एक सम्राट को नए-नए फैशन के कपड़े पहनने का बहुत शौक था।
वह अपना पूरा समय कपड़ों के चयन, उनके डिजायन करने और पहनने-परखने में बिताता था।
उसे अपनी प्रजा के सुख-दुख से कोई मतलब नहीं था।
हाँ, वह जब भी नए डिजायन या नए फैशन के कपड़े पहनता तो पूरे नगर का भ्रमण करता,
ताकि सभी लोग उसके कपड़े देख लें और कपड़ों की तारीफ करें ।
सम्राट के महल की अलमारियाँ, संदूक आदि उसके कपड़ों से भरे हुए थे ।
उसके पास सूती, वैलवेट से लेकर रेशम के कपड़ों के ढेर थे।
जूते, हैट, बाजुबंद आदि का उसके पास अच्छा-खासा संग्रह था।
सम्राट के इस शौक ने उसे दूर-दूर तक प्रसिद्धि दिला दी थी।
इसलिए उससे मिलने के लिए दर्जी, जूते बनाने वाले, कपड़ों के डिजाइन बनाने वालों आदि की लंबी कतारें लगी रहतीं ।
सम्राट को जिसके कपड़े, डिजाइन, जूते, टोपी आदि पसंद आते वह उसे ईनाम देता ।
एक दिन सम्राट से मिलने के लिए दो अजनबी आए।
उन्होंने सम्राट का अभिवादन करते हुए कहा, “सम्राट ! हम बुनकर हैं और बहुत दूर से आपसे
मिलने आए हैं।
हम आपके लिए ऐसे भव्य और आकर्षक कपड़े बनाना चाहते हैं,
कि सब देखते ही रह जाएँ। "
यह सुनकर सम्राट बहुत खुश हुआ।
वह बोला, “मुझे सिर्फ नए डिजाइन के कपड़े पसंद आते हैं,
इसलिए ध्यान रखना कि कपड़े नए ढंग के हों।"
‘“सम्राट ! आप इसकी चिंता न करें ।
हम आपके लिए जादुई कपड़े बुनेंगे।"
“जादुई कपड़े !” सम्राट ने हैरानी से पूछा।
“हाँ सम्राट, जादुई कपड़े। हम आपके लिए जो कपड़े बुनेंगे वे बहुत ही महीन,
सुंदर व भव्य होंगे। लेकिन उन्हें सिर्फ बुद्धिमान व्यक्ति ही देख पाएगा।
मूर्ख व्यक्ति को आपके कपड़े दिखाई नहीं देंगे।" दूसरे व्यक्ति ने कहा।
सम्राट खुश हो गया। वह बोला, "तुम लोग अपना करघा महल के एक कमरे में लगा लो और मेरी नई पोशाक बनानी शुरू करो।
तुम्हारे द्वारा बनाई गई पोशाक के द्वारा मैं जान पाऊँगा कि मेरे परिवारजन, मंत्री, दरबारी आदि बुद्धिमान हैं या बेवकूफ!''
फिर सम्राट ने उन्हें स्वर्ण मुद्राओं से भरा एक थैला दिया और अपने सेवकों से
उनका विशेष ध्यान रखने के लिए कहा।
हकीकत में वे दोनों अजनबी बुनकर नहीं, बल्कि ठग थे।
वे सम्राट को ठगने के लिए आए थे।
वे जानते थे कि सम्राट नए-नए कपड़ों का दीवाना है और उसे अपने जाल में फँसाकर बेवकूफ बनाया जा सकता है।
दोनों ठग सम्राट के उनके जाल में फँसने पर बहुत खुश थे।
उन्होंने महल के कमरे में अपना करघा लगाया और कपड़ा बुनने का नाटक करने लगे।
सम्राट के निर्देशानुसार सेवक हर समय उनकी सेवा में उपस्थित रहते थे।
दोनों ठग महल की सुख-सुविधा का पूरा-पूरा लाभ उठाते।
वे सेवकों से खाने-पीने की नई-नई फरमाइशें करते और सेवक उसे झटपट पूरा करते थे।
आखिर सम्राट ने उनकी खातिरदारी करने को जो कहा था।
जैसे-जैसे दिन बीतते गए, दोनों ठग अधिक मेहनत करने का ढोंग करने लगे।
जबकि, करघा खाली का खाली था।
उस पर पोशाक तो क्या, एक धागा भी न था।
पोशाक बनाने के लिए धागा आदि सामान खरीदने के बहाने दोनों ठग रोज सम्राट से स्वर्ण-मुद्राओं से भरा थैला लेना न भूलते।
वे रोज शाम सम्राट के पास जाते और कहते, “सम्राट ! आपकी पोशाक बनाने का काम बहुत जोर-शोर से चल रहा है।
जब पोशाक पूरी होगी तो आप उसे देखते ही रह
उनका विशेष ध्यान रखने के लिए कहा।
हकीकत में वे दोनों अजनबी बुनकर नहीं, बल्कि ठग थे।
वे सम्राट को ठगने के लिए आए थे।
वे जानते थे कि सम्राट नए-नए कपड़ों का दीवाना है और उसे अपने जाल में फँसाकर बेवकूफ बनाया जा सकता है।
दोनों ठग सम्राट के उनके जाल में फँसने पर बहुत खुश थे।
उन्होंने महल के कमरे में अपना करघा लगाया और कपड़ा बुनने का नाटक करने लगे।
सम्राट के निर्देशानुसार सेवक हर समय उनकी सेवा में उपस्थित रहते थे।
दोनों ठग महल की सुख-सुविधा का पूरा-पूरा लाभ उठाते।
वे सेवकों से खाने-पीने की नई-नई फरमाइशें करते और सेवक उसे झटपट पूरा करते थे।
आखिर सम्राट ने उनकी खातिरदारी करने को जो कहा था।
जैसे-जैसे दिन बीतते गए, दोनों ठग अधिक मेहनत करने का ढोंग करने लगे।
जबकि, करघा खाली का खाली था।
उस पर पोशाक तो क्या, एक धागा भी न था।
पोशाक बनाने के लिए धागा आदि सामान खरीदने के बहाने दोनों ठग रोज सम्राट से स्वर्ण-मुद्राओं से भरा थैला लेना न भूलते।
वे रोज शाम सम्राट के पास जाते और कहते, “सम्राट !
आपकी पोशाक बनाने का काम बहुत जोर-शोर से चल रहा है।
जब पोशाक पूरी होगी तो आप उसे देखते ही रह
था। तभी एक ठग बोला, "कहिए, प्रधानमंत्री जी!
आपको सम्राट की पोशाक कैसे लगी?"
“ है न भव्य व सुंदर ! एकदम अनोखी !” दूसरा ठग बोला।
प्रधानमंत्री ने सोचा,‘मुझे तो कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा। क्या मैं बेवकूफ.....!'
यह सोचकर वह हड़बड़ाते हुए बोला, “हाँ, हाँ !
तुम लोग बहुत अच्छी पोशाक बना रहे हो। तुम अपना काम करो। मैं चलता हूँ।”
प्रधानमंत्री सम्राट के पास गया और बोला, “सम्राट !
आपकी पोशाक वाकई बहुत भव्य व आकर्षक बन रही है। मैंने ऐसी पोशाक पहले कभी नहीं देखी।
आप पर वह पोशाक बहुत सुन्दर लगेगी । "
प्रधानमंत्री ने सम्राट से झूठ बोल दिया, क्योंकि वह अपनी नौकरी नहीं खोना चाहता था
और न ही बेवकूफ कहलाना चाहता था।
कुछ दिनों बाद सम्राट ने अपनी पत्नी व अन्य रिश्तेदारों को पोशाक देखने भेजा।
जब सम्राट की पत्नी व रिश्तेदार ठगों के कमरे में पहुँचे तो दोनों ठग करघे पर अपने हाथ बहुत तेजी से चलाने लगे।
सम्राट की पत्नी व उसके रिश्तेदारों को भी करघे पर कोई पोशाक बनती नहीं दिखाई दी।
अगर कोई पोशाक बन रही होती तो तब दिखाई देती न!
करघे पर पोशाक न देखकर उन्होंने सोचा कि वे बेवकूफ हैं।
लेकिन वे अपने को बेवकूफ नहीं कहलवाना चाहते थे, इसलिए पोशाक की तारीफ करते हुए कहा, “वाह !
तुम लोग जो पोशाक बना रहे हो, यह सच में अद्भुत है ।
इसकी सुंदरता देखते ही बनती है। "
वापस लौटकर उन्होंने भी सम्राट से बन रही पोशाक की झूठी तारीफ कर दी।
अब सम्राट से रहा नहीं गया और उसने स्वयं पोशाक देखने का निर्णय लिया।
वह अपने दरबारियों को लेकर पोशाक देखने पहुँचा।
सम्राट ने करघे को ध्यान से देखा, उसे वहाँ पर कुछ दिखाई नहीं दिया।
दरबारी भी खाली करघा देखकर हैरान थे। दोनों ठग बोले, "सम्राट !
पोशाक अच्छी बन रही है न! है-न-एकदम अनोखी और भव्य!''
सम्राट ने करघे को एक बार फिर ध्यान से देखा, उसे फिर भी कुछ नहीं दिखा।
उसने सोचा, ‘मुझे पोशाक की तारीफ तो करनी ही चाहिए।
यदि मैंने कहा कि मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा तो सबको पता लग जाएगा कि मैं बेवकूफ हूँ।
और फिर प्रधानमंत्री, मेरी पत्नी व रिश्तेदारों ने तो पोशाक को देखा ही है। मुझे चिंता
करने की जरूरत नहीं है।'
"
यह सोचकर वह बोला,“मुझे तो अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा कि इतनी भव्य पोशाक भी हो सकती है।
तुम दोनों ने बहुत अच्छा काम किया है।"
दरबारियों ने भी सम्राट की हाँ में हाँ मिलाई।
यह सुनकर दोनों ठगों ने एक दूसरे को इशारा किया और हँसते हुए बोले,“सम्राट !
अब बस थोड़ा-सा काम बचा है फिर पोशाक के तैयार होते ही आप इस भव्य पोशाक को पहन सकते हैं। "
“मैं इसे कल की परेड में पहनना चाहता हूँ। तुम इसे कल तक तैयार कर दो।”
सम्राट ने दोनों ठगों को आदेश देते हुए कहा।
“जी सम्राट! आपकी पोशाक कल तक पूरी हो जाएगी।
हम पूरी रात जागकर इसे सुबह तक तैयार कर लेंगे।"
ठगों ने सम्राट को विश्वास दिलाया।
अगले दिन पौ फटते ही दोनों ठग सम्राट के पास पहुँचे।
उन्होंने सम्राट को बताया कि उसकी पोशाक तैयार हो चुकी है।
एक ठग ने अपने हाथों में पोशाक पकड़े होने का नाटक किया।
वह सम्राट से बोला, "कहिए, सम्राट ! कैसी लगी
पोशाक ?"
“अद्भुत-भव्य।” सम्राट ने कहा ।
फिर दोनों ठगों ने राजा को पोशाक पहनाने का नाटक किया।
पोशाक पहनाने के बाद वे बोले,‘“सम्राट ! आप इस पोशाक में बहुत अच्छे लग रहे हैं।
सम्राट ने स्वयं को शीशे में देखा तो उसे अपने शरीर पर कोई कपड़ा नजर नहीं आया।
वह समझा कि बेवकूफ होने के कारण उसे पोशाक दिखाई नहीं दे रही।
उसने दोनों ठगों को ईनामस्वरूप खूब सारा धन दिया और खुद मंत्रियों के साथ नगर भ्रमण पर निकल पड़ा।
किसी को भी सम्राट के शरीर पर कपड़े नहीं दिख रहे थे, लेकिन किसी ने बोलने की हिम्मत नहीं की ।
क्योंकि कोई भी बेवकूफ नहीं कहलाना चाहता था।
पूरे नगर के लोग सम्राट के नए कपड़े देखने के लिए गलियों में जमा थे।
सम्राट बहुत शान से अकड़कर चल रहा था। उसे अपनी अद्भुत पोशाक पर घमंड हो रहा था।
सम्राट जिधर से गुजरता लोग उसे आश्चर्य से देखते।
किसी को भी सम्राट के शरीर पर कपड़े नजर नहीं आए, लेकिन वे जानते थे कि सम्राट के कपड़े सिर्फ वही देख सकता है,
जो बुद्धिमान हो। इसलिए सबने चुप रहने में ही
अपनी भलाई समझी।
सम्राट को देखने के लिए एक बच्चा भी अपने माता-पिता के
साथ आया हुआ था।
वह सम्राट को बिना कपड़ों के देखकर चिल्लाकर बोला, "अरे! सम्राट ने तो कपड़े ही नहीं पहने हैं।"
यह सुनना था कि सभी लोग हंसने लगे और बोले,“सम्राट ! बिना कपड़ों के घूम रहे हैं।"
यह सुनकर सम्राट का अकड़ा हुआ सिर झुक गया।
उसने सोचा, ‘मुझे भी तो अपने शरीर पर कपड़े नहीं दिखाई दे रहे हैं।
यह बच्चा एकदम सही कह रहा है।'
सम्राट शर्म के मारे तुरंत अपने महल लौट आया और उसने अपने सैनिकों को उन दोनों ठगों को पकड़कर लाने का आदेश दिया।
लेकिन ठग अब कहाँ मिलने वाले थे।
वे तो कब का सारा माल लेकर नौ दो ग्यारह हो गए थे।
इस प्रकार एक सम्राट के कपड़ों के शौक ने उसे बिना कपड़ों के परेड करवा दी।