Lallu Chor | लल्लू चोर - बुंदेली लोक-कथा

Lallu Chor | लल्लू चोर - बुंदेली लोक-कथा

एक हतो लल्लू, अकल से थो बो बुद्धू।
बो कछू काम-धाम करत नई थो, दिन भर आबारा जेंसो घूमत रहत
थो। एक बार घूमत-घूमत॑ पोंहच गओ जंगल में ओर उते आम के पेड़ पे चढ़के आम तोड़के खान लगो।
इत्ते में
बाने देखो चार जने आके पेड़ के नीचे बेठ गए ओर बतियान लगे।
लल्लू चिभाई लगाके बिनकी बात सुनन लगी।
बे चारई चोर हते ओर गत में कोई के घर चोरी करबे की बतिया रए थे।

इत्ते में लललू की जेब से एक बड़ो-सो आम

एक चोर के मूढ़ पे टपक गओ। चोर उतई बेहोंस हो गओ। तीनई चोरों ने घबराके
ऊपर देखो, तो पेड़ पे बेठो लललू दिखाई दओ। लल्लू ने बिनसे कई,
“अभे तो मेंने एकई है मारो हे। तुम लोग चोरी करत हो जा बात
राजा साब से केहूँ।” चोर डर गए ओर लल्लू के हाथ-पाँओ
जोड़न लगे। बे बोले, “भइ्या वू हमसे चाहे जो कछु ले ले, मनो
राजा साहब से जा बात मत कइ्टए। बे हमें फौँसी पे लटकबा
देहें।” लललू ने कई, “मेरी अम्मा मोसे गुस्सा रहत हे की में
कछु करत-धरत नई हूँ। ऐंसो करो मोहे भी तुमरे संगे कर लो।”
चोर मान गए।

आधी रात में बे लोग एक गाँओं में चोरी करबे गए। जे घर में चोरी
कसनो थो बाके पास पौंहचे तो लल्लू चोरों से बोलो, “भड्या मेंने पहले
कभऊँ तो चोरी करी नईं, जा बताओ जा घर में से का चुरानो हे ?” चोरों को सरदार बोलो, “भारी-भारी सामान
चुरानों ।” बाको मतलब थो - जेबरों में से मेंघे ओर भारी-भारी गहने चुरानों ।” बे घुस गए, घर में चोरी करबे। चोर
मेंघो सामान दूँढ-दूँढके गठरियों में बाँधन लगे। लल्लू हे घर के एक कोने में चकिया को एक पाट मिल गओ,
बाने उठाके देखो बो भोत भारी थो। लल्लू खुम हो गओ, बाने सोची भोतई अच्छो सामान मिलो हे। बो चकिया के
पाट हे कन्धा पे धरके गाँओं के बाहर चबूतग पे घर आओ। ओर बापस आके चोरों से खुसी-खुती बोलो, “मेंने
बहुतई भारी सामान चुराओ हे। झल्दी चलो तुम लोगों हे दिखा दऊँ।” चोरों ने समझी लल्लू के हाथ तिजोरी लग
गई है। बिनने सारी गठरिएँ उतई पटकीं ओर लल्लू के साथ भगत-भगत चबूतरे पे पोहचे। उते बिनने तिजोरी
की जगह चकिया को पाट देखो तो बिन्हें-भोतई गुस्सा आओ। बे मिलके लल्लू हे मारन लगे। बोले,
अच्छो मूरख हे तू?” लल्लू चिल्ला-चिल्लाके कहन लगो, “मूर्ख हुओ तुम लोग, तुमने जेंसी कई
बेंसई मेंने भारी सामान उठाओ हे। ओर बोलन लगो, “में तुमरी सिकायत राजा साब
से कर देहूँ।” चोर फिर डर गए, हाथ जोड़के बोले, “तेरे हल्ला में गाँओं बारे
जग जेहें, अब चुपचाप इते से भग लेमें। बइमें तेरी ओर हमरी भलाई हे ।”

कछू दिना बाद चोर एक घर में चोरी करबे पोंहचे। घर में घुसबे के पहले लल्लू ने बिनसे कई, “अभई बता दो
कोन सो सामान चोरी करनो है ?” चोरों को सरदार बोलो, “कोई भी सामान चोरी करबे के पहले ठीक से ठोंक-
बजाके देख लेनो |” बाकों मतलब धो सामान हे देख-परखके चोरी करनो। बे घुस गए घर में चोरी करबे। चोरों हे
तिजोरी मिल गई, बे बाहे खोलई रए थे । इत्ते में लल्लू के हाथ में दिबाल पे टैगी कोई चीज आ गई। बाने सोची जाहे
चुराबे के पहले ठोक बजाके देख लऊँ। बा थी ढोलकी। जेंसई लललू ठोंकन लगो, बाको ऐटे सुनके घर बारे जग

गए | सब चिल्‍लान लगे, “पकड़ो-पकड़ो भड़ियों हे पकड़ी |”

सबरे चोर अपनी जान बचाके आगुड़-बागुड़ कूद फॉँदके भागे। अपनी मिलबे की जगह पोंहचे तो कोई के
उन्‍नहा फट गए थे, कोई खबना में खब गओ थो, कोई के पाँओं में कॉँटे गड़ गए थे। सबरे मिलके लल्लू हे ताओ
बतान लगे। लल्लू ने कई, “एक तो में सरदार को बताओ काम कर रओ हूँ ओर ऊपर से तुम लोग मोहे आँख बता
रए हो ? में अभई जाके राजा से सिक्रायत करत हूँ।” चोरों ने कान पकड़े, बोले, “माफ करो मूरख राज।” बिनने
आपस में सूद सला करके कई, “लल्लू भाई अब हम जिते भी चोरी करबे जाहें, उते तुम्हें कछु भी चोरी करबे की
जरूरत नईहाँ। बस तुम साथ रहियो।”

... अबकी बेर रात में, बे एक डुकरिया के घर चोरी करबे घुसे। चोर मालमत्ता दूँढन लगे। लल्लू ने देखो चूल्हे पे
खीर चुड़ रई है ओर उतई दिबाल से टिकके डुकरिया सो रई हे। असल में खीर बनात-बनात डुकरिया ऊँधन लगी
थी। लल्लू थरिया में खीर लेके खान लगो, बीच बीच में डुकरिया हे भी देखत जाए, काय से डुकरिया जग न जाए।
इते में डुकरिया हे जम्भाई आई। बा नींद मेंई एक हाथ मों के पास ले गई। लल्लू हे लगो डुकरिया इसारे से कह २ई
है, “मेरे मों में खीर डार दे ।” लल्लू ने आओ देखो न ताओ एक करेछली गरम खीर डुकरिया के मों में डार दई।
डुकरियां को मों बर गओ। बा जोर-जोर से चिल्‍लान लगी। बाको हल्ला सुनके गाँओं बारे आ गए। चारई चोर घर के
चार कोनों में लुक गए। लल्लू ऊपर पटमा पे लुक गओ। गाँओं बारें ने डुकरिया से पूछी, "तेरे मों में गटम खीर
कोन ने डार दई ?” डुकरिया बोली, “मोहे कछु नई मालुम भडया | ऊपर बारे जाने... ? मेरो तो मों बर गओ, आग
लगे ऊपर बारे में |"

लल्लू ने सोची डुकरिया मेरिई-मेरिई कह रई है। बासे सहन नईं भई। बो बोल उठो, “जब से मेरिई-मेरिई कह
रई है डुकरिया | जे चारई कोने में लुके हैं इनकी कछु नईं कह रई।” गाँओं बारें ने पटमा पे से लल्लू हे ओर चारई
कोनों में से चारई चोरों हे पकड़ लाए ओर खूब पिटाई लगाई ।