बहुत समय पहले किसी शहर में एक दंपति रहते थे।
उनकी कोई संतान नहीं थी।
इसी दुख में पत्नी हर समय घुलती रहती थी।
उसके घर के बाहर एक सुंदर बगीचा था।
उस बगीचे में सुंदर-सुंदर पौधे उगे हुए थे।
वह अक्सर खिड़की पर खड़े होकर उन पौधों को देखती रहती ।
वह जानती थी कि उन पौधों को खाने से न सिर्फ उसके स्वास्थ्य में सुधार होगा, बल्कि वह माँ भी बन सकेगी।
लेकिन मुश्किल यह थी कि वह बगीचा एक जादूगरनी का था और जादूगरनी के भय से वहाँ कोई नहीं जाता था।
एक दिन पत्नी ने अपने पति से कहा, "संतान न होने का गम मुझे अंदर ही अंदर खाए जा रहा है।
लेकिन मैं संतानप्राप्ति का एक उपाय भी जानती हूँ।
वो हमारे घर के बाहर जो जादूगरनी का बगीचा है, उसमें लगे हुए पौधों को खाने से मैं माँ बन सकूँगी और मेरा स्वास्थ्य भी सुधर जाएगा।
" पत्नी ने बताया।
“ये तो मैं भी जानता हूँ।
लेकिन तुम्हें पता है कि वह जादूगरनी कितनी खतरनाक है।"
पति गुस्से से बोला ।
पत्नी कुछ नहीं बोली और उदास होकर लेट गई।
पति ने अपनी पत्नी की तरफ
देखा और वह सोचने लगा,‘यदि मैं इसके लिए जादूगरनी के बगीचे से पौधे
लाने में सफल रहा तो यह बिल्कुल ठीक हो जाएगी और यदि जादूगरनी के बगीचे में नहीं गया
तो निश्चित ही संतान के गम में घुलते-घुलते यह मर जाएगी।
मुझे एक बार साहस करके जादूगरनी के बगीचे में जाना चाहिए ।'
यह सोचकर वह सावधानीपूर्वक जादूगरनी के बगीचे में गया।
उसने कुछ पौधे तोड़े और बचते-बचाते वापस घर आ गया।
घर आकर उसने वे पौधे अपनी पत्नी को दिए तो उसने तुरंत पौधों से स्वादिष्ट व्यंजन बनाया और बड़े स्वाद ले- लेकर खाया।
उसे उनका स्वाद बहुत अच्छा लगा।
उसने अगले दिन फिर पति को वह पौधे लाने के लिए कहा।
पति अगले दिन भी गया और पौधे तोड़कर लौटने लगा।
तभी जादूगरनी ने उसे देख लिया।
वह गुस्से से चिल्लाकर बोली, “दुष्ट मानव ! तेरी मेरे बगीचे में आने की हिम्मत कैसे हुई?
मैं तुझे अभी सबक सिखाती हूँ।
यह सुनकर वह व्यक्ति डर के मारे थर-थर काँपते हुए बोला, “जादूगरनी !
मेरा ये पौधे चुराने का कोई इरादा नहीं था।
मेरी पत्नी संतान न होने के गम में कमजोर हो गई है।
मैं ये पौधे उसी के लिए लेने आया था। मुझे माफ कर दो।"
“ठीक है, मैं तुम्हें छोड़ दूँगी। लेकिन मेरी एक शर्त है।
वह ये कि तुम्हें अपनी
पहली संतान मुझे देनी होगी।
बोलो, मंजूर है !" जादूगरनी ने शर्त रखी।
मरता, क्या न करता?
व्यक्ति ने उसकी शर्त मान ली और पौधे लेकर घर आ गया।
घर आकर उसने पत्नी को पूरी बात बता दी।
कुछ समय बाद उसकी पत्नी ने एक लड़की को जन्म दिया।
लड़की के जन्म लेते ही जादूगरनी उसे लेने आ पहुँची और नवजात बालिका को लेकर चली गई।
जादूगरनी बड़े जतन से लड़की को पालने लगी।
उसने उसका नाम रैपुंजल रखा।
रैंपुजल धीरे-धीरे बड़ी होने लगी। वह बहुत सुंदर थी।
उसकी सुंदरता देखकर जादूगरनी ने उसे सबकी नजरों से छिपाकर दूर एक ऊँची मीनार में रखा हुआ था।
उस मीनार में जाने के लिए न तो दरवाजे थे और न सीढ़ियाँ।
सबसे ऊपर बस एक छोटी-सी खिड़की थी ।
जादूगरनी नहीं चाहती थी कि कोई भी रैपुंजल की सुंदरता को देखे, खासतौर पर कोई युवक।
रैपुंजल के बाल इतने लंबे थे कि जब जादूगरनी को मीनार में जाना होता तो वह मीनार के नीचे खड़े होकर आवाज देती,
‘‘रैपुंजल, ओ रैपुंजल! मुझे ऊपर आना है ।
अपनी चोटी तो फेंक।"
जादूगरनी की आवाज सुनकर रैपुंजल तुरंत
अपनी चोटी नीचे फेंकती
और जादूगरनी उसके सहारे ऊपर चढ़ आती।
पहली संतान मुझे देनी होगी।
बोलो, मंजूर है !" जादूगरनी ने शर्त रखी।
मरता, क्या न करता?
व्यक्ति ने उसकी शर्त मान ली और पौधे लेकर घर आ गया।
घर आकर उसने पत्नी को पूरी बात बता दी।
कुछ समय बाद उसकी पत्नी ने एक लड़की को जन्म दिया।
लड़की के जन्म लेते ही जादूगरनी उसे लेने आ पहुँची और नवजात बालिका को लेकर चली गई।
जादूगरनी बड़े जतन से लड़की को पालने लगी।
उसने उसका नाम रैपुंजल रखा।
रैंपुजल धीरे-धीरे बड़ी होने लगी। वह बहुत सुंदर थी।
उसकी सुंदरता देखकर जादूगरनी ने उसे सबकी नजरों से छिपाकर दूर एक ऊँची मीनार में रखा हुआ था।
उस मीनार में जाने के लिए न तो दरवाजे थे और न सीढ़ियाँ।
सबसे ऊपर बस एक छोटी-सी खिड़की थी ।
जादूगरनी नहीं चाहती थी कि कोई भी रैपुंजल की सुंदरता को देखे, खासतौर पर कोई युवक।
रैपुंजल के बाल इतने लंबे थे कि जब जादूगरनी को मीनार में जाना होता तो वह मीनार के नीचे खड़े होकर आवाज देती,
‘‘रैपुंजल, ओ रैपुंजल! मुझे ऊपर आना है ।
अपनी चोटी तो फेंक।"
जादूगरनी की आवाज सुनकर रैपुंजल तुरंत
अपनी चोटी नीचे फेंकती
और जादूगरनी उसके सहारे ऊपर चढ़ आती।
तब राजकुमार पेड़ की ओट से बाहर आया और जादूगरनी की बनावटी आवाज में बोला,
‘‘रैपुंजल, ओ रैपुंजल! मुझे ऊपर आना है। जरा अपनी चोटी तो फेंक।"
रैपुंजल राजकुमार की आवाज नहीं पहचान सकी और उसने अपनी चोटी मीनार से नीचे फेंक दी।
राजकुमार चोटी के सहारे झटपट ऊपर चढ़ आया। एक अजनबी को अपने सामने देखकर रैपुंजल सहम गई।
वह काँपते स्वर में बोली, “तुम कौन हो और यहाँ क्यों आए हो?
“तुम डरो मत, सुंदरी। मैं तुम्हें नुकसान पहुँचाने नहीं आया हूँ। मैं एक राजकुमार हूँ।
तुम्हारा गाना सुनकर तुमसे मिलने चला आया। तुम बहुत सुंदर हो और बहुत मीठा गाती हो।"
राजकुमार ने कहा ।
तब जाकर रैपुंजल सामान्य हुई। थोड़ी देर तक दोनों ने
बातें कीं और राजकुमार अगले दिन फिर आने का वादा करके चला गया।
रैपुंजल को राजकुमार से बातें करके अच्छा लगा।
अगले दिन फिर राजकुमार रैपुंजल से मिलने आया।
अब यह रोज का क्रम हो
गया। जादूगरनी के जाते ही राजकुमार रैपुंजल से मिलने आ जाता।
एक दिन राजकुमार बोला, "रैपुंजल ! मैं तुमसे प्रेम करता हूँ
और शादी करना चाहता हूँ। क्या तुम मुझसे शादी करोगी?”
रैपुंजल शर्माते हुए बोली, “मैं भी तुमसे शादी करके तुम्हारे साथ रहना चाहती हूँ।
लेकिन मैं यहाँ से कैसे निकलूंगी?
जादूगरनी मुझे नहीं जाने देगी ।
यूँ तो वह मुझसे बहुत प्यार करती है, पर शायद वह. ......।
खैर मैं उसे मना लूँगी।" राजकुमार बोला, ‘“जादूगरनी माने या ना माने, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
मैं कल तुम्हें यहाँ से लेकर जाऊँगा।
मैं कल सारी तैयारी के साथ आऊँगा और तुम्हें अपने साथ ले जाऊँगा। फिर हम महल में आराम से रहेंगे।'
1
रैपुंजल को अगले दिन तैयार रहने के लिए कहकर राजकुमार चला गया।
रैपुंजल बेसब्री से अगले दिन का इंतजार करने लगी।
अगले दिन सुबह ही वह अच्छी तरह से सज-धजकर तैयार हो गई।
शाम के समय जब जादूगरनी उससे मिलने आई तो उसे खुश देखकर हैरान रह गई।
वह बोली, “रैपुंजल ! क्या बात है, आज तो तु बड़ी चहक रही है?"
"मैं तुम्हें बताने ही वाली थी।"
रैपुंजल ने जादूगरनी का हाथ पकड़कर बैठाते
हुए कहा, “एक बहुत सुंदर राजकुमार मुझसे मिलने आता है।
वह मुझसे प्रेम करता है और शादी करना चाहता है।
आज वह मुझे लेने आ रहा है ।
मैं बहुत खुश हूँ, बहुत खुश । "
यह सुनकर जादूगरनी का चेहरा गुस्से से लाल हो गया।
वह गुस्से से चीखते हुए बोली, “रैपुंजल! यह तु क्या बकवास कर रही है?
क्या मैंने तुझे इसी दिन के लिए पाला-पोसा था कि एक दिन तु शादी करके किसी और के साथ चली जाए।
मेरे रहते तु कहीं नहीं जाएगी।"
यह कहकर जादूगरनी उसे कहीं और ले गई और बोली, “अब तु उसे कभी नहीं देख पाएगी और वह भी तुझे यहाँ पर कभी नहीं ढूँढ सकेगा।
अब मर यहीं पर ।"
फिर जादूगरनी रैपुंजल को उस वीरान-सुनसान जगह पर अकेला छोड़कर
वापस मीनार के पास आ गई और छुपकर राजकुमार के आने का इंतजार करने लगी।
शाम को राजकुमार रैपुंजल को लेने आया। वह बहुत खुश था।
वह रैपुंजल को मीनार से उतारने के लिए एक रेशम की रस्सी लेकर आया था ।
उसने रोज की तरह रैपुंजल को आवाज दी।
लेकिन जब रैपुंजल ने अपनी चोटी नीचे नहीं फेंकी तो राजकुमार जोर-जोर से आवाज देने लगा।
उसका मन किसी अनिष्ट की आशंका से घबरा रहा था।
‘“राजकुमार ! अब तेरे चिल्लाने से कुछ नहीं होने वाला। रैपुंजल मीनार में होगी तो अपनी चोटी फेंकेगी न!" जादूगरनी राजकुमार के सामने आते हुए बोली।
‘“ कहाँ है रैपुंजल?'' राजकुमार ने व्याकुलता व क्षोभ से पूछा ।
“ तुमने क्या सोचा था कि तुम रैपुंजल को ले जाओगे।
मेरे रहते ये सँभव नहीं है ।
अब तुम उसे कभी नहीं देख पाओगे।"
जादूगरनी ने अट्टाहस करते हुए कहा ।
‘“नहीं! ऐसा मत कहो।
कृपा करके बताओ कि रैपुंजल कहाँ है?''
राजकुमार गिड़गिड़ाते हुए बोला ।
“उसके लिए तुझे बड़ा दुख हो रहा है ।
अब तू अपने लिए दुख कर।
मैं तुझे शाप देती हूँ कि तु अंधा हो जाए।"
कहकर जादूगरनी वहाँ से चली गई ।
जादूगरनी के शाप से राजकुमार अंधा हो गया और असहाय-सा भटकते हुए रैपुंजल को यहाँ-वहाँ खोजने लगा।
वह रैपुंजल को खोजते हुए एक ऊँची पहाड़ी पर जा पहुँचा।
वहाँ पर उसने रैपुंजल के गाने की मधुर आवाज सुनी और वह उसकी आवाज पहचान गया।
वह जोर से चिल्लाने लगा, ‘‘रैपुंजल-रैपुंजल ! कहाँ हो?
मैं तुम्हें कब से ढूँढ रहा हूँ ।"
उसकी आवाज चारों तरफ गूँजने
लगी। रैपुंजल ने
जब राजकुमार की
आवाज सुनी तो वह
बहुत खुश हुई और आवाज़ की दिशा में दौड़ पड़ी। वह
राजकुमार से लिपट
गई। राजकुमार के अंधा होने की बात जानकर उसे बहुत दुख हुआ लेकिन साथ
ही राजकुमार से मिलने पर खुश भी थी। उसकी आँखों से आँसू बह निकले।
उसके आँसू जब राजकुमार की आँखों
पर गिरे तो राजकुमार
...
की आँखें एकदम
ठीक हो गईं। उसे फिर
से पहले जैसे दिखाई
देने लगा था।
राजकुमार की आँखों की रोशनी वापस आने पर राजकुमार और रैपुंजल दोनों की खुशी का ठिकाना न रहा।
रैपुंजल बोली, “राजकुमार! यहाँ से जल्दी चलो।
अगर जादूगरनी आ गई तो वह हम दोनों को जीवित नहीं छोड़ेगी।"
“रैपुंजल ! तुम घबराओ मत।
जादूगरनी के आने से पहले ही हम मेरे महल पहुँच चुके होंगे।"
राजकुमार ने उसे धीरज बँधाते हुए कहा।
राजकुमार रैपुंजल को अपने साथ महल ले आया ।
राजकुमार के माता-पिता सुंदर बहू पाकर बहुत खुश हुए।
उन्होंने राजकुमार और रैपुंजल की शादी खूब धूमधाम से की और रैपुंजल राजकुमार के साथ सुखपूर्वक रहने लगी।