सोने की धरती की खोज
हजारों साल से मानव सोने के पीछे पागल रहा है।
इस पागलपन में 'एलडोराडो' अर्थात् 'सोने के राजा की धरती' की कथाओं ने और भी वृद्धि की है।
दक्षिणी अमेरिका के दुर्गम पहाड़ों व घने जंगलों के बीच ही कहीं छिपी हुई है यह धरती जिस पर,
दंतकथाओं के अनुसार, सोना कंकड़ों-पत्थरों की तरह बिखरा पड़ा है।
शताब्दियों से सोने की तलाश में निकलने वाले दुस्साहसिकों की एक ही तमन्ना रही है कि वे सोने की धरती को खोज सकें।
सघन जंगल के ऊपर चमकता हुआ सूर्य आज भी अन्वेषकों को बुला रहा है कि आओ, यहीं कहीं मेरी सुनहरी रोशनी की तरह ही सोने की धरती छिपी हुई है!
आओ, उसे खोजो और अमर हो जाओ!
एलडोराडो के अस्तित्व का सबसे बड़ा प्रमाण है ठोस सोने का बना हुआ वह बजरा (नाव) जिस पर खड़ा हुआ सोने का राजा
अपने शरीर पर सोने का बुरादा छिड़क कर सूर्य को अर्ध्य देने के लिए पवित्र पहाड़ी झील में उतरने ही वाला है।
सन् 1969 में बोगोटा (दक्षिणी अमेरिका) के निकट एक गुफा में फार्म पर काम करने वाले दो कर्मचारियों को सोने के एक बजरे (नाव) का एक मॉडल मिला।
इस मॉडल पर एक राजा अपने सामंतों सहित खड़ा हुआ है।
पुरातत्वशास्त्रियों ने जैसे ही इस ठोस सोने से बने हुए बेड़े को देखा, उनके मुंह से निकल पड़ा-'एलडोराडो!'
एलडोराडो अर्थात् सोने का आदमी। इसी सोने के आदमी के साथ जुड़ी हुई है सोने की उस धरती की खोज की कहानी,
जहां पर अनुमान लगाया जाता है कि कंकड़ों-पत्थरों की तरह ठोस और शुद्ध सोना मिलता है।
बज़रे पर खड़ा हुआ राजा स्नान करने की मुद्रा में है।
उसके शरीर पर सोने का बुरादा छिड़का जा चुका है।
वह पवित्र पहाड़ी झील में स्नान करके सूर्य देव को भेंट चढ़ाएगा।
यह है उस बजरे का वर्णन।
ठीक ऐसा ही बजरा 19वीं शताब्दी में दक्षिणी अमेरिका की सीका झील की तली में ब्रिटेन तथा स्पेन के उन दुस्साहसी यात्रियों ने प्राप्त किया था,
जो पुराण कथाओं की तरह अवास्तविक लगने वाली सोने की धरती 'एलडोराडो' की खोज में निकले थे।
सोने की धरती तो न मिल सकी लेकिन 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में बोगोटा की गुफा से मिला यह सोने का बजरा एक बार फिर पुकार-पुकार कर कह रहा था
कि एलडोराडो केवल कपोल-कल्पना ही नहीं है, वरन् वह उसी धरती के गर्भ में छिपा हुआ ऐसा रहस्य है,
जिसे मात्र अभी तक दुनिया के सामने नहीं लाया जा सका है।
सोने के बेड़े पर सवार एल डोराडो अर्थात् सोने का राजा : यह दुर्लभ मॉडल
आज भी अन्वेषकों को उकसा रहा है।
शरीर पर सोने का बुरादा छिड़क कर झील में स्नान करने वाले राजा की कहानी पहली बार इंका सभ्यता को पराजित
करने वाले सेनापति तथा इक्वेडोर की राजधानी निबटो के संस्थापक सेबास्शियन डि बेलालकाजार (Sebastian de Balalcazar) को
एक इण्डियन आदिवासी ने सन् 1535 में सुनाई थी।
इस कहानी को सुन कर बेलालकाजार ने इस रहस्यमय राजा का नाम 'एल डोराडो' रख दिया।
बाद में यही 'एल डोराडो' मिल कर एक शब्द 'एलडोराडो' में बदल गया।
इसके बाद की कहानी सोने की धरती की खोज में अपनी बलि चढ़ा देने वाले हजारों खोजकर्त्ताओं की
जिद और असफलता की कहानी है।
सन् 1536 में 900 लोगों का दल लेकर सांता मार्ता से (कोलम्बिया का उत्तरी तट) अपने गवर्नर के आदेश से क्वेसेडा (Gonzalo J. Emenez de Quesada) नामक
खोजकर्त्ता ने दक्षिणी अमेरिका का अनुसंधान प्रारम्भ किया।
इसी के के दल भी इस तथ्य को लेकर निकले।
साथ-साथ बेलालकाजार तथा निकोलस फीडरमेन (Nicolaus Federmann)
क्वेसेडा को सघन और भयानक जंगलों व मच्छरों से भरे हुए दलदलों का सामना करना पड़ा।
मलेरिया के प्रकोप से तथा रास्ते की तकलीफों से क्वेसेडा के दल में केवल 2 सौ व्यक्ति रह गए
लेकिन ठीक उस समय जब उसने लौटने की तैयारी कर
ली थी, उसे लगा कि वह अपनी मंजिल के करीब आ पहुंचा है।
क्वेसेडा के सामने थी उपजाऊ जमीन वाली चिब्का (Chibcha) की धरती,
जिसके एक गांव में सूर्य देवता का भव्य मंदिर दिखाई पड़ रहा था।
उस धरती पर इन यात्रियों को नमक मिला जिसकी कीमत चिब्का के आदिवासियों की नजरों में सोने से भी अधिक थी।
इण्डियनों की फौज को हराने के बाद स्पेनियों को पता चला कि वहां से कुछ दिन की दूरी पर गुआटाविटा झील (Guatavita Lake) है,
जिसमें सोने का राजा अपने शरीर पर सोने का बुरादा छिड़क कर उतरा था।
आदिवासियों ने अपने विजेताओं को यह अद्भुत कहानी विस्तार से सुनाई कि किस तरह एलडोराडो सोने के जेवरों से लद कर तथा
पूरे शरीर पर सोने का पाउडर छिड़क कर गुलमेंहदी के बने बजरे में बैठकर झील में उतरा।
जैसे ही राजा ने पानी में डबकी मारी, सोने की धूल उसके शरीर से छूट कर पानी में घुल गई।
उसी समय पुजारी तथा राजा के दरबारियों ने कीमती जेवरों को नदी में फेंका ताकि सूर्य देव को भेंट मिल सके।
एक आदिवासी गाइड को लेकर जब स्पेनी यात्री इस झील पर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि समुद्र तल से 9 हजार फुट ऊपर एक बुझे हुए ज्वालामुखी के
गड्ढे की 9000 फुट चौड़ाई में बनी इस झील के आस-पास सोने के आदमी का नामो-निशान भी नहीं है।
उन्होंने सोचा कि जरूर इस झील की तली में सोना है।
इसी जगह क्वेसेडा ने सांता फी डि बोगोटा की स्थापना की, जो आजकल कोलम्बिया की राजधानी है।
सोने के राजा द्वारा पवित्र झील में डुबकी लगाने से पहले की तैयारी का चित्र ।
सन् 1539 तक सोने की तलाश में भटकने के बाद क्वेसेडा की मुलाकात बेलालजाकार तथा फीडरमेन के दलों से हुई।
ये दोनों दल भी तमाम कठिनाइयों से जूझने के बाद असफल हो चुके थे।
तीनों ने बोगोटा में मुलाकात की और क्वेसेडा ने फीडरमेन को 40 पौण्ड सोना भेंट किया।
फीडरमेन तथा बेलालजाकार पुनः इस प्रयास को दोहराने के लिए जीवित नहीं रहे लेकिन क्वेसेडा को अभी अपनी भूमिका का निर्वाह करना था।
सन्ं 1541 में फिलिप वॉन हटन (Phillip Von Hutten) नामक जर्मन के नेतृत्व एक और अभियान दल ने माकाटोआ (Macatoa) नामक
छोटे से नगर तक पहुंचने में सफलता प्राप्त की।
इस नगर में ओमेगस (Omagues) नामक एक. धनी कबीला रहता था।
इस कबीले ने हटन को अपने शहर में घुसने ही नहीं दिया और उस पर तीरों की भयंकर वर्षा कर दी।
फलस्वरूप मन में पुनः आने की आशा संजोए हटन को लौटना पड़ा।
परंतु अपनी इन आशाओं को पूरा करने के लिए हटन जीवित नहीं बचा क्योंकि एक राजकीय झगड़े में उसका सिर काट लिया गया।
सन् 1541 में महान दुस्साहसिक फ्रांसिस्को पिजारो (Francisco Pizarro) के भाई गोंजालो (Gonzalo) ने क्विटे से पुनः अभियान शुरू किया।
गोंजालो के साथ 350 योद्धा तथा 4000 इण्डियन थे।
उसका लक्ष्य था- सोना और दालचीनी।
थोड़ी दूर चल कर पिजारो के साथ फ्रांसिस्को डि ओरिलाना (Francisco de Orellana) का दल भी आ मिला।
धीरे-धीरे दोनों दलों की रसद खत्म होने लगी।
गर्म पानी की बरसात, भूख और बुखार से अपने तीन-चौथाई दल को मृत छोड़कर गोंजालों को क्विटो लौट आना पड़ा।
उसका साथी ओरिलाना केवल कैरेबियन द्वीप समूह तक पानी के रास्ते पहुंच सका।
दोनों को ही न सोने की धरती मिली और न ही दालचीनी।
ओरिलाना को अपनी महान् यात्रा में अमेजन नदी का क्षेत्र तलाश करने का श्रेय मिला।
उसने लम्बे बालों वाली अमेजन औरतें देखीं जो पुरुषों से भी ज्यादा कुशलता से तीर चलाती थीं ।
सन् 1561 में ओरिलाना के रास्ते पर ही पेरु के वायसराय पेड़ो दि उर्सुआ (Pendro de Ursua) का दल रवाना हुआ।
दुर्भाग्य से इस दल में आपस में ही झगड़ा हो गया।
इस आपसी खूनखराबे में 80 लोग मारे गए और यह दल ओरनिको नदी से होता हुआ वेनेजुएला तक ही पहुंच सका।
उधर कोलम्बिया में क्वेसाडा के दिमाग में उस रहस्यमय झील का दृश्य तैर रहा था।
उसने एक बार फिर 2800 आदमियों के विशाल दल के साथ उसी झील की तरफ बढ़ना प्रारम्भ कर दिया।
तीन साल तक झील की तलाश में भटकने के बाद क्वेसेडा वापिस लौट आया।
लेकिन उसने अपनी असफलता की भारी कीमत चुकाई ।
1300 योद्धाओं में से केवल 64, 1500 इण्डियन कुलियों में से केवल 4, 1100 घोड़ों में से केवल 18 घोड़े ही बच पाए थे।
200,000 सोने के सिक्के, इस
काले अभियान की भेंट चढ़ गए।
इसके बाद आगामी 40 वर्षों तक कई अभियान दल दक्षिण अमेरिका की पहाड़ियों और जंगलों की खाक छानते रहे।
उन्होंने सोने की धरती के लिए धन व्यय किया लेकिन उन्हें बदले में मिली केवल असफलता और रास्ते की खाक ।
सन् 1584 में बेरियो (Antonio de Berio) नामक स्पेनी गवर्नर के नेतृत्व में एलडोराडो खोजने के लिए तीन बार कोशिश की गई।
बेरियो ने दक्षिणी अमेरिका के पर्वी इलाके की छानबीन की।
तीसरे अभियान के दौरान सन् 1595 में त्रिनिदाद में बैरियो के दल को शराब के नशे में डुबा कर सर वाल्टर रैले (Sir Waltor Ralegh)
नामक अंग्रेज दुस्साहसिक यात्री ने सारी सूचनाएं प्राप्त कर लीं।
रैले ने बाद में एक किताब लिखी, जिसमें उसने पारिमा झील का वर्णन किया है, जो बेरियो से मिली जानकारी पर आधारित थी। रैले ने स्वयं अपनी आंखों से पारिमा झील नहीं देखी थी। रैले को महारानी एलिजाबेथ की मृत्यु के बाद जेम्स प्रथम के क्रोध का निशाना बन कर प्राण त्यागने पड़े।
इस बीच स्पेनी कैदियों ने एलडोराडो की काल्पनिक भव्यता की तारीफ में कविताएं लिखना प्रारंभ कर दी थीं।
एक ओर लोगों की कल्पनाओं में सोने की धरती जगमगा रही थी, दूसरी ओर एलडोराडो तक पहुंचने के सभी संभावित रास्तों पर यात्रियों,
योद्धाओं, सेनापतियों व इण्डियनों का रक्त, मांस और असफलता बिखरी पड़ी थी।
ठोस और शुद्ध सोने की तलाश में निकले लोगों को अभी तक केवल कुछ एक जवाहरात तथा थोड़ी-सी दालचीनी के साथ आदिवासियों से लूटे गए सोने की थोड़ी-सी मात्रा नसीब हुई थी।
एलडोराडो के लिए अंतिम स्पेनी अभियान 18वीं शताब्दी के अंत में हुआ।
फूण्टे (Diez de la Fuente) के नेतृत्व में यह अभियान दल तीन दिशाओं से एक साथ खोज के लिए निकला।
तीन दलों में से एक की कमान रोडालो के कब्जे में थी।
रोडालो को लगा कि यदि 20 दिन तक पानी में या दो दिन तक पैदल चला जाए तो पारिमा झील तक पहुंचा जा सकता है।
लेकिन तभी इण्डियनों की फौज ने उसके दल पर भयानक हमला कर दिया।
इस पूरे दौर में एलडोराड़ो के साथ-साथ गुआटाविटा झील की तले में अंडे के बराबर पन्नों के मौजूद होने की अफवाहें भी उड़ती रहीं।
बोगोटा के इस रईस स्पैनी व्यापारी ने सन् 1580 में सरकार से इजाजत लेकर इस झील की दीवार में दरार बना दी और झील के पानी का स्तर 15 फुट नीचे गिर गया।
एक अंडे के आकार का पन्ना व कई स्वर्ण वस्तुएं उस स्पैनी व्यापारी को मिली।
तभी वह दरार भर गई और झील का पानी नीचे गिरना बंद हो गया।
19 वीं शताब्दी में हुम्बोल्ट (Humboldt) तथा बोपलाण्ड (Boupland) ने, जो अपनी वैज्ञानिक पृष्ठभूमि के कारण पिछले खोजकर्ताओं से भिन्न थे,
अपनी यात्रा द्वारा साबित किया कि पारिमा झील का रैले द्वारा किया गया वर्णन नितांत काल्पनिक है।
सन् 1912 में 'कांट्रेक्टर्स' नामक अग्रेज कम्पनी ने 150,000 डालर
की लागत से आधुनिक पम्पों की मदद से उक्त झील को खाली करना शुरू किया लेकिन
झील के तल से उनके हाथ बहुत थोड़ा सोना लगा, जिससे झील खाली करने के व्यय का सौवां अंश भी नहीं वसूल हो सकता था।
इस तरह खत्म हुई एलडोराडो की अनवरत खोज, जिसका ओर-छोर रहस्य की वादियों में ही गुम बना रहा।
आधुनिक युग की जरूरतों ने मनुष्य की निगाह तेल, प्लेटिनम, हीरों, बॉक्साइट व मैंगनीज जैसी धातुओं व खनिजों को खोजने की तरफ फेर दी ।
संग्रहालय में रखा हुआ वह सोने का बेड़ा अब भी आवाज देकर खोजकर्त्ताओं को बुला रहा है।
बेड़े पर खड़ा हुआ सोने का राजा पवित्र पहाड़ी झील में डुबकी लगाने के लिए तैयार खड़ा है।
देखें, अब कौन-सा साहसी अन्वेषक एलडोराडो के रहस्य में डुबकी लगाने के लिए तैयार होता है।