मारीच की माया और सोने का हिरन

शूर्पणखा का बड़ा भाई रावण लंका में राज करता था ।

वह अपने बल-प्रताप के लिए तीनों लोकों में विख्यात था। देवता उसके नाम से ही थर-थर काँपते थे।

कुबेर से उसने पुष्पक विमान छीन लिया था। खर-दूषण के मारे जाने पर शूर्पणखा समुद्र पार कर रोती-चिल्लाती रावण के पास पहुँची और बोली - भाई तेरे पौरुष को धिक्कार है ।

तेरे रहते मेरी यह दुर्गति हो रही है । अब तू कैसे मुँह दिखाएगा। इतना कहकर शूर्पणखा पछाड़ खाकर गिर पड़ी ।

रावण ने शूर्पणखा को उठाया और पूछा- किसने तेरे नाक काटे हैं ?

किसके सिर पर काल मँडरा रहा है ? बता तो सही !

शूर्पणखा ने सारा हाल कह सुनाया । राम-लक्ष्मण के बल और रूप की प्रशंसा करते हुए उसने कहा कि उनके साथ एक परम सुंदरी स्त्री भी है। उसका नाम सीता है । मैंने समझा कि ऐसी सुंदरी स्त्री लंका के राजमहल के योग्य है । उसे मैं

तुम्हारे लिए लाना चाहती थी जब उन्हें मालूम हुआ की मैं तुम्हारी बहन हूँ तो वे मुझसे हंसी करने लगे और लक्ष्मण ने मेरे नाक काट लिए ।

मेरी नाक जो गई वह तो लौंट नहीं सकती, पर उस सुंदरी को अवश्य ले आओ। बैरी की चुनौती स्वीकार करो।

खर-दूषण की मृत्यु के समाचार से रावण पहले तो कुछ घबराया, फिर उसने शूर्पणखा को समझा-बुझाकर सीता को ले आने का निश्चय कर लिया । उसने तुरंत अपना आकाशगामी रथ मँगाया और उसमें अकेले ही बैठकर समुद्र पार मारीच के पास पहुँचा ।

विश्वामित्र के आश्रम में श्रीराम के बाण से चोट खाकर मारीच समुद्र के किनारे तप करने लगा था। मारीच ने राक्षसराज का उचित सत्कार किया और इस तरह आने का कारण पूछा ।

रावण ने. मारीच को पूरी कहानी बताकर अपना आशय बताया और कहा कि सीता-हरण में तुम मेरी सहायता करो । सोने का हिरन बनकर तुम राम-लक्ष्मण को आश्रम से दूर ले जाओ । तभी मैं सीता को हर लाऊंगा । स्त्री के वियोग में राम या तो अपने आप मर जाएगा या उसका बल क्षीण हो जाएगा । तब में उसे सहज ही जीत लूँगा।

रावण की बात सुनकर मारीच के प्राण सूख गए । उसने राम के बाण की घटना सुनाकर कहा कि अब तो जब कोई राम का नाम लेता है अथवा “' अक्षरवाला कोई शब्द रथ', “राजा', 'रत्न' आदि बोलता है तो “र' सुनते ही मुझे कॉपकँपी लग जाती है । मेरी बात मानें तो राम से बेर न करें ।

मारीच की बात सुनकर रावण बड़ा क्रोधित हुआ और बोला, “मैं यहाँ तेरे उपदेश सुनने नहीं आया । आज्ञा देने'आया हूँ । हो सकता है "कि राम के बाण से तू बच जाए । लेकिन यदि मेरी बात नहीं मानी तो में तुझे अभी मार डालूँगा ।'” मारीच को विवश होकर रावण की बात माननी पड़ी । रथ में बैठकर दोनों पंचवटी पहुँचे और मारीच सोने का हिरन बनकर राम की कुटी के आस-पास घूमने लगा । रावण पेड़ों के झुरमुट में छिप गया ।

सोने के विचित्र हिरन को देखकर सीता उस पर मुग्ध हो गईं। उन्होंने राम से उसको पकड़ने का आग्रह किया । राम को कुछ संदेह तो हुआ, परंतु सीता के कहने पर वे उसके पीछे चल पडे ।

लुकता-छिपता मारीच राम को बहुत दूर ले गया ।

उसे पकड़ने का राम ने बहुत प्रयत्न किया, परन्तु वह पकड़ में न आया । तब राम ने एक कठोर बाण उस पर छोड़ दिया । बाण लगते ही मारीच गिर पड़ा और अपने असली रूप में आ गया । राम की बोली में वह जोर से चिल्लाया-- “हा सीता ! हा लक्ष्मण ! मैं मरा ।”'

राम की पुकार सुनते ही सीता लक्ष्मण से बोली--' भाई संकट में है । जल्दी जाओ ” लक्ष्मण ने कहा--“'माता, आप चिन्ता न करें आर्य राम का कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता । जो आवाज सुन पड़ी है, वह बनावटी मालूम पड़ती है । खर-दूषण के मारे जाने पर राक्षस बदला लेने पर उतारू हैं वे हर तरह का छल कर सकते हैं ।

जब लक्ष्मण किसी तरह उन्हें अकेला छोड़ने को तैयारं न हुए तो सीता अनेक प्रकार के दुर्वचन कहने लगीं । वे ब्रोलीं, “तुम भी भरत के गुप्तचर मालूम पड़ते हो । हो सकता है

मेरे ऊपर भी तुम्हरी कृदृष्टि हो। अगर आर्यपत्र को कुछ हो गया तो मैं गोदावरी नदी में डूब मरूंगी ।

होनी प्रबल होती है । इन कठोर वचनों से आहत होकर लक्ष्मण राम की खोज में चल पड़े । रावण ऐसे ही अवसर की तलाश में छिपा बैठा था । संन्यासी का भेष बनाकर वह सीताजी की कुटी पर वेद मंत्र बोलते हुए आ गया । सीताजी ने उचित अतिथि-सत्कार किया ।

तब रावण ने अपना नाम बताया और लंका चलने के लिए सीताजी से कहा ।

सीताजी ने उसे डांटा और राम का डर दिखाया । रावण ने समय खोना उचित न समझा । उसने झपटकर सीताजी को उठा लिया और आकाश यान में बेठाकर लंका की ओर चल दिया ।

सीताजी हा राम ! हा लक्ष्मण। !' चिल्लाती हुई रोती जाती थीं । प्रत्येक वृक्ष, पहाड़, पशु, पक्षी से वे निवेदन करतीं कि वे राम को बता दें कि लंका का राजा रावण तुम्हारी प्यारी रानी को पकड़ ले गया हे ।

गिद्धराज जटायु ने सीताजी का रोना सुना तो उसने अपने कोटर से निकलकर रावण को ललकारा और पूरी ताकत से वह रावण पर टूट पड़ा ।

उसने रावण का कवच काट डाला और उसे घायल कर दिया । जटायु ने रावण के धनुष-बाण काट डाले और उसका रथ भी तोड-फोड डाला ।

तब रावण ने तलवार से जटायु के पंख काट डाले और सीता को लेकर लंका की ओर चल दिया ।

रास्ते में सीता ने एक पहाड़ की चोटी पर कुछ बंदरों को बैठे देखा ।

रावण की आँख बचाकर उन्होंने अपने कुछ आभूषण एक कपड़े में बाँधे और पोटली को पहाड़ की चोटी पर गिरा दिया।

लंका पहुँचकर रावण ने सीता को अपना सारा राजमहल दिखाया और कहा कि यह सब. तुम्हारी ही है ।

तुम लंका की पटरानी बनने को तैयार हो तो मेरी सब रानियाँ तुम्हारी सेवा में रहेंगी । परंतु सीता किसी तरह न मानीं ।

वे बराबर उसे डाँटती रहीं । तब रावण ने सीता को अशोक वाटिका में रखकर उन पर कड़ा पहरा लगा दिया और कहा- मैं एक वर्ष का समय देता हूँ ।

यदि तू न मानी तो तेरा वध कर दिया जाएगा ।'' श्रीराम का ध्यान करते हुए सीता अपने दिन रो-रोकर काटने लगीं ।