Munirshah Story In Hindi- Munirshah Kahani

Munirshah Story In Hindi- Munirshah Kahani

मुनीरशाह की कहानी - मुनीरशाह कथा



मुनीरशाह

इस प्रकार उस नए शहर पर हुस्न बानो का राज चलने लगा।

कोई भी गरीब या मजबूर जनता उसके महल से उदास नहीं लौटती।

वह अपने शाही खज़ाने से सबकी झोली भर देती।

शहर के सभी लोग उसकी उदारता की तारीफ करते नहीं थकते।

उसका नाम यूँ ही हुस्न बानो न था बल्कि वह हकीकत में भी हुस्न की मल्लिका थी।

खुदा ने उसे खूबसूरत बनाने में कोई कमी नहीं छोड़ी थी।

उसकी सुंदरता और उदारता के किस्से दूर-दूर के देशों तक पहुँच चुके थे।

शाम देश के खूबसूरत और नौजवान शहजादे मुनीरशाह ने भी उसकी सुंदरता के किस्से सुन रखे थे।

एक दिन उन्होंने अपने शाही चित्रकार को बुलाकर कहा, "हुस्न बानो की खूबसूरती के किस्से तुमने न सुने होगे,

ऐसा तो हो नहीं सकता। मेरा दिल उसे देखने को बेताब है।

इसलिए मेरे दोस्त, मेरी खातिर तुम्हें हुस्न बानो से मिलकर उसकी एक तस्वीर बनानी होगी।

इस तरह उसे देखने की मेरी तमन्ना भी पूरी हो जाएगी।

मैं तुम्हारी यात्रा के लिए सारा इंतज़ाम करवा दूँगा।"

बस फिर क्या था, कुछ दिनों

की यात्रा के बाद कलाकार

हुस्न बानो के शहर में आ गया।

वहाँ के मुसाफिर खाने में उसे सुख-सुविधाओं की कोई कमी न दिखी।

गर्मागर्म बढ़िया भोजन करने और

लम्बी यात्रा की थकान मिटा लेने के बाद उसने एक आदमी से पूछा,

"भाई ! मैं परदेसी हूँ और हुस्न बानो से मिलना चाहता हूँ।”



वह आदमी बोला,‘“वह अजनबियों से कभी नहीं मिलती।

उनसे मिलना तो दूर अजनबी उन्हें सामने से देख भी नहीं सकता।

पर हाँ, यदि तुम चाहो तो पर्दे के पीछे से वह तुमसे बातचीत कर सकती हैं।"

उसके बाद चित्रकार ने उन्हें एक पैगाम भेजा, “क्या मैं आपसे अकेले में कुछ बातचीत कर सकता हूँ?"

हुस्न बानो की रज़ामंदी के बाद कलाकार उसके कहे हुए समय के मुताबिक उसके महल में गया ।

हुस्न बानो ने पर्दे के पीछे से कहा, “परदेशी !

इस मुल्क में आपका स्वागत है।

धन-दौलत, नाम-शोहरत या और कुछ, आपको जो भी चाहिए मैं जरूर मुहैया करवाऊँगी।

कलाकार बोला, ‘“मल्लिका! मुझे सोने-चाँदी, हीरे-जवाहरात कुछ नहीं चाहिए।

मैं आपके पास कुछ और ही चाह लेकर आया हूँ।

मैं शाम देश का रहने वाला हूँ और तस्वीर बनाना मेरा काम है।

मेरी दिली ख्वाहिश है कि मैं आपकी एक तस्वीर बनाऊँ।”

वह बोली,‘“माफ करना। तब तो मैं तुम्हारी चाह पूरी नहीं कर सकती, क्योंकि

तुम एक अजनबी हो और मैं कभी किसी अजनबी से रूबरू नहीं होती ।"

चित्रकार बोला, “मल्लिका ! मैं यह जानता हूँ।

इसलिए आपको कभी अपने सामने आने को कहूँगा भी नहीं।

आपसे मेरी बस इतनी ही गुज़ारिश है कि आप अपने महल की पहली मंजिल के छज्जे पर

आकर बैठें, ताकि नीचे रखे बर्तन के पानी में



आपका चेहरा देख-देख मैं आपकी तस्वीर बना सकूँ।''

वह बोली,‘“वाह ! तब तो मेरी तस्वीर बन सकती है।"

अगली सुबह हुस्न बानो अपने छज्जे पर आकर बैठ गई और नीचे रखे बर्तन के पानी में उसका चेहरा

देख-देख वह कलाकार तस्वीर बनाने लगा।

उसने उसकी दो तस्वीरें बनाई।

कलाकार ने पहली तस्वीर हुस्न बानो को देने के लिए बनाई थी

और दूसरी अपने मुल्क के शहज़ादे के लिए।

इस प्रकार हुस्न बानो की सुंदर-सी तस्वीर साथ लेकर वह कलाकार अपने मुल्क लौट गया।

वहाँ पहुँचकर उसने शहजादे को तस्वीर दी।

तस्वीर देखकर शहज़ादे हैरान रह गए क्योंकि इससे पहले उन्होंने ऐसी सुंदरता नहीं देखी थी।

वह उसी वक्त बादशाह के महल की ओर दौड़ पड़े और बादशाह. के पास जाकर बोले,“ अब्बा जान !

मैं हुस्न बानो को देखना चाहता हूँ और

कल ही उसके मुल्क के लिए रवाना हो रहा हूँ।"

बादशाह बोले, “बेटे! मेरी बात मानो। इतनी दूर न जाओ।

मैं तुम्हारी शादी दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की के साथ करवा दूँगा । "

इस प्रकार बादशाह ने शहज़ादे को काफी समझाया बुझाया, मगर बेटे की जिद



के सामने उनकी एक न चली। उन्होंने कोई उपाय न देखकर मुनीरशाह को जाने की इजाज़त दे दी।

इस प्रकार बादशाह को

राज़ी करने के बाद

शहजादे ने किसी तरह

रात तो काट ली मगर

सुबह होते ही भिखारी का

वेश बनाकर वह अपने

महल से निकल गए।

शाम देश और हुस्न बानो के शहर के बीच कुछ नदियाँ और कुछ रेगिस्तान भी थे।

मगर नदियों की तेज़ धार और गर्म रेत की परवाह किए बिना वह आगे बढ़ते गए।

आखिरकार, उनके प्यार की ताकत ने उन्हें मंज़िल तक पहुँचा ही दिया।

मगर शहर के द्वार पर पहुँचते ही वह बेहोश होकर गिर पड़े।

लम्बी यात्रा और तरह-तरह की मुसीबतों के कारण उनकी हालत बद से बदतर हो चुकी थी।

उनकी एड़ियाँ लहूलुहान थीं।

शाही लिबास की जगह शरीर पर मैले-कुचैले चिथड़े पड़े थे ।

द्वारपालों ने परदेसी भिखारी समझकर उन्हें उठाया और नज़दीक के आरामगृह में पहुँचा दिया।

जब उन्हें होश आया, तब द्वारपाल ने कहा, 'परदेसी, तुम कुछ खा-पी लो।

फिर स्नान कर लेना। उसके बाद अपना परिचय देना।"

शहज़ादे ने कहा, "सबसे पहले मुझे हुस्न बानो से मिला दो।

उसके बाद ही मैं कोई और काम करूँगा।"

द्वारपाल बोला, "देखो, तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है। थोड़ा खा-पी लेने के बाद



ही तुम्हें उनसे मिलना चाहिए।

चिंता न करो मैं उन तक तुम्हें जरूर पहुँचा दूँगा।"

शहज़ादे ने फिर वही कहा, "नहीं, नहीं, तुम सचमुच मेरी मदद करना चाहते हो

तो पहले मुझे उनसे मिलवा दो।"

द्वारपाल बोला, “ठीक है, मैं अभी किसी आदमी को उनके पास भेजता हूँ।"

उसके बाद वह आदमी हुस्न बानो के पास जाकर बोला, "कोई अजनबी भिखारी आपसे मिलना चाहता है।

वह आपसे मिले बिना कुछ भी खाने-पीने को तैयार नहीं ।"

इस प्रकार शहज़ादे हुस्न बानो के पास पहुँचे

हुस्न बानो ने पर्दे के पीछे से कहा,

“परदेसी ! इस मुल्क में तुम्हारा स्वागत है।

इस वक्त तुम मेरे मेहमान हो और मेरा कोई मेहमान भूखा-प्यासा रहे, भला यह कैसे हो सकेगा?

इसलिए तुम पहले भरपेट खा-पी लो।

फिर मैं तुम्हारी माँगें भी पूरी करूँगी ।

हुस्नबानो की मीठी आवाज़ ने शहजादे के दिल के तार को झंकृत कर दिया।

उन्होंने खुद को सँभाला और कहा, "मल्लिका! मैं भिखारी नहीं, बल्कि शाम देश का शहज़ादा मुनीरशाह हूँ।

मैं तरह-तरह की मुसीबतों को झेलकर इतनी दूर से बस तुमसे मिलने के लिए ही आया हूँ।

तुमने अगर मुझसे शादी करने से इंकार किया तो मैं अभी यहीं अपनी जान दे दूँगा।"

मुनीरशाह के दिल से निकली आवाज हुस्न बानो के दिल को छू गई।

वह बोली, ‘“शहज़ादे ! तुम्हारे दिल में मेरे लिए जो प्यार है, मैं उसकी कद्र करती हूँ।

मगर मेरी शादी उसी के साथ होगी जो मेरी सात पहेलियों को सही-सही हल कर देगा।''

मुनीरशाह ने उसी क्षण कहा, “तुम्हें पाने के लिए मैं क्या नहीं कर सकता।

पहेलियाँ तो सुनाओ।'



वह बोली,‘“मेरी पहली पहेली है-एक बार देखा है, फिर से देखने की चाह है-यह वाक्य किसने और क्यों कहा?

तुम्हें पता लगाकर जवाब देना है।''

महल से बाहर आकर शहज़ादे ने सोचा, "इसका जवाब ढूँढ़ पाना तो नामुमकिन ही लगता है,

मगर यूँ ही हाथ पर हाथ धरकर बैठे रहने से भी क्या लाभ?"

यही सोचकर वह जंगलों और रेगिस्तानों में इधर-उधर घूमने लगे।

कई दिनों तक यूँ ही मारे-मारे फिरते रहने के बाद उनमें खड़े रहने की भी ताकत न रही।

तब वह एक पेड़ की छाया में लेट गए और हुस्न बानो की तस्वीर अपने दिल में बसाकर अपनी बदनसीबी पर रोने लगे।

उनकी आँखें बंद थीं, मगर उनसे आँसू निकल रहे थे ।

होंठ बंद थे, मगर सिसकियाँ थमने का नाम नहीं ले रही थीं।

उनकी एड़ियाँ काँटों से लहूलुहान थीं।

तभी अचानक हातिमताई की नज़र उन पर पड़ी।

शहज़ादे को गौर से देखने के



बाद उन्होंने सोचा, 'लगता है यह भिखारी किसी गहरे सदमे का शिकार है ।' फिर उन्होंने पूछा, “परदेसी ! तुम

कौन हो और यहाँ इस तरह

क्यूँ पड़े हो?" अपना

परिचय देकर शहज़ादे ने

हातिमताई को अपनी सारी

कहानी कह सुनाई।

शहज़ादे की बात सुनकर

हातिमताई का दिल रो पड़ा

और वह बोले, "मुनीरशाह !

मुझे अपना मित्र समझो । अब

तुम्हारा दुख सिर्फ तुम्हारा नहीं, मेरा भी है। तुम मेरे घर चलो।

हम कुछ न कुछ तरकीब निकाल ही लेंगे, ताकि हुस्न बानो तुम्हारी हो सके।"

इस प्रकार मुनीरशाह हातिमताई के महल में पहुँच गए।

जनता ने अपने बादशाह और उनके मेहमान को सर-आँखों पर बिठा लिया।

हातिमताई बोले, “दोस्त ! पहले तुम नहा-धोकर कुछ खा-पी लो।

फिर थोड़ा आराम कर लेना। उसके बाद हम साथ बैठकर बातें करेंगे।"

सचमुच नहाने, खाने और थोड़ा आराम कर लेने से मुनीरशाह को ब

ड़ी राहत मिली।

उसके उठने के बाद हातिमताई ने हुस्न बानो और उसके शहर के बारे में उनसे पूरी जानकारी ली।

फिर उन्होंने अपने भरोसेमंद मंत्रियों को बुलाकर कहा,

'एक जरूरी काम से कुछ दिनों के लिए मुझे वतन से बाहर जाना है,

मेरे लौटने तक पूरे साम्राज्य का कार्य - भार आप पर और शाम देश के शहज़ादे पर ही होगा,

ताकि हमारी जनता के प्रति न्याय और उदारता में थोड़ी भी कमी न होने पाए और



हमारा मुल्क सुरक्षित रहे।" फिर उन्होंने शहजादे से कहा, "दोस्त !

अपना ध्यान रखना।

हुस्न बानो की सातों पहेलियों का ठीक-ठीक हल ढूँढ़कर मैं

जल्द ही लौट आऊँगा और फिर तुम दोनों हमेशा के लिए एक दूसरे के हो जाओगे।"

फिर क्या था, हातिमताई हुस्न बानो के पास जा पहुँचे और बोले, “मल्लिका!

आप मुझे अपनी शादी की शर्त से जुड़ी पहली पहेली सुनाइए।

साथ ही साथ यह भी वादा कीजिए कि जब मैं आपकी हर पहेली को सही-सही हल कर दूँगा,

तब मेरी ही पसंद के लड़के के साथ आप शादी करेंगी।"

वह बोली, "मैं वादा करती हूँ कि आपके द्वारा अपने सातों पहेलियों का

जवाब पाने के बाद मैं आपकी पसंद के अनुसार ही शादी करूँगी।

अब आप मेरी पहली पहेली सुनिए- एक बार देखा है,

फिर से देखने की चाह है- यह किसने और क्यों कहा, आपको पता लगाना है।"

हुस्न बानो की पहली पहेली सुनने के बाद हातिमताई उसके महल से चल पड़े।