Little Led Riding Hood story hindi- Pari Katha

Little Led Riding Hood story hindi - Little Led Riding Hood Kahani

लिटिल रेड राइडिंग हुड | नन्ही रेड राइडिंग हुड

बहुत समय पहले जंगल के बीचोंबीच एक सुंदर से घर में

एक छोटी-सी लड़की अपनी माँ के साथ रहती थी।

उसका नाम लिटिल रेड राइडिंग हुड था।

वह बहुत ही चुलबुली और समझदार थी।

एक दिन उसकी माँ ने उससे कहा, “बेटी! तुम्हारी दादी बीमार हैं।

वे अपने लिए खाना बनाने में असमर्थ हैं।

मैंने एक टोकरी में उनके लिए कुछ खाने-पीने का सामान रख दिया है।

तुम उन तक पहुँचा आओ।”

‘“ठीक है, माँ ! मैं अभी जाती हूँ।

दादी से मिले हुए भी बहुत दिन हो गए हैं।

उन्हें मिल भी आऊँगी।"

लिटिल रेड राइडिंग हुड ने कहा ।

“ थोड़ा माँ ने लिटिल हुड के हाथ में सामान की टोकरी थमाते हुए कहा, संभलकर जाना।

टोकरी ध्यान से ले जाना, इसमें दादी के लिए जूस भी है।

देखना, कहीं गिरे न ! तुम जंगल में कहीं रूकना मत, रास्ते में किसी के साथ बातों में मत उलझ जाना।

एकदम सीधी जाना, समझी !"

“हाँ माँ! समझ गई। आप मेरी चिंता मत करो।

मैं सही-सलामत लौट आऊँगी।

" लिटिल हुड ने जाते-जाते कहा ।

लिटिल हुड मस्ती में चल पड़ी।

वह दादी से मिलने जाने पर बहुत खुश थी।

वह गाते-गुनगुनाते हुए जंगल से गुजर रही थी।

तभी उसकी नजर जंगल में खिले हुए सुंदर फूलों पर पड़ी।

वह फूलों की सुंदरता देखकर रूक गई।

उसने टोकरी नीचे रखी और फूल चुनने लगी ।

ठीक उसी समय एक भूखा भेड़िया वहाँ से गुजर रहा था।

जब उसने लिटिल हुड को देखा तो उसकी लार टपकने लगी।

पर अपनी जीभ पर विराम लगाते हुए वह लिटिल हुड के पास गया और बोला, “प्यारी बच्ची !

तुम इस जंगल में क्या कर रही हो?"

लिटिल हुड डर गई। वह काँपती हुई आवाज में बोली,

"दादी के घर जा रही हूँ । वे बीमार हैं न !”

उसे डरा हुआ देखकर भेड़िए ने कहा, "डरो नहीं, मैं तुम्हें नुकसान नहीं पहुँचाऊँगा।

अच्छा, एक बात तो बताओ कि तुम्हारी दादी तुम्हारे साथ नहीं रहतीं तो किसके साथ रहती हैं ?"

"अकेले, एकदम अकेले।" लिटिल हुड ने बताया ।

"तुम्हें उनके घर का रास्ता अच्छी तरह से पता तो है न! कहीं भटक तो तो नहीं

जाओगी!'' भेड़िए ने दादी के

घर का पता जानने के उद्देश्य

से कहा।

'आप मेरी चिंता न करें। मुझे

दादी के घर का रास्ता एकदम याद है।

यहाँ से सीधे जाकर चार बरगद के पेड़ से बाएँ मुड़कर थोड़ी दूरी पर एक बड़े बरगद के पेड़ के पास उनका घर है।

'' लिटिल हुड ने विश्वास से दादी के घर का

पता बताया।

दादी के घर का पता जानकर भेड़िया बहुत खुश हुआ।

उसने सोचा,‘आज तो मैं त्योहार मनाऊँगा।

पहले दादी को खाऊँगा और फिर पोती को।

बहुत दिनों से अच्छा खाना नहीं खाया। आज तो मजे आ गए।'

यह सोचकर उसकी लार टपक गई।

फिर अपनी भावनाओं को छुपाते हुए वह बोला,“तुमने अपना नाम नहीं बताया ।"

“लिटिल रेड राइडिंग हुड ।"

‘“लिटिल हुड तुम्हारी दादी बीमार हैं।

तुम उनके लिए इन सुंदर-सुंदर फूलों का गुलदस्ता लेकर क्यों नहीं जाती !

उन्हें बहुत अच्छा लगेगा।' भेड़िए ने कहा।

“ आपकी सलाह बहुत अच्छी है।

मैं अभी दादी के लिए एक गुलदस्ता बनाती हूँ ।"

लिटिल हुड ने फूल तोड़ते हुए कहा।

फिर भेड़िया उससे विदा लेकर तेजी से दादी के घर की ओर बढ़ चला।

भेड़िया लिटिल हुड के बताए रास्ते पर चलता हुआ दादी के घर जा पहुँचा।

उसने घर का दरवाजा खटखटाया। दादी लेटी हुई थीं।

वे लेटे-लेटे ही बोलीं,‘“कौन है?” भेड़िए ने लिटिल हुड की आवाज निकालते हुए कहा, “दादी !

मैं हूँ, लिटिल रेड राइडिंग हुड। आपके लिए खाने का सामान लाई हूँ।”

“तुम हो बेटी ! दरवाजा खोलकर अंदर आ जाओ।''

दादी ने कहा।

भेड़िया तुरंत दरवाजा खोलकर घर के अंदर गया।

भेड़िए को देखकर दादी माँ डर गईं और भेड़िया उन्हें एक ही निवाले में निगल गया।

फिर वह दादी की टोपी पहनकर बिस्तर पर लेट गया और ऊपर से चादर ओढ़ ली ।

उधर इन सबसे बेखबर लिटिल हुड ने दादी के लिए फूलों का गुलदस्ता बनाया और आगे बढ़ चली।

दादी के घर पहुँचकर उसने घर का दरवाजा खटखटाते हुए कहा, “दादी माँ ! क्या मैं अंदर आ जाऊँ?"

भेड़िए ने धीमी आवाज में कहा, "आ जाओ, बेटी । "

लिटिल हुड अंदर आ गई।

वह दादी के पास आते हुए बोली, “दादी ! आपकी आवाज इतनी भारी क्यों है?"

“ताकि तुम्हारा ढंग से स्वागत कर सकूँ।'' भेड़िए ने जवाब दिया । “

ओह ! दादी आपकी आँखें इतनी बड़ी-बड़ी क्यों हैं?"

“ताकि तुम्हें अच्छी तरह देख सकूँ ।"

और आपके हाथ इतने बड़े क्यों हैं?"

“ताकि तुम्हें ढंग से गले लगा सकूँ।”

‘“दादी, आपका मुँह इतना बड़ा क्यों है?''

“ताकि तुम्हें अच्छे ढंग से खा सकूँ।"

यह कहकर भेड़िया बिस्तर से निकलकर बाहर आ गया और उसने तुरंत लिटिल हुड को निगल लिया।

अब उसका पेट फूलकर बहुत बड़ा हो गया।

उससे एक कदम भी नहीं चला जा रहा था।

वह वहीं दादी के बिस्तर पर सो गया।

तभी वहाँ से एक शिकारी गुजरा।

वह सुबह से शिकार की तलाश में था, पर अब तक असफलता ही उसके हाथ लगी थी।

भूख-प्यास के मारे उसका बुरा हाल हो

रहा था।

घर देखकर वह रूक गया।

उसने सोचा, “चलो, इस घर में जाकर देखा जाए।

क्या पता यहाँ कुछ खाने-पीने को मिल जाए।"

यह सोचकर वह घर के पास आया तो उसे घर के अंदर से खर्राटों की आवाज सुनाई दी।

उसने ध्यान से सुना कि यह खर्राटे किसी मनुष्य के नहीं हैं।

वह समझ गया कि अवश्य यहाँ कोई गड़बड़ है ।

शिकारी ने घर की खिड़की से झाँककर देखा तो उसे दादी के बिस्तर पर सोता हुआ भेड़िया दिखाई दिया।

उसका पेट फूला हुआ था।

यह देखकर शिकारी को समझते देर न लगी कि इस दुष्ट भेड़िए ने घर के मालिक को खा लिया है।

शिकारी बिना कोई आवाज किए तुरंत खिड़की के रास्ते अंदर आया और

उसने सोते हुए भेड़िए के सिर पर एक के बाद एक कई गोलियाँ दाग दीं।

भेड़िया तुरंत मर गया।

फिर शिकारी ने चाकू से भेड़िए का पेट चीरा।

भेड़िए का पेट चीरने पर लिटिल हुड और दादी बाहर निकल आए।

दोनों को सही-सलामत देखकर

शिकारी हैरान रह गया।

लिटिल हुड और दादी ने बाहर आकर राहत की साँस ली।

वरना भेड़िए के पेट के

अंदर तो उनका दम घुटने लगा था।

दादी शिकारी का शुक्रिया अदा करते हुए बोली,“यदि आप आज सही समय पर न आते तो हम दोनों नहीं बचते ।

आपने हमारी जान बचाकर हम पर बहुत बड़ा एहसान किया है।"

शिकारी ने लिटिल हुड के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा,“बेटा ! अब कोई खतरा नहीं है।"

दादी बोली,“चलिए कुछ खा-पी लेते हैं।"

फिर तीनों ने मिलकर माँ द्वारा भेजी गई सामग्री खा-पीकर अपनी भूख मिटाई ।

कुछ देर बाद लिटिल हुड की माँ भी वहाँ आ गई।

लिटिल हुड को सही-सलामत देखकर वे बहुत खुश हुईं।

उन्होंने दादी से उनका हालचाल पूछा।

तब दादी ने उन्हें पूरी बात बता दी।

माँ ने भी शिकारी का धन्यवाद अदा किया और लिटिल हुड के साथ घर की ओर चल पड़ीं।

रास्ते में लिटिल हुड बोली, “माँ! आज मुझे सबक मिल गया कि हमें कभी भी अपनी मंजिल से

पहले नहीं रूकना चाहिए और अजनबियों पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए।"

उसकी बात सुनकर माँ प्यार से मुस्कुरा दी।