विश्व के अनसुलझे अंतिम रहस्यों में से एक रहस्य ओल्मेक सभ्यता से संबंधित है। ओल्मेक लोग कौन थे? वे अचानक कहां गायब हो गए?
ओल्मेकों को अमेरिकी सभ्यता का प्रथम प्रवर्तक माना जाता है। उनका शिल्प, उनका अंकलेखन तथा कलैण्डर बनाने की उनकी तकनीक पुरातत्वशास्त्रियों को आश्चर्य में डाल देती है। ओल्मेकों के बाद आने वाली सभी सभ्यताओं पर उनका प्रभाव पड़ा। विद्वानों ने 'मात्रा' सभ्यता का अध्ययन करके ओल्मेकों के बारे में जानकारी एकत्रित करने की काफी कोशिश की है लेकिन अभी तक कई प्रश्नों के संतोषजनक उत्तर नहीं मिल सके हैं।
केवल एक शताब्दी पहले ही यह पता चला है कि अमेरिका की प्रथम सभ्यता ओल्मेक (Olmecs) लोगों की सभ्यता थी, जो महान् शिल्पकार व मूर्तिकार थे। उन्होंने अंक लेखन तथा कलैण्डर बनाने की दिशा में भी ध्यान देना प्रारम्भ कर दिया था। ओल्मेक लोगों के बाद 'मात्रा' सभ्यता आई, जिसकी उपलब्धियों से पुरातत्वशास्त्र ने हमें अच्छी तरह परिचित तो करा दिया है लेकिन अभी भी ओल्मेक सभ्यता से संबंधित तमाम प्रश्नों का उत्तर नहीं मिल पाया है। अगर यह पता चल जाए कि ओल्मेक लोगों के अदृश्य होने तथा उनकी सभ्यता के ध्वंस की परिस्थितियां क्या थीं तो अमेरिका के प्रागैतिहासिक काल के बारे में हमारी समझ बहुत विकसित हो सकती है।
13वीं शताब्दी ईसा पूर्व अर्थात 3,200 वर्ष पहले मैक्सिको की खाड़ी में इस आदिकालीन सभ्यता का उद्भव हुआ।
इसके बाद 12 शताब्दियों तक इसका विकास होता रहा।
फिर अचानक रहस्यमय ढंग से ओल्मेकों का अस्तित्व ही समाप्त हो गया।
मध्य अमेरिका के घने उष्णकटिबंधीय जंगल, नीची दलदली धरती नदियों और सोतों की बाढ़-किसी भी सभ्यता के विकास के लिए खासी दुर्गम थी
लेकिन इन्हीं कठिनाइयों से जूझते हुए ओल्मेक सभ्यता परवान चढ़ी।
यह तथ्य इस सभ्यता के अस्तित्व को और भी प्रशंसनीय बना देता है।
अभी तक पुरातत्वशास्त्रियों को लेगूना डि लॉस सिरोस (Laguna de los cerros) सैन लोरेंज़ो (San Lorenzo),
ट्रेस जापोटेस (Tres Zapotes) तथा ला वेण्टा (La Venta) नामक चार जगहों पर ओल्मेक लोगों की सभ्यता के प्रामाणिक चिह्न मिले हैं।
इनके आस-पास रबड़ के पेड़ों के होने के कारण ही इस सभ्यता के संस्थापकों को 'ओल्मेक' नाम मिला क्योंकि रबड़ को इण्डियन भाषा में ओलिन (Ollin) कहते हैं।
ओल्मेकों का एक रहस्यमय बुत : यह किसी खगोलशास्त्री का चित्र है या किसी बंदर का?
अनुमान लगाया जाता है कि ईसा से 800 वर्ष पूर्व तथा 500 वर्ष तक ला वेण्टा मैक्सिको में ओल्मेक सभ्यता का सबसे बड़ा धार्मिक केन्द्र रहा होगा।
इनके अवशेष बताते हैं कि कोलम्बस से पूर्व की अवधि में मैक्सिको में नगर निर्माण की कला का विकास हो रहा था।
यहां पर छोटा सीढ़ीदार पिरामिड पाया गया है।
जिसके सामने एक चार बासल्ट के खम्भों पर एक चौकोर छत्र बना हुआ है।
पास ही में दो समानांतर टीलों की सीमा से घिरा हुआ अमेरिका का सबसे पहला गेंद खेलने का पवित्र कोर्ट निर्मित किया गया है।
यह पूरा स्मारक देखने में मनुष्य निर्मित ज्वालामुखी जैसा लगता है।
सम्भवतः इस इलाके को मृतकों की कब्रें बनाने के लिए प्रयोग किया जाता रहा होगा।
इन स्मारकों के अंदर नक्काशीदार चट्टानें, अलंकृत वेदियां तथा बासाल्ट के विशालकाय चेहरे मिले हैं।
इन चेहरों की आकृतियां व भाव देखकर मानवविज्ञानी सफल नहीं हुए हैं।
चक्कर खा गए हैं। वे इन चेहरों को किसी भी जानी-पहचानी नस्ल से जोड़ने में
एक मैक्सिकी ग्राम के चर्च के निकट हरे पत्थर की एक ऐसी मूर्ति बरामद हुई है, जिसमें एक कुआंरी स्त्री एक बच्चे को गोद में लिए हुए लगती थी।
वास्तव में यह 8वीं शताब्दी ईसा पूर्व का एक ओल्मेक शिल्प था, जिसमें एक पुरुष वर्षा के देवता को हाथों में उठाए हुए है।
इसी तरह की एक रहस्यमय मूर्ति बासाल्ट के एक खम्भे के रूप में पाई गई, जिसमें बंदर की शक्ल का एक आदमी आकाश की ओर ताक रहा है।
लोग आज भी अंदाजा लगाते हैं कि यह व्यक्ति क्या तारों की पूजा करने वाला व्यक्ति था या यह कोई ओल्मेक खगोलशास्त्री था?
कुछ विशेषज्ञों का विचार है कि वह मूर्ति किसी व्यक्ति की न होकर एक बंदर की ही मूर्ति है।
ला वेण्टा में धरती के नीचे दबी हुई 8-8 इंच लम्बी मूर्तियों का एक समूह मिल जाने से ओल्मेकों के कर्मकाण्डों की थोड़ी-बहुत जानकारी होती है।
अभी तक यह
ओल्मेकों का एक अन्य शिल्प। अन्य
ओल्मेक बुतों की तरह इस बुत का चेहरा सफाचट नहीं है। इस बुत
को आज पहलवान के नाम
से जाना जाता है।
तय नहीं हो पाया है कि लाल पत्थर से बनी हुई व्यक्ति की मूर्ति क्या दर्शा रही है।
क्या वह व्यक्ति कोई पुजारी है, जो सामने खड़े भक्तों को उपदेश दे रहा है या वह कोई अपराधी है,
जो मृत्युदण्ड की प्रतीक्षा कर रहा है।
इतना तय है कि जिस अंदाज से ये मूर्तियां खड़ी हुई हैं, उससे साफ लगता है कि वे किसी नाटकीय दृश्य का प्रतिनिधित्व करती हैं।
एक बासाल्ट की वेदी में मुकुट पहने हुए व्यक्ति की मूर्ति बनी हुई है, जो अपने हाथ में पकड़ी हुई रस्सी से एक कैदी की कलाई बांधे हुए है,
जिसे संभवतः बलि देने के लिए ले जाया जा रहा है। देवताओं को बलि देने की यह प्रथा अज्टेक (Aztecs) सभ्यता के युग तक जारी रही।
यह वेदी भी ला वेण्टा के खण्डहरों की ही देन है।
5 इंच बड़े एक जेड पत्थर से बनी मूर्ति 'रोता हुआ बच्चा' से ओल्मेक लोगों की शिल्पगत प्रतिभा का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है।
ओल्मेक मूर्तियां अधिकांशतः जेगुअर (Jaguar) देवता की मुखाकृति से मेल खाती हैं।
9 फुट ऊंची राजा के शरीर की आकृति वाली एक नक्काशी को देखने से लगता है कि वह ओल्मेकों का कोई लड़ाकू राजा रहा होगा।
उसके सामने हाथ जोड़े हुए खड़ी हुई आकृतियां भी हैं।
बासाल्ट के एक 18 टन भारी टुकड़े से बनाया गया दैत्याकार चेहरा इस बात का सबूत है
कि उस जैसी 14 अन्य मूर्तियों के लिए पत्थर 'पटरा-बेड़ों' द्वारा खानों से नदियों के रास्ते लाए गए होंगे।
इससे पता चलता है कि ओल्मेक समाज एक शक्तिशाली, सक्षम तथा संगठित समाज होगा।
इन विशालकाय चेहरों के बारे में अनुमान लगाया जाता है कि
ये राजाओं के चेहरे होंगे लेकिन कछ अन्य विद्वानों का विचार है कि ये चेहरे साढ़े तीन पौण्ड भारी रबर की गेंद से खेले जाने वाले खतरनाक खेल के पराजित खिलाड़ियों के चेहरे हैं।
इन चेहरों के सिर पर बने हुए शिरस्त्राणों से एक हद तक इन अनुमानों की पुष्टि भी होती है।
सरंध पत्थर के एक बुत को आज 'पहलवान' (Wrestler) के नाम से जाना जाता है।
इस बुत की विशेषता यह है कि अन्य ओल्मेक बुतों की तरह यह बिना दाढ़ी-मूंछ का व मोटे नाक-नक्श वाला नहीं है।
इसकी मुखाकृति तीखी है तथा इसके चेहरे पर दाढ़ी भी है।
यह चेहरा बताता है कि ओल्मेक सभ्यता में मल्ल विद्या भी मौजूद थी तथा मुखाकृतियों में एकरसता न होकर विभिन्नता भी है।
इन मूर्तियों से ओल्मेकों के आध्यात्मिक संसार, उनके रीति-रिवाजों तथा उनकी खूबियों का सारांश ही पता लग पाया है।
बाद में 'मात्रा' सभ्यता की जानकारी से लोगों ने ओल्मेकों के बारे में लगाए जाने वाले अनुमान में कुछ और वृद्धि की लेकिन
अभी तक अमेरिकी सभ्यता के इन प्रवर्तकों की प्राचीन दुनिया विश्व के अनसुलझे अंतिम रहस्यों में से एक बनी हुई है।