दोस्ती इंसान के जीवन के एक बहुत ही खास रिश्ता होता है। इंसान के जन्म होते ही उसके साथ कई रिश्ते जुड़ जाती है। पर दोस्ती का रिश्ता कोई भी इंसान खुद ही बनाता है।
एक बार की बात है।
दो दोस्त थे।
जिनमें एक का नाम था अनिल और दूसरे का नाम सुनील।
दोनों ही बचपन से ही आपस में बहुत प्यार करते थे।
उनका पूरा बचपन साथ में खेलते-खेलते बीता।
दोनों की बचपन की बहुत यादें साथ में थी।
अनिल एक गरीब परिवार से था, जिसके कारण उसके घर में हमेशा पैसों की कमी रहती थी।
इसलिए अनिल को पैसों का महत्व पता था।
सुनील के पिता के पास बहुत पैसा था।
दोनों बड़े हो गये और दोनों ने पैसे कमाने के लिए अपना-अपना काम शुरू कर दिया।
कहते हैं ना कि बचपन का समय बहुत ही अच्छा होता है और हर कोई इस समय को वापस लेना चाहता।
इस समय को वापस से जीना चाहता है।
लेकिन जब बड़े हो जाते है तो ये सब संभव नहीं हो पाता।
सभी अपने अपने काम इतना व्यस्त हो जाते हैं कि किसी को मिलने का भी समय तक नहीं मिल पाता।
एक बार जब अनिल की तबियत बिगड़ गई और उसने काम पर जाना बंद कर दिया।
अनिल ने घर पर ही आराम करने का सोचा और घर पर ही आराम करने लगा।
तभी सुनील को इस बात का पता लगा कि अनिल की तबियत सहीं नहीं है।
तो वह अनिल से मिलने के लिए सुनील के पास पहुंचा और उसे कुछ रूपये दिए और कहा कि इन पैसों से अपनी दवाई ले लेना।
इतना कहकर वो वापस निकल गया।
सुनील ने अनिल से उसके स्वास्थ्य का भी नहीं पूछा।
इस बात का अनिल को बहुत दुःख हुआ।
कुछ दिनों बाद अनिल की तबियत सुधर गई और अनिल वापस अपने काम पर जाना शुरू हो गया।
सब कुछ पहले जैसा हो गया।
अनिल ने पैसा कमाकर सुनील को वापस लौटा दिये।
लेकिन अनिल को बहुत दुःख था।
धीरे-धीरे समय निकलता गया और वो अपने काम में लगे रहे।
एक दिन जब सुनील की तबियत में कुछ गड़बड़ हुई तो इसका पता अनिल को लगा।
तो अनिल तुरंत अपने सभी काम छोड़कर सुनील के पास पहुंचा और उसकी तबियत पूछी।
अनिल पूरा दिन सुनील के साथ रहा।
उसे समय पर दवाई दी और उसका सही से ध्यान रखा।
धीरे-धीरे सुनील के स्वास्थ्य में सुधार होने लगा।
जब सुनील पूरी तरह से ठीक हो गया।
फिर सुनील से मिलने के लिए अनिल पहुंचा तो सुनील शर्मिंदा था।
क्योंकि जब अनिल बीमार था तो सुनील पैसे देकर वहां से निकल गया था और उसके स्वास्थ्य का भी नहीं पूछा था।
लेकिन जब सुनील की तबियत बिगड़ी तो अनिल ने सुनील का पूरा ध्यान रखा।
सुनील ने अनिल से कहा कि तुमने तो पैसे वापस दे दिए।
पर मैं ये तुम्हारा अहसान कैसे वापस चुकाऊंगा।
उस दिन सुनील को भी ये पता चल गया कि हर जगह पर पैसा ही सब कुछ नहीं होता।
पैसों से हर किसी को नहीं खरीदा जा सकता।
इतना सुनने के बाद अनिल ने सुनील को गले लगा दिया और कहा कि मैं यही चाहता था
कि तुम्हें इस बात का अहसास हो कि हर जगह पर पैसा सबकुछ नहीं होता।
ये अहसास आज तुम्हें हो गया।
मैं आज बहुत ही खुश हूं।
रमेश और सुरेश बचपन से साथ में ही बड़े हुए।
इन्होंने अपने सभी काम साथ में रहकर किये।
साथ में ही स्कूल गये, एक क्लास में पढ़े, एक साथ ही कॉलेज जाते।
इतना करते हुए उनकी पढाई पूरी हो गई और उनकी नौकरी करने का समय आ गया।
फिर दोनों ने आर्मी में जाने का निर्णय लिया और आर्मी के लिए आवेदन किया।
दोनों का आर्मी में नम्बर लग गया और उनको ज्वाइन करने के लिए कहा गया।
उन्होंने ज्वाइन किया तब भी उनको एक ही ग्रुप मिला और दोनों ने आर्मी की नौकरी करना शुरू हो गये।
एक बार वहां पर युद्ध का माहौल बन गया और युद्ध होना शुरू हो गया।
रात का समय था चारों दिशाओं से गोलियों की बारिश हो रही थी।
इस युद्ध में रमेश और सुरेश भी शामिल थे।
तभी काली रात में एक तरफ से जोर-जोर से आवाज आने लगी।
रमेश कहां हो, मेरी मदद करो, मैं मुश्किल में हूं, मुझे मदद की जरूरत है?
रमेश ने तुरंत ही सुरेश की आवाज को पहचान लिया और उसने रमेश की मदद करने की सोची।
उसने अपने कैप्टन से सुरेश की मदद करने जाने के लिए इजाजत मांगी।
कैप्टन ने तुरंत मना कर दिया कि तुम वहां नहीं जाओगे।
हमारी सेना के पहले ही काफी सैनिक मारे जा चुके हैं और मैं और सैनिकों को कम होने नहीं दूंगा।
इतना सुनने के बाद रमेश शांत बैठ गया।
फिर वहीं सुरेश की आवाजे सुनाई देती और रमेश अपने कैप्टन से इजाजत मांगता और इजाजत नहीं दी जाती।
फिर अंत में रमेश ने कैप्टन से कहा कि सुरेश मेरा बचपन का दोस्त है और हम दोनों साथ में खेले है और साथ में ही बड़े हुए है।
आज उसको मेरी जरूरत है और मैं यहां पर शांति से बैठा हूं।
मुझे जाने दो। मुझे उसके पास जाना है और उसे बचाना है।
कैप्टन ने इतना सुनने के बाद रमेश को सुरेश के पास जाने की इजाजत दे दी।
फिर रमेश उन गोलियों की बारिश में अपनी जान की चिंता किये बिना ही सुरेश के पास पहुंच गया और फिर वहां से सुरेश को घसीट कर सुरक्षित स्थान पर ले आया।
वहां पर सभी सैनिक और कैप्टन मौजूद थे।
जब वहां पर रमेश सुरेश को लेकर पहुंचा तो सुरेश की जान निकल चुकी थी। (Heart Touching Story)
फिर कैप्टन ने रमेश को जोर से चिल्लाते हुए कहा मैंने मना किया था ना कि वो मर चुका है।
वहां पर जाकर अपनी जान जोखिम में मत डालो।
तभी रमेश ने कहा जब मैं सुरेश के पास पहुंच तो वो जिन्दा था और मेरा ही इंतजार कर रहा था।
सुरेश ने मुझे ये भी कहा कि मुझे पूरा भरोसा और विश्वास था कि तुम जरूर मुझे बचाने आओगे और तुम आ गये।
इस Heart Touching Story को पढ़कर आपको ये तो महसूस हो ही गया होगा कि रिश्ते कितनी मुश्किल से बनते है
और एक बार बन जाए तो उसे किसी भी हालत में निभाना चाहिए ।
मैं होस्टल में मेरे दो और दोस्तों के रहता था।
हम एक कमरे में तीन जने रहते थे।
एक दिन मैं बहुत बीमार हो गया और उस दिन मुझे कुछ भी अच्छा महसूस नहीं हो रहा था।
तो मैंने उस दिन अपनी क्लास में जाना cancel कर दिया और ये सोचा कि आज के दिन आराम करूंगा तो ठीक हो जाऊंगा।
ये सोच के मैं उस दिन कमरे में ही आराम करने लगा।
फिर थोड़े समय बाद मेरा एक दोस्त आया।
जो मेरे साथ मेरे रूम में रहता था।
उसने मेरे से पूछा कि क्लास में क्यों नहीं गये ?
तो मैंने बता दिया कि बीमार हूं।
तो उसने कहा कि आज के दिन आराम कर लो ठीक हो जाओगे।
इतना कहने के बाद वो अपनी क्लास के लिए निकल गया।
फिर उसके बाद दूसरा मेरा दोस्त आया और उसने पूछा कि क्या हुआ ?
तो मैंने कहा थोडा बुखार है, बस आराम कर रहा हूं ठीक हो जायेगा।
तो उसने मेरे माथे पर हाथ रखा और देखा कि मुझे तेज बुखार है।
तो वह उसी समय दवाई की दुकान गया और मेरे लिए दवाई लेकर आया।
उसने मुझे खाना खिलाकर दवाई दी और आराम करने को कहा।
मेरा बुखार दो दिन में ठीक हुआ तो मैंने उसका धन्यवाद दिया।
तो उसने मेरे को कहा ”Anything For You” और एक सच्चे दोस्त को अपनी दोस्ती में ये ही करना चाहिए।
सच्चे दोस्त वो होते हैं जो हमारे मुश्किल काम में हमारे काम आये।
आप इसका हमेशा ध्यान रखे कि कौन अपना सच्चा दोस्त है और कौन आपसे सिर्फ दोस्ती ही रखना चाहता।
इसका पता तो आपको तब लगेगा जब आप किसी मुश्किल काम में फंस गये हो और आपको अपने दोस्त की जरूरत पड़ती हैं।
तभी जो सच्चे दोस्त होते हैं वो आगे आते।
यदि आपको सच्चा दोस्त मिले तो हमेशा उसके साथ रहे और आप भी उसके भी मुश्किल काम में काम आये।
क्योंकि सच्चे दोस्त किस्मत वालों को ही मिलते हैं। इसलिए सच्चे दोस्तों की हमेशा कद्र करनी चाहिए।
एक अस्पताल के कमरे में दो जाने भर्ती थे। जिसमें एक नाम सुरेश और दूसरे का नाम किशन था। अस्पताल के उस कमरे में जिसमें ये दोनों भर्ती थे, उसमें सिर्फ एक ही खिड़की थी। जो किशन कि बिस्तर के पास थी। लेकिन किशन को सिफ 2 घंटे के लिए ही बाहर देखने दिया जाता था।
सुरेश को कोई गंभीर बीमारी होने के कारण उसको अपने बिस्तर से हटने की अनुमति नहीं थी।
फिर कुछ दिनों में किशन और सुरेश की दोस्ती होती गई।
धीरे-धीरे दोनों की Friendship इतनी गहरी हो गई कि वो दोनों
अपने घर परिवार की बातें भी साथ करने लगे और अपने दिल की भी बातें एक दूसरे को बताने लगे।
जब भी किसी को कोई दुःख होता तो वह दूसरे के साथ शेयर जरूर करता था।
इससे उनका दर्द कम हो जाता और ख़ुश हो जाते थे।
किशन हमेशा उस खिड़की के पास बैठा-बैठा सुरेश को बाहर का नजारा बोल कर बताता था और सुरेश खुश हो जाता।
किशन हमेशा उसे बताता था कि आज बगीचे में लोग इतने घूम रहे हैं,
मन्दिर में आज कोई आयोजन हो रहा है, पास के स्कूल में क्या हो रहा है और बाहर का मौसम कैसा हैं ?
इन सभी के बारे में किशन सुरेश को बताता था।
सुरेश अपने जीने की उम्मीद खोता जा रहा था।
सुरेश ये सब सुन कर बहुत ही खुश हो जाता और अपनी बीमारी को वो धीरे-धीरे भूलने लगा।
जब भी किशन उसे बाहर के नज़ारे के बारे में बताता तो वह
हमेशा इतना खुश होता कि उसे लगता ही नहीं था कि वह सब सुन रहा है। उसे लगता कि वो ये सब नजारा देख रहा है।
किशन हमेशा ही सुरेश को सकारात्मक बातें ही बताता था।
जिससे कि सुरेश पर अच्छा प्रभाव पड़े।
नकारात्मक बातें नहीं बताता था, उससे सुरेश मायूस हो जाता था।
दोनों दोस्तों के बीच दोस्ती इतनी हो गई थी कि वो अपनी सभी बातें एक दूसरे को बताने लग गए थे।
ये सिलसिला काफी दिनों तक चलता ही रहा।
किशन सुरेश को बाहरी रंगीन दुनिया का नजारा बताता और सुरेश बहुत खुश होता।
एक दिन अचानक किशन मौत हो जाती है।
इसकी खबर जब सुरेश को पड़ती है तो वह बहुत दुःखी होता है और उसे याद करने लगा।
जब नर्स किशन को वहां से हटा रही थी तो सुरेश ने उस नर्स से उस खिड़की वाले बिस्तर के लिए अनुरोध करता है।
तो नर्स ने कहा कि तुम्हे ये बिस्तर क्यों चाहिए।
तो सुरेश ने कहा कि मैं यहां से बाहर का नजारा देखना चाहता हूं जो मुझे किशन बताता था।
लेकिन जब सुरेश उस खिड़की से देखता है तो वहां कुछ दिखाई ही नहीं देता था।
क्योंकि वहां पर एक दीवार खड़ी की हुई थी।
वहां कोई मंदिर का आयोजन, पार्क में खेलते बच्चे और पास में कोई स्कूल था
ही नहीं जो कुछ किशन सुरेश को बताता था वो कुछ वहां पर था ही नहीं।
किशन वो सब सुरेश को इसलिए बताता था क्योंकि सुरेश वो सब सुनकर अपनी बीमारी को भूल रहा था।
वो सिर्फ सुरेश की हिम्मत बढ़ता था और उसकी मरने वाली उम्मीद को कम करता था।
जिससे तुम जिन्दगी जीने का महत्व सिख सको।
इतना बड़ा शहर और इस शहर के एक कोने में कॉलेज, इसी कॉलेज के रूम नं. 12 में वो सब।
एक याद सी बन गये थे, जिनका वापस इस तरह से साथ दिखना शायद ही हो पाएं।
शुरूआत में सभी नये-नये और मासूम ही दिख रहे थे।
लेकिन जैसे-जैसे समय बितता सभी अपना असली रूप सामने लाने में पीछे नहीं हटे।
इन्हीं नये और मासूमों में कुछ का मेरे से मिलन हुआ और “हमारा वो सफ़र (Hamara Wo Safar)” की शुरूआत हुई।
इसी सफर के चलते हमें कई और भी मिले धीरे-धीरे सभी में अपनेपन का अहसास होने लगा।
समय बिताता गया और वो दिन भी।
पर उस समय ये कहां मालूम था कि ये सभी नए चेहरे इतने करीब आकर
इस तरह बिछड़ जाएंगे कि वापस मिलना भी संभव न हो पायेगा।
सभी कॉलेज की दिनचर्या से Free होकर तनाव दूर करने के लिए कॉलेज की कैंटीन में मिलते और
हम में से किसी एक का चयन केन्टीन के बिल देने के लिए होता।
सभी का यूं मिलना और उसी जगह पर Birthday Celebrate करना और किसी Event की Planning करना।
इन सभी से हमारे बीच में एक नई डोर सी बन गई, जो सभी को एक साथ रहने के लिए मजबूर कर देती।
सुबह-सुबह एक साथ बैग लिए लैब के लिए निकलते और
वहां से Classess के लिए कॉलेज टीचर सहपाठी ये सब एक नया परिवार सा बनता गया।
कई बार तो सुबह की शुरुआत ही घनघोर सम्मान (बेइज्जती) के साथ होती, जब प्रेक्टिकल लैब में प्रवेश करते।
लैब में सभी के जेबो में बर्फ के टुकड़े डालना खैर जब एक दो साथी
और इस सम्मान मे शरीक होते तो दिल को शुकून मिलता।
फिर वहीं लैब के बाद कॉलेज कैंटीन और चाय की टपरी पर मिलाना मानो हमारे Life का एक अहम हिस्सा बन गये थे।
इस तरह धीरे-धीरे रोमांच से भरा कोलेज जीवन समाप्ति की तरफ आ रहा था।
इसी बीच कॉलेज में Fresher party, Farewell party और वो Radio Advertisement हमें मिलने और साथ समय बिताने के लिए एक अच्छा मौका दे जाते।
इस जोश भरे समय मे कब अपनापन चरम पर पहुंचा ?
इसका एहसास तक नही हुआ।
अब समय फेयरवेल पार्टी देने की बजाय लेने में बदल गया।
सभी ने इस जश्न की तैयारियां बहुत पहले से ही शुरू कर दी।
इस कॉलेज के अंतिम जश्न में सभी का अच्छा प्रदर्शन रहा।
अन्ततोगतवा सबको नम भरी आंखो से एक-दूसरे को Good Baye बोलने का समय आया।
उस समय सभी के खुश होने के साथ ही आंखें नम भी थी।
एक बार की बात है। कही किसी स्कूल में दो लड़के पढ़ा करते थे।
पहले लड़के का नाम साहिल था।
साहिल पढ़ाई में बहुत ही तेज हुआ करता था।
वह अपने क्लास में सबसे आगे बैठा करता था।
स्कूल के सभी टीचर साहिल को पसंद किया करते थे।
उसी स्कूल में एक और लड़का पढ़ा करता था जिसका नाम रुर्द्र था।
रुर्द्र पढ़ाई में थोड़ा कमजोर था। उसको पढ़ने में दिक्कत हुआ करता था।
जिसके कारण वह क्लास में पीछे बैठा करता था।
वह दोनों एक ही स्कूल में पढ़ा करते थे।
एक दिन शाहिल स्कूल से घर जा रहा था तो उसके साथ एक छोटी सी सड़क दुर्घटना ही जाती है।
जिसमे रुर्द्र साहिल की मदद करता है।
रुर्द्र साहिल को हॉस्पिटल पहुँचता है। साथ ही उसका सही से इलाज करवाता है।
इसके बाद साहिल और रुद्र एक अच्छे दोस्त बन जाते है।
वह स्कूल में एक साथ बैठा करते थे।
एक दिन साहिल रुद्र से पूछता है कि रुद्र तुम पढ़ाई क्यों नहीं करते हो?
यह सवाल सुनकर रुद्र की आँख भर आती है।
रुद्र साहिल को बताता है कि वह पढ़ना तो चाहता है लेकिन उसको समझ में ही नहीं आता है कि वह पढ़ाई कैसे करे?
साहिल रुद्र को कहता है कि आज से वह रुद्र को पढ़ने में मदद करेगा।
साहिल उसी दिन से ही रुद्र को पढ़ाने लगता है।
धीरे-धीरे रुद्र को पढ़ाई समझ में आने लगती है।
साहिल रुद्र को रास्ता दिखता जाता है और रुद्र उस रास्ते पर चला जा रहा था।
स्कूल के आखरी परीक्षा में रुद्र अच्छे अंक से पास होता है।
इसका कारण साहिल ही होता है।
आज भी साहिल और रुद्र एक अच्छे और सच्चे दोस्त है।
किसी गाँव में दो लड़के रहा करते थे।
वह दोनों लड़के ही अच्छे दोस्त थे।
एक लड़के का नाम अमन था तो दूसरे का नाम दिनेश था।
अमन का परिवार थोड़ा-सा गरीब था। वही दिनेश का परिवार अमीर था।
अमन पढ़ने में अच्छा था।
वह अपने स्कूल में टॉप किया करता था।
वही दिनेश भी पढ़ने में ठीक ही था, लेकिन वह ज्यादा पढ़ाई करना पसंद नहीं करता था।
अमन के टीचर कहा करते थे कि अगर अमन का परिवार थोड़ा भी पैसो से अमीर होता तो यह पढ़ाई के दम पर बहुत ही सफल हो सकता है।
अमन के मन में भी यही था कि वह आगे की पढ़ाई करें लेकिन फिर वह अपने घर की हालत देखकर वह उदास हो जाया करता था।
जिसका एक अच्छा दोस्त हो तो उसे कोई भी मुश्किल नहीं हरा सकता है।
अमन का भी एक अच्छा दोस्त दिनेश था।
कक्षा 12 के बाद अमन को आगे पढ़ाई करने के लिए जाना था लेकिन उसके पास पैसे ही नहीं थे।
दिनेश अमन की मदद करना चाहता था, इसलिए वह अपने परिवार से अमन को मदद करने को कहता है।
पहले तो दिनेश का परिवार इसके लिए तैयार नहीं होता है।
लेकिन दिनेश के जिद्द पर उसका परिवार राजी हो जाता है।
फिर क्या था अमन पढ़ने के लिए शहर चला गया।
एक बार की बात है, दो बहुत ही अच्छे दोस्त एक गहरे रेगिस्तान से गुजर रहे थे।
चलते चलते कुछ दूरी पर दोनों में किसी बात को लेकर झगड़ा होने लगा जैसे कि हर दोस्तों के बीच में होता है।
जब दो लोग आपस में एक ही बात पर सहमत नहीं होते है।
तो गुस्से में एक दोस्त है दूसरे दोस्त के गाल पर थप्पड़ मार दिया।
थप्पड़ खा कर भी वह दोस्त उससे कुछ नहीं बोला बस उसने रेत पर
लिखा: "आज मेरे सबसे अच्छे दोस्त ने मुझे थप्पड़ मारा।"
थोड़ी देर दोनों एक दूसरे से बिना बात किये आगे चलते रहे लेकिन थप्पड़ खाने वाले दोस्त ने बात करना
शुरू किया और बोला कि कोई बात नहीं दोस्ती में हो जाता है।
यह सुनकर थप्पड़ मारने वाले दोस्त ने उस से माफी मांगी।
सब कुछ नॉर्मल हो जाने पर दोनों बात करते करते एक तालाब के पास पहुंचे।
गर्मी बहुत थी इसलिए दोनों ने सोचा कि इस तालाब में नहा लेते हैं ।
नहाते नहाते थप्पड़ खाने वाले दोस्त का पैर तालाब में कहीं फंस गया जिससे वो डूबने लगा।
थप्पड़ मारने वाले दोस्त ने उसे किसी तरह बचा लिया और पानी से निकलने के थोड़ी देर के बाद
जैसे ही वह नॉर्मल हुआ उसने एक पत्थर पर लिख दिया की : "आज मेरे सबसे अच्छे दोस्त ने मेरी जान बचाई।"
तो थप्पड़ मारने वाले दोस्त ने पूछा कि जब मैंने तुझे थप्पड़ मारा तो तूने रेत में लिख दिया और अब जब
मैंने तुझे बचाया तो तूने पत्थर पर लिख दिया इसका मतलब समझ नहीं पाया।
तो उसने बड़ी विनम्रता से जवाब दिया दोस्तों के बीच में बहुत सी बातें होती हैं झगड़े भी होते हैं लेकिन
अगर तुम्हारी दोस्ती सच्ची है तो पुरानी एवं बेकार बातो को भूला देनी चाहिए और अच्छी बातें याद रखनी चाहिए।
इसलिए जब तुने मुझे थप्पड़ मारा तो वह मैंने रेत पर लिख दिया
ताकि हवा के साथ वह बातें मिट जाए और जब तुने मुझे बचाया तो वह कभी मिटना नहीं चाहिए इसलिए मैंने उसे पत्थर कर लिख दिया।
एक बार एक गाँव में दो सबसे अच्छे दोस्त थे, वे ज्यादातर समय एक पेड़ के नीचे आराम करने और यह सोचने में बिताते थे, कि उन्हें अपने जीवन में क्या करना चाहिए।
इसी तरह सोचने में वे पहले ही अपना बहुत सारा कीमती समय गंवा चुके थे।
तो, एक दिन उन्होंने देखा कि गाँव की औरतें पैदल चलकर गांव से दूर नदी से बर्तनों में पानी भरकर लाती थीं ।
क्योंकि नदी गांव से बहुत दूर थी इसलिए वे कितने भी चक्कर लगा लें, पानी कभी भी परिवार की दैनिक जरूरतों के लिए पर्याप्त नहीं होता था।
अब, उनको एक विचार आया । वे गांव गए और गांव के लोगों को बोला कि हम दो बहुत अच्छे दोस्त है।
अगर आप लोग चाहो तो हम दोनों दोस्त नदी से पानी भरकर आपके घर तक पहुंचा देंगे बदले में आप हमें प्रति बर्तन पानी का ₹25 दें देना।
प्रस्ताव सभी को पसंद आया क्योंकि अब घर की औरतों को इतना दूर जाने की जरूरत नहीं है और घर बैठे बैठे पानी भी मिल जाएगा और धीरे धीरे उनका यह व्यवसाय बहुत तेजी से बढ़ता है, वे रोजाना 50 से 100 चक्कर लगाने लगे।
दिन बीत गए, साल बीत गए और 10 साल बाद, वे दोनो दोस्त करीबी गांवों में सबसे अमीर हो गए थे।
लेकिन तभी एक दोस्त को एहसास हुआ कि उन्हें कुछ अलग करने की जरूरत है, क्युकी अभी तो वे स्वस्थ और युवा हैं लेकिन वे हमेशा के लिए ऐसे नहीं रहेंगे, फिर हमारे परिवार का क्या होगा।
तो उसने अपने दूसरे दोस्त को इस बारे में बताया, लेकिन दूसरे ने कहा कि भूल जाओ, कुछ भी बुरा नहीं होने वाला है। इस समय का आनंद लें, हम बहुत अच्छा कर रहे हैं।
लेकिन पहले वाला दोस्त कुछ नहीं जानता लेकिन फिर भी विकल्प खोजने लगा। कुछ दिनों बाद, एक पड़ोसी गाँव में, उसने एक कुम्हार को बर्तन बनाते हुए देखा और एक लंबी संकरी गर्दन वाला एक बर्तन देखा।
उसने सोचा कि क्या होगा अगर हम मिट्टी का एक बड़ा लंबा पाइप बनाकर नदी से गांव तक ला दें।
दूसरे दोस्त ने कहा कि यह कभी काम नहीं करेगा, मिट्टी का पाइप, यह वास्तव में एक बुरा विचार है।
इस दोस्त ने हजारों कारण बताए कि यह काम नहीं करेगा लेकिन पहले वाला दोस्त इसको फिर भी आजमाना चाहता था।
निर्माण शुरू हुआ और शुरू से ही, काम में बहुत सारी समस्याएं आईं,
पाइप कई बार टूट गया और फिर से नए पाइप से काम करते रहे ।
इसलिए दूसरा दोस्त खर्चे को देखते हुए उसको छोड़ कर चला गया,
लेकिन धीरे-धीरे ही सही आखिरकार 6 से 7 महीने बाद, पाइप सही से लगा दिया और इस तरह से गांव तक पानी आने लगा।
अब, वह प्रति दिन हजारों बर्तनो को पानी से भर सकता था,
इस प्रकार प्रति बर्तन पानी की दर 25₹ से घटाकर 10₹ प्रति बर्तन कर दिया क्युकी उसे कही जाने की जरूरत नही थी।
इस तरह से उसकी आय बढ़ने लगी क्योंकि अब हर दिन हजारों
बर्तन पानी कम दाम पर पहुंचा देता था और उसका दूसरा दोस्त अब बेरोजगार हो गया।
एक बार एक गाँव में दो दोस्त सोनू और मोनू रहते थे।
एक दिन उन दोनों को किसी काम से दूसरे गाँव जाना था।
रास्ते में सोनू को एक पेड़ से लटकी एक सुंदर तलवार दिखाई दी।
वह तेजी से भागा और उसे पकड़ लिया और खुशी से चिल्लाया, "देखो मुझे कितनी सुंदर तलवार मिली है।"
इस पर उसके दोस्त मोनू ने उसे टोकते हुए कहा, "हम दोनों साथ-साथ चल रहे हैं,
तो तुम यह कहो, कि हमको एक सुंदर तलवार मिली है।"
सोनू ने जवाब दिया, "अरे नहीं नहीं, मैंने यह तलवार देखी और मुझे मिली है इसलिए, यह केवल मेरी तलवार है ।"
यह कहकर उसने उस तलवार को अपने पास रख लिया। मोनू ने कुछ नहीं कहा और दोनों आगे बढ़ने लगे।
जब वे दूसरे गाँव पहुँचने ही वाले थे, तो उनके सामने लोगों का एक झुंड दिखाई दिया।
और अचानक उन लोगों में से एक ने सोनू को यह कहते हुए पकड़ लिया,
"वह कातिल है, उसके पास हमारे गांव में हत्या के लिए इस्तेमाल की गई तलवार है।”
यह सुनकर सोनू डर गया और मोनू से कहा, "मेरे दोस्त, हम मुसीबत में फंस गए हैं। "
इस पर मोनू ने उत्तर दिया, "नहीं, हम नहीं । मुसीबत में सिर्फ तुम ही फसे हो। "
तभी लोग सोनू को जेल में डालने के लिए अपने साथ ले जाने लगे।
मोनू को अपने दोस्त के लिए बुरा लगा और उसने उस तलवार के कारण हुई गलतफहमी को दूर किया
और सोनू को उस परेशानी से बाहर निकाला।
बाद में सोनू ने अपने स्वार्थी व्यवहार के लिए मोनू से माफी मांगी और मुश्किल की घड़ी में
उनकी मदद करने के लिए उनका शुक्रिया अदा किया।
मोरल : हमें न केवल अपने दुखों को बल्कि अपनी खुशी को अपने दोस्तों के साथ भी साझा करना चाहिए।
बहुत समय की बात है एक राजू नाम का आदमी सोलापुर गांव मे रहता था।
वो बड़ा ही महंती आदमी था।
वो सरपंच के घर पानी भरने का काम किया करता था।
एक दिन वो मिट्टी के मटके लेने बाजार जाता है।
उसने देखा कि बजार में बहुत सुंदर मटके है लेकिन उसे मटका सजावट के लिए नहीं चाहिए था, बल्की पानी भरने के लिए चाहिए था।
उसने सारा बाजार देखा, आखिर उसे दो सुंदर मटके मिल गए, जिसमे अच्छा खासा पानी भरा जा सकता था।
तब राजू ने उनका भाव पूछा की ये मटके कितने के है, तो मटके वाले ने बोला कि उनका दाम है १०० रुपये,
तो राजू ने कहा मटका बहुत ही महंगा बेच रहे हों, तो मटके वाले ने कहा कि लेना है तो लो वरना आप की मर्जी।
क्योंकि राजू को मटके चाहिए थे तो राजू ने बोला की भाव कुछ कम नहीं हो सकते क्या ?
तब मटके वाले ने कहा कि आप के लिए 10 रुपए कम कर देता हू, 90 रुपए देदो, तब राजू ने कहा कि ठीक है तुम्हारा धन्यवाद भाई।
मटके लेकर राजू अपने घर वापस चला जाता है, घर आने के बाद उसकी पत्नि उसको पुछती है, आप सारा दिन कहा थे
वैसे तो आप पांच बजे घर आ जाते थे आज इतनी देर क्यू हो गई।
आज में दो मटके लेने बजार चला गया था।
वही मुझे थोड़ी देर हो गई, तब राजू की पत्नि ने कहा कि मटके किसलिए ?
हमे तो मटको कि जरूरत नही है, फिर आप मटके लेने क्यू गये थे?
तब राजू ने कहा कि अरे इतने सवाल एक साथ करोगी या खाना दोगी,या तुम्हारे सवाल खाकर सो जाऊं।
तब राजू की पत्नी ने कहा कि आप हाथ मुंह धो लो में अभी खाना लगाती हु।
तब खाना खाते हुए राजू उसे बताता है की सरपंच जी ने मुझे दो मटके लाने को कहा था।
इसलिए मुझे घर आने में देर हो गई।
तो राजू की पत्नी ने कहा अच्छा आप सरपंच के घर मे इसी मटको में पानी भरने वाले हो क्या?तब राजू ने कहा हां।
अगले दिन राजू सरपंच जी के घर जाता है, वो मटके दिखाता है।
तब सरपंच जी कहते है बड़े ही सुंदर मटके है, अब रोज पानी इसी से ले आना, राजू "जी सरपंच" और सुबह सुबह उठकर राजू पानी लाने के लिए निकल जाता है।
वो नदी से रोज उन मटकों में पानी लाता है और सरपंच जी के पौधों में डालता है। इसी तरह वो अपना रोज काम करता है।
एक दिन राजू पानी लेकर जा रहा था तो पास में बच्चे खेल रहे थे, बच्चे खेलते खेलते जोर से बॉल एक मटके पर मार देते हैं और एक mtka फुट जाता है, तब राजू सोचता है अब में क्या करू सरपंच जी को क्या जवाब दूं , राजू परेशान हो जाता है बड़ा उदास होकर सरपंच जी के पास जाता है , और बताता है की दो मे से एक मटका फूट गया है।
सरपंच राजू की बात सुनते हैं और कहते है , कोई बात नही राजू दुसरा मटका ले आओ, तब राजू बोलता है नही सरपंच जी ये मेरे कारण हुआ है, मैं इसी मटके से पानी लाऊंगा, चाहे मुझे पानी लेने दो बर क्यू ना जाना पड़े।
सरपंच राजू की बात मान लेते है, क्यूकी उन्हें पता था कि राजू मानेगा नही राजू मेहनत करने से पीछे नहीं हटता था।
इसी तरह वो पानी भरने रोज नदी जाता और पानी भरकर अपने कंधो पर रखता और सरपंच जी के घर ले जाता।
क्युकी उन दोनो मटकों में से एक मटका टूटा हुआ था तो उससे पानी बहता रहता था, और दूसरा मटका एक दम ठीक था।
राजू दोनो मटकों को एक ही जगह रखता था, तब दोनो मटके आपस मे एक दुसरे से बात करते है, तब एक दम ठीक मटका बोलता है तुम तो एक टूटे हुए मटके हो और कोई काम के नही हो, तुम्हारे अन्दर पानी लाकर मलिक की मेहनत बेकार होती है। तुम्हारे अन्दर से आधा से ज्यादा पानी बह जाता है, मैं तो तुमसे दो गुना फायदे मंद हु , मैं तुमसे जादा पानी लाता हूं। इसलिए मलिक मुझे पसंद करते है।
तब टूटा मटका बोला मुझमें दरार पड़ गई। इसलिए तुम मुझे देख कर हंस रहे हो। दूसरो को दुख मे देख कर हंसना बुरी बात है। तब ठीक मटका बोला तुमसे पानी बहता देख कर हंसी नही आयेगी क्या, अब सब तुमको टूटा घड़ा टूटा घड़ा कहेंगे।
ये सुनकर टूटा घड़ा उदास हो जाता है, हर वक्त अच्छा मटका उसे बेकार महसूस करवाता है, और नीचा दिखाता है। ये बात टूटे हुए मटके को लगती थी उसे लगता था कि वो कोई काम का नही रहा।
उसे सरमिंदगी महसूस होती थी। उसे लगा मैं मालिक के काम का नही रहा, हमेशा की तरह राजू पानी भरकर सरपंच जी के घर की ओर जा रहा था तभी टूटे हुए मटके ने कहा, मुझे हटाकर कोई और मटका ले आओ में कोई काम का नही हु। तो राजू ने कहा लेकिन क्यों?
मैं सारा पानी नही ले जा सकता। मुझमें जो दरारे हैं उस से पानी बह जाता है मैं आप पर बोझ हु मैं किसी काम का नही हु।
तब राजू ने कहा तुम सिर्फ अपनी बुराई देख रहे हो। लेकिन मैं तुम्हारे बुराई के पीछे छुपी अच्छाई को देख रहा हूं , इसीलिए मुझे तुम्हारे अन्दर कोई कमी नही दिखाई दी।
तुम्हे ऐसा क्यों लगता है, कि तुम मेरे किसी काम के नही हो? तुमने तो मेरी बहुत मदद कि है। तो टूटा मटका बोला की वो कैसे?
तब राजू कहता है जब में रोज नदी से वापस आता हूं, तब आधा पानी जमीन पर गिर जाता हैं, जिस वजह से वहां के जल रहे फूल अच्छे से उग रहे है।
तो तुम कैसे अपने आप को नकारा समझते हो?टूटा मटका बोला की इन सब मे आप की मदद कैसे हुई मालिक ?
तब राजू ने कहा की वो जो फूल उगते हैं। मैं उन्हे बजार में बेचकर कुछ पैसे कमा लेता हूं जिसे मुझे फायदा होता है।
ये सब तुम्हारे कारण ही तो हो पाया है तो अब से तुम कभी अपने आप को कम मत समझना, मटका बोला - ओह! मुझे पता नही था ऐसे भी काम आ सकता हूं।
यह सुनके अच्छे मटके को अपनी गलती का अहसास हो गया और टूटे मटके से माफी मांगता है - मुझे माफ़ कर दो मेरे दोस्त मेने तुम्हारा दिल दुखाया है, मुझे तुम्हारी कमजोरी का मजाक नही उड़ना चाहिए था। मैं अपनी गलती पर सरमिंदा हु मुझे माफ़ कर दो।
टूटा मटका बोला - चलो ठीक है तुमने अपनी गलती मान ली, इसलिए तुम्हे माफ किया।
एक गांव में दो मित्र रहते थे।
उनमें से एक अंधा था।
दोनों में इतनी मित्रता थी कि वह सदा एक दूसरे के साथ रहते थे, दोनों एक साथ रहते यहां तक उठते बैठते-सोते भी एक साथ थे।
दोनों लगते भी एक से थे।
वे दोनों बड़े अच्छे गायक थे वे गाते बजाते और इसी से अपना पेट भरते थे।
अंधा ढोल बजाता था और सुनखा गाना गाता था ।
किसी का जन्मदिन हो, जागरण हो, विवाह हो उन्हें दूर-दूर से बुलावा आता।
रामनवमी, जन्माष्टमी, कथा, सत्संग में उन्हें बुलाया जाता था।
विवाह शादी में तो उन्हें बहुत आमदनी होती थी।
सुनखा सारंगी का पारंगत था और नरम दिल था उसमें किसी प्रकार का छल नहीं था।
उसकी राज दरबार में बड़ी प्रशंसा होती थी।
अंधा ढोल या तबला बजाता था।
उसकी आवाज उतनी अच्छी नहीं थी ऊपर से वह बड़ा शकी और वहमी था।
सुनखा हर वक्त उसे बाह पकड़े चलाए रखत।
जो भी आमदनी होती या कोई वस्तु मिलती उसे अंधे के साथ बांट कर लेता।
कभी भी उससे हेरा फेरी नहीं करता।
फिर भी अंधा उस पर विश्वास नहीं करता था।
कई लोग होते हैं जिन्हें चुगली करने की आदत होती है।
वे एक की बात दूसरे से बड़ा चढ़कर करते हैं।
ऐसे ही एक चालाक आदमी ने अंधे से कहा – भाई तुम्हारे पास गुण भी है, तुम्हें अनुभव भी है. हां तुम्हारी आंखों में रोशनी नहीं है।
तुम्हारे मन में तो प्रकाश है। उसे तुम्हारे साथ ऐसा नहीं करना चाहिए।
अंधा बोला – तुम यह क्या कह रहे हो भाई साफ-साफ बताओ बात क्या है ?
आदमी बोला – देख भाई तू ढोल बजाता है और तुम्हारा मित्र गाता है ।
तुम दोनों अपनी-अपनी कला में सिद्ध हो।
तुम्हें लोग त्योहार के दिन खिचड़ी बबरु भी घर के लिए देते होंगे।
नहीं भैया मैं तो बबरु का स्वाद भी नहीं चखा।
तभी तुझे समझा रहा हूं उस आदमी ने कहा।
अंधे ने सोचा अच्छी-अच्छी चीज वह स्वयं खा जाता है और मुझे सुखा टिक्कड़ दे देता है।
एक दिन अंधे ने हिम्मत कर सुनखे को कहा देख भाई हम इकठठे तो रहते हैं, इकट्ठे बैठकर खाते नहीं।
आज से हम इकट्ठा ही खाएंगे ।
सूनखे ने कहा जैसा आपको अच्छा लगता है ठीक है।
उस दिन से वे इकट्ठा खाने लगे। सुनखा गांव में जाता कुछ इकट्ठा करता और दोनों एक ही पत्तल पर खाते।
एक दिन जब सुनखा गांव में अन्न लेने गया था उसे वही चालाक आदमी वहां मिला।
उसने अंधे को कहा – सुनाइए भाई आपका क्या हाल है ?
ठीक है भैया समय कट रहा है आपके कहने के बाद हम एक ही पत्तल में इकट्ठा खाते हैं।
पर भैया तुझे क्या पता जब वह अच्छा-अच्छा लाता है तो अकेला ही खा जाता है, तुझे तो रुखा सुखा ही देता है ऐसा कहकर वह चला गया।
अंधा फिर शक करने लगा। सुनखा मांग कर लाता और अंधे को भी खिलाता।
अंधे ने एक दिन कहा हमें आज अच्छा-अच्छा खाने को मिलेगा मुझे ऐसा लगता है।
अंधा लालची भी था। उन्हें आज किसी ने अपने घर खाने के लिए बुलाया था।
अंधे ने बाह पकड़ी और चल दिया।
चलते-चलते वे उस घर में पहुंच गए जहां से न्योता था।
वहां घर वालों ने उनके हाथ धुलाई और थालियां में खीर परोस दी।
दो थालियां में खीर पड़ी जान अंधे ने कहा देखो जी एक थाली आप उठा लो।
उन्होंने एक थाली उठा ली। महाराज खाना आरंभ कीजिए घर वालों ने कहा।
यह सुन सूनखा खाने लग गया। अंधा ने सोचा सुनखा ज्यादा ही न खा जाए यह सोच कर अंधा जल्दी जल्दी खाने लगा।
सुनखा कुछ नहीं बोला अब अंधे ने सोचा मैं दोनों हाथों से खाता हूं वह दोनों हाथों से खाने लग गया।
सुनखा फिर भी चुप रहा अब अंधे ने थाली ही उठाई और मुंह से लगा ली सुनखा फिर भी चुप रहा।
वह नीचे गिरी खीर भी खाने लगा।
सूनखा अभी भी कुछ खा रहा है यह सोच अंधा जल गया।
वह उसे हर कुछ बोलने लगा। बोलते क्यों नहीं तू चुप क्यों है ?
चुपचाप भैंस की तरह बैठा है। जरूर कुछ दाल में काला है मन में यह सोच वह जोर-जोर से रोने लग पड़ा।
लोगों मैं लुट गया मैं मर गया यह सुनखा मुझे भूखे मार रहा है।
उसने फिर खीर की थाली मुंह में लगा ली सुनक्खा उसकी ओर देखता रहा लेकिन कुछ नहीं बोला।
अंधे को देख रहे घर के आदमी हंसने लगे
एक बहुत सुंदर जंगल में, दो गहरे मित्र रहते थे - राजू और विनोद।
वे बचपन से ही साथ खेलते और बड़े हुए थे।
एक दिन, वे जंगल में सैर करने के लिए निकले और हँसते-खेलते जंगल के गहरे भाग में चले गए।
अचानक, उन्हें एक विशाल भालू नजर आया।
भालू को देखकर राजू बिना विचारे एक पेड़ पर चढ़ गया और विनोद को नीचे छोड़ दिया।
विनोद, जो पेड़ पर चढ़ना नहीं जानता था, समझदारी दिखाते हुए जमीन पर लेट गया और साँस रोककर मरा हुआ होने का नाटक करने लगा।
भालू धीरे-धीरे उसके पास आया और उसके कान के पास अपनी नाक लगाकर सूँघने लगा।
विनोद एकदम शांत रहा। भालू को लगा कि वह मर चुका है, और वह चला गया।
जब भालू चला गया, तो राजू पेड़ से नीचे उतरा और विनोद से पूछा, "भालू ने तुम्हारे कान में क्या कहा?"
विनोद ने उठते हुए जवाब दिया, "उसने मुझसे कहा कि सच्चे मित्र हमेशा साथ देतें हैं।"
यह सुनकर राजू को अपने किए पर शर्मिंदगी हुई।
उसे एहसास हुआ कि उसने अपने मित्र को अकेले खतरे में छोड़ दिया था।
इस घटना ने राजू को एक महत्वपूर्ण सबक सिखाया।
उसने विनोद से माफी माँगी और वादा किया कि वह भविष्य में कभी भी उसे अकेला नहीं छोड़ेगा।
विनोद ने उसे क्षमा कर दिया, और उनकी मित्रता पहले से भी ज्यादा मजबूत हो गई।
सच्चा मित्र वही है जो मुसीबत में साथ देता है।
इस कहानी से हमें यह सीखने को मिलता है कि संकट के समय में सच्चे मित्र की पहचान होती है। विनोद और राजू की कहानी हमें बताती है कि साहस और सच्ची दोस्ती