एक माताराम थी, बाको एकई मोड़ा थो।
जब मोड़ा बड़ो हो गओ तो माताराम ने मोड़ा को धूमधाम से
ब्याओं कर दओ।
माताराम जे मोड़ा के लाने किराने की दुकान भी खुलबा दई।
बढ़िया दुकान चले, काय से गाँओं
में एकई दुकान धी।
बा से घर को खरचा चले।
मनो भाग से बहु भोत ठेज निकरी ?
मोड़ा जब दुकान पे जाए बहु माताराम हे भोतई परेसान करे। कुल
मिलाके जित्ती जादा सास की आतना दुख सके बा उत्तो दुख पोहचाए। माताराम इत्ती समझदार थी कि बा मोड़ा हे
कहछु नई बताए। माताराम ने सोची अगर में मोड़ा हे बताहूँ तो बेकार की असान्ति हुए। ऐसी सोच के जा बात है मन
मेई रखे। मोड़ा बड़ो समझदार थो। मांताराम हे अनमनी देखके जा जरूर समझ गओ की कछु गड़बड़ हे। एक
दिन का भओ, बहु ने सास से कई, “का अदि मेंने तोहे मुण्डी ने करबा दई तो में अपने बाप की ओलाद नईं।”
ऐंसी बहु ने जिदूद ठान लई। सास ने
भी बहु से कई, “ऐसे कैंसे मुण्डी करबाहे देख लेहूँ तोहे।”
एक दिन बहु ने ओत नाटक-नोटंकी रची। बाने अपनी तबियत खराब को बहानो कर लओ ओर खटिया पे
पड़ गई। बा न कोई से बोल रई न चाल रई, न हल रई न डुल रई, खाबो-पीबो भी बन्द कर दओ। गाँओं भर में
बाकी बीमारी को हल्ला मच गओ। धीरे-धीरे करके गाँओं के सब लोग जुड़ गए।
एक दादा ने पूछी, “बहु केंसी
तबियत है ?” बहु मरी-सी आबाज में बोली, “मेरी तबियत भोतई खराब हे, मेरे प्राण निकर जाहें।”
अब पूरे गाओं
बारे परेसान, खूब दबा-दारू करबा रए हैं पर बहु ठीकई नई भई।
इत्ते में गाँओं को सबसे बूढ़ो आदमी आओ। बाने
कई, “बहु जा बताओ ऐसी तबियत पहले कभर्ँ खराब भई थी ।” बहु ने कई, “दादा हमरी तबियत तो पहली बार
खराब भई है। पर हमरे गाँओं में एक बहु की तबियत बिलकुल हमरे जेंसी बिगड़ी थी। बा बहु की सास के बालों
को मुण्डन करबाके ओर उन बालों हैं पुटरिया में रखके बिनने बहु के ऊपर से पाँच बार उतारके नदी में सिराए,
तब जाके बा ठीक भई थी।” बूढ़े दादा बड़े ध्यान से सुन रए थे। बिनने कई, “बहु की जान बच जाए जोई करो।”
बिचारी माताराम चुपचाप सब तमासो देख टई थी।
अब जल्दी से नाई हे बुलबाओ ओर माताराम को मुण्डन करबाओ । बालों हे पुटस्या में रखके बहु के ऊपर से
पाँच बार उतारके नदिया में सिरा दए । बहु तो नाटक करई रई थी बा तुरतई बिलकुल अच्छी हो गई।
रात के समय मोड़ा सहर से दुकान को सामान लेके लोटो, तो बाहे सब बात पता चली। बो समझ गओ भोत
दिक्कत हो गई हे। मगर मोड़ा बड़ो समझदार थो, बो कछू नईं बोलो। बाने सोची जब बखत आहे तब देख हूँ।
जाको बदला जरूर लेहूँ। '
जब मोड़ा दुकान पे जाए तो बहु चकिया लेके बेठे ओर कछू भी पीसबे रख
ले। चकिया चलात जाए ओर गात जाए, “मेंने ऐसी टेक निभाई मेरी सास की
मूढ़ मुड़ाई, मेंने ऐसी टेक निभाई...” जो गीत सुनके माताराम बड़ी दुखी
होए, भोत परेसान रहे। फिर भी जा बात माताराम ने अपने मोड़ा हे नई
बताई।
एक दिन का भओ की, मोड़ा दुकान बन्द करके दुफेर मेई घर
आ गओ। जेंसई घर के भीतर घुसो बाने देखो, बहु चकिया
चला रई हे ओर बोई गीत गा रई हे, “मेंने ऐसी टेक निभाई
मेरी सास की मूढ़ मुड़ाई, मेंने ऐसी टेक निभाई...।” मोड़ा
हे भोत गुस्सा आई। पर बाने सोची में ईंट को जबाब पथ्थर से
देहूँ ।
अब मोड़ा सीधो अपनी सुस॒रार पोहचो। पोहचतेई से
जोर-जोर से रोन लगो। बाके सुसर-सास, सारे सब घबरा
गए की लालाजी हे का हो गओ? का घर में कछु बुरो हो
गओ ? सुसर ने पूछी, “लालाजी बताओ तो का बात है, का तकलीफ हे ?” लालाजी रोत-गेत बोले, “तुमरी मोड़ी
की तबियत कछू दिना से भोतई खराब हे। हमने बाको भोत इलाज कराओ मनो बाहे कछू आराम नई पड़ ओ।
एक गुनिया ने बताओ हे बाहे भोतई खतरनाक प्रेत बाधा लगी हे। अगर बा बाधा दूर नई भई तो तुमरी मोड़ी खतम
हों जाहे। बा खतम भई तो हमरी माताराम खतम हो जाहें ओर बिनके बाद में खतम हो जेहूँ। बाके बाद तुमरे घर
भी ऐंसई हुए। एक-एक करके सब मर जेहें। सब सत्यानास हो जेहे।”
सबरे बड़े परेसान अब का करें ? सुसर ने पूछी, “लालाजी गुनिया ने प्रेत बाधा दूर करबे काजे कछु उपाओ
बताओ हे की नई ?” लालाजी बोले, “जा बाधा ने गुनिया से कई हे का भोड़ी हे तबई छोड़हूँ, जब जाके सबरे
मायके बारे मोड़ा-मोड़ी से लेके डुकरा-डुकरिया तक, अपनो मुण्डन करबाके सबरे बाल एक पुटरिया में रखके
मोहे दे देहें।” सबने सूद सला करी, सोची मुण्डन करबाबे से जा
बला टर रई हे तो बा में कछु हरज नई।
तुरतई गाँओं के सबरे नाइयों हे बुलबाओ। परबार के सबरे
लोग आँगन में लाइन लगाके बेठ गए, बड़ो परबार थो पचास-
साठ लोगों को। नाइयों ने सबको झलदी-झलदी मुण्डन कये।
मुण्डन के बाल एक पुटरिया में बाँधके लालाजी ने कई, “में
झलदी-झलदी घोड़ा गाड़ी से गाँओं निकर रओ हूँ। आप लोग
अपने-अपने साधनों से गाँओं पोंहचियो।” मोड़ी सबकी लाड़ली
थी जाके मारे सबरे मायके बारे अपनै-अपने साधनों से बाहे देखबे
चल दए।
उते मोड़ी चकिया चलात-चलात डुकशिया है चिड़ाबे लगी थी,
“मैंने ऐसी टेक निभाई मेरी सास की मूढ़ मुड़ाई, मेंने ऐसी टेक
निभाई...।” मोड़ा जब घर में घुसो तो बई के पीछे-पीछे मोड़ी के
मायके बारे भी आ गए। मोड़ा ने घरबारी से आँगन की तरफ
इसारा करके कई, “देख उते।” ओर बो गान लगो, “मेंने ऐंसी
टेक निभाई मुण्डों की लेन लगाई, मैने ऐसी टेक निभाई... ।”
मोड़ी ने आँगन के दरबज्जे पे देखो तो धक्के से रह गई। सबरे
मायके बारे खड़े हैं - सबके सब मुण्डे। बा समझ गई - जो जेंसो
करहे बो बेंसो भरहे ।