दुर्गा पूजा के सप्तमी के दिन स्नान के बाद अपने घर पूजा कर के अपनी बड़ी माँ के साथ मंदिर मे ब्राह्मण
और कन्या को भोजन कराने चला गया।
भोजन कराने के पश्चात मै जैसे ही मंदिर के बाहर आया मुझे बुड़ी अम्मा दिखा जिससे कुछ बच्चे नोकझोंक कर रहे थे।
शायद वो मंदिर के बाहर इस भरोसे मे खड़ी थी कि कुछ खाने को मिल जाए।
पूजा का दिन था, मेरे घर मे खाना पकने मे देर थी।
मैंने उससे जाके पूछा अम्मा क्या चाहिए और वो बोली किया देगा।
फिर मै बोला आप यही रूकये और मै भागता हुआ घर आया, मैंने अपने बटुए से तीस रूपय लिए और जाकर उसे दे दिया।
मुझे पता तीस रूपये से उसकी जिंदगी नही बदल सकती थी मगर उनके लिए बहुत कुछ था।
मेरे पैसे देने के बाद उनकी आँखे गिली और खुशी के आंसू के साथ उसने मेरे सिर पर हाथ फेरी और कहा अल्लाह तेरा भला करे।
उस वक्त मुझे ऐसा लग रहा था मानो मै किसी तीर्थ से लौटा हु।
अगर कोई आपको भी कोई भूखे मिले तो जरूर सहायता करे क्योंकि भूखे को आपके पास भगवान् भेजता है
और आप उसे कुछ नही देते भगवान् आपसे दिलाता है।
कहा भी गया है खाने वाला को राम देने वाला।
भूख का कोई धर्म नही होता।