Kitoor Ki Mahrani | कितूर की महारानी | इतिहास प्रसिद्ध कहानियां

Kitoor Ki Mahrani | कितूर की महारानी | इतिहास प्रसिद्ध कहानियां

जब थैकरे ने किले के फाटक के पास आ कर रानी को आतंकित कर
राज्य की ईंट से ईंट बजाने की धमकी दी तो रानी चेन्नम्मा गरज कर बोली,
"यहां का बच्चाबच्चा कट मरेगा परंतु अंगरेजों की अधीनता कतई स्वीकार नहीं करेगा।

कर्नाटक की एक छोटी सी रियासत थी कितूर।
वहां के महाराजा मल्लसर्ज की रानी चेन्नम्मा अत्यंत साहसी व वीर महिला थी।
महाराजा मल्लसर्ज अचानक बीमार हुए तो उन्होंने संतान के अभाव में 'मारन बाड़ीगौड़ा' के पुत्र को गोद ले लिया।
उस का नाम 'गुरुलिंग मल्लसर्ज' रखा गया। महाराजा ने वसीयत में लिख दिया, “मेरे बाद रानी

चेन्नम्मा राजकुमार के बालिग होने तक सारा राजकाज संभालेंगी।
के
महाराज की मृत्यु होते ही कुछ राष्ट्रद्रोहियों ने राज्य के विरुद्ध षड्यंत्र रचना शुरू कर दिया। ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों ने धारवाड़ कमिश्नर मि. थैकरे से विचारविमर्श किया तथा रानी के दरबार में फरमान भिजवा दिया कि कंपनी 'गुरुलिंग मल्लसर्ज' को महाराजा का वारिस स्वीकार नहीं करती है।
"
रानी चेन्नम्मा ने जैसे ही फरमान सुना, उस का चेहरा क्रोध से लाल हो उठा।
उस ने भरे दरबार में फरमान के टुकड़ेटुकड़े कर डाले और सिंहनी की तरह दहाड़ उठी,
“अंगरेज कौन होते हैं मेरे राज्य के मामले में दखल देने वाले?
कितूर मेरा है. मेरी प्रजा का है।
उस में अंगरेजों के पापी पैरों को कभी भी न पड़ने दूंगी। "
रानी ने ईस्ट इंडिया कंपनी के दूत मलप्पा से साफसाफ कह दिया कि वह वहां जा कर सूचना देदे कि कितूर के
मामले में किसी भी तरह का हस्तक्षेप बरदाश्त नहीं किया जाएगा।
रानी ने कमिश्नर थैकरे साहब को पत्र भी लिख दिया कि कंपनी सरकार को हमारे राज्य के उत्तराधिकार के बारे में बोलने का अधिकार नहीं है।
हम अपने घरेलू मामले में किसी भी बाहरी ताकत का दखल कदापि नहीं
सहेंगे।
रानी जानती थी कि अंगरेज उस का जवाब सुन कर कदापि चुप न

बैठेंगे. वे मौका मिलते ही कितूर पर हमला कर उसे हड़पने की कोशिश करेंगे।
अतः रानी ने अपने सेनापति, मंत्री तथा अन्य सलाहकारों से सलाह कर तमाम राज्य में खबर भिजवा दी कि
“राज्य का हर आदमी कितूर की रक्षा के लिए कमर कस ले।
हम मरना पसंद करेंगे, परंतु विदेशी विधर्मी अंगरेजों की दासता कदापि स्वीकार नहीं करेंगे।
"
कितूर राज्य में पुरुषों ने ही नहीं महिलाओं ने भी सैनिक शिक्षा लेनी शुरू कर दी।
तुलजा नामक युवती अन्य युवतियों को शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण देने लगी।
अवकाश प्राप्त सैनिक स्वयं सेना में भरती होने लगे।
रानी चेन्नम्मा ने पूरे राज्य में हर गांव का स्वयं दौरा किया।
उस ने प्रजा को पूरी घटना व अंगरेजों की चाल से अवगत कराया।
गांवगांव में युद्ध की तैयारी होने लगी. सभी लोग अंगरेजों से दोदो हाथ करने की घड़ी की प्रतीक्षा करने लगे।
राज्य के 'बेलहोगल' नामक स्थान के जमींदार ने तो अपने पुरखों की दोनों तोपें तथा बंदूकें कितूर की रक्षा के लिए समर्पित कर दीं।
19 नवंबर, 1824 को प्रातः कमिश्नर थैकरे गोरों की सेना ले कर कितूर की ओर रवाना हो गया।
कितूर की सीमा से बाहर सेना ने पड़ाव डाल दिया।
थैकरे ने समझा कि इतनी बड़ी फौज को देख कर रानी का दिल दहल जाएगा।
अतः उस ने एक संदेश भेजा कि यदि रानी बातचीत के लिए तैयार हो तो अभी भी लड़ाई से बचा जा सकता है।
परंतु रानी ने उस का कोई जवाब नहीं दिया।
दूसरे दिन रानी ने नहाने के बाद महाराज मल्लसर्ज की तलवार फेंटे से बांधी और घोड़े पर चढ़ कर किले के सिंहद्वार पर जा पहुंची।
राज्य की सेना किले की रक्षा के लिए पूरी तैयारी कर चुकी थी।
थैकरे सेना के साथ किले के बाहर पड़ाव डाले हुए था।
उस ने फाटक के पास आ कर रानी को आतंकित करने के लिए राज्य की ईंट से ईंट बजा देने की धमकी दी।
रानी चेन्नम्मा गरज उठी, “थैकरे साहब, कितूर की प्रजा ने कभी भी किसी की अधीनता स्वीकार नहीं की है।
यहां का बच्चाबच्चा कट मरेगा, परंतु अंगरेजों की अधीनता स्वीकार नहीं करेगा।"
रानी ने 'गुरु सिद्धप्पा' तथा सेनापति से सलाह कर योजना बनाई।
निश्चय किया गया कि अचानक किले का फाटक खोल कर अंगरेजों पर तेजी से हमला किया जाए।
'कितूर की जय, 'मातृभूमि की जय' के उद्घोषों से आसमान गूंज उठा।

और कितूर चरमराहट की आवाज के साथ किले का मुख्य फाटक खुला के वीर सैनिक भूखे शेर की तरह अंगरेजों पर टूट पड़े।
किले के बाहर का मैदान गोरों की लाशों से पटने लगा।
रानी घोड़े पर सवार अपनी तेज तलवार से अंगरेजों को मौत के घाट उतार रही थी।
वह जिधर भी निकल जाती गोरे सैनिकों का सफाया हो जाता।
कमिश्नर थैकरे ने यह दृश्य देखा तो देखता ही रह गया।
उस ने देखा कि केवल रानी ही नहीं, अन्य अनेक युवतियां भी तलवार हाथ में लिए अंगरेजों से युद्ध कर रही हैं।
थैकरे ने रानी पर बंदूक का निशाना लगाया, परंतु वह खाली गया।
बालप्पा नामक सैनिक ने बंदूक से थैकरे पर गोली दाग दी।
थैकरे वहीं लुढ़क गया।
अंगरेजों की सेना ने यह देखा तो उस के पैर उखड़ गए।
अनेक अंगरेज बंदी बना लिए गए. शेष भाग गए।
मलप्पा शेट्टी तथा वेंकटराय जैसे देशद्रोही भी अंगरेजों की सेना के साथ थे, उन्हें भी बंदी बना लिया गया।
थैकरे के नेतृत्व में अंगरेज सेना के पतन की खबर पा कर अंगरेज बेचैन हो उठे।
दक्षिण भारत के सेनापति चैपलिन ने स्वयं कितूर जा कर वहां की ईंट से ईंट बजा देने की शेखी बघारी।
चैपलिन की सेना तोपें ले कर कितूर जा पहुंची।
उस ने शिव वासप्पा को कितूर का शासक बनाने का लोभ दे कर अपनी ओर मिला लिया।
इस देशद्रोही से चैपलिन को कितूर के किले व सेना के बारे में बहुत सी जानकारी मिल गई।
कर्नल वाकर, कर्नल डीकन तथा मेजर पामर आदि अंगरेज अधिकारी किले के सामने मोरचाबंदी किए हुए थे।
अंगरेजों ने तोपों से किले पर गोले बरसाने शुरू कर दिए।
किले के अंदर की तोपें भी गड़गड़ाहट के साथ अंगरेजों पर गोले बरसाने लगीं।
रानी स्वयं तोपों का निरीक्षण करती हुई तोपचियों का उत्साह बढ़ा रही थी।
कितूर की तोपों ने अंगरेजों की तोपों को शांत कर दिया, परंतु किले का बहुत सा भाग क्षतिग्रस्त हो गया था।
कर्नल डीकन तोप के गोले से झुलस गया जबकि चैपलिन घायल हो गया था।
दूसरे दिन तीन नई पलटनें आने से अंगरेजों ने फिर मोरचा लगाया।
लेफ्टिनेंट कर्नल मैकडियम बड़ी तोपों के साथ किले के बाईं ओर जमा हुआ था।
शत्रु की बड़ी तोपें बड़ेबड़े गोले फेंक रही थीं।
गोलों से किला ध्वस्त रहे थे।
होता जा रहा था तथा कुछ गोले अंदर पहुंच कर सैनिकों को भी क्षति पहुंचा

अब अंगरेज फाटक तक पहुंच चुके थे।
यह देख कर रानी का प्रमुख सिपहसालार दिलेर खां सैनिकों को साथ ले कर फाटक से बाहर निकला और अंगरेजों पर टूट पड़ा।
उस ने तलवार से गोरों के सिर उड़ाने शुरू कर दिए।
इसी बीच मेजर टुमैन ने दिलेर खां को निशाना बना कर बंदूक से गोली दाग दी।
दिलेर खां मारा गया।
रानी चेन्नम्मा अब समझ चुकी थी कि शत्रु की भारी ताकत के आगे अधिक समय तक नहीं टिका जा सकता।
उस ने गुरु सिद्धप्पा से कहा, “आप राजकुमार तथा महिलाओं को किले के गुप्त द्वार से निकाल
कर सुरक्षित स्थान पर ले जाएं। इतने में मैं शत्रु को शिकस्त देने की अंतिम कोशिश करती हूं।”
रानी ढाई सौ घुड़सवारों के साथ दुर्ग के फाटक पर आई।
संकेत पर फाटक खोल दिया गया और रानी अपने सैनिकों के साथ गोरों पर टूट पड़ी।
रानी के दोनों हाथों में तलवार थी।
गोरे उस की तलवारों से गाजरमूली की तरह कट कर जमीन पर गिर रहे थे।
तभी मेजर मुनरो ने रानी को गोली का निशाना बनाना चाहा।
परंतु रानी ने घोड़े को एड़ लगाई और वह दूसरे ही क्षण मुनरों के बिलकुल पास थी।
रानी की तलवार के एक ही वार ने मेजर मुनरो का सिर धड़ से अलग कर डाला।
अब रानी मेजर टूमैन के सामने थी। उस ने देखते ही देखते टूमैन की

टुकड़ी के आधे से ज्यादा गोरों का काम तमाम कर दिया।
रानी इस भीषण युद्ध में गोलियों से बुरी तरह घायल हो चुकी थी।
अचानक उस के घोड़े को एक गोली ने धराशायी कर डाला।
कर्नल स्पिलर ने घायल रानी को बंदी बना लिया।
अंगरेजों ने कितूर में खुल कर लूटमार की। कितूर के 358 गांवों तथा 72 किलों पर अंगरेजों का अधिकार हो गया।
रानी चेन्नम्मा को बेलहोगल की जेल में नजरबंद कर दिया गया।
कितूर के सभी प्रमुख सैनिकों को फांसी पर चढ़ा दिया गया।
रानी को जैसे ही यह समाचार मिला, वह विह्वल हो
उठी.
21 फरवरी, 1825 का दिन था।
रानी को मैदान में ले जा कर तोप के सामने खड़ा कर दिया गया और
इस महान वीरांगना ने 'जय मातृभूमि' के उद्घोष के साथ हंसतेहंसते मृत्यु का वरण कर
भारतीय स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में वीरता का एक और स्वर्णिम अध्याय जोड़ दिया।