तो आए,

मगर उनमें से कोई भी इतना हिम्मती न निकला, जिसे हुस्नबानो की सभी शर्तें मंज़ूर हों ।

हुस्नबानो ने सोचा, ‘क्या इतने सारे लोग सिर्फ मेरी सुंदरता और

धन दौलत से खिंचकर चले आए थे? किसी के दिल में मेरे लिए सच्चा प्यार नहीं?'

यह सब सोचकर वह थोड़ी गुमसुम -सी रहने लगी। एक दिन वह कुछ सोच रही थी,

तभी अचानक उसकी नज़र एक दाढ़ी वाले फकीर पर पड़ी। उनके पीछे उनके कुछ शागिर्द भी थे।

उनमें से दो शागिर्द बारी-बारी से सोने की ईंटें

ज़मीन पर रखते और फकीर उन्हीं ईंटों पर पैर रखकर आगे बढ़ता जाता ।

यह सब देख कर हुस्नबानो ने सेविका से पूछा,“ये लोग कौन हैं ?”



वह बोली,‘“बेटी ! यह बड़े ज्ञानी और अव्वल दर्जे के फकीर हैं।

लोगों को खुदा के बताए रास्तों पर चलने की नसीहत देते हैं।

यह अभी बादशाह के पास जा रहे हैं।

बादशाह भी इन्हीं के शागिर्द हैं।"

हुस्नबानो बोली, "सच, ऐसी बात है ! तब तो उन्हें मेरे महल में भी आना चाहिए

और मुझे आशीर्वाद देना चाहिए। अम्मी!

आप उन्हें मेरी ओर से खाने पर बुलाइए न।''

फिर क्या था, थोड़ी ही देर बाद फकीर और उनके चालीस शागिर्द हुस्नबानो के महल के द्वार पर आ पहुँचे।

हुस्नबानो ने अपने नौकरों से कहा, "सुनो, फकीर को लाने के लिए मैं जाती हूँ।

उनके शागिर्दों को तुम किसी दूसरे कमरे में बैठाना ।

और हाँ उनके खाने-पीने का पूरा ध्यान रखना।

वे जो माँगें उन्हें वही खिलाना।"

इतना कहकर वह महल के द्वार की तरफ दौड़ पड़ी।

फिर वह फकीर को बड़े आदर के साथ महल में लाई और बड़े से कमरे में रेशमी कालीन पर बिठाया।

उसके बाद उसने सोने-चाँदी के बेशकीमती बर्तनों में तरह-तरह के गरमा-गरम व्यंजन परोसे।

इस प्रकार फकीर को दिल खोलकर भोजन कराने के बाद उसने गुलाबजल आगे

बढ़ाते हुए कहा, "यह आपके हाथ धोने के लिए है।"

यह सब देखकर फकीर बड़े खुश हुए और बोले, "बेटी!

तुम्हारी खातिरदारी से तो हम निहाल हो गए।

मगर अब मुझे इजाज़त दो।

खुदा तुम पर हमेशा मेहरबान



रहे।'' इतना कहकर फकीर

वहाँ से जाने के लिए उठ

गया।

यह देखकर हुस्नबानो उन्हें

थोड़ी देर और रोकने के लिए

मिन्नत करने लगी। उसने

यह भी कहा कि उन जैसे

फकीर के वहाँ आने से

उसकी इज्ज़त बढ़ी है।

फकीर बोले, “बेटी! मुझे

अब और न रोको। मैं एक फकीर हूँ।

और एक फकीर को इन शाही सुख- सुविधाओं से दूर ही रहना चाहिए।"

वह बोली, “ठीक है ।

मगर मुझे इतना तो हक है कि मैं आपको अपनी तरफ से हीरे-जवाहरात,

सोने-चाँदी के रूप में कुछ तोहफे दे सकूँ। मेहरबानी करके आप इन्हें तो ले लें।"

फकीर बोला, “बेटी! फकीर को इन दुनियावी चीज़ों से क्या काम?

उसकी जुबां पर तो हर वक्त बस एक खुदा का ही नाम रहता है।

उसके दिल में बस एक खुदा ही समाया रहता है । "

हुस्नबानो ने उनसे कहा, “ठीक है, अब मैं आपको और तंग नहीं करूँगी।

मगर इतना वादा तो करते जाइए कि आप यहाँ दोबारा आएँगे।"

फकीर बोला, “बेटी! मैं यहाँ ज़रूर आऊँगा ।

" इतना कहकर फकीर अपने शागिर्दों के साथ महल से बाहर निकल पड़े।

उनके जाने पर हुस्न बानो ने सेविका से कहा, “ऐसे पहुँचे हुए फकीर के आने से हमारे महल की रौनक बढ़ गई है।

सचमुच हम बड़े नसीबवाले हैं।"

इस प्रकार दोनों आपस में बातचीत करके काफी खुश थीं।



मगर सच बात तो यह थी कि वह फकीर, फकीर नहीं बल्कि एक शातिर लुटेरा था।

वह फकीर का वेश बनाकर अपने दल के साथ दिन में धनवानों के घरों में जाता था और

पूरा भेद लेने के बाद रात को उन्हीं घरों में लूटपाट करता था।

फकीर और उसके शागिर्दों के जाने के बाद पूरा महल अस्त-व्यस्त हो गया था।

नौकर-चाकरों ने काफी मेहनत-मशक्कत करके कमरों को साफ किया

और एक-एक चीज़ को ठिकाने पर रखा।

साफ-सफाई करने के बाद वे सब काफी थक गए थे।

इस कारण वे सभी बिस्तर पर जाते ही गहरी नींद में सो गए।

उधर फकीर की खातिरदारी करते-करते हुस्नबानो और उनकी सेविका भी

थक चुकी थीं। इसलिए दोनों सोने चली गईं।

इसका लाभ उठाते हुए रात बीतने पर फकीर और

उसके आदमी लूटपाट करने की नीयत से आहिस्ते-आहिस्ते महल में घुस गए।

फिर उन्होंने हीरे-जवाहरात, गहने आदि सभी कीमती चीज़ें बटोर लीं।

अब वे कुछ देर में वहाँ से चलने ही वाले थे कि शोरगुल सुनकर नौकरों की

नींद खुल गई और वे लुटेरों को पकड़ने के लिए उनकी तरफ दौड़ पड़े।

उसी समय



हुस्न बानो और उसकी सेविका की नींद भी टूट गई।

अधिक तादाद में और हथियारों से लैस होने के कारण लुटेरों ने सभी नौकरों को ज़ख्मी कर दिया

और वे माल लेकर भागने में कामयाब हो गए।

मगर हुस्नबानो ने लुटेरों के सरदार को पहचान लिया था। वह जान चुकी थी

कि लुटेरे कोई और नहीं बल्कि फकीर और उसके शागिर्द ही थे।

फिर भी वह रातभर खुद को कोसती रही, ‘मैं कितनी भोली थी कि बहुरूपिए फकीर की झूठी बातों में आ गई।

क्या एक इंसान भी इस तरह किसी के विश्वास से खेल सकता है । '

सुबह होते ही हुस्न बानो ने बादशाह के पास जाकर उन्हें कल की सारी घटना कह सुनाई।

फिर उसने कहा, “उस ठग फकीर ने ऐसा करके सचमुच बहुत बड़ा अपराध किया है ।

उसे इसकी सजा ज़रूर मिलनी चाहिए।"

फकीर के बारे में ऐसी बात सुनकर बादशाह गुस्से में आ गए और बोले, “चुप रहो। तुम्हें पता है

तुम किसके बारे में और क्या कह रही हो और वह भी मेरे सामने?

कम से कम फकीर और लुटेरे में तो फर्क करना सीखो। ज़माना बीत



गया मुझे उनकी मुरीदी करते हुए और आज तुम उन पर ऐसा इल्ज़ाम लगा रही हो ।

" हुस्न बानो ने सफाई देते हुए कहा, "नहीं, नहीं, मैं किसी पर यूँ ही इल्ज़ाम नहीं लगाती।

पर मैंने जो कुछ अपनी आँखों से देखा है, उसे कैसे झुठला दूँ?"

यह सुनकर बादशाह आग बबूला होकर बोले,

“एक फकीर पर झूठा इल्ज़ाम लगाकर तुमने अपराध किया है

और इसके लिए तुम्हें बख्शा नहीं जाएगा।”

उसी समय बादशाह ने अपने सिपाही को बुलाकर कहा,

"इस मुजरिम को ले जाकर इतने पत्थर मारो कि इसे जिंदगी से ही छुटकारा मिल जाए।"

बादशाह के इस हुक्म को सुनते ही वज़ीर बादशाह से बोले, “आलमपनाह !

हुस्नबानो को माफ कर दीजिए। जहाँपनाह!

मेहरबानी करके अपने दोस्त के इंतकाल से पहले उन्हें दिए गए वायदे तो याद कीजिए।

उनके गुज़रने के बाद उनकी जगह आपने ही तो ली है।

फिर क्या कोई वालिद अपनी ही औलाद को इतनी सख्त सज़ा दे सकता है?

नहीं, नहीं, आलमपनाह! खुदा के लिए ऐसा न कीजिए ।

सज़ा ही देनी है तो उन्हें हर ऐशो आराम से बेदखल कर देश निकाला दे दीजिए।

'' बादशाह ने थोड़ी देर सोचा फिर कहा, "ठीक है ।

हुस्नबानो को उसकी दौलत से बेदखल कर हमारे मुल्क की सरहद के पार ले जाकर छोड़ दिया जाए

ताकि ताउम्र वह मुझे अपनी सूरत न दिखा सके।"



बादशाह की आज्ञा पाते ही उनके सिपाहियों ने हुस्न बानो

और उनकी सेविका को सरहद पार के जंगलों में काफी अंदर जाकर छोड़ दिया।

उन दोनों ने किसी तरह खूँखार जानवरों से बचते-बचाते दिन तो काट लिया,

मगर शाम ढलते ही छोटे-बड़े तरह तरह के जंगली जानवरों की डरावनी आवाज़ों को सुनकर हुस्नबानो का कलेजा काँप उठा।

सेविका ने कहा, "बेटी ! हिम्मत न हारो।" वह बोली,“अम्मा!

मेरे नसीब में यह भी लिखा होगा, ऐसा मैंने कभी ख़्वाब में भी नहीं सोचा था।

देखिए न. उस तरफ से कैसी-कैसी आवाजें आ रही हैं।"

सेविका बोली,‘“हाँ बेटी, किसी खतरनाक जानवर की आवाज लगती है ।

चलो, दूसरी ओर चलें।'' इस प्रकार बार-बार तरह-तरह की आवाज़ें सुन खुद को बचाने के लिए

इधर-उधर मारे-मारे फिरते रहने से दोनों काफी थक गईं और हारकर वे एक पेड़ के नीचे बैठ गईं। सेविका ने कहा, “बेटी!

तुम कुछ देर यहीं लेट जाओ। मैं जगकर तुम्हारी रखवाली करूँगी।"

पेड़ के नीचे लेटते ही हुस्न बानो को नींद आ गई।

तभी सफेद दाढ़ी वाला एक उम्रदराज़ आदमी

सपने में आकर बोला, "बेटी! बेशक तुम्हें काँटों भरी राहों से होकर गुज़रना है।

फिर भी अपने दिल को पाक-साफ रखते हुए तुम्हें आगे बढ़ते जाना होगा।

बस थोड़ा सब्र करो। तुम्हारे दिन फिरने वाले हैं।

खुशियाँ तुम्हारे द्वार



पर दस्तक दे रहीं हैं।"

वह बोली, “क्या? मेरे

बीते हुए दिन फिर से लौट

आएँगे?”

बूढ़ा आदमी बोला,

"बेटी! मेरी बातें झूठी हो

ही नहीं सकतीं। इसी पेड़

के नीचे की मिट्टी खोदने

पर तुम्हें एक खज़ाना प्राप्त

होगा और वह खज़ाना

सात राजाओं के खज़ानों

के बराबर होगा।'' इतना सुनते ही हुस्न बानो की नींद खुल गई

और उसने सपने की सारी बात सेविका को कह सुनाई।

तभी हुस्न बानो का एक संबंधी वहाँ आ पहुँचा और बोला,‘“बेटी !

जब से मुझे तुम्हारे बारे में पता चला है तब से तुम्हें ढूँढ़ रहा हूँ।

यह थैली लो। इसमें तुम दोनों के खाने का सामान है।

इसी तरह मैं रोज़ तुम दोनों के लिए खाना ले आया करूँगा।"

फिर क्या था, दोनों ने भर पेट भोजन किया।

भोजन करने के बाद हुस्न बानो ने अपने चचाजान से कहा,

"कल आप अपने साथ एक कुदाल और एक फावड़ा भी लेते आइएगा।'

चचाजान बोले, “ठीक है बेटी ! तुम लोग ठीक से रहना।

अब मैं चलता हूँ।" उसके जाने के बाद सेविका ने कहा, "बेटी!

अब रात होने वाली है, क्यों न हम

पेड़ की उस मज़बूत शाख पर जाकर आराम करें?

वह जगह जानवरों की पहुँच से दूर है।"

इस प्रकार दोनों ने पेड़ की ऊँची शाख पर चढ़कर रात गुज़ारी और

जंगली जानवर पेड़ के आस-पास चक्कर काटते रहे ।

सुबह होते ही सेविका ने हुस्न बानो से कहा, "बेटी, चलो नीचे उतर चलें।



तुम्हारे चचाजान भी आने ही वाले होंगे।"

और

पेड़ से नीचे उतरने के कुछ देर बाद हुस्न बानो ने अपने चचाजान को

आते देख सेविका से कहा, “अम्मी! देखिए चचाजान हमारे लिए कुदाल -फावड़ा खाना लेकर आ रहे हैं।"

चचाजान के आने पर दोनों ने खाना खाया।

फिर हुस्न बानो ने उन्हें सपने की बात बताते हुए कहा,

“चचाजान! अब हमें मिलकर यहाँ की मिट्टी खोदनी चाहिए । "

इस प्रकार कुछ देर तक कड़ी मेहनत करने के बाद उन्हें मिट्टी के अंदर दबी हुई चाँदी की

एक बड़ी संदूक और कुछ छोटी-छोटी पेटियाँ मिलीं।

संदूक और उन पेटियों में हीरे-जवाहरात, रत्न-मोती, सोने-चाँदी क्या नहीं थे।

इतना बड़ा खज़ाना देखकर सबकी आँखें फटी रह गईं।

हुस्न बानो ने खुदा को कहा, "मैं तो अपने नसीब को कोसने लगी थी।

मगर आज इस धरती पर मुझ-सा अमीर कोई नहीं है ।

उसके बाद उसने अपने चचाजान से कहा, "बुरे वक्त में आपने हमारी मदद न की होती तो न जाने हमारा क्या होता।

अभी मुझे आपकी बहुत ज़रूरत है।

ठीक यहीं पर मुझे दुनिया का सबसे खूबसूरत महल बनवाना है और इसी जंगल में



सुंदर-सा शहर बसाकर अपनी सल्तनत कायम करनी है।

मगर यह काम अव्वल दर्जे के राजमिस्त्रियों और बढ़इयों के बिना मुमकिन नहीं।

उन्हें यहाँ लाने का काम मैं आपको ही सौंपना चाहती हूँ।"

चचाजान ने कहा,“बेटी! वह तो ठीक है, मगर यहाँ शहर बसाने के लिए तुम्हें बादशाह से पूछना होगा।

उनकी रजामंदी के बाद ही कोई काम हो सकता है।"

हुस्न बानो ने कहा,‘“ठीक है।

मैं वेश बदलकर खुद ही उनके पास जाऊँगी।"

उसके बाद हुस्न बानो सौदागर बनकर वहाँ गई और बोली, "आलमपनाह!

मैं विलायत का रहने वाला एक सौदागर मारूशाह हूँ।

मैं यहाँ पहली बार आया हूँ,

मगर यहाँ की आबो-हवा और खूबसूरती देख मेरा दिल यहाँ से जाने को नहीं करता।

मेरे पास धन-दौलत की भी कोई कमी नहीं।

अगर आप इजाज़त दें तो मैं आपकी सरहद से सटे जंगल में अपना सुंदर-सा शहर बसा लूँ।”

यह सुनकर बादशाह नौजवान सौदागर से बोले, " न जाने क्यूँ तुम्हें देखकर ऐसा लग रहा है

जैसे तुमसे मेरा कोई पुराना रिश्ता हो ।

जाओ, अपनी सोच को अंजाम दो।

और हाँ, मेरा शाही खजाना इस काम में तुम्हारा मददगार साबित हो सकता है।

जब भी ज़रूरत पड़े बेहिचक चले आना।”

हुस्न बानो ने कहा, "आलमपनाह! अभी तक तो मैंने बस लोगों से ही



सुना था, पर आज मैंने खुद भी देख लिया कि आप कितने दरिया दिल इंसान हैं।

मैं बस एक ही मकसद से यहाँ आया था और वह मकसद आपने पूरा कर दिया।

अब मुझे जाने की इजाज़त दें, ताकि मैं अपने काम में लग सकूँ।

पर हाँ, मेरे काम के लिए मुझे आपके शाही कारीगरों की जरूरत होगी।"

बादशाह ने कहाँ,‘“हाँ, हाँ, क्यूँ नहीं? हमारा पूरा मुल्क तुम्हारे साथ है।"

फिर क्या था, हुस्न बानो ने पूरे ज़ोर शोर से जंगल में शहर बनवाने का काम शुरू करवाया।

इस तरह कम ही समय में एक खूबसूरत शहर बनकर तैयार हो गया।

शहर के बीचों-बीच हुस्न बानो के लिए एक सुंदर-सा नक्काशीदा संगमरमर का महल बनाया गया।

सड़कों की दोनो तरफ ऊँचे-ऊँचे पेड़ लगाए गए थे।

पूरे शहर में मुसाफिर खानों की कोई कमी न थी ।

ढेर सारे अच्छे-अच्छे मकान भी बनाए गए, ताकि लोगों को यहाँ बसने में कोई खर्च न उठाना पड़े।

इतना ही नहीं अन्य बुनियादी ज़रूरतों के लिए अलग से रुपये-पैसे दिए जाने की घोषणा भी की गई थी।

सचमुच हुस्न बानो का शहर लाजवाब ही नहीं, बेमिसाल भी था।

इस तरह, जंगल में बसे हुए नए शहर में हुस्न बानो का राज कायम हुआ धीरे-धीरे पूरा शहर आबाद होने लगा ।



तभी एक दिन हुस्न बानो बादशाह के महल में पहुँची। उस वक्त बादशाह

को कहीं जाने की हड़बड़ी

थी। बादशाह बोले,

“बेटे! मैं एक फकीर

बाबा का मुरीद हूँ और

अभी मुझे उन्हीं के पास

जाना है।"

हुस्न बानो बोली, "अगर

आप कहें तो मैं भी आपके साथ चलूँ?” वह बोले," अरे ! यह तो और भी अच्छा होगा।"

फिर क्या था। दोनों साथ-साथ फकीर के पास जा पहुँचे।

फकीर कोई और नहीं बल्कि वही आदमी था जिसके कारण हुस्न बानो को उसके देश से बाहर निकाला गया था।

वहाँ से लौटते समय हुस्नबानो ने बादशाह से गुज़ारिश की,

'आलमपनाह! ऐसे फकीर बाबा की मेहमाननवाजी मेरी किस्मत में शायद ही लिखी हो,

क्योंकि मेरा शहर तो यहाँ से बहुत दूर है ।"

अगर

कुछ देर चुप रहकर वह आगे बोली, "मगर आलमपनाह! मैंने सुना है कि आपके महल के पास ही

किसी हुस्न बानो का एक छोटा-सा महल भी है, आप उसी खाली महल को अपने नौकरों से कहकर साफ-सुथरा करवा दें

तो मुझे फकीर बाबा की मेहमाननवाज़ी का मौका मिल जाता।"

इस प्रकार मारूशाह के वेश में हुस्न बानो को एक बार फिर से अपने ही पुराने महल में उस फकीर की मेहमाननवाज़ी करने

का मौका मिल गया। फकीर और उसके चालीस शागिर्दों ने खूब मज़े

ले-लेकर तरह-तरह के लज़ीज़ खानों और शरबतों का स्वाद चखा।

मगर उनकी नजरें हर वक्त रत्न-जवाहरात जड़े हुए



बर्तनों और महल की अन्य बेशकीमती चीज़ों पर टिकी रहीं।

इस बार हुस्न बानो उनके इरादों को अच्छी तरह समझ रही थी,

तभी फकीर और उसके शागिर्दों के जाने पर उसने बादशाह के पास यह पैगाम भी भेजवाया,

आलमपनाह! आपसे गुज़ारिश है कि आज की रात इस महल की सुरक्षा के लिए अपनी

ओर से कुछ सैनिक और पहरेदार लगा दें। "

बादशाह ने अपने कुछ सैनिकों और पहरेदारों को बुलाकर कहा,

“देखो, आज रात तुम लोगों को हुस्न बानो के महल की निगरानी छिपकर करनी है,

ताकि कोई चोर-लुटेरा आए भी तो बचकर न जाने पाए।"

इस प्रकार महल की सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई।

कुछ रात बीतने पर जैसे ही फकीर और उसके चालीस शागिर्द छुपते-छुपते महल में

घुसे वैसे ही बादशाह के पहरेदारों ने उन सब को धर दबोचा और बंदी बना लिया।

अगले दिन सभी लुटेरे दरबार में लाए गए।

अपने फकीर बाबा को ज़ंजीर से बँधा देख बादशाह अपने पहरेदारों को डाँटते हुए कहा,

"मूर्खो! यह तुमने क्या किया?

जानते हो इस जुर्म की सजा क्या है, मौत बस मौत !”

तभी हुस्न बानो ने कहा, "आलमपनाह!

बेगुनाह को सजा और गुनाहगार पर रहम, यह क्या !

इन पहरेदारों ने जान पर खेलकर लुटेरों को पकड़ा है, क्या यह



इनकी वफादारी का सबूत नहीं?

आप इस नकली ठग फकीर और इसके लुटेरे साथियों को क्यों नहीं पहचानते?"

इन बातों ने बादशाह की आँखें खोल दीं।

उसी समय उन्होंने सैनिकों को आज्ञा देते हुए कहा,

“इन लुटेरों को ले जाकर इसी वक्त फाँसी दे दो।"

तभी बादशाह को हुस्न बानो याद आई और उनकी आँखें भर आईं।

उन्होंने खुद को सँभालते हुए कहा, “बेटे मारूशाह !

आज तुम न होते तो मुझसे फिर एक गुनाह हो जाता।

कुछ समय पहले एक लड़की ने जिसे मैं अपनी बेटी की तरह प्यार करता था,

इस ठग फकीर की सच्चाई मेरे सामने रखने की कोशिश की थी।

मगर तब मैंने अपनी बेगुनाह बेटी को ही देश-निकाला दे दिया।

न जाने आज वह कहाँ और किस हाल में है।

मगर वह जहाँ भी हो मैं उसे ज़रूर खोज लूँगा।

मुझे यकीन है कि मेरी प्यारी बेटी अपने अब्बू को ज़रूर माफ कर देगी।"

इतना कहते-कहते बादशाह की आँखें फिर भर आईं।

हुस्न बानो से रहा न गया और वह उनके आँसू पोंछते हुए बोली, “आपकी प्यारी बेटी आपके सामने खड़ी है।"

और सचमुच अब बादशाह के सामने मारूशाह नहीं बल्कि लम्बे बालों वाली हुस्न बानो ही खड़ी थीं ।

बादशाह की खुशी का ठिकाना न रहा। उन्होंने



हुस्न बानो को गले से लगा लिया।

जंगल की सारी बात सुनाने के बाद हुस्न बानो ने कहा,

‘“क्या आप अपनी बेटी का महल देखने नहीं चलेंगे?"

बादशाह बोले, "बेटी ! तुम्हारे महल को मैं न देखूं, ऐसा नहीं हो सकता। "

उसके बाद वह हुस्न बानो के शहर की ओर चल पड़े।

दूर ही से ऊँची-ऊँची मीनारों और चमचमाते गुंबदों ने बादशाह का ध्यान अपनी

ओर खींच लिया। पूरे शहर की सुंदरता और हुस्न बानो के शानदार महल को देखकर बादशाह हैरान रह गए।

उन्होंने शहर के साथ-साथ महल की खूब तारीफ की।

कुछ समय बीतने के बाद वह बोले, "बेटी ! अब मुझे इजाज़त दो ।"

हुस्न बानो ने बादशाह को कुछ अशर्फियाँ और हीरे-मोती देकर विदा करना चाहा,

मगर बादशाह के पास जाते ही सभी अशर्फियों और हीरे-मोतियों ने साँप और बिच्छू का रूप धारण कर लिया।

यह देखकर बादशाह बोले, “बेटी !

यहाँ की धन-दौलत पर मेरा कोई हक नहीं, मेरे हाथ लगाते ही ये

अशर्फी और हीरे- मोती साँप-बिच्छू बन जाते हैं।"

इतना कहकर बादशाह ने हुस्न बानो को आशीर्वाद दिया और वहाँ से चल पड़े।