वसंत ऋतु होने से वन में तरह-तरह के फूल खिल रहे थे।
उन पर भौरे मँडरा रहे थे।
आम पर कोयल कूकती थी, वन में मोर नाचते थे और सरोवरों में कमल खिले थे ।
सीता के न रहने पर राम को वन की यह शोभा बड़ा दुःख दे रही थी ।
अब वे ऋष्यमूक पर्वत को ओर बढ़े।
ऋष्यमूक पर्वत पर से सुग्रीव ने देखा कि दो धनुर्धर वीर पर्वत की ओर चलते आ रहे हैं ।
उसको शंका हुई कि कहीं बालि ही ने तो उन्हें नहीं भेजा ।
बालि उसका बड़ा भाई था और उसे मार डालना चाहता है ।
बालि के भय से ही सुग्रीव इस पर्वत पर रहता था । मतंग ऋषि के शाप के कारण वह ऋष्यमूक पर्वत पर नहीं आता था ।
सुग्रीव घबराया, फिर कुछ सोच-समझकर उसने हनुमान से पता लगाने के लिए कहा ।
हनुमान की बुद्धि और उनके बल पर सुग्रीव को बड़ा भरोसा था।
भेष बदलकर हनुमान राम-लक्ष्मण के पास गए ।
उन्होंने शिष्टता के साथ प्रणाम किया और संस्कृत भाषा में बातचीत की ।
रामचन्द्रजी से उन्होंने पूछा, ''आप इस बन में क्यों घूम रहे हैं ?
नर वेश में कोई देवता हैं या कहीं के राजकुमार हैं ? अगर राजकुमार हैं, तो मुनियों का-सा भेष क्यों बना रखा हे ?
मैं पवन का पुत्र हनुमान हूँ और पंपापुर के राजा बालि के छोटे भाई सुग्रीव का सेवक हूँ । सुग्रीव बड़े धर्मात्मा और बुद्धिमान हैं, उन्होंने मुझे यहाँ भेजा है । आपसे मिलकर उन्हें बड़ी प्रसन्नता होगी ।
राम ने हनुमान की बातें सुनकर समझ लिया कि वे बड़े अच्छे पंडित हैं । इनके मुँह से एक भी अशुद्ध या निरर्थक शब्द नहीं निकला | बोलते समय चेहरे पर कोई विकार नहीं दिखाई पष्ठा । जिनके ये मंत्री हैं वे भी ऐसे ही होंगे ।
लक्ष्मण बोले. “'हे हनुमान ! ये कौशल देश के राजा दशरथ के सबसे बड़े पुत्र राम हैं | मैं इनका छोटा भाई लक्ष्मण हूँ ।
पिता की आज्ञा से हम चौदह वर्ष को बन में रहने के लिए निकले हैं) साथ में भाई राम की धर्म पत्नी राजा जनक की पुत्री सीताजी भी थीं। पंचवटी के आश्रम से कोई दुष्ट राक्षस उन्हें उठा ले गया है ।
उन्हीं को हम खोज रहे हैं | कबंध ने सुग्रीव की प्रशंसा की थी । उनकी सहायता मिल जाए, तो काम बने ।
हनुमान ने समझ लिया कि राम और सुग्रीव दोनों की दशा समान है । दोनों को एक-दूसरे की मदद चाहिए, इसलिए दोनों में मित्रता हो सकती है ।
यह सोचकर राम-लक्ष्मण को उन्होंने अपने कंधों पर बैठाया और उछलते-कूदते और छलाँग भरते वे ऋष्यमृक पर्वत के शिखर पर जा पहुँचे । हनुमान ने सुग्रीव को राम का सारा हाल बताया और राम को सुग्रीव का ।
फिर आग को साक्षी करके दोनों की मित्रता कराई | राम ने कहा कि हम अग्निदेव के सामने प्रतिज्ञा करते हैं कि आज से तुम हमारे मित्र हुए । तुम्हारे सुख-दुख को हम अपना सुख-दुख मानेंगे | उपकार करना मित्र का लक्षण है और अपकार करना शत्रु का | सुग्रीव ने भी ऐसी ही शपथ ली | राम और सुग्रीव में बातें होने लगीं । हनुमान ने चन्दन की एक फूली हुई टहनी लक्ष्मण को दी ।
सुग्रीव ने सीता की खोज कराने का आश्वासन दिया ओर फिर सीताजी के गहनों की पोटली लाकर दिखाई । राम ने उन्हें तुरंत पहचान लिया ।
लक्ष्मण से भी उन्होंने पूछा ।
लक्ष्मण ने उत्तर दिया कि कानों के कुंडल और बाजूबंद के बारे में तो मैं कुछ नहीं कह सकता, नूपुरों को अवश्य पहचानता हूँ कि वे सीता माता के ही हैं ।
नित्य सवेरे चरण छूते समय उन्हें मैं देखता था।
विब हनुमंत उभय दिसि की सब कथा सुनाई ।
प्रावक साखी देइ करि जोरी प्रीति दृढ़ाड ॥
आभूषणों को देखकर राम शोक सागर में डूब गए ।
तब सुग्रीव ने उनको धीरज बँधाया और कहा कि मैं हर प्रकार से आपकी सहायता करूँगा ।
सीताजी अवश्य मिलेंगी ।
विपत्ति में सहायता देने वाला सच्चा मित्र होता है । मित्रता करना सहज है, पर उसे निभाना कठिन है ।
तब राम ने सुग्रीव से अपना हाल बताने के लिए कहा | सुग्रीव ने कहा, “किष्किधा का राजा महाबलवान बालि मेरा बड़ा भाई है। उसने मुझे राज्य से निकाल दिया है।
मेरी स्त्री छीन ली है।
मेरा वध करने की वह बराबर चेष्टा कर रहा है। उससे बचने के लिए में पृथ्वी का कोना-कोना छान डाला । हनुमान, नल और नील मेरे सच्चे साथी हैं | घोर विपत्ति में भी इन्होंने मुझे नहीं छोड़ा ।
सुग्रीव की कहानी सुनकर श्रीराम बोले कि मैं बालि को एक ही बाण से मार डालूगा | तुमको अपनीः स्त्री भी मिलेगी और राज्य भी मिलेगा।
फिर भी सुग्रीव को भरोसा नहीं हुआ | वह बोला, “हे रघुवीर बालि महाबलशाली है । पर्वतों को उखाड़कर वह गेंद की तरह फेंक देता है, बड़े-बड़े वृक्षों को एक ही धक्के से गिरा देता है।
महाभीषण दुंदुभी राक्षस को उसने बात ही बात में मार डाला था। सामने खडे सात शाल के वृक्षों को बालि एक साथ झकझोर कर पत्ता-पत्ता गिरा देता था | जो पुरुष एक ही बाण से सभी वृक्षों को काट देगा, वही बालि वध में समर्थ हो सकता है ।'
राम ने एक दिव्य बाण द्वारा सातों शाल-वक्षों को काट गिराया | सुग्रीव चकित हो गया और हाथ जोड़कर बोला कि आपके हाथों बालि मारा जा सकता है |
मुझे आपके बल पर भरोसा हो गया ।
राम ने कहा, “अब देर मत करो | चलकर बालि को युद्ध के लिए ललकारो ।
मैं पेडों की आड़ में छिपकर तुम्हारा युद्ध देखूँगा और अवसर पाते ही बालि पर बाण छोड दूँगा ।'