नारद, पार्वत और श्रीजय

देवर्षि नारद और उनके भांजे पार्वत को तीनों लोकों में भ्रमण करने का सामर्थ्य था, एक बार इस मृत्युलोक पर उतर आए और मजे से घूमने-फिरने लगे।

दोनों ने यह समझौता कर लिया था कि वे अपने-अपने मन की अच्छी या बुरी कामनाएं एक दूसरे को बतला देंगे।

घूमते-फिरते वे दोनों एक बार राजा श्रीजय के दरबार में पहुँच गए। उनका यथोचित सत्कार हुआ और उन्होंने वहाँ कुछ दिनों तक आराम किया। राजा ने अपनी पुत्री सुकुमारी को उनकी सेवा पर नियुक्त किया था।

कुछ समय बाद देवर्षि नारद सुकुमारी पर आसक्त हो गए और उससे विवाह की कामना की। किन्तु अपने निश्चय के अनुसार इसकी सूचना अपने भांजे को नहीं दी। जो हो, पार्वत को अपने मामा का चेहरा देखकर ही उनकी मनोकामना का पता चल गया। उसने क्रोध में आकर नारद को शाप दे दिया कि उसकी सूरत बंदर जैसी हो जाए। पार्वत ने कहा- 'सुकुमारी तुमसे विवाह तो कर लेगी किन्तु उसको तुम बंदर जैसे नजर आओगे, दूसरों को तुम्हारा असली रूप नजर आया करेगा।'

नारद को और अधिक क्रोध आया कि एक ऎसे मनुष्य ने जो उसके पुत्र समान है, उसे शाप दे दिया कि वह अपनी इच्छा से स्वर्गलोक में नहीं जा पाएगा। इस प्रकार क्रोध में भरे मामा-भांजा एक दूसरे से अलग हो गए।

जब राजा श्रीजय को सुकुमारी के बारे में नारद की ऎसी इच्छा का ज्ञान हुआ, तो वह नारद जी जैसे मुनि को अपना दामाद बनाने को तैयार हो गए और सुकुमारी का विवाह उनसे कर दिया। कुछ काल बाद, पार्वत अपने मामा नारद के पास गए और उनसे अपना शाप वापस लेने को कहा।

नारद ने क्रोध भरा उत्तर दिया कि पार्वत छोटा है, अतः पहले उसे ही अपना शाप वापस लेना चाहिए। अंत में दोनों ने अपने-अपने शाप वापस लेकर मेल-मिलाप कर लिया।

श्रीजय ने उनसे यह वर मांगा कि उसे पुत्र प्राप्त हो। राजा बड़ा लोभी था। उसने यह वर भी मांगा कि उसके पुत्र के शरीर से जो भी मल-मूत्र निकले वह सोना होता चला जाए। नारद ने यह वर पार्वत से देने को कहा। पार्वत ने वर दे दिया।

समय पाकर राजा श्रीजय के घर पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसने पिता का घर सोने से भर दिया। राजा के घर में ऎसा सोना पैदा करने वाले पुत्र की खबर चारों ओर फैल गई। चोर उस लड़के को उठा ले गए और यह सोचकर कि उसके शरीर से बहुत-सा सोना निकलेगा, उसे मार डाला। पर जब शरीर से सोना न मिला तो उसे उठाकर फेंक दिया और भाग गए।

राजा ने अपने पुत्र का शरीर देखकर बहुत अधिक विलाप किया। तब नारद और पार्वत ने राजा को सोलह महान पुरुषॊं की कहानियां सुनाई, जो अपने काल के भरे उत्थान में मर गए थे। फिर श्रीजय से कहा-'यदि ऎसे नामी मनुष्य मर सकते हैं, तो तुम्हारे बेटे के मर जाने में कौन-सा अनर्थ हो गया? वह तो उन पुरुषॊं के सामने तुच्छ ही था।'

फिर भी राजा पर दया करके उन्होंने उसका पुत्र पुनर्जीवित कर दिया।