Thamblina Story In Hindi - Thamblina Kahani

Thamblina Story In Hindi - Thamblina Kahani

थम्बलीना परी की कथा |थम्बलीना परी की कहानी

थम्बलीना

एक समय की बात है।

एक बहुत दयालु व अच्छे विचारों वाली महिला थी।

उसकी कोई संतान नहीं थी।

वह रोज भगवान से प्रार्थना करती, “हे ईश्वर! मुझे एक बच्चा दे दो।

बच्चे के बिना घर सूना-सूना लगता है ।"

एक दिन भगवान ने उसकी सुन ली।

वह जब अपने बगीचे में टहल रही थी तो उसे एक फूल के ऊपर एक नन्हीं-सी,

छोटी-सी, प्यारी-सी बच्ची सोती हुई दिखाई दी।

उसने लड़की को फूल से उठा लिया।

वह लड़की को देखकर हैरान थी, क्योंकि वह सिर्फ उसके अँगूठे के बराबर थी।

उसने उसका आकार देखकर उसका नाम थम्बलीना रखा और फिर प्यार से उसे चूम लिया ।

उसने भगवान का शुक्रिया अदा किया कि उसने उसकी प्रार्थना सुन ली।

उसने सोचा कि वह थम्बलीना को कहाँ रखेगी?

उसके लिए किस चीज का बिस्तर बनाएगी।

वह थम्बलीना को हाथ में थामें सोच ही रही थी कि तभी एक अखरोट उसके सिर पर गिरा।

अखरोट खाली था। महिला ने अखरोट का छिलका उठा लिया और उसे घर ले आई।

महिला ने थम्बलीना के लिए अखरोट के छिलके का पालना बनाया और

थम्बलीना को उसमें सुला दिया।

थम्बलीना महिला के साथ रहने लगी।

थम्बलीना को बगीचे में घूमना बहुत पसंद था।

वह अपना अधिकतर समय बगीचे में ही बिताती थी।

जल्दी ही उसकी बगीचे के निवासियों जैसे- झींगुर, टिड्डा, तितली, चींटियों और मधुमक्खियों से दोस्ती हो गई।

वह उनके साथ खेलती-कूदती, नाचती गाती और ढेर सारी मस्ती करती।

एक दिन थम्बलीना अपने दोस्तों के साथ खेलने-कूदने में मस्त थी कि तभी

एक भद्दा-सा मेढक उसके सामने आ खड़ा हुआ।

वह थम्बलीना का रास्ता रोककर खड़ा हो गया।

वह जिधर भी जाती, मेढक उसका रास्ता रोककर खड़ा हो जाता।

मेढक की यह हरकत देखकर थम्बलीना को बहुत गुस्सा आया।

उसे मेढक की मंशा पर भी संदेह हो रहा था, इसलिए वह थोड़ी डर भी गई थी।

पर अपने डर को छिपाते हुए वह मेढक से बोली, “तुम मेरा रास्ता रोककर क्यों खड़े हो?

मेरे सामने से हट जाओ। मुझे अपने दोस्तों के साथ खेलना है।"

मेढक थम्बलीना की सुंदरता देखकर हैरान था।

वह बोला, “ऐ लड़की! तु मेरे साथ चल।

मैं तेरी शादी अपने बेटे से करूँगा।"

“नहीं! कभी नहीं।" कहकर थम्बलीना ने भागना चाहा, पर मेढक ने जल्दी से

फुदककर उसे अपने मुँह में पकड़कर बंद कर लिया।

वह थम्बलीना को उसके घर के पास स्थित तालाब पर ले गया और

उसे एक कमल के फूल के पत्ते पर छोड़ दिया।

वह थम्बलीना से बोला, "मैं अभी अपने बेटे को बुलाकर लाता हूँ।

तुम कहीं जाना मत, यहीं पर बैठी रहना, समझी।"

थम्बलीना डर के मारे रोने लगी।

उसके रोने की आवाज सुनकर तालाब की मछलियाँ वहाँ पर आ गईं।

वे थम्बलीना को असहाय देखकर दुखी हो गईं।

उन्होंने उससे रोने का कारण पूछा।

थम्बलीना ने पूरी बात बता दी।

मछलियाँ बोलीं, “तुम चिंता मत करो।

हम कोई उपाय सोचती हैं।"

कुछ देर सोचने के बाद उन्हें एक उपाय सुझाई दिया।

मछलियों ने मिलकर कमल के फूल के तने को कुतर दिया, जिससे पत्ती फूल से अलग हो गई और पानी में बह चली।

थम्बलीना अभी भी रो रही थी और सहायता के लिए चिल्ला रही थी।

उसकी एक दोस्त तितली उस समय वहाँ से होकर उड़ रही थी।

उसने थम्बलीना की आवाज सुनी तो उड़ते-उड़ते उसके पास गई और बोली,

“ थम्बलीना ! तुम रोओ मत ! मैं अभी झींगुर को बुला लाती हूँ।

वह तुम्हारे लिए अवश्य कुछ करेगा।"

यह कहकर तितली तुरंत झींगुर के पास गई और उसे थम्बलीना की मदद करने के लिए कहा।

झींगुर तुरंत तितली के साथ तालाब पर गया और उसे अपने साथ अपने घर (पेड़) ले आया।

उसने थम्बलीना को पत्तियों के बीच छिपा दिया।

थम्बलीना ने उसको धन्यवाद देते हुए कहा,“ दोस्त !

आज तुम मुझे न बचाते, तो न जाने मेरा क्या होता?

मैं तुम्हारा शुक्रिया किन शब्दों में अदा करूँ?"

‘“ अरे! क्या अपनी दोस्त के लिए मैं इतना भी नहीं कर सकता?

तुम्हें धन्यवाद कहने की कोई जरूरत नहीं है।'' झींगुर ने कहा।

फिर उसने थम्बलीना को खाने के लिए शहद दिया।

उसने कुछ दिन तक तो थम्बलीना को अपने पास रखकर उसकी देखभाल की, पर कब तक उसे अपने

,

पास रखता? एक दिन वह थम्बलीना को फूलों के बगीचे में एक फूल पर छोड़ आया।

थम्बलीना वहीं पर रहने लगी। वह गर्मियों भर वहीं पर रही।

वह शहद और फूल का पराग खाकर अपनी भूख मिटाती और ओस की बूँद से प्यास बुझाती ।

वहाँ पर उसकी कई कीट-पतंगों से दोस्ती हुई और वह उनके साथ हँसने-बोलने व नाचने-गाने लगी।

उसका जीवन एकदम मजे से चल रहा था।

पर गर्मियाँ बीतने के बाद पतझड़ और फिर ठंड का मौसम आने के कारण

थम्बलीना का जीवन दुष्कर हो गया।

फूलों के पत्ते, पँखुड़ियाँ आदि झड़ गए।

थम्बलीना के साथियों ने फूलों को छोड़कर जमीन के अंदर शरण ले ली।

थम्बलीना को भी फूल को छोड़ना पड़ा।

अब उसके पास रहने का कोई ठौर- ठिकाना न था ।

वह ठंड में ठिठुरती हुई इधर-उधर भटकने लगी।

एक दिन वह दुखी, परेशान होकर ठंड की मार सहती हुई घूम रही थी कि उसकी मुलाकात एक चूहे से हुई।

चूहे ने थम्बलीना को ठंड में ठिठुरते देखा तो उसे उस पर दया आ गई।

वह बोला,“हे नन्ही लड़की! तुम ठंड में क्यों ठिठुर रही हो?

क्या तुम्हारे पास रहने की कोई जगह नहीं है?"

थम्बलीना ने उदास होकर 'न' में सिर हिला दिया।

तब चूहा बोला, "तुम उदास मत हो। मुझे अपना दोस्त ही समझो।

तुम चाहो तो मेरे घर पर चलकर रह सकती हो !”

थम्बलीना चूहे की बात सुनकर बहुत खुश हुई।

वह बोली, “दोस्त ! तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद ।"

चूहा थम्बलीना को जमीन के अंदर बने अपने बिल में ले आया। चूहा

वहाँ

पर अपने दोस्त छूछँदर के साथ रहता था।

चूहे ने थम्बलीना और छूछँदर का एक-दूसरे से परिचय कराया।

फिर उसने छूछँदर से पूछा, “दोस्त! मैं तुमसे पूछे बिना थम्बलीना को यहाँ ले आया !

तुम्हें उसके यहाँ रहने पर कोई आपत्ति तो नहीं है। "

“नहीं, नहीं। कितनी प्यारी लड़की है।

तुमने अच्छा किया, जो इसे यहाँ ले आए।

बेचारी ठंड में कहाँ जाती।" छूछँदर ने अपनी सहमति देते हुए कहा ।

थम्बलीना चूहे और छूछँदर के साथ रहने लगी। वे दोनों उसका बहुत ध्यान रखते थे।

थम्बलीना घर का सारा काम करती, खाना बनाती, घर साफ करती आदि। तीनों मजे से रह रहे थे।

एक दिन थम्बलीना अपने घर की खिड़की के पास खड़ी थी, तभी उसे एक अबाबील घायल अवस्था में

जमीन पर गिरा हुआ दिखाई दिया।

वह दौड़कर अबाबील के पास गई।

उसने उसके पंख धीरे से अबाबील ने हल्के-से अपने पंख फड़फड़ाए।

वह अबाबील को जीवित देखकर अपने घर ले आई और उसका घाव साफ कर उसकी मरहम पट्टी की।

उसकी देखभाल से अबाबील जल्दी ही ठीक हो गया।

पूरी तरह से ठीक होने पर अबाबील बोला, “ थम्बलीना !

तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद। तुमने मेरी जान

बचाकर मुझ पर बहुत बड़ा उपकार किया है।

यदि कभी मैं तुम्हारे किसी काम आ सका तो यह मेरा सौभाग्य होगा।"

“उपकार कैसा! मैंने तो बस अपना कर्त्तव्य पूरा किया।

हमें हमेशा दूसरों की मदद करनी चाहिए।''

थमलीना बोली।

फिर अबाबील थम्बलीना से विदा लेकर उड़ गया।

थम्बलीना अबाबील के ठीक होने पर खुश थी।

इधर छूछँदर थम्बलीना से प्रेम करने लगा था और उससे शादी करना चाहता था।

एक दिन साहस बटोरकर छूछँदर ने अपने दिल की बात थम्बलीना के समक्ष रखी,

“ थम्बलीना! मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ। क्या तुम्हें मेरा प्रस्ताव स्वीकार है?"

थम्बलीना के पास छूछँदर से शादी करने के अलावा और कोई उपाय न था।

कुछ देर सोचने के बाद उसने छूछँदर से शादी करने के लिए हामी भर दी,

पर वह इस शादी से खुश नहीं थी।

वह एक बार फिर खुली हवा में साँस लेना चाहती थी।

फूलों से बातें करना चाहती थी, अपने दोस्तों से मिलना चाहती थी,

लेकिन ये संभव न था ।

वह दुखी मन से अपनी शादी की तैयारियाँ करने लगी।

एक दिन थम्बलीना उदास होकर अपने घर के दरवाजे पर खड़ी थी।

उसकी आँखे नम हो गई थीं। तभी अचानक किसी ने उसे छुआ।

वह कोई और नहीं अबाबील था। वही अबाबील जिसकी उसने जान बचाई थी।

अबाबील बोला, "मैं यहाँ से गुजर रहा था, तुम्हें देखा तो चला आया।

पर तुम कुछ उदास लग रही हो ! क्या अपने दोस्त को नहीं बताओगी?"

"नहीं, कुछ खास नहीं।" थम्बलीना ने बात टालनी चाही।

लेकिन अबाबील जिद्द पर अड़ गया तो थम्बलीना ने उसे पूरी बात बताते हुए कहा,

“मैं खुली हवा में साँस लेना चाहती हूँ।

किसी अच्छे सुंदर बगीचे में जाकर रहना चाहती हूँ ।"

“बस, इतनी-सी बात। चलो, अभी तुम्हें किसी सुंदर बगीचे में पहुँचा देता हूँ।

मेरी पीठ पर बैठ जाओ।'' अबाबील ने कहा ।

‘धन्यवाद दोस्त, धन्यवाद।'' कहते हुए थम्बलीना अबाबील की पीठ पर बैठ

गई।

अबाबील थम्बलीना को लेकर उड़ चला।

बहुत दूर उड़ आने के बाद अबाबील एक सुंदर फूलों के बगीचे में उतरा।

वहाँ पर बहुत सारे तरह-तरह के फूल खिले

हुए थे। कई फलदार पेड़ भी थे।

अबाबील ने थम्बलीना को एक सफेद सुंदर फूल पर रखा और उससे विदा लेकर उड़ गया।

थम्बलीना फिर से खुली हवा में आकर खुश थी।

उसने सोचा, ‘बिल में रहकर तो पता ही नहीं लगता था कि बाहर का मौसम कैसा है।

वहाँ पर मेरा दम घुटने लगा था।

लेकिन चूहा कितना अच्छा था उसने मुझे ठंड से बचने के लिए घर दिया।

मैं उसका एहसान कभी नहीं भूलूँगी।'

और सोचते-सोचते जाने कब उसे नींद ने आ घेरा ।

थम्बलीना अगले दिन सुबह जब सोकर उठी तो अपने सामने एक सुंदर, आकर्षक राजकुमार को देखकर फूली नहीं समायी।

राजकुमार के सुंदर सफेद रंग के चमकीले पंख थे।

उसने सिर पर चमचमाता हुआ मुकुट पहना हुआ था।

वह भी कद में थमलीना जितना ही था।

जब राजकुमार ने थम्बलीना को देखा तो वह उसकी सुंदरता देखकर उस पर मुग्ध हो गया और उसके सामने शादी का प्रस्ताव रखा।

थम्बलीना को तो विश्वास ही नहीं हो रहा था।

उसने धीरे-से मुस्कुराकर अपनी सहमति प्रकट कर दी।

राजकुमार ने थम्बलीना को शादी के मौके पर एक जोड़ी सफेद पंख और मुकुट उपहार स्वरूप भेंट किए।

फिर दोनों खुशी-खुशी रहने लगे।