शीबा की रानी कौन थी ?
बाइबिल के अनुसार शीबा की रानी इजराइल के राजा सोलोमन की बुद्धिमानी और वैभव की खबरें सुन कर सोने,
जवाहरातों तथा दुर्लभ मसालों के उपहार लेकर उसके पास आई थी।
इजराइल से वापिस जाने के बाद शीबा की रानी का इतिहास में कोई नामों-निशान भी नहीं मिलता।
क्या बाइबिल की कहानी को सत्य माना जा सकता है?
शीबा की रानी कौन थी और उसका राज्य कहां था?
क्या वह सोलोमन से विवाह करने की नीयत से आई थी?
क्या इथियोपिया का हैले सिलासी नामक सम्राट सोलोमन-शीबा के पुत्र से चले वंश का था?
क्या वह महिला न होकर कोई चुड़ैल थी? एक
पिछली 30 शताब्दियों से यह रहस्य लोगों के दिमाग को मथ रहा है।
यदि उसका अस्तित्व था तो निश्चित रूप से उसका आगमन दक्षिण अरेबिया से हुआ होगा,
जहां के विस्तृत मैदानों में आज भी शीबा की प्राचीन राजधानी के अवशेष मिलते हैं।
बाइबिल में राजाओं में प्रथम पुस्तक (First Book of Kings) के अंतर्गत 10वें अध्याय में शीबा
की रानी की कहानी का इस प्रकार वर्णन है-"... और जब शीबा की रानी ने ईश्वर के नाम के साथ जुड़ी हुई सोलोमन की प्रसिद्धि के बारे में सुना तो
वह अपने कठिन प्रश्नों द्वारा उसकी परीक्षा लेने यरुशलम आई।
रानी के साथ उसका बहुत बड़ा काफिला था, जिसके ऊंटों पर दुर्लभ मसाले, सोना तथा बहुमूल्य रत्न-जवाहरात लदे हुए थे।
बादशाह सोलोमन ने शीबा की रानी के प्रश्नों का तब तक उत्तर दिया जब तक वह पूरी तरह संतुष्ट नहीं हो गई।
शीबा ने उसकी बुद्धिमत्ता की प्रशंसा की और उसे मसाले, सोना और रत्न भेंटस्वरूप दिए।
और वह अपने नौकरों के साथ अपने देश वापस चली गई।
इसी कहानी को बाइबिल के सेकण्ड बक ऑफ क्रॉनिकल्स (Second Book of Chronicles) में थोड़े से परिवर्तनों के साथ दोहराया गया है
लेकिन बाइबिल में शीबा की रानी का नाम, शक्ल-सूरत, जाति व देश इत्यादि के बारे में कुछ भी नहीं बताया गया है।
सेण्ट मैथ्यू के गॉस्पल (Gospel of St. Mathew) में जीसस ने दक्षिण की रानी का हवाला देते हुए कहा कि वह,
"पृथ्वी के सबसे दूरस्थ इलाके से सोलोमन की बुद्धिमानी को परखने के लिए आई"।
बस, बाइबिल अपने 25 छंदों
द्वारा शीबा की रानी के बारे में इतना ही अता-पता देती है और यहीं से जन्म लेती है
30 शताब्दियों से रहस्यमय बनी हुई उस औरत की कहानी,
जिसे शीबा की रानी (Queen of Shiba) के नाम से जाना जाता है।
क्या बाइबिल को आधार मान कर किसी घटना की ऐतिहासिक सत्यता को प्रामाणिक माना जा सकता है?
दरअसल राजाओं की प्रथम पुस्तक में ईसा से दसवीं शताब्दी पूर्व की 40 वर्षीय अवधि के स्वर्णकाल की कहानी है।
इसी में सोलोमन के शासन की कथा भी शामिल है।
अतः इस बात की पूरी संभावना है कि सोलोमन की मृत्यु से कुछ समय बाद ही यह कहानी लिखी गई हो।
यह इसकी ऐतिहासिक सत्यता का निकटतम प्रमाण है।
बाइबिल के अनुसार जब शीबा की रानी इजराइल के राजा सोलोमन से मिलने आई तो वह परम प्रतापी राजा हो चुका था।
उसकी फौजें इयुफ्रेट्स (Euphrates) से सिनाई (Sinai) रेगिस्तान तक तथा लाल सागर से पामयारा (Palmyara) तक के मार्गों का नियंत्रण करती थीं।
उस समय तक यरुशलम शहर तथा उसके मंदिर का निर्माण पूरा हो चुका था।
रानी ने सोलोमन को जो उपहार दिए उनसे लगता है कि वह व्यापार के उद्देश्य से भूमध्यसागर के लिए इजराइल के बंदरगाहों का
प्रयोग करना चाहती थी ताकि उसके देश से सोलोमन का वाणिज्यिक संबंध जुड़ सके लेकिन यह सिर्फ अनुमान ही है।
मध्य युग का एक चित्र जिसमें सोलोमन व शीबा की रानी की भेंट होते हुए
चित्रित है।
सोलोमन डेविड के सबसे बड़े पुत्र तथा अपने सौतेले भाई एडोनीजाह (Adonijah) का वध करके इजराइल की गद्दी पर बैठा था।
सोलोमन ने एशिया और अफ्रीका के बीच में स्थित अपने देश की स्थिति का भरपूर फायदा उठाया।
उसने 12,000 घुड़सवारों तथा 1,400 लड़ाकू रथों से लैस अपनी सेना द्वारा पहले शांति स्थापित की और
इजराइल के सभी कबीलों पर अपना प्रभुत्व कायम किया तथा बाद में पड़ोसी राज्यों से मित्रता करनी शुरू की।
सोलोमन ने पड़ोसी राज्यों के राजाओं की पुत्रियों से विवाह किए।
उसकी पहली पत्नी मिस्र के फराओं की बेटी थी ।
फोनेशियन (Phonenician) लोगों की विकसित तकनीक की मदद लेकर सोलोमन ने विशाल नावों की मदद से व्यापार किया।
लेबनान की पहाड़ियों में 10,000 दासों की मदद से लकड़ी कटवा कर तथा पत्थर उठवा कर यरुशलम के मंदिर व शहर के निर्माण के लिए भेजे।
उसके व्यापारिक पोत सोना, चांदी, संगमरमर व कीमती पशु-धन कमा कर लाए।
अरब व पूर्व से आए काफिलों पर कर लगा कर बहुत-सा धन वसूला गया।
इस तरह प्रति वर्ष कई-कई टन की दर से सोना सोलोमन ने एकत्रित कर लिया।
यह तमाम सोना यरुशलम में जिहोवा (Jehovah) के महान् मंदिर की दीवारों पर चढ़वा दिया गया।
सोलोमन स्वयं सोने से जड़े हुए हाथीदांत के बने सिंहासन पर आसीन होता था तथा उसके सभी बर्तन तथा पीने के पात्र भी सोने के ही थे।
सोलोमन के इस राजसी वैभव की खबरें उड़ते-उड़ते शीबा की रानी के पास भी पहुंचीं।
शीबा की रानी के चित्र ईसाई मध्ययुगीन तथा योरोपीय पुनर्जागरण काल की चित्रकला में दिखाई पड़ते हैं।
कभी रानी के रूप में तो कभी जादूगरनी के रूप में इस रहस्यमय औरत को दिखाया जाता है।
13वीं शताब्दी में डोमिनिसियन पादरी जोकोबस दि वोरागिन (Jacobus de voragine) द्वारा लिखित पुस्तक
'लीजेण्डा औरिया' (Legenda Aurea) में भी शीबा की रानी की सोलोमन से मुलाकात का वर्णन मिलता है।
19वीं शताब्दी में फ्रांसीसी लेखक गुस्ताव फ्लोबर्ट (Gustave Flaubert) की रचना 'टेम्परेशन ऑफ सेण्ट एंथोनी' (Temptation of Saint Anthony)
में शीबा की रानी संत एंथोनी को रेगिस्तान में वासना की देवी के रूप में लुभाने के लिए आती है।
यह रचना सन् 1874 में लिख कर तैयार हो गई थी।
एक अन्य फ्रांसीसी लेखक जेरार्ड दि नर्वल (Gerard de Nerval) ने इसी रानी को बाल्किस (Balkis) का नाम दिया
और मध्य-पूर्व की यात्रा करने के बाद सन् 1851 में 'वॉयेज एन ओरिएंट' (Voyage en Orient) में 'सुबह की रानी' के रूप में वर्णित किया।
मुसलमानों के धार्मिक ग्रंथ पवित्र कुरान में बताया गया है कि सोलोमन के राजदरबार में शीबा की रानी को पत्रों के आदान-प्रदान के बाद बुलाया गया था।
'बुक ऑफ ईस्थर' (Book of Esther) जैसी यहूदी पुस्तक के एक 'तारगुम
शेनी' (Targum Sheni) नामक अनुवाद में बताया गया है कि शीबा की रानी सोलोमन से
ऐसे कमरे में मिली, जिसका फर्श कांच का था।
रानी ने समझा कि वहां पानी भरा हुआ है इसलिए उसने अपनी स्कर्ट थोड़ी ऊपर उठा ली।
जिसके कारण उसके पैर दिखाई पड़ गए जिन पर बाल उगे हुए थे।
शीबा की रानी को असीरियायी (Assyrian) तथा बेबीलोनियन (Babylonian) किवदंतियों में लोगों को लुभा लेने वाली चुड़ैल के रूप में भी चित्रित किया जा चुका है।
इस तरह देखा जाए तो पता चलेगा कि हजारों साल के मिथकों, लोककथाओं व साहित्यिक इतिहास में शीबा की रानी का रहस्यमय अस्तित्व कहीं न कहीं मौजूद ही है।
मुसलमानों की दंतकथा के अनुसार सोलोमन ने शीबा की रानी से भी विवाह किया था।
उसने रानी के रोमयुक्त शरीर से बालों को साफ करने की दवा का आविष्कार करवाया और रानी को मुसलमान बनाकर उसके साथ शादी कर ली।
आधुनिक युग में यमन (Yaman) जाने वाले पर्यटक मारिब की प्राचीन राजधानी शीबन (Ancient Sheban Capital of Marib) के निकट
ईसा से 4 शताब्दी पूर्व का चंद्रमा के मंदिर (Temple of the Moon) के खण्डहर जरूर देखते हैं।
कहा जाता है कि यही मंदिर कभी बिल्कीस का महल था।
बिल्कीस के नाम का प्रयोग शीबा की रानी के लिए ही किया जाता है।
20वीं शताब्दी में भी शीबा की रानी का रहस्य लोगों को लुभाता रहा है।
डब्ल्यू. बी. यीट्स (W. B. Yeats) की कविताओं में शीबा की रानी के धर्म निरपेक्ष (क्योंकि उसका कोई धर्म नहीं था)
तथा यौन विषयक चरित्र को केन्द्र बनाया गया है।
अंग्रेजी के उपन्यासकार रूडयार्ड किपलिंग (Rudyard Kipling) की कहानी 'द बटरफ़्लाई दैट स्टेम्प्ड' (The Butterfly that stamped) में
तथा जॉन डॉस पासोस (John Dos Passos) के सन् 1921 में प्रकाशित उपन्यास थ्री सोल्जर्स (Three soldiers ) में शीबा की रानी का वर्णन है।
सन् 1934 में युवा फ्रांसीसी पत्रकार आंद्रे मालरोक्स (Andre Malraux) ने अपने पेरिस स्थित अखबार के कार्यालय में केबिल भेजा
कि दक्षिण अरेबिया के रेगिस्तान के ऊपर उड़ान भरते हुए उन्होंने 20 मीनारों अथवा मंदिरों को खड़े हुए देखा।
मालरोक्स ने यह दृश्य रूबल खाली पुष्टि नहीं हुई।
(Rubal Khali) की उत्तरी सीमा पर देखा था लेकिन उनके इस दावे की बाद में
कुछ प्राचीन रचनाओं से पता चलता है कि शीबा की राजधानी लाल सागर के किनारे स्थित एक अरबी नगर में थी।
जाहिर है कि सोलोमन के बाद आने वाले पैगम्बर शीबा की राजधानी के बारे में जानते रहे होंगे।
'बक ऑफ इजीकील' जवाहरातों तथा सोने का व्यापार होता था ।
(Book of Ezekiel) के अनुसार शीबा की राजधानी से मसालों, कीमती
'शीबा' नाम का स्रोत सेमिटिस (Semites) के पिता तथा नोह (Noeh) के पुत्र शेम (Shem) से मिलता है।
शीबा के 12 भाई थे। जिस तरह शीबा के दो भाइयों
मारिब के मंदिरों के खण्डहर जिनका संबंध शीबा की रानी से माना जाता है।
ने ओफिर (Ophir) तथा हाविला (Havila) की सभ्यताओं को अपने नाम दिए,
उसी तरह शीबा ने भी अपनी राजधानी का नाम शीबा रख दिया।
यह व्यक्ति और नगर के नाम के आपस में मिल जाने का मामला है।
शीबा के भाइयों के नाम की सभ्यताएं भी रहस्य के अंधेरों में गुम हैं।
उन्हें भी अभी नहीं खोजा जा सका है।
शीबा के अन्य भाइयों के नाम भी अरब के लोगों ने अपना लिए।
कई भूखण्डों का नाम उनके नाम पर रखा गया।
शीबा के नगर व माइन (Main) व कत्ताबान (Qataban) का नगर छठी ईस्वी तक आपस में मिला हुआ था।
इन चारों में शीबा का नगर सबसे बड़ा था, जिसे करान में 'दो बागों' के नाम से पुकारा गया है।
इन बागों को एक बड़े बांध द्वारा पानी मिलता था।
व्यापार शीबा के नगर की सम्पत्ति का मुख्य स्रोत था।
ईसा से 1 शताब्दी पूर्व के इतिहासकार डियोडोरस सिकुलस (Diodorus Siculus) ने इस राजधानी के धन-धान्य का वर्णन किया है।
शीबा के अरबवासियों को फरवरी से अगस्त तक चलने वाली मानसूनों का रहस्य ज्ञात था, जिससे उनके व्यापारिक जहाजों को प्राकृतिक मार्गदर्शन मिल जाया करता था।
बाद में यनानियों ने भी पहली ईस्वी में इस रहस्य का पता लगा लिया।
शीबा ने पानी व जमीन के रास्ते अफ्रीका व रोमन साम्राज्य से भी व्यापार किया।
शीबा के माल की चारों ओर मांग थी क्योंकि मसालों को औषधि व सौंदर्य प्रसाधन बनाने में प्रयोग किया जाता था।
शीबा के वासी सूर्य, चंद्रमा व शुक्र की पूजा करते थे।
शुक्र को वे अश्तर (Ashtar) के नाम से पुकारते थे, जो सिडोन (Sidon) त्येर (Tyre) व बेबीलोन (Babylon) में
शुक्र के लिए प्रयुक्त नाम से मिलता-जुलता था। उनकी शासन
व्यवस्था सुमेरियायी (Sumerian) व्यवस्था से मिलती-जुलती थी
अर्थात् वहां का प्रमुख पुजारी व राजा एक ही व्यक्ति हुआ करता था।
शीबा के निवासी चारों ओर से रेगिस्तान से घिरे होने के कारण सुरक्षित थे।
ईसा से 24-25 शताब्दी पूर्व रोमन सेनापत एक्लियस गालस (Aclius Gallus) के नेतृत्व में हमला करने आई फौज रेगिस्तान की गर्मी
और प्यास से ही पराजित हो गई। इसके 4 सौ साल बाद ही शीबा पर कोई विदेशी ताकत अपना हमला कर
पाई।.
शीबा का उल्लेख सभी शास्त्रीय इतिहासकारों ने किया है।
हेरोडोटस (Herodotus) स्ट्राबो (Strabo), प्लिनी (Pliny) व एल्डर (Elder) द्वारा किया गया वर्णन तथा मारिब के खण्डर व शिलालेख व यमन में पाई गई पुरातात्विक सामग्री उसके अस्तित्व का प्रमाण है।
शीबा की रानी ने ईसा से 10वीं शताब्दी में यरुशलम की यात्रा की। 543 ईस्वी में शीबा का दैत्याकार बांध ढह गया।
कुरान में इस बांध के ढहने को ईश्वर के प्रकोप की संज्ञा दी गई है।
ऐसा प्रतीत होता है कि सिचाई की व्यवस्था नष्ट हो जाने के कारण शीबा की अर्थ व्यवस्था का पतन हो गया तथा उनके निवासी
घुमक्कड़ कबीलों में बंट गए।
इथियोपिया के अंतिम सम्राट हेले सिलासी (Haile Selassie) का दावा था कि वे सोलोमन
और शीबा के पुत्र मेनेलिक (Menolik) के वंशज हैं।
यमन के लोग हजरत मुहम्मद द्वारा शीबा के नगर को अग्निपूजकों का नगर कह कर निंदा करने के कारण घृणा की दृष्टि से देखते रहे हैं।
इसलिए उन्होंने सन् 1843 में फ्रांस के थॉमस जोसेफ आर्नोड (Thomas Joseph Arnaud)
पर जादूगर होने का आरोप लगाया क्योंकि वे प्राचीन शिलालेखों को एकत्रित करने मारिब गए थे।
मिस्री पुरातत्वशास्त्री अहमद फाखी (Ahmad Fakhri) को सन् 1947 में ऐसी ही कोशिशों के बदले काफी अपमान का सामना करना पड़ा।
सन् 1934 में रेगिस्तान पर उड़ान भरने वाले मालरों के विमान पर गोली चलाई गई।
सन् 1952-53 में वेण्डेल फिलिप्स (Wendell Phillips) तथा डब्ल्यू अल्ब्राइट (W. P. Albright) के नेतृत्व में अमेरिकी अभियान दल को यमन से
अपने यंत्रों को छोड़कर भागना पड़ा।
आज पुरातत्वशास्त्रियों के प्रयत्नों से ही शीबा की रानी की कहानी के प्रमाण के रूप में मारिब के प्राचीन खण्डहर खड़े हुए हैं
लेकिन शीबा की रानी की धरती के बारे में अभी भी पूरे रहस्यों का ज्ञान नहीं हो पाया है।