Pahli Pheli Hatimtai Story In Hindi- Pahli Pheli Hatimtai Kahani

Pahli Pheli Hatimtai Story In Hindi- Pahli Pheli Hatimtai Kahani

पहली पहेली हातिमताई की कहानी - पहली पहेली हातिमताई कथा



पहली पहेली

हस्न बानो के महल से निकलने के बाद हातिमताई उसकी पहली पहेली का जवाब

ढूँढ़ने के लिए सीधे जंगल में चले गए।

जंगल के पेड़-पौधों और खूँखार जानवरों को यह समझते देर न लगी कि उनके जंगल में कोई

आम आदमी नहीं बल्कि वीर और दानी हातिमताई आए हैं।

इसलिए सबने उनका साथ दिया।

मगर कुछ दिनों तक जंगल में इधर-उधर घूमने के बावजूद उन्हें पहेली का हल

न मिल सका और तब वह थोड़ा परेशान भी हो गए।

कभी वह सोचते इधर जाऊँ, ऐसा करूँ तो कभी सोचते उधर जाऊँ, वैसा करूँ।

मगर फिर भी हुस्न बानो की पहेली का हल ढूँढ़ने का उनका जुनून थोड़ा भी कम न हुआ और वह खुदा का नाम लेकर तेज़ी से

आगे बढ़ते गए। उन्हें इस बात का इल्म था कि कोशिश,

साहस और बलिदान कभी बेकार नहीं जाती।

उन्हें खुद पर पूरा भरोसा था।

इस प्रकार जंगल में चलते-चलते एक दिन उनकी नज़र एक हिरन पर पड़ी।

हिरण जान-प्राण लेकर भागी जा रही थी क्योंकि एक भेड़िया उसका शिकार

करने के लिए उसके पीछे पड़ा था।

धीरे-धीरे दोनों का फासला कम होता जा रहा था।

जब वे एक दूसरे के बहुत करीब आ गए,

तब



हातिमताई अपनी चमकती हुई तलवार लेकर दोनों के बीच में जा पहुँचे।

इस प्रकार उन्होंने हिरन की जान बचाई।

हाथ आए शिकार को भागते देख भेड़िया उन पर गुर्राते हुए बोला,"तुम्हारे कारण मेरा शिकार हाथ से निकल गया।

मैं कब से उसका पीछा कर रहा था!

वैसे मैंने तुम्हें पहचान लिया है कि तुम हातिमताई हो,

क्योंकि इतनी हिम्मत और दया तुम्हारे सिवा और किसमें हो सकती है !

” वह बोले,‘“तुमने सही पहचाना, मैं हातिमताई ही हूँ।"

भेड़िया बोला, “फिर यह तो बताओ कि तुम्हें बस हिरन पर ही रहम करना आता है, और किसी पर नहीं?

हर किसी को जिंदा रहने के लिए अपना पेट भरना ज़रूरी होता है, और

तुम अच्छी तरह जानते हो कि मुझे अपना पेट भरने के लिए शिकार करना ही पड़ेगा।

फिर हिरन को भगाकर क्या तुमने मेरा भोजन मुझसे नहीं छीन लिया?

उसे बचाने का मतलब है, मुझे मौत के करीब पहुँचाना क्योंकि इस तरह बिना शिकार खाए भूखे रहकर

मैं भला कब तक बच सकूँगा? मुझे तो



लगता है कि तुम अपने साथ मेरी मौत का पैगाम लाए हो।"

यह सुनकर हातिमताई बोले,“नहीं मित्र!

मेरे रहते तुम भूखे नहीं मर सकते।”

इतना कहते-कहते उन्होंने तलवार से अपनी जाँघ का मांस काटा और

उसकी तरफ बढ़ाते हुए बोले,‘“मित्र! इसे खाकर तुम जिंदा ज़रूर रह सकोगे।”

भेड़िया बोला, “भूत, वर्तमान और भविष्य तीनों में पूरी धरती पर तुम जैसा दानी कोई और

नहीं हो सकता। तुम जैसे नेक इंसान से मुझे इस तरह से पेश नहीं आना चाहिए था।

खैर, यह तो बताओ कि इतने घने और डरावने जंगल में तुम खोज क्या रहे हो?

शायद मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूँ।"

कोई जवाब न पाकर भेड़िया फिर बोला, “कहो, कहो, यहाँ तुम किस काम से आए हो?''

इस प्रकार वह उससे बार-बार यही सवाल पूछने लगा।

भेड़िए की ज़िद देखकर वह बोले, “एक बार देखा है,

फिर से देखने की चाह है-यह वाक्य किसने और क्यूँ कहा,

मैं इसी सवाल का जवाब ढूँढ़ रहा हूँ।" भेड़िया बोला, “अरे!

इसका पता लगाने के लिए तो तुम्हें 'दस्त-ए-हवेदा' जाना होगा । मगर वह यहाँ से बहुत दूर है।

"

फिर भेड़िये ने उन्हें वहाँ जाने का रास्ता भी बतलाया।



इस प्रकार हातिमताई का नया सफर शुरू हुआ और

वे दस्त-ए-हवेदा के लिए चल पड़े।

मगर चलते-चलते उनकी जाँघ के जख्म से कुछ ज़्यादा ही खून गिरने लगा था।

दर्द बढ़ते जाने के कारण उनसे अब थोड़ा भी चला नहीं जा रहा था।

आखिरकार वह एक पेड़ की छाया में लेट गए।

अब उनसे दर्द सहा नहीं जा रहा था और वह कराह रहे थे।

उनकी कराह सुनकर वहीं पास के माँद में रहने वाले नर और मादा सियार बाहर निकल आए।

उन्हें देख मादा सियार ने नर सियार से कहा,‘“देखो तो, बेचारा कैसे कराह रहा है।

शायद उसे असह्य पीड़ा हो रही है।

क्यों न हम उसकी मदद करें, ताकि उसे दर्द से थोड़ी राहत मिल जाए।"

नर सियार हातिमताई को देखते ही पहचान गया। वह बोला, “अरे !

तुमने इसे नहीं पहचाना? यह तो रहमदिल इंसान हातिमताई है।

जानती हो उसकी जाँघ पर वह गहरा ज़ख्म कैसे हुआ?

मैं बताता हूँ ।

उसने भूखे भेड़िए का पेट भरने के लिए अपने ही हाथों अपनी जाँघ का मांस काट डाला था।

ऐसे इंसान की हमें ज़रूर मदद करनी चाहिए।

मगर परीरू का भेजा लाए बिना हम उसका ज़ख्म नहीं भर सकते और मानव जैसे

सिर एवं मोर जैसे शरीर वाले उस जीव का भेजा लाने के लिए हमें दस्त-ए-जाउदन जाना होगा।

खैर मैं वहाँ जाकर यह काम कर लूँगा।



तब तक तुम हातिमताई के पास ही रहना।"

इतना कहकर वह दस्त-ए-जाउदन की ओर चल पड़ा।

वहाँ पहुँचकर उसने परीरू को एक पेय पिलाया।

पेय पीते ही परीरू मग्न होकर नाचने लगा ।

सियार ने सोचा, “इससे अच्छा मौका भला और क्या हो सकता है,

इसे मारने का?" उसने उस परीरू पर पत्थर से वार किया।

पत्थर लगते ही परीरू जमीन पर बेहोश होकर गिर पड़ा।

तब सियार ने उसकी गर्दन दबाकर हमेशा के लिए उसका काम तमाम कर दिया

और उसका भेजा लेकर दौड़ा-दौड़ा हातिमताई के पास जा पहुँचा।

वहाँ पहुँचते ही उसने परीरू के भेजे को उनके ज़ख्म पर रखा।

फिर क्या था, कुछ ही देर में उनका ज़ख्म भर गया और वह उठ खड़े हुए।

उन्होंने नर और मादा सियार को धन्यवाद दिया और कहा, "तुमने मुसीबत में मेरी

सहायता करके मुझपर बड़ा एहसान किया है।

अगर मैं भी तुम्हारे कुछ काम आ सकूँ, तो ज़रूर कहो।"

मादा सियार बोली, “यदि तुम हमारी मदद करना चाहते ही हो तो

मेहरबानी करके हमें पहाड़ी की गुफा में रहने वाले खूँखार शेर और उसकी पत्नी के आतंक



से छुटकारा दिला दो। वह हमेशा इसी ताक में रहते हैं

कि कब हमारे बच्चे जन्में और वे उन्हें खाकर अपनी भूख मिटाएँ।

वे हमारे बच्चे को बड़ा ही होने नहीं देते।”

हातिमताई बोले,‘“ठीक है। मैं अभी जाकर उनसे मिलता हूँ।”

इतना कहकर वे पहाड़ी की ओर बढ़ने लगे और सीधे शेर-शेरनी की गुफा में जा पहुँचे।

फिर वे उनके नज़दीक जाकर बोले,

“क्या यह सच है कि तुम सियार के एक भी बच्चे को जिंदा नहीं छोड़ते?"

शेर ने गुर्राकर कहा, “हाँ, हम उन्हें खाकर अपना पेट भरते हैं।

मगर तुम्हारी यह मजाल कि तुम जंगल के राजा के पास आकर इस तरह का सवाल करो ।

अरे, सियार के बच्चों की नहीं अब अपनी जान की खैर मनाओ।

वैसे भी ज़माना बीत गया आदमी के मांस को चखे हुए।"

शेर की बात सुनकर वह सोचने लगे, ‘लगता है इसे सबक सिखाना ही पड़ेगा।'

फिर वह गुस्से में आकर बोले, “यदि तुम ये कहते कि



हाँ, मुझसे गलती हुई है कि मैं सियार के छोटे-छोटे बच्चों को हमेशा खा

जाया करता हूँ, मगर आगे से ऐसी गलती कभी नहीं करूँगा,

तो मैं खुशी-खुशी अपने आप को तुम्हारे हवाले कर देता।

पर दोबारा गलती न करने की बात तो दूर, तुम तो अपनी ग

लती तक मानने को तैयार नहीं।

इसलिए अब तुम बस सज़ा पाने के ही हकदार हो । "

इतना कहते-कहते वह शेर और शेरनी पर टूट पड़े।

फिर उन्होंने अपने हाथों से फौरन दोनों को ज़मीन पर पटक दिया।

उसके बाद उसके सारे दाँत और नाखून उखाड़ डाले।

शेर और शेरनी को असह्य पीड़ा होने लगी और वह छटपटाने लगे।



दोनों को इस तरह रोते देख भला रहमदिल हातिमताई से कैसे रहा जाता।

उन्होंने कहा, “ अल्लाह! इन्हें इनकी गलती के लिए माफ कर दो।”

उनकी फरियाद अल्लाह ने सुन ली और शेर-शेरनी को उसी समय दर्द से राहत मिल गई।

फिर उन दोनों ने रोते-रोते कहा, “ओ रहमदिल हातिमताई!

तुमने खुदा से फरियाद करके हमें दर्द से राहत तो दिला दी, मगर हमारे दाँत और नाखून उखाड़ते समय यह नहीं

सोचा कि इनके बिना हम शिकार कैसे करेंगे और शिकार नहीं करेंगे

तो हम अपना पेट कैसे भरेंगे! खैर जो भी हो, अब हमें अपने हाल पर छोड़ दो।"

तभी अचानक वहाँ सियार आ पहुँचा और शेर-शेरनी से बोला,

“आप हमारे राजा-रानी हैं। मैं वादा करता हूँ कि हर रोज़ आपके लिए भोजन लाया करूँगा।''

सियार की बात सुनकर शेर-शेरनी ने रोना बंद कर दिया ।

सब कुछ ठीक देखकर हातिमताई वहाँ से आगे बढ़ गए।

थोड़ी दूर जाने पर उन्हें एक चौराहा मिला।

वह सोचने लगे, 'किधर जाना अच्छा होगा?' इससे पहले

कि वह कुछ तय कर पाते एक नर और मादा भालू ने उनके पास आकर कहा,

“हातिमताई ! हमारे साथ चलो। तुम्हें हमारे राजा ने बुलाया है।"



हातिमताई का स्वागत करने के बाद भालुओं के राजा ने कहा,“हातिमताई !

तुम एक वीर और दानी पुरुष हो। मैं अपनी बेटी की शादी तुमसे करना चाहता हूँ।”

यह सुनकर वह हैरानी के साथ बोले, “ भालूराज! यह आप क्या कह रहे हैं?

मानव और पशु की शादी भला कैसे हो सकती है?

मुझे दुख है कि मैं आपकी चाह पूरी नहीं कर सकता।"

हातिमताई के इनकार करने के बाद भालूराज ने हातिमताई को एक अँधेरे गड्ढे में डाल दिया।

उसने सोचा, 'अँधेरे गड्ढे में दो-चार दिनों तक पड़े रहने से इसका दिमाग ठिकाने आ जाएगा

और तब यह मेरी बेटी से शादी करने के लिए तैयार हो जाएगा।'

इस प्रकार सात दिन बीत गए मगर हातिमताई की जुबान से भूले से भी कभी हाँ न निकली।

उस रात हातिमताई ने ख्वाब में देखा कि एक बूढ़ा आदमी उनसे कहा रहा है,

भालूराज की बात क्यों नहीं मान लेते? इससे तुम फायदे में ही रहोगे ।'

सुबह होते ही हातिमताई ने शादी के लिए हाँ कर दी।

फिर जंगल के तौर-तरीकों



के साथ धूमधाम से भालूराज की बेटी के साथ उनकी शादी भी हो गई।

शादी के कुछ दिनों के बाद हातिमताई ने अपनी बेगम से कहा, “वैसे तो हमारी शादी

के अभी थोड़े ही दिन बीते हैं, लेकिन मैंने अपने एक मित्र को कुछ वायदे किए थे

और जिन्हें पूरा करने के लिए मुझे यहाँ से दस्त-ए-हवेदा के लिए रवाना होना पड़ेगा।

इसलिए तुम अपने पिता से कहकर मुझे कुछ दिनों के लिए वहाँ जाने की इजाज़त दिलवा दो।"

अपनी बेटी की बात सुनने के बाद भालूराज ने हातिमताई से कहा,“बेटे! मुझे तुम पर पूरा भरोसा है।

तुम्हें अपना वचन अवश्य निभाना चाहिए।"

हातिमताई की बेगम ने उन्हें एक मणि देते हुए कहा,

“आप इस जादुई मणि को अपनी पगड़ी में रख लें।

यह आप पर किसी तरह की मुसीबत नहीं आने देगी।”

इस प्रकार वह मणि लेकर दस्त-ए-हवेदा की ओर बढ़ने लगे।

रास्ते में एक बड़ा-सा रेगिस्तान मिला।

वहाँ दूर-दूर तक पेड़-पौधों का कोई नामो-निशान न था।

कई घंटों तक गर्म रेत पर चलते-चलते उनका बुरा हाल था।

भूख-प्यास भी लग चुकी थी।

आखिरकार एक ऊँची चट्टान देखकर वह उसकी छाया में बैठ गए।

तभी अचानक उनकी नज़र अपने सामने खड़े सफेद



दाढ़ी वाले आदमी पर पड़ी जिसके हाथों में भोजन-पानी था।

उसने थाल आगे बढ़ाते हुए हातिमताई से कहा,“लीजिए,

यह आपके लिए है।" फिर वह गायब हो गया।

खाना खाने के बाद हातिमताई नए जोश के साथ

अपनी मंज़िल की ओर बढ़ने लगे।

मगर थोड़ी दूर जाने पर ही एक विशाल साँप ने उन पर हमला कर दिया।

अचानक हुए इस हमले के कारण उनकी तलवार भी हाथ से छूट गई

और वह सीधे उस बड़े से साँप के पेट में जा पहुँचे।

साँप का पेट बदबूदार गैस और ज़हरीले अम्ल से भरा हुआ था।

बावजूद इसके जादुई मणि ने उन्हें बचाए रखा।

उनके पास कोई भी ऐसी धारदार चीज़ न थी, जिससे उसका पेट चीरा जा सके।



फिर भी वे तीन दिनों तक साँप के लम्बे-चौड़े पेट में लगातार

हलचल मचाते रहे जिससे साँप के पेट में तेज दर्द होने लगा।

आखिरकार हारकर चौथे दिन साँप ने उन्हें उगल दिया।

साँप के मुँह से बाहर आने के बाद उनके पूरे बदन पर एक लसलसा पदार्थ जरूर चिपक गया था।

लेकिन किसी बात की परवाह न कर उन्होंने आगे का सफर शुरू किया।

चलते-चलते उन्हें एक तालाब मिला।

उन्होंने वहाँ स्नान भी किया।

फिर खुदा को धन्यवाद देकर वह आगे बढ़ चले।

आगे का रास्ता पहाड़ से होकर जाता था।

वह पहाड़ पर चढ़ने लगे। ऊपर चढ़ने पर उन्हें एक हरा-भरा खूबसूरत-सा मैदान मिला।

वहाँ पके-पके रसदार फलों वाले पेड़ भी थे।

पक्षियों के गाने से वातावरण गूँज रहा था। मैदान के बीचोंबीच बहने वाला झरना वहाँ की सुंदरता में चार चाँद लगा रहा था।

उस पहाड़ के पास ही दूसरे पहाड़ की चोटी पर एक छोटा-सा घर बना हुआ था।

हातिमताई उस चोटी पर जा पहुँचे। अंदर कमरे में आरामदेह बिस्तर भी लगा



था। अपनी थकान मिटाने के लिए वह बिस्तर पर लेट गए ।

थोड़ी देर के बाद नींद खुलते ही उनकी नज़र अपने पास बैठे हुए बूढ़े आदमी पर पड़ी।

इससे पहले कि वह उठकर बैठते, वह आदमी विनम्रता के साथ बोला, ‘“बेटे!

मैं तुम्हारे आराम में खलल नहीं डालूँगा।

वैसे भी एक मुद्दत के बाद मेरे घर कोई मेहमान आया है ।

पर बेटे तुम हो कौन और यहाँ कैसे आना हुआ?”

अपना परिचय देने के बाद हातिमताई बोले,

"मेरी मंजिल तो दस्त-ए-हवेदा है और मुझे वहीं जाना है।"

वह आदमी बोला, ‘“बेटे! मैं तुम्हारी हिम्मत की दाद देता हूँ,

क्योंकि तुम वहाँ जाना चाहते हो, जहाँ से अब तक कोई ज़िंदा लौटकर नहीं आया।

समझ लो वहाँ जाना खतरों से खेलना है।

वहाँ जाने के रास्ते में तुम्हें बहुत-सी अजीब-अजीब चीज़ें दिखेंगी।

कुछ खूबसूरत औरतों से मुलाकात भी होगी।

तुम उनकी बात मान लेना।

उसके बाद तुम्हारी मुलाकात एक सबसे खूबसूरत औरत से होगी।

तुम जैसे ही उसका हाथ अपने हाथ में लोगे, अपने आपको दस्त-ए-हवेदा में पाओगे।

मुझे यकीन है कि अब तुम्हें तुम्हारी मंजिल तक जाने में कोई नहीं रोक



सकेगा। मेरी दुआ तुम्हारे साथ है।"

इस प्रकार बूढ़े आदमी से दस्त-ए-हवेदा जाने का रास्ता जानने के बाद हातिमताई

ने फिर से अपनी यात्रा शुरू की। कई दिनों तक लगातार चलने के बाद उन्हें एक साफ और नीले पानी वाला तालाब दिखा।

उन्होंने सोचा, ‘कुछ देर इस तालाब के किनारे बैठ लूँ तो मेरी थकान दूर हो जाएगी।'

यह सोचकर वह तालाब के पास बैठ गए।

अचानक कुछ सुंदर-सुंदर औरतें तालाब में से बाहर आईं और बोलीं, "नौजवान ! आओ, हमारे पास आओ।"

बस फिर क्या था। अगले ही पल वह उनके पास जा पहुँचे, क्योंकि उन्हें बूढ़े आदमी की बात अच्छी तरह याद थी।

उन औरतों ने उनके हाथ को पकड़ा और उन्हें एक ऐसी

खूबसूरत औरत के पास पहुँचा दिया जिसकी सुंदरता के आगे दुनिया की हर सुंदर चीज़ फीकी थी।

वह एक सुंदर-से महल में रत्न जड़ित सोने के सिंहासन पर ताज पहनकर बैठी हुई थी ।

तभी हातिमताई ने देखा कि उन्हें वहाँ तक लाने वाली सभी औरतें अचानक



उनसे दूर होकर उस बड़े कमरे की दीवारों से लगकर खड़ी हो गईं।

अब तक हातिमताई समझ चुके थे वे कि कोई साधारण औरतें नहीं बल्कि परियाँ थीं

और सिंहासन पर बैठी औरत उन सब की रानी थी।

हातिमताई ने जैसे ही उस परी का हाथ अपने हाथ में लिया उनके सामने की हर चीज गायब हो गई।

उनके सामने न परियाँ थी और न उनकी रानी, न सिंहासन था और

न वह महल । अब वह एक बंजर भूमि में अकेले खड़े थे।

तभी अचानक किसी ने चिल्लाकर कहा, "एक बार देखा है फिर देखने की चाह है । "

यह सुनकर हातिमताई हैरानी के साथ चारों ओर देखने लगे कि आखिर यह आवाज़ आई कहाँ से?

तभी अचानक उनकी नजर पत्थरों के बीच में बैठे हुए बढ़ी हुई बेढंगी दाढ़ी और बिखरे हुए बाल वाले आदमी पर पड़ी।

हातिमताई ने उसके पास जाकर पूछा, “हुज़ूर ! आप कौन हैं और आपके कहने



का मतलब क्या है?"

आदमी बोला,‘“ पहले तुम तो बताओ कि तुम ऐसी जगह कैसे पहुँचे ?"

हातिमताई बोले,‘“ मैं यमन का बादशाह हातिमताई हूँ।''

उसके बाद उन्होंने उसे अपने दोस्त मुनीरशाह, हुस्न बानो और उनकी सातों पहेलियों के बारे में बताया।

और आखिर में उन्होंने उसे यहाँ तक पहुँचने की सारी कहानी भी सुना दी।

यह सब सुनकर वह आदमी हैरानी के साथ बोला, ‘अच्छा ! तो भी मिल तुम चुके हो परियों की मल्लिका से। मैंने

भी उसे एक बार देखा था। उसकी खूबसूरती देखकर मेरा दिल बेचैन हो उठा था और मैंने उसका हाथ पकड़ लिया था।

मगर तभी अचानक वह मेरे पास से गायब हो गई और मैंने खुद को यहाँ अकेले पाया।

मत पूछो तब से मेरा क्या हाल है। अब तो मेरे दिल की बेचैनी तभी दूर हो सकेगी, जब एक बार मुझे फिर से उसका दीदार होगा।

उसे एक बार देखा है, फिर से देखने की चाह है।



इतना कहते-कहते उसकी हालत एकदम खराब हो गई और वह पागल की तरह

हरकतें करने लगा।

कभी इधर जाता तो

कभी उधर। कभी

अपनी दाढ़ी खींचता तो

कभी बाल। उसे इस तरह बेचैन होते देख हातिमताई से न रहा गया। और वह बोल

उठे, “शांत हो जाइए

और मेरी बात ध्यान से सुनिए। मैं आपको उस परी के पास ले जा



सकता हूँ, मगर एक शर्त पर कि आप फिर से उसका हाथ

पकड़कर अपनी पुरानी गलती नहीं दोहराएँगे ।

इस बात पर वह आदमी राज़ी हो गया।

फिर हातिमताई ने उसे उसी तालाब के पास पहुँचाया जिसमें से परियाँ निकली थीं।

तभी अचानक तालाब में से कुछ परियाँ निकलीं।

परियों ने उस आदमी को इशारे से अपने पास बुलाया।

फिर कुछ ही देर में परियों के साथ वह आदमी पानी के अंदर चला गया।

हातिमताई उसके बाद हुस्न बानो के शहर की ओर चल पड़े।

वहाँ पहुँचकर उन्होंने हुस्न बानो को पहेली का हल और अपनी यात्रा का अनुभव बताया ।

उनकी बातों को सुनकर हुस्न बानो हैरान रह गईं और बोलीं, “हातिमताई !

आप सचमुच एक साहसी और बुद्धिमान बादशाह हैं।

अब मेरी दूसरी पहेली का हल जानने के लिए आपको यहाँ से बहुत दूर एक अद्भुत जगह पर जाना होगा ।

वहाँ एक बड़ी-सी हवेली होगी।

हवेली की बाहरी दीवार पर लिखा होगा -नेकी कर दरिया में डाल।

आपको हवेली के मालिक को ढूँढकर उससे इस वाक्य की पूरी सच्चाई जाननी होगी।"