महाराज पृथु का पौत्र बर्हि बड़ा कर्मकाण्डी था।
वह दिन-रात तरह-तरह के कार्यो में लगा रहता था।
वह श्रीहरि की उपासना न करके देवी-देवताओं की उपासना किया करता था।
वह देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए तरह-तरह के यज्ञ और अनुष्ठान आदि किया करता था।
केवल यही नहीं बर्हि देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए जीवोंं की बलि भी दिया करता था।
जीवों को बलि देते समय वह हर्षित होता था और अपने आपको धन्य मानता था।
एक दिन देवर्षि नारद भ्रमण करते हुए बर्हि की सेना मे उपस्थित हुए।
बर्हि ने उनका स्वागत किया और बैठने के लिए उन्हें सुन्दर आसन दिया।
देवर्षि नारद ने बर्हि के कर्मकाण्डों की चर्चा करते हुए कहा-'राजन, आप दिन-रात देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए तरह-तरह के कर्म करते रहते हैं और पशुओं की बलि भी देते हैं।
आप कभी श्रीहरि को भी स्मरण करते हैं?
यह सुनकर नारद जी बोले-'राजन, यह ठीक है कि श्रीहरि सभी जीवों में निवास करते हैं, यह भी ठीक है कि देवी-देवताओं में भी भगवान श्रीहरि मौजूद हैं, किन्तु यह ठीक नहीं है कि देवी-देवताओं की आराधना के रूप में आप भगवान श्रीहरि की ही आराधना करते हैं।
भगवान श्रीहरि तो साकार भी हैं, निराकार भी हैं, वे भेदों से परे हैं। उनके सामने देवी-देवता भेदों से परे नहीं हैं।
भगवान श्रीहरि दयामय हैं वे भोगों और बलियों से प्रसन्न नहीं होते, वे प्रसन्न होते हैं प्रेम और भक्ति से।
मनुष्य को देवी और देवताओं की पूजा छोड़कर भगवान श्रीहरि के श्री चरणॊं से प्रेम करना चाहिए। उन्हीं में अपना मन रमाना चाहिए।
नारद का कथन सुनकर बर्हि मौन रहा, वह मन ही मन में कुछ सोचता रहा। नारद ने बर्हि की ओर देखते हुए पुनः कहा-"राजन, आप देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए पशुओं की बलि देते हैं, यह पाप है, अधर्म है। जीवों की हिंसा से बढकर, दूसरा पाप कोई नहीं होता। अतः आपको जीवों की बलि नहीं देनी चाहिए। किन्तु नारद के कथन का बर्हि के मन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वह उनके समझाने के बाद भी कर्मकाण्डों में लगा रहा, देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए बलि देता रहा।
बर्हि जब मृत्यु के पश्चात यमलोक में गया, तो उसके मार्ग को रोक कर सभी पशु खड़ॆ हो गए, जिनकी उसने बलि दी थी।
वे बर्हि को घूर-घूर कर देख रहे थे। बर्हि उन्हें देख कर डर गया और सहायता के लिए पुकारने लगा।
उसकी पुकार सुनकर यमदूत अट्टहास करने लगे।
उन्होंने बड़े जोर से हॅंसते हुए कहा-"मूर्ख, तुम जिन पशुओं की बलि देकर हर्षित हुआ करते थे, वे ही आज तुमसे बदला लेने के लिए तुम्हारे सामने खड़े हैं। तुम्हारी सहायता कोई नहीं कर सकता।'
यमदूतों का कथन सुनकर बर्हि आर्तस्वर में बोला-'मैंने जीवनभर जो भी हिंसा की थी, वह देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए की थी।'
यमदूत बोले-"मूर्ख, कोई भी देवी-देवता बलि से प्रसन्न नहीं होता।
मनुष्य अपने मन के विकारों के ही कारण देवी-देवताऒं को बलि दिया करता है।
अगर देवी और देवता बलि से प्रसन्न होते, तो क्या वे तुम्हारी सहायता नहीं करते। तुमने बड़ी भूल की है।
तुम आजीवन श्रीहरि को भूल कर देवियों और देवताओं के ही प्रपंचों में फंसे रहे। तुमने जो भूल और पाप किया है, उसका कुफल तुम्हें छोड़कर और कौन भोगेगा? यमदूतों का कथन सुनकर बर्हि सिर पीट-पीट कर पछताने लगा। वह सोचने लगा, 'काश, मैंने नारद जी की बात मान ली होती।' लेकिन अब पछताने से क्या फायदा।
जो लोग भगवान के चरणॊं में अनुराग न करके देवियों और देवताओं के ही जाल में फंसे रहते हैं, उन्हें बर्हि की भाँति ही पछताना पड़ता है।