Sundari Or Sinhmanv Ki kahani - सुंदरी और सिंह मानव

Sundari Or Sinhmanv Ki kahani - Sundari And Sinhmanv Story In Hindi

सुंदरी और सिंह मानव



सुंदरी और सिंहमानव

बहुत समय पहले किसी नगर में एक धनी व्यापारी रहता था।

उसकी तीन बेटियाँ थीं।

तीनों में सबसे छोटी बेटी बहुत सुंदर थी।

उसके रूप-रंग के अनुसार ही उसका नाम ‘सुंदरी’ था।

व्यापारी अपनी तीनों बेटियों से बहुत प्यार करता था।

वह अक्सर व्यापार के सिलसिले में घर से बाहर ही रहता था ।

एक दिन व्यापारी व्यापार के उद्देश्य से कहीं जा रहा था तो उसने अपनी तीनों लड़कियों को बुलाया

और उनसे पूछा, "मैं व्यापार करने बाहर जा रहा हूँ ।

बताओ, तुम्हारे लिए क्या लेकर आऊँ?"

बड़ी बेटी बोली, "पिताजी! मुझे तो रेशम के सुंदर कढ़ाई किए हुए कपड़े चाहिए।"

दूसरी ने कहा, "मेरे लिए सुंदर, कीमती मोतियों का हार लेकर आना।"

अब सुंदरी की बारी थी।

वह बोली, “पिताजी! कपड़े व गहने तो मेरे पास बहुत हैं।

आप बस मेरे लिए एक सुंदर गुलाब ले आना।

भला फूलों से अच्छा भी कोई तोहफा हो सकता है।"

व्यापारी ने कहा,‘“मैं तुम तीनों की मँगाई हुई चीजें ले आऊँगा।

तुम तीनों अपना ख्याल रखना।"

व्यापारी घोड़े पर सवार होकर चला गया।

भाग्यवश व्यापारी को इस बार व्यापार



में खूब फायदा हुआ।

उसने अपनी दोनों बड़ी बेटियों के लिए उनका मँगाया गया सामान खरीदा और घर की ओर चल पड़ा।

लगभग आधा रास्ता तय करने के बाद अचानक मौसम खराब होने लगा,

जिससे उसका घोड़ा बिदक गया।

व्यापारी पैदल ही आगे बढ़ चला।

वह जल्दी से जल्दी किसी सराय में पहुँचना चाहता था।

लेकिन जंगल में सराय कहाँ से मिलती ! वह निरंतर आगे बढ़ता रहा ।

कुछ दूर चलने पर उसे जंगल के बीच में रोशनी दिखाई दी।

वह उसी ओर बढ़ चला।

उसने वहाँ पहुँचकर देखा तो एक सुंदर महल रोशनी से जगमगा रहा था।

वह तुरंत महल की ओर बढ़ गया।

महल के दरवाजे पर पहुँचकर उसने आवाज दी,‘“कोई है? घर के अंदर कोई है !”

भी।

पर उसे कोई उत्तर न मिला।

उसने दरवाजा हल्का-सा अंदर की ओर धकेला तो वह पहले से ही खुला हुआ था।

वह महल के अंदर गया। महल बहुत भव्य था।

लेकिन उसे वहाँ पर कोई दिखाई नहीं दिया।

वह हैरान था और डरा हुआ उसने देखा कि खाने की मेज विभिन्न तरह के पकवानों से सजी हुई है।

वह खाने की मेज के पास गया और उसने एक

बार फिर घर के मालिक को आवाज दी।

लेकिन इस बार भी उसे कोई जवाब नहीं मिला।

वह भूखा था और खाना देखकर तो उसकी भूख और बढ़ गई थी।

इसलिए बिना कुछ सोचे-समझे वह खाना खाने लगा।

उसने भरपेट खाना खाया। खाना खाने के बाद उसे नींद आने लगी।

वह महल की सीढ़ियों को चढ़कर ऊपर गया।

वहाँ पर बहुत सारे कमरे थे।

एक कमरे में नरम-नरम बिस्तर लगा हुआ था।

व्यापारी उस कमरे में गया और आराम से सो गया।

अगले दिन सुबह जब उठा तो गर्मागर्म चाय और नाश्ता उसका इंतजार कर रहे थे।

उसने चाय-नाश्ता किया और महल से बाहर निकल आया।

महल से निकलकर वह बगीचे में जा पहुँचा।

बगीचे में तरह-तरह के सुंदर फूल खिले हुए थे।

तभी उसका ध्यान बगीचे में खिले सुंदर गुलाब के फूलों

पर गया।



गुलाब के फूल देखकर व्यापारी को अपनी बेटी सुंदरी की इच्छा याद हो आई।

उसने एक गुलाब का फूल तोड़ लिया।

पर तभी भयंकर गर्जना के साथ वहाँ एक सिंहमानव प्रकट हुआ।

वह दिखने में बहुत भयानक था ।

व्यापारी उसे देखकर डर के मारे थर-थर काँपने लगा।

सिंहमानव बोला, “हे मानव ! तुम बड़े अपकारी

हो। मैंने तुम्हें रहने के लिए आश्रय दिया, खाना दिया, पर तुम मेरे बगीचे की सुंदरता

नष्ट कर रहे हो। मैं तुम्हें इस

दुष्कर्म के लिए मृत्युदंड

दूँगा।”

व्यापारी डर के मारे थर-थर

काँपते हुए बोला, “मुझे माफ

कर दो। मेरी जान बख्श दो । तुम जो कहोगे, मैं वैसा ही करूँगा। मैं यह फूल अपने

लिए नहीं, बल्कि अपनी बेटी

सुंदरी के लिए तोड़ रहा था।

उसे गुलाब बहुत पसंद है।

उसने मुझसे गुलाब मँगाया था।"

सिंहमानव ने कुछ देर सोचने के बाद कहा,“ठीक है, मैं तुम्हें छोड़ दूँगा,

लेकिन मेरी एक शर्त है। तुम्हें अपनी बेटी को मुझे सौंपना होगा। मंजूर हो तो बोलो।"

व्यापारी डर व मौत की छाया में अच्छा बुरा भूल गया और उसने सिंहमानव की शर्त मान ली।

वह डरा-सहमा, रोता हुआ घर पहुँचा।

जब उसकी बेटियों ने उसे रोते हुए देखा तो उससे रोने का कारण पूछा।

व्यापारी ने उन्हें पूरी घटना सुना दी।

सुंदरी बोली,‘“पिताजी ! आप चिंता मत कीजिए।

मैं सिंहमानव के पास जाऊँगी।

आप मुझे उसके महल छोड़ आइए।" व्यापारी ने सुंदरी को गले से लगा लिया।

अगले दिन व्यापारी सुंदरी को लेकर सिंहमानव के महल पहुँचा।

सिंहमानव सुंदरी की सुंदरता देखकर उस पर मोहित हो गया।

वह सुंदरी को अपने महल में आया देखकर खुश हुआ ।

व्यापारी सुंदरी को वहीं पर छोड़कर भारी मन से वापस

लौट गया ।



शुरू-शुरू में तो सुंदरी सिंहमानव से डरती रही। लेकिन धीरे-धीरे उन दोनों में दोस्ती हो गई। सिंहमानव सुंदरी का बहुत ध्यान रखता था। वह उसके खाने-पीने से लेकर प्रत्येक सुख-सुविधा

का ध्यान रखता। एक दिन

सिंहमानव ने सुंदरी से कहा,

"सुंदरी ! क्या तुम मेरी पत्नी

बनोगी?"

सिंहमानव का प्रस्ताव सुनकर

सुंदरी चकित रह गई। एक

सिंहमानव से शादी के बारे में वह सोच भी नहीं सकती थी।

लेकिन वह 'ना' बोलकर सिंहमानव की भावनाओं को ठेस नहीं पहुँचाना चाहती थी,

इसलिए बोली, “मैं तुम्हारा प्रस्ताव स्वीकार नहीं कर सकती।

तुम इसे अन्यथा मत लेना। ऐसा नहीं है कि मैं तुम्हें पसंद नहीं करती हूँ, लेकिन.....।"

“हाँ! मुझ कुरूप से भला कोई शादी कैसे कर सकता है?"

सिंहमानव दुखी होकर वहाँ से चला गया।

इस घटना के कुछ दिन बाद सिंहमानव सुंदरी के लिए उपहारस्वरूप एक जादुई शीशा लाया।

सुंदरी उसमें देखकर अपने परिवार का हाल-चाल जान सकती थी।

सिंहमानव बोला,‘“मैं जानता हूँ कि तुम्हें अपने पिता और बहनों की याद आती है।

तुम्हें उनकी बहुत कमी खलती है और अकेलापन महसूस होता है, इसलिए मैं उपहारस्वरूप तुम्हारे लिए जादुई शीशा लाया हूँ।"

सुंदरी जादुई शीशा पाकर बहुत खुश हुई।



अब वह जब चाहे तब अपने पिता और बहनों को देख सकती थी।

एक दिन शाम को जब सिंहमानव घर आया तो उसने देखा कि सुंदरी रो रही है।

उसने सुंदरी से उसके रोने का कारण पूछा।

सुंदरी बोली, “मैंने जादुई शीशे में देखा कि मेरे पिता बहुत बीमार हैं।

उनकी दशा बहुत खराब है। मैं एक बार उनसे मिलना चाहती हूँ।"

“लेकिन तुम मुझे छोड़कर नहीं जा सकती।" सिंहमानव गुस्से में बोला।

सुंदरी जोर-जोर से रोने लगी। तब सिंहमानव बोला,

"मैं तुम्हें एक शर्त पर जाने दे सकता हूँ कि तुम सात दिनों में लौट आओगी।”

"मैं वादा करती हूँ कि मैं सात दिनों में लौट आऊँगी।" सुंदरी ने कहा।

सिंहमानव सुंदरी को उसके पिता के घर छोड़ आया।

व्यापारी अपनी बेटी को आया देखकर बहुत खुश हुआ।

उसने समझा कि सुंदरी सिंहमानव की कैद से आजाद हो गई है।

सुंदरी अपनी दोनों बहनों और पिता से मिलकर बहुत खुश थी।

सुंदरी दिन-रात पिता की सेवा में जुट गई।

उसकी देखभाल से व्यापारी की हालत सुधरने लगी।

दरअसल व्यापारी सुंदरी की चिंता में घुल-घुलकर बीमार पड़ गया था।

वह हर वक्त सुंदरी के बारे में ही सोचता रहता। बस, इसी कारण



वह बीमार पड़ गया ।

अत: सुंदरी के लौट आने पर उसका ठीक होना स्वाभाविक था।

इधर व्यापारी की देखभाल करने में सुंदरी इतनी मशगूल हो गई कि वह भूल गई कि उसे सात दिन बाद सिंहमानव के पास लौटना है।

वह सात दिन बीतने पर भी सिंहमानव के पास नहीं लौटी।

तब एक रात सुंदरी ने एक भयानक सपना देखा।

उसने देखा कि सिंहमानव मरने की दशा में पहुँच गया है और उसे पुकार रहा है, “लौट आओ, सुंदरी।

लौट आओ।तुमने वादा किया था। तुम अपना वादा नहीं तोड़ सकती ।"

सुंदरी सपना देखकर नींद से चौंककर उठ बैठी।

उसने फौरन अपना घोड़ा तैयार किया और तुरंत सिंहमानव के महल की ओर चल पड़ी।

वह वहाँ जल्दी पहुँचना चाहती थी,इसलिए घोड़े को तेज दौड़ाने लगी।

वह जब महल पहुँची तो तेजी से दौड़ते हुए महल के अंदर गई और सिंहमानव को पुकारा,

लेकिन उसे कोई जवाब नहीं मिला।



वह डर गई।

उसे लगा कि कहीं उसे आने में देर तो नहीं हो गई।

वह महल से निकलकर बगीचे में आ गई।

उसने देखा कि सिंहमानव बगीचे

में आँखें बंद किए चुपचाप लेटा हुआ है।

वह दौड़कर उसके पास गई और उसका सिर अपनी गोद में लेकर रोते हुए बोली, “तुम्हें कुछ नहीं हो सकता।

मैं तुम्हें मरने नहीं दूँगी। मैं तुमसे शादी करूँगी।"

सुंदरी के ऐसा कहते ही एक चमत्कार हुआ, सिंहमानव एक सुंदर, आकर्षक युवक में बदल गया।

वह बोला, “मैंने इस पल का बहुत इंतजार किया है ।

आज तुमने मुझ पर बहुत बड़ा उपकार किया है।

मैं एक राजकुमार हूँ।

एक जादूगरनी ने मुझे सिंहमानव बना दिया था।



वह मुझसे शादी करना चाहती थी और मेरे मना करने पर उसने शाप देकर मुझे सिंहमानव बना दिया।

उसने कहा कि जब कोई युवती मेरे सिंहमानव रूप में मुझसे शादी करने के लिए तैयार हो जाएगी

तभी मैं अपने वास्तविक स्वरूप में आ सकूँगा।

और आज जब तुम मुझसे शादी करने के लिए तैयार हो गई तो मैं अपने वास्तविक स्वरूप में आ गया।

मेरा ये नया जीवन तुम्हारी ही देन है।

क्या तुम मुझसे शादी करोगी?"

सुंदरी ने उसका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।

दोनों की शादी खूब धूमधाम से सम्पन्न हुई ।